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२२. घर में साधुसन्त, महापुरुष, कविकलाकार आदि का आगमन होता रहे, उनका AHN होता रहे, उनसे उपदेश श्रवण, अनुभव श्रवण, वार्ताविनोद होता रहे यह आवश्यक हैं ।
 
२२. घर में साधुसन्त, महापुरुष, कविकलाकार आदि का आगमन होता रहे, उनका AHN होता रहे, उनसे उपदेश श्रवण, अनुभव श्रवण, वार्ताविनोद होता रहे यह आवश्यक हैं ।
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२३. पारिवारिक समरसता बनी रहे इसकी ओर सभी समझदार सदस्यों ने ध्यान देना चाहिये । दो पीढ़ियों के बीच वैचारिक और व्यावहारिक एकसून्रता बनी रहे इस दृष्टि से मानसिक खुलापन विकसित हो यह भी शिक्षा का एक अंग ही है ।
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२३. पारिवारिक समरसता बनी रहे इसकी ओर सभी समझदार सदस्यों ने ध्यान देना चाहिये । दो पीढ़ियों के मध्य वैचारिक और व्यावहारिक एकसून्रता बनी रहे इस दृष्टि से मानसिक खुलापन विकसित हो यह भी शिक्षा का एक अंग ही है ।
    
२४. घर में रसोई को पवित्र स्थान माना जाता हो, गृहिणी को अन्नपूर्ण माना जाता हो, आहारशुद्धि को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता हो, भोजन को यज्ञ माना जाता हो और भोजन बनाने वाले का सबसे अधिक सम्मान होता हो उस घर में संस्कारों की रक्षा की समस्या नहीं होती ।
 
२४. घर में रसोई को पवित्र स्थान माना जाता हो, गृहिणी को अन्नपूर्ण माना जाता हो, आहारशुद्धि को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता हो, भोजन को यज्ञ माना जाता हो और भोजन बनाने वाले का सबसे अधिक सम्मान होता हो उस घर में संस्कारों की रक्षा की समस्या नहीं होती ।
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३६. परन्तु ऐसे अवसरों पर भी परिवार का एकत्व नहीं टूटना चाहिये । दोष, स्खलन, दण्ड, प्रायश्चित आदि को भुगतने में भी परिवार साथ रहना चाहिये । इसे व्यक्तिगत मामला नहीं बनाना चाहिये ।
 
३६. परन्तु ऐसे अवसरों पर भी परिवार का एकत्व नहीं टूटना चाहिये । दोष, स्खलन, दण्ड, प्रायश्चित आदि को भुगतने में भी परिवार साथ रहना चाहिये । इसे व्यक्तिगत मामला नहीं बनाना चाहिये ।
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३७. आजकल बेडरूम की संख्या से घर का वैभव आँका जाता है । बेडरूम की संख्या के हिसाब से डाइनिंग रूम की साइझ रखी जाती है । प्रदर्शन के हिसाब से ड्रोइंग रूम में पुस्तकों की आलमारी और पूजाघर होता है । इस प्रकार का घर नियत संख्या से अधिक लोगों का समावेश नहीं करता । वह आतिथ्यशील भी नहीं रहता । यह निश्चित ही असंस्कारिता है, भले ही इसे मोडर्न सभ्यता कहा जाता हो । इससे यह समझ में आना चाहिये कि घर की आन्तरिक पुर्ररचना का विचार गम्भीरतापूर्वक करना चाहिये ।
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३७. आजकल बेडरूम की संख्या से घर का वैभव आँका जाता है । बेडरूम की संख्या के हिसाब से डाइनिंग रूम की साइझ रखी जाती है । प्रदर्शन के हिसाब से ड्रोइंग रूम में पुस्तकों की आलमारी और पूजाघर होता है । इस प्रकार का घर नियत संख्या से अधिक लोगोंं का समावेश नहीं करता । वह आतिथ्यशील भी नहीं रहता । यह निश्चित ही असंस्कारिता है, भले ही इसे मोडर्न सभ्यता कहा जाता हो । इससे यह समझ में आना चाहिये कि घर की आन्तरिक पुर्ररचना का विचार गम्भीरतापूर्वक करना चाहिये ।
    
३८. अर्थात्‌ घर में बेडरूम कल्चर के स्थान पर लिविंगरूम कल्चर की प्रतिष्ठा बने । घर की रसोई बडी बने । रसोई का कोठार बडा बने । घर के व्यक्तियों के साथ बाहर के कोई न कोई भोजन के लिये नित्य साथ रहे। घर में अधिक अतिथि आये । घर में सब मिलकर काम करें । घर में प्राइवसी की मात्रा कम हो । घर में दिन में बिस्तर बिछे हुए न रहें । घर में काम करने की जगह अधिक हो ।
 
३८. अर्थात्‌ घर में बेडरूम कल्चर के स्थान पर लिविंगरूम कल्चर की प्रतिष्ठा बने । घर की रसोई बडी बने । रसोई का कोठार बडा बने । घर के व्यक्तियों के साथ बाहर के कोई न कोई भोजन के लिये नित्य साथ रहे। घर में अधिक अतिथि आये । घर में सब मिलकर काम करें । घर में प्राइवसी की मात्रा कम हो । घर में दिन में बिस्तर बिछे हुए न रहें । घर में काम करने की जगह अधिक हो ।
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४३. आज नौकरी अर्थार्जन का प्रचलित साधन बन गई है। नहीं बिकने योग्य वस्तुयें बिकने लगी हैं । बडे बडे उद्योगों में उत्पादन का केन्द्रीकरण हो रहा है । मनुष्य और प्रकृति के स्वास्थ्य की चिन्ता नहीं रही है । अर्थार्जन हेतु न्यायनीति का विचार करने की भी आवश्यकता नहीं लगती है । भ्रष्टाचार सामान्य बन गया है । मनुष्य स्वतन्त्रता और स्वमान खो चुका है। समाज दरिद्रि बन रहा है। आर्थिक और सांस्कृतिक अधःपतन के इस काल में परिवार को ही स्वायत्त बनने की पहल करनी होगी |
 
४३. आज नौकरी अर्थार्जन का प्रचलित साधन बन गई है। नहीं बिकने योग्य वस्तुयें बिकने लगी हैं । बडे बडे उद्योगों में उत्पादन का केन्द्रीकरण हो रहा है । मनुष्य और प्रकृति के स्वास्थ्य की चिन्ता नहीं रही है । अर्थार्जन हेतु न्यायनीति का विचार करने की भी आवश्यकता नहीं लगती है । भ्रष्टाचार सामान्य बन गया है । मनुष्य स्वतन्त्रता और स्वमान खो चुका है। समाज दरिद्रि बन रहा है। आर्थिक और सांस्कृतिक अधःपतन के इस काल में परिवार को ही स्वायत्त बनने की पहल करनी होगी |
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४४. जिसमें अन्य लोगों की रोजी छिन जाती हो ऐसा व्यवसाय टालना चाहिये । जिसमें स्वास्थ्य और पर्यावरण का नाश होता हो ऐसा व्यवसाय टालना चाहिये । संस्कारों की हानि होती हो ऐसा व्यवसाय भी नहीं करना चाहिये ।
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४४. जिसमें अन्य लोगोंं की रोजी छिन जाती हो ऐसा व्यवसाय टालना चाहिये । जिसमें स्वास्थ्य और पर्यावरण का नाश होता हो ऐसा व्यवसाय टालना चाहिये । संस्कारों की हानि होती हो ऐसा व्यवसाय भी नहीं करना चाहिये ।
    
४५. उपभोग के लिये परिवार ने कभी भी कर्ज नहीं लेना चाहिये । आज की बैंक लोन पद्धति इस सिद्धान्त की घोर विरोधी है और परिवारों की. आर्थिक स्वावलम्बिता और स्वमान का नाश करती है। इसके आकर्षण से मुक्त रहना और परिवार को भी मुक्त रहना सिखाना गृहस्वामी और गृहस्वामिनी का महत्‌ कर्तव्य है ।
 
४५. उपभोग के लिये परिवार ने कभी भी कर्ज नहीं लेना चाहिये । आज की बैंक लोन पद्धति इस सिद्धान्त की घोर विरोधी है और परिवारों की. आर्थिक स्वावलम्बिता और स्वमान का नाश करती है। इसके आकर्षण से मुक्त रहना और परिवार को भी मुक्त रहना सिखाना गृहस्वामी और गृहस्वामिनी का महत्‌ कर्तव्य है ।
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६१. परिवार में अर्थार्जन भी एक महत्त्वपूर्ण कार्य है । यह अब व्यक्तिगत विषय बन गया है। इसे पुनः पारिवारिक विषय बनाना चाहिये । पूरा परिवार मिलकर व्यवसाय करे यह अनेक प्रकार से लाभदायी है । परिवार का एकत्व बना रहता है यह सबसे बडा लाभ है।
 
६१. परिवार में अर्थार्जन भी एक महत्त्वपूर्ण कार्य है । यह अब व्यक्तिगत विषय बन गया है। इसे पुनः पारिवारिक विषय बनाना चाहिये । पूरा परिवार मिलकर व्यवसाय करे यह अनेक प्रकार से लाभदायी है । परिवार का एकत्व बना रहता है यह सबसे बडा लाभ है।
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६२. नई पीढी की आथर्जिन हेतु नौकरी की तलाश में भटकने की समस्या नहीं रहती । जन्म के साथ ही उसका अधथर्जिन सुरक्षित हो जाता है। साथ ही व्यवसाय के ही वातावरण में पलने के कारण अर्थार्जन हेतु व्यवसाय की शिक्षा भी शुरु हो जाती
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६२. नई पीढी की आथर्जिन हेतु नौकरी की तलाश में भटकने की समस्या नहीं रहती । जन्म के साथ ही उसका अधथर्जिन सुरक्षित हो जाता है। साथ ही व्यवसाय के ही वातावरण में पलने के कारण अर्थार्जन हेतु व्यवसाय की शिक्षा भी आरम्भ हो जाती
    
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गरीब होने पर किसीसे माँगकर जूते, वस्त्र, अलंकार आदि पहनना, मिष्टात्र खाने की लालसा से किसी के घर महेमान बनकर जाना, किसी के पुराने कपडे पहनना, नकली आभूषण पहनना आदि नहीं करना चाहिये । इसमें लज्जा का अनुभव होना चाहिये ।
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गरीब होने पर किसीसे माँगकर जूते, वस्त्र, अलंकार आदि पहनना, मिष्टात्र खाने की लालसा से किसी के घर महेमान बनकर जाना, किसी के पुराने कपड़े पहनना, नकली आभूषण पहनना आदि नहीं करना चाहिये । इसमें लज्जा का अनुभव होना चाहिये ।
    
७५. घर में श्रमप्रतिष्ठा, उद्यमशीलता, सेवापरायणता का वातावरण बनना. चाहिये ।. प्रसन्नता, उत्साह, सृजनशीलता का वातावरण बनना. चाहिये । हास्यविनोद, वार्तालाप, एकदूसरे के कार्यों में रुचि, सहयोग और सहभागिता आदि भी होना चाहिये ।
 
७५. घर में श्रमप्रतिष्ठा, उद्यमशीलता, सेवापरायणता का वातावरण बनना. चाहिये ।. प्रसन्नता, उत्साह, सृजनशीलता का वातावरण बनना. चाहिये । हास्यविनोद, वार्तालाप, एकदूसरे के कार्यों में रुचि, सहयोग और सहभागिता आदि भी होना चाहिये ।
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७६. परम्परा निभाने के कर्तव्य के भाग स्वरूप घर के छोटे सदस्यों को पूर्वजों का परिचय प्राप्त करवाना चाहिये, उनसे हमें कया कया प्राप्त हुआ है, उन्होंने कैसे कैसे उत्तम कार्य किये हैं और कौनसी मूल्यवान बातें हमें विरासत में दी हैं उसका वर्णन नई पीढी के समक्ष किया जाना चाहिये ।
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७६. परम्परा निभाने के कर्तव्य के भाग स्वरूप घर के छोटे सदस्यों को पूर्वजों का परिचय प्राप्त करवाना चाहिये, उनसे हमें क्या क्या प्राप्त हुआ है, उन्होंने कैसे कैसे उत्तम कार्य किये हैं और कौनसी मूल्यवान बातें हमें विरासत में दी हैं उसका वर्णन नई पीढी के समक्ष किया जाना चाहिये ।
    
७७. पडौसी के साथ आत्मीयता का सम्बन्ध बनाना चाहिये । आवश्यकता के अनुसार पडौसी की सहायता करना और उनसे सहायता लेना बिना उपकार की भावना से होना चाहिये । उपभोग की नई सामग्री पडौसी के साथ बाँटनी चाहिये ।
 
७७. पडौसी के साथ आत्मीयता का सम्बन्ध बनाना चाहिये । आवश्यकता के अनुसार पडौसी की सहायता करना और उनसे सहायता लेना बिना उपकार की भावना से होना चाहिये । उपभोग की नई सामग्री पडौसी के साथ बाँटनी चाहिये ।
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८३. अतिथिसत्कार कैसे करना यह भी विधिपूर्वक सिखाने की बात है । विनयपूर्वक मधुर सम्भाषण, परिचर्या, उनकी आवश्यकताओं की जानकारी, उनकी रुचि अरुचि की जानकारी प्राप्त करना आदि का कौशल सिखाने की बात है ।
 
८३. अतिथिसत्कार कैसे करना यह भी विधिपूर्वक सिखाने की बात है । विनयपूर्वक मधुर सम्भाषण, परिचर्या, उनकी आवश्यकताओं की जानकारी, उनकी रुचि अरुचि की जानकारी प्राप्त करना आदि का कौशल सिखाने की बात है ।
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८४. अर्थात्‌ मातापिता ने मिल कर अपनी सन्तानों को घर की स्वच्छता करना, कपडे-बर्तन, अन्य सामग्री की स्वच्छता करना, भोजन बनाना, करना, करवाना, बिस्तर लगाना, समेटना, घर के आवश्यक सामान की खरीदी करना, घर में सारा सामान व्यवस्थित रखना, घर सजाना आदि अनेक छोटे बडे काम सिखानें चाहिये । जिस परिवार में सभी सदस्यों को ये सारे काम अच्छी तरह करना आता है वही परिवार स्वावलम्बी होता है ।
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८४. अर्थात्‌ मातापिता ने मिल कर अपनी सन्तानों को घर की स्वच्छता करना, कपड़े-बर्तन, अन्य सामग्री की स्वच्छता करना, भोजन बनाना, करना, करवाना, बिस्तर लगाना, समेटना, घर के आवश्यक सामान की खरीदी करना, घर में सारा सामान व्यवस्थित रखना, घर सजाना आदि अनेक छोटे बडे काम सिखानें चाहिये । जिस परिवार में सभी सदस्यों को ये सारे काम अच्छी तरह करना आता है वही परिवार स्वावलम्बी होता है ।
    
८५. अर्थात्‌ भोजन के लिये पैसा कमाना इतना आवश्यक नहीं है जितना भोजन बनाने का कौशल प्राप्त करना और भोजन के शास्त्र को जानना । भोजन बनाना ही नहीं तो करना और करवाना भी आना चाहिये । साथ ही अन्य दैनन्दिन जीवन की अन्यान्य गतिविधियों से सम्बन्धित कामों को सीखने की व्यवस्था भी परिवार
 
८५. अर्थात्‌ भोजन के लिये पैसा कमाना इतना आवश्यक नहीं है जितना भोजन बनाने का कौशल प्राप्त करना और भोजन के शास्त्र को जानना । भोजन बनाना ही नहीं तो करना और करवाना भी आना चाहिये । साथ ही अन्य दैनन्दिन जीवन की अन्यान्य गतिविधियों से सम्बन्धित कामों को सीखने की व्यवस्था भी परिवार
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९२. परिवार में देशभक्ति की भावना के संस्कार मिलने चाहिये । उपभोग की सर्वसामग्री स्वदेशी हो इसका आग्रह रहना चाहिये । सस्ती है, सुन्दर है, सुलभ है, सुविधायुक्त है इसलिये विदेशी वस्तु खरीद सकते हैं यह अनुचित सिद्धान्त है ।
 
९२. परिवार में देशभक्ति की भावना के संस्कार मिलने चाहिये । उपभोग की सर्वसामग्री स्वदेशी हो इसका आग्रह रहना चाहिये । सस्ती है, सुन्दर है, सुलभ है, सुविधायुक्त है इसलिये विदेशी वस्तु खरीद सकते हैं यह अनुचित सिद्धान्त है ।
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९२. युवा पीढ़ी की उद्दण्डता परिवार में शिक्षा नहीं मिलने का ही परिणाम है । इस दृष्टि से बच्चों का संगोपन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय है । इस दृष्टि से मातापिता और सन्तानें अधिक से अधिक साथ साथ जी सकें ऐसी परिवार की जीवनचर्या बननी चाहिये । आज की तरह बडे अर्थार्जन के लिये और छोटे पढाई के लिये दिन का अधिकांश समय घर से बाहर और एकदूसरे से दूर ही रहता हो तब यह मामला बहुत कठिन हो जाता है ।
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९२. युवा पीढ़ी की उद्दण्डता परिवार में शिक्षा नहीं मिलने का ही परिणाम है । इस दृष्टि से बच्चोंं का संगोपन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय है । इस दृष्टि से मातापिता और सन्तानें अधिक से अधिक साथ साथ जी सकें ऐसी परिवार की जीवनचर्या बननी चाहिये । आज की तरह बडे अर्थार्जन के लिये और छोटे पढाई के लिये दिन का अधिकांश समय घर से बाहर और एकदूसरे से दूर ही रहता हो तब यह मामला बहुत कठिन हो जाता है ।
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९३. परिवार को सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि समाज में अनाथाश्रम, वृद्धाश्रम, अनाथनारी संरक्षण गृह आदि संस्थायें न पनपे । बेरोजगारी, अनाथों, बच्चों, विधवाओं, वृद्धों को पेन्शन देने की सरकारी
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९३. परिवार को सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि समाज में अनाथाश्रम, वृद्धाश्रम, अनाथनारी संरक्षण गृह आदि संस्थायें न पनपे । बेरोजगारी, अनाथों, बच्चोंं, विधवाओं, वृद्धों को पेन्शन देने की सरकारी
    
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