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ऐसी हमारी केवल मान्यता नही है वरन् ऐसी हमारी श्रद्धा है {{Citation needed}}। <blockquote>आकाशात् पतितंतोयं यथा गच्छति सागरं।</blockquote><blockquote>सर्वदेव नमस्कारं केशवं प्रतिगच्छति।</blockquote>जिस प्रकार बारिश का पानी धरती पर गिरता है। लेकिन भिन्न भिन्न मार्गों से वह समुद्र की ओर ही जाता है उसी प्रकार से शुद्ध भावना से आप किसी भी दैवी शक्ति को नमस्कार करें वह परमात्मा को प्राप्त होगा।
 
ऐसी हमारी केवल मान्यता नही है वरन् ऐसी हमारी श्रद्धा है {{Citation needed}}। <blockquote>आकाशात् पतितंतोयं यथा गच्छति सागरं।</blockquote><blockquote>सर्वदेव नमस्कारं केशवं प्रतिगच्छति।</blockquote>जिस प्रकार बारिश का पानी धरती पर गिरता है। लेकिन भिन्न भिन्न मार्गों से वह समुद्र की ओर ही जाता है उसी प्रकार से शुद्ध भावना से आप किसी भी दैवी शक्ति को नमस्कार करें वह परमात्मा को प्राप्त होगा।
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“विविधता या अनेकता में एकता” यह भारत की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि ऊपर से कितनी भी विविधता दिखाई दे सभी अस्तित्वों का मूल परमात्मा है इस एकमात्र सत्य को जानना। इसलिए भाषा, प्रांत, वेष, जाति, वर्ण आदि कितने भी भेद हममें हैं। भेद होना यह प्राकृतिक ही है। इसी तरह से सभी अस्तित्वों में परमात्मा (का अंश याने जीवात्मा) होने से सभी अस्तित्वों में एकात्मता की अनुभूति होने का ही अर्थ “विविधता या अनेकता में एकता” है। यही भारतीय संस्कृति का आधारभूत सिद्धांत है।  
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“विविधता या अनेकता में एकता” यह भारत की विशेषता है। इसका अर्थ यह है कि ऊपर से कितनी भी विविधता दिखाई दे सभी अस्तित्वों का मूल परमात्मा है इस एकमात्र सत्य को जानना। अतः भाषा, प्रांत, वेष, जाति, वर्ण आदि कितने भी भेद हममें हैं। भेद होना यह प्राकृतिक ही है। इसी तरह से सभी अस्तित्वों में परमात्मा (का अंश याने जीवात्मा) होने से सभी अस्तित्वों में एकात्मता की अनुभूति होने का ही अर्थ “विविधता या अनेकता में एकता” है। यही भारतीय संस्कृति का आधारभूत सिद्धांत है।  
    
=== पंच ॠण ===
 
=== पंच ॠण ===
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समृद्धि व्यवस्था में स्वतन्त्रता और सहानुभूति का सन्तुलन होता है।
 
समृद्धि व्यवस्था में स्वतन्त्रता और सहानुभूति का सन्तुलन होता है।
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जीवन का धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान धर्माधिष्ठित है। इसलिए समृद्धि व्यवस्था की पुनर्प्रतिष्ठा के लिए धर्म के और शिक्षा क्षेत्र के जानकार लोगों को ही पहल करनी होगी। शासन व्यवस्था का भी इसमें सहयोग अनिवार्य है। लेकिन परिवर्तन का वातावरण निर्माण करना विद्वानों का काम होगा। यथावश्यक शासन की मदद लेनी होगी।  
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जीवन का धार्मिक (भारतीय) प्रतिमान धर्माधिष्ठित है। अतः समृद्धि व्यवस्था की पुनर्प्रतिष्ठा के लिए धर्म के और शिक्षा क्षेत्र के जानकार लोगों को ही पहल करनी होगी। शासन व्यवस्था का भी इसमें सहयोग अनिवार्य है। लेकिन परिवर्तन का वातावरण निर्माण करना विद्वानों का काम होगा। यथावश्यक शासन की मदद लेनी होगी।  
    
== वर्तमान स्थिति से भारतीय तन्त्रज्ञान नीति तक जाने की प्रक्रिया ==
 
== वर्तमान स्थिति से भारतीय तन्त्रज्ञान नीति तक जाने की प्रक्रिया ==

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