नियति तो है ही। परन्तु सत्य और तथ्य तो यह भी है कि भारत में आज भी ऐसे शिक्षकों का अभाव नहीं है। पैसे की अपेक्षा के बिना सेवा करने वाले, ज्ञान को श्रेष्ठ और पवित्र मानने वाले, पढ़ाने के पैसे नहीं लेने वाले अनेक शिक्षक हमारे समाज में हैं। केवल उनकी ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। वे भी इस बात को व्यक्तिगत मानकर उसे सामाजिक व्यवस्था बनाने का आग्रह नहीं करते हैं । अब हम यदि इसे व्यापक चर्चा का विषय बनाते हैं और आग्रह भी बढ़ाते हैं तो अनेक शिक्षक निःशुल्क शिक्षा देने के लिये तैयार हो जायेंगे। | नियति तो है ही। परन्तु सत्य और तथ्य तो यह भी है कि भारत में आज भी ऐसे शिक्षकों का अभाव नहीं है। पैसे की अपेक्षा के बिना सेवा करने वाले, ज्ञान को श्रेष्ठ और पवित्र मानने वाले, पढ़ाने के पैसे नहीं लेने वाले अनेक शिक्षक हमारे समाज में हैं। केवल उनकी ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। वे भी इस बात को व्यक्तिगत मानकर उसे सामाजिक व्यवस्था बनाने का आग्रह नहीं करते हैं । अब हम यदि इसे व्यापक चर्चा का विषय बनाते हैं और आग्रह भी बढ़ाते हैं तो अनेक शिक्षक निःशुल्क शिक्षा देने के लिये तैयार हो जायेंगे। |