Difference between revisions of "बकरियों की मूर्खता की कहानी"
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− | एक समय की बात है, एक गाँव में कुछ बकरियां थीं जो गाँव में | + | एक समय की बात है, एक गाँव में कुछ बकरियां थीं जो गाँव में सदा घास चरने के लिए घूमती रहती थी। गाँव के मध्य में एक छोटी सी नहर थी, जिसे पार करने के लिए उसके ऊपर एक पतला पुल लकड़ियों की सहायता से बनाया गया था। जिसे एक समय पर केवल एक ही व्यक्ति पार कर सकता था। नहर के किनारे दोनों तरफ अच्छी और हरी भरी घास लगी रहती थी। एक दिन घास चरते-चरते कुछ बकरियां उस नहर के दोनों किनारे आ पहुंची। चरते चरते दोनों बकरियों ने सोचा कि क्यों ना उस पार जाकर घास चरने का आनंद लिया जाये । दो बकरियां अचानक एक साथ पुल पर एक ही समय पर चढ़ गईं। दोनों नहर पार करके दूसरे हिस्से में जाना चाहती थीं। अब एक ही समय पर दोनों बकरियां नदी के पुल पर थीं। |
पुल की चौड़ाई कम थी, इस कारण इस पुल से केवल एक ही बकरी एक बार में पार कर सकती थी, लेकिन दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं थी। इस पर एक बकरी ने कहा, ‘सुनो, मुझे पहले जाने दो, तुम मेरे बाद पुल पार कर लेना।’ वहीं, दूसरी बकरी ने जवाब दिया, ‘नहीं, पहले मुझे पुल पार करने दो, उसके बाद तुम पुल पार कर लेना।’ यह बोलते-बोलते दोनों बकरियां पुल के मध्य तक जा पहुंची। दोनों एक दूसरे की बात से सहमत नहीं थीं। | पुल की चौड़ाई कम थी, इस कारण इस पुल से केवल एक ही बकरी एक बार में पार कर सकती थी, लेकिन दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं थी। इस पर एक बकरी ने कहा, ‘सुनो, मुझे पहले जाने दो, तुम मेरे बाद पुल पार कर लेना।’ वहीं, दूसरी बकरी ने जवाब दिया, ‘नहीं, पहले मुझे पुल पार करने दो, उसके बाद तुम पुल पार कर लेना।’ यह बोलते-बोलते दोनों बकरियां पुल के मध्य तक जा पहुंची। दोनों एक दूसरे की बात से सहमत नहीं थीं। | ||
− | अब बकरियों के मध्य तू-तू मैंं-मैंं | + | अब बकरियों के मध्य तू-तू मैंं-मैंं आरम्भ हो गई। पहली बकरी ने कहा, ‘पहले पुल पर मैंं आई थी, अतः पहले मैंं पुल को पार करूंगी।’ तब दूसरी बकरी ने भी तुरंत जवाब दिया, ‘नहीं, पहले मैंं पुल पर आई थी, अतः पहले मैंं पुल पार करूंगी।’ यह झगड़ा बढ़ता चलता जा रहा था। इन दोनों बकरियों को बिल्कुल भी याद नहीं रहा कि वह कितने कम चौड़े पुल पर खड़ी हैं। दोनों बकरियां लड़ते-लड़ते अचानक से नहर में गिर गईं। नहर बहुत गहरी थी और उसका बहाव भी तेज था, जिस कारण दोनों बकरियां उस नदी में बहकर मर गईं। |
कुछ बकरियां यह सब देख रही थीं, फिर से दो बकरियां पुल आ गई परन्तु यह बकरियां समझदार थीं, अपनी सूझ बुझ से उन्होंने हल निकला। एक बकरी नीचे बैठ गई और दूसरी बकरी उसके ऊपर से दूसरी तरफ चली गई। इस प्रकार अपनी शांत बुद्धि का उपयोग करके दोनों बकरियां एक साथ पुल को पार कर लेती हैं । | कुछ बकरियां यह सब देख रही थीं, फिर से दो बकरियां पुल आ गई परन्तु यह बकरियां समझदार थीं, अपनी सूझ बुझ से उन्होंने हल निकला। एक बकरी नीचे बैठ गई और दूसरी बकरी उसके ऊपर से दूसरी तरफ चली गई। इस प्रकार अपनी शांत बुद्धि का उपयोग करके दोनों बकरियां एक साथ पुल को पार कर लेती हैं । | ||
== कहानी से सीख == | == कहानी से सीख == | ||
− | कभी किसी समस्या का हल झगडा करने या बहस करने नहीं निकलता, बल्कि इससे सभी का नुकसान ही होता है। | + | कभी किसी समस्या का हल झगडा करने या बहस करने नहीं निकलता, बल्कि इससे सभी का नुकसान ही होता है। अतः, ऐसी अवस्था में शांत भा से बुद्धि का उपयोग करना चाहिए। |
− | [[Category:बाल | + | [[Category:बाल कथाएँ एवं प्रेरक प्रसंग]] |
Latest revision as of 22:31, 12 December 2020
एक समय की बात है, एक गाँव में कुछ बकरियां थीं जो गाँव में सदा घास चरने के लिए घूमती रहती थी। गाँव के मध्य में एक छोटी सी नहर थी, जिसे पार करने के लिए उसके ऊपर एक पतला पुल लकड़ियों की सहायता से बनाया गया था। जिसे एक समय पर केवल एक ही व्यक्ति पार कर सकता था। नहर के किनारे दोनों तरफ अच्छी और हरी भरी घास लगी रहती थी। एक दिन घास चरते-चरते कुछ बकरियां उस नहर के दोनों किनारे आ पहुंची। चरते चरते दोनों बकरियों ने सोचा कि क्यों ना उस पार जाकर घास चरने का आनंद लिया जाये । दो बकरियां अचानक एक साथ पुल पर एक ही समय पर चढ़ गईं। दोनों नहर पार करके दूसरे हिस्से में जाना चाहती थीं। अब एक ही समय पर दोनों बकरियां नदी के पुल पर थीं।
पुल की चौड़ाई कम थी, इस कारण इस पुल से केवल एक ही बकरी एक बार में पार कर सकती थी, लेकिन दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं थी। इस पर एक बकरी ने कहा, ‘सुनो, मुझे पहले जाने दो, तुम मेरे बाद पुल पार कर लेना।’ वहीं, दूसरी बकरी ने जवाब दिया, ‘नहीं, पहले मुझे पुल पार करने दो, उसके बाद तुम पुल पार कर लेना।’ यह बोलते-बोलते दोनों बकरियां पुल के मध्य तक जा पहुंची। दोनों एक दूसरे की बात से सहमत नहीं थीं।
अब बकरियों के मध्य तू-तू मैंं-मैंं आरम्भ हो गई। पहली बकरी ने कहा, ‘पहले पुल पर मैंं आई थी, अतः पहले मैंं पुल को पार करूंगी।’ तब दूसरी बकरी ने भी तुरंत जवाब दिया, ‘नहीं, पहले मैंं पुल पर आई थी, अतः पहले मैंं पुल पार करूंगी।’ यह झगड़ा बढ़ता चलता जा रहा था। इन दोनों बकरियों को बिल्कुल भी याद नहीं रहा कि वह कितने कम चौड़े पुल पर खड़ी हैं। दोनों बकरियां लड़ते-लड़ते अचानक से नहर में गिर गईं। नहर बहुत गहरी थी और उसका बहाव भी तेज था, जिस कारण दोनों बकरियां उस नदी में बहकर मर गईं।
कुछ बकरियां यह सब देख रही थीं, फिर से दो बकरियां पुल आ गई परन्तु यह बकरियां समझदार थीं, अपनी सूझ बुझ से उन्होंने हल निकला। एक बकरी नीचे बैठ गई और दूसरी बकरी उसके ऊपर से दूसरी तरफ चली गई। इस प्रकार अपनी शांत बुद्धि का उपयोग करके दोनों बकरियां एक साथ पुल को पार कर लेती हैं ।
कहानी से सीख
कभी किसी समस्या का हल झगडा करने या बहस करने नहीं निकलता, बल्कि इससे सभी का नुकसान ही होता है। अतः, ऐसी अवस्था में शांत भा से बुद्धि का उपयोग करना चाहिए।