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| तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में रामेश्वरम् नामक एक विशाल द्वीप पर यह एक पवित्र स्थल स्थापित हैं | यह भारत के अत्यंत आदरणीय तीर्थस्थानों में से एक है | अति प्राचीन काल से यह मन्दिर अत्यंत पवित्र मान्यतायुक्त और सभी वर्गों के द्वारा पूजित रहा है | इसकी स्थापना श्रीराम ने की थी अतः इसका नाम रामेश्वर पड़ा | स्कन्द पुराण ',रामायण , रामचरित मानस , शिव पुराण नामक ग्रंथो में रामेश्वरम् की महिमा का वर्णन किया गया है | | | तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में रामेश्वरम् नामक एक विशाल द्वीप पर यह एक पवित्र स्थल स्थापित हैं | यह भारत के अत्यंत आदरणीय तीर्थस्थानों में से एक है | अति प्राचीन काल से यह मन्दिर अत्यंत पवित्र मान्यतायुक्त और सभी वर्गों के द्वारा पूजित रहा है | इसकी स्थापना श्रीराम ने की थी अतः इसका नाम रामेश्वर पड़ा | स्कन्द पुराण ',रामायण , रामचरित मानस , शिव पुराण नामक ग्रंथो में रामेश्वरम् की महिमा का वर्णन किया गया है | |
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− | लंका परचढ़ाई से पूर्व भगवान् राम ने यहाँ शिवपूजन कर आशीर्वाद | + | लंका परचढ़ाई से पूर्व भगवान् राम ने यहाँ शिवपूजन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। इसी प्रकार रावण-वध के बाद जगतमाता सीता के साथ सत्ययुग में हुई थी। सत्ययुग में नर और नारायण ने, त्रेता में भगवान लौटने पर भी श्रीराम ने यहाँ पूजन किया तथा ब्रह्महत्या करने का दत्तात्रेय ने, द्वापर में वेद-व्यास और कलियुग में आदि शंकराचार्य ने इस क्षेत्र की प्रतिष्ठा बढ़ायी। बद्रीनाथ का मन्दिर नारायण पर्वत की तलहटी प्रायश्चित किया। पवनपुत्र हनुमान द्वारा कलास से लाया गया। शिवलिंग भी पास में ही स्थापित है। रामेश्वर के परकोटे में 22 पवित्र कुंप हैं जिनमें तीर्थयात्री स्नान कर स्वयं को धन्य मानते हैं। लंका पर चढ़ाई के लिए जो पुल बनवाया था, राम ने विभीषण की प्रार्थना पर अपने धनुष से तोड़ दिया। उसी स्थान परधनुषकोटितीर्थ स्थापित है।अवशत्थामा द्रौपदी-पुत्रों की हत्या का प्रायश्चित करने यहाँ आया था। रामेश्वरम् धाम के आसपासअनेक छोटे-बड़े मन्दिर हैं, जैसे लक्ष्मणेश्वर शिव, पंचमुखी हनुमान, श्रीराम-जानकी मन्दिर। महाशिवरात्रि, वैशाख पूर्णिमा, ज्येष्ठ पूर्णिमा, आषाढ़ कृष्ण अष्टमी, नवरात्र रामनवमी, वर्ष-प्रतिपदा, विजयादशमीआदि पर्वों पर यहाँ विशेष पूजा की जाती है तथा महोत्सव मनाये जाते हैं। |
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− | प्राप्त किया। इसी प्रकार रावण-वध के बाद जगतमाता सीता के साथ सत्ययुग में हुई थी। सत्ययुग में नर और नारायण ने, त्रेता में भगवान् | |
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− | लौटने पर भी श्रीराम ने यहाँ पूजन किया तथा ब्रह्महत्या करने का दत्तात्रेय ने, द्वापर में वेद-व्यास और कलियुग में आदि शंकराचार्य ने इस | |
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− | क्षेत्र की प्रतिष्ठा बढ़ायी। बद्रीनाथ का मन्दिर नारायण पर्वत की तलहटी | |
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− | प्रायश्चित किया। पवनपुत्र हनुमान द्वारा कलास से लाया गया। शिवलिंग | |
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− | में अलकनन्दा के दायें किनारे पर स्थित है। यह स्थान माना दरें से 40
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− | भी पास में ही स्थापित है। रामेश्वर के परकोटे में 22 पवित्र कुंप हैं जिनमें | |
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− | तीर्थयात्री स्नान कर स्वयं को धन्य मानते हैं। लंका पर चढ़ाई के लिए जो कि.मी. दक्षिण में है। नीति दर्रा यहाँ से कुछ दूर है। आदिशांकराचार्य ने | |
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− | इसके महत्व को समझकर मन्दिर में उस प्राचीन प्रतिमा की प्रतिष्ठा
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− | पुल बनवाया था, राम ने विभीषण की प्रार्थना पर अपने धनुष सेतोड़ दिया। | |
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− | उसी स्थान परधनुषकोटितीर्थ स्थापित है।अवशत्थामा द्रौपदी-पुत्रों की करायी जो नारद कुण्ड में गिरकर खो गयी थी। चन्द्रवंशी गढ़वाल-नरेश | |
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− | ने विशाल मन्दिर का निर्माण करवाया। महारानी अहिल्याबाई ने मन्दिर
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− | हत्या का प्रायश्चित करने यहाँ आया था। रामेश्वरम् धाम के आसपास | |
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− | अनेक छोटे-बड़े मन्दिर हैं, जैसे लक्ष्मणेश्वर शिव, पंचमुखी हनुमान, पर सोने का शिखरचढ़वाया जो आज भी अपनी चमक बनाये हुए है।
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− | श्रीराम-जानकी मन्दिर। महाशिवरात्रि, वैशाख पूर्णिमा, ज्येष्ठ पूर्णिमा, मन्दिर के समीप पाँच तीर्थ ऋषि गांग, कूर्मधारा, प्रहलादधारा,तप्त कुण्ड | |
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− | आषाढ़ कृष्ण अष्टमी, नवरात्र रामनवमी, वर्ष-प्रतिपदा, विजयादशमीआदि औरनारद कुण्ड स्थापित हैंबद्रीनाथ धाम में नारद शिला,मार्कण्डेय शिला, | |
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− | पवाँ पर यहाँ विशेष पूजा की जाती है तथा महोत्सव मनाये जाते हैं। नृसिंह शिला, वाराह शिला,गरुड़ शिला नाम से पवित्र शिलाएँ स्थापित हैं।
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− | बद्रीनाथ सेथोड़ा उत्तर मेंअलकनन्दा के तटपरब्रह्मपाल नामक पुण्यक्षेत्र
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− | 1, अस्ति रामेश्वरम् नाम रामसेती पवित्रतम्। है।यहाँ परपूर्वजों का श्राद्ध करने से उन्हें अमित सन्तोष मिलता है। आठ <sub>क्षेत्राणमपि सर्वेषां तीथॉनमपि चोत्तममे। (स्कन्द ब्राह्मखण्ड)</sub>
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− | द्वारिका धाम
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| + | === द्वारिका धाम === |
| चारधाम तथा सप्तपुरियों मेंश्रेष्ठ द्वारिका भगवान् कृष्ण को अति प्रिय रही है। आदि शांकराचार्य ने यहाँ शारदा पीठ की स्थापना की और अपने शिष्य सुरेश्वराचार्य (मण्डन मिश्र) को पीठाधीश्वर के रूप में अधिष्ठित किया ।महाभारत, हरिवंश पुराण, वायुपुराण,भागवत, स्कन्दपुराण में द्वारिका का गौरवपूर्ण वर्णन है। भगवान् कृष्ण ने अपना अन्तिम समय यहीं पर व्यतीत किया। कृष्ण ने पापी कांस का वध मथुरा में किया, उससे क्रोधित होकर मगधराज जरासंघ ने कालयवन को साथ लेकरमथुरा पर आक्रमण किया। कृष्ण ने बचाव के लिए सौराष्ट्र में समुद्रतट पर जाना उचित समझा। वहाँउन्होंने सुदूढ़दुर्ग का निर्माण कियाऔरद्वारिका की स्थापना की। कृष्णा के इहलोक लीला-संवरण के साथ ही द्वारिका समुद्र में डूब गयी।आज द्वारिका एक छोटा नगरअवश्य है, परन्तुअपनेअन्तस्तल में गौरवपूर्ण सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहर छिपाकर रखे हुए है। यहाँ के मन्दिरों में रणछोड़राय का प्रमुख मन्दिर है। इसे द्वारिकाधीश मन्दिर भी कहते हैं। यह सात मंजिलों वाला भव्य मन्दिर है। कहते हैं रणछोड़राय की मूल मूर्ति को बोडाणा भक्त डाकोरजी ले गये। आजकल वह वहीं विराजमान है और रणछोड़राय मन्दिरमें स्थापित मूर्ति लाडवा ग्राम के एक कुप से प्राप्त हुईथी। रणछोड़रायजी के मन्दिर के दक्षिण में त्रिविक्रम मन्दिर तथा उत्तर में प्रद्युम्न जी का मन्दिरहै। बेट द्वारिका, सुदामा पुरी (पोरबन्दर)पास में ही स्थित है। महाप्रभु वल्लभाचार्य तथा श्री रामानुजाचार्य द्वारिका पधारे थे। स्वामी माधवाचार्य सन 1236-40 के मध्य यहाँ आये। | | चारधाम तथा सप्तपुरियों मेंश्रेष्ठ द्वारिका भगवान् कृष्ण को अति प्रिय रही है। आदि शांकराचार्य ने यहाँ शारदा पीठ की स्थापना की और अपने शिष्य सुरेश्वराचार्य (मण्डन मिश्र) को पीठाधीश्वर के रूप में अधिष्ठित किया ।महाभारत, हरिवंश पुराण, वायुपुराण,भागवत, स्कन्दपुराण में द्वारिका का गौरवपूर्ण वर्णन है। भगवान् कृष्ण ने अपना अन्तिम समय यहीं पर व्यतीत किया। कृष्ण ने पापी कांस का वध मथुरा में किया, उससे क्रोधित होकर मगधराज जरासंघ ने कालयवन को साथ लेकरमथुरा पर आक्रमण किया। कृष्ण ने बचाव के लिए सौराष्ट्र में समुद्रतट पर जाना उचित समझा। वहाँउन्होंने सुदूढ़दुर्ग का निर्माण कियाऔरद्वारिका की स्थापना की। कृष्णा के इहलोक लीला-संवरण के साथ ही द्वारिका समुद्र में डूब गयी।आज द्वारिका एक छोटा नगरअवश्य है, परन्तुअपनेअन्तस्तल में गौरवपूर्ण सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहर छिपाकर रखे हुए है। यहाँ के मन्दिरों में रणछोड़राय का प्रमुख मन्दिर है। इसे द्वारिकाधीश मन्दिर भी कहते हैं। यह सात मंजिलों वाला भव्य मन्दिर है। कहते हैं रणछोड़राय की मूल मूर्ति को बोडाणा भक्त डाकोरजी ले गये। आजकल वह वहीं विराजमान है और रणछोड़राय मन्दिरमें स्थापित मूर्ति लाडवा ग्राम के एक कुप से प्राप्त हुईथी। रणछोड़रायजी के मन्दिर के दक्षिण में त्रिविक्रम मन्दिर तथा उत्तर में प्रद्युम्न जी का मन्दिरहै। बेट द्वारिका, सुदामा पुरी (पोरबन्दर)पास में ही स्थित है। महाप्रभु वल्लभाचार्य तथा श्री रामानुजाचार्य द्वारिका पधारे थे। स्वामी माधवाचार्य सन 1236-40 के मध्य यहाँ आये। |
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