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२३. प्रकट समारोहों में तो लोग धर्म का नाम लेने से भी डरते हैं। वे मूल्यशिक्षा ऐसा शब्द बोलेंगे परन्तु धर्मानुसारी शिक्षा ऐसा नहीं बोलेंगे । प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरीके से शिक्षा क्षेत्र से धर्म निष्कासित हो गया है । शिक्षा से ही निष्कासित हो जाएगा तो जीवन के सभी क्षेत्रों से होगा ही ।
 
२३. प्रकट समारोहों में तो लोग धर्म का नाम लेने से भी डरते हैं। वे मूल्यशिक्षा ऐसा शब्द बोलेंगे परन्तु धर्मानुसारी शिक्षा ऐसा नहीं बोलेंगे । प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरीके से शिक्षा क्षेत्र से धर्म निष्कासित हो गया है । शिक्षा से ही निष्कासित हो जाएगा तो जीवन के सभी क्षेत्रों से होगा ही ।
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२४. मैंने संक्षेप में आप सबके सम्मुख समस्या का निरूपण किया है । आप यह सब नहीं जानते हैं ऐसा तो नहीं हैं । आप न केवल जानते हैं, अपितु आप भुक्तभोगी भी हैं । मेरा निवेदन केवल इतना ही है कि हम केवल चिन्ता न करें अपितु उपाय क्‍या करें इसकी योजना करें । अभी हम आज चर्चा को विराम देंगे । आप आश्रम में आराम से रहें, चिंतन करें । कल हम फिर से इस विषय पर चर्चा शुरू करेंगे ।
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२४. मैंने संक्षेप में आप सबके सम्मुख समस्या का निरूपण किया है । आप यह सब नहीं जानते हैं ऐसा तो नहीं हैं । आप न केवल जानते हैं, अपितु आप भुक्तभोगी भी हैं । मेरा निवेदन केवल इतना ही है कि हम केवल चिन्ता न करें अपितु उपाय क्‍या करें इसकी योजना करें । अभी हम आज चर्चा को विराम देंगे । आप आश्रम में आराम से रहें, चिंतन करें । कल हम फिर से इस विषय पर चर्चा आरम्भ करेंगे ।
    
२५. स्वामीजी रुके । उनकी बातों में जानकारी तो नई नहीं थी परन्तु आवाहन का स्वरूप नया था । धर्माचर्यों को जिम्मेदारी की बात नई लगी । आज तक शिक्षा का धर्म के साथ सम्बन्ध नहीं जोडा गया था । आश्चर्य तो उसी बात का होना चाहिए था कि ऐसा कैसे हुआ । धर्म और शिक्षा का सम्बन्ध इतना स्वाभाविक है कि वह अब नहीं रहा है यही बात ध्यान में नहीं आई ।
 
२५. स्वामीजी रुके । उनकी बातों में जानकारी तो नई नहीं थी परन्तु आवाहन का स्वरूप नया था । धर्माचर्यों को जिम्मेदारी की बात नई लगी । आज तक शिक्षा का धर्म के साथ सम्बन्ध नहीं जोडा गया था । आश्चर्य तो उसी बात का होना चाहिए था कि ऐसा कैसे हुआ । धर्म और शिक्षा का सम्बन्ध इतना स्वाभाविक है कि वह अब नहीं रहा है यही बात ध्यान में नहीं आई ।
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=== धर्मचर्चा ===
 
=== धर्मचर्चा ===
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१. सभा पुनः शुरू हुई । वातावरण कुछ गम्भीर था । सबको विषय बहुत महत्त्वपूर्ण लग रहा था परन्तु उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि समस्या का हल कैसे निकाला जाय । कल सब आपस में बहुत चर्चा कर रहे थे परन्तु ठीक से जानकारी नहीं होने के कारण चर्चा बार बार भटक जाती थी ।
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१. सभा पुनः आरम्भ हुई । वातावरण कुछ गम्भीर था । सबको विषय बहुत महत्त्वपूर्ण लग रहा था परन्तु उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि समस्या का हल कैसे निकाला जाय । कल सब आपस में बहुत चर्चा कर रहे थे परन्तु ठीक से जानकारी नहीं होने के कारण चर्चा बार बार भटक जाती थी ।
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२. सभा शुरू हुई । स्वामीजीने खुली चर्चा का आयोजन किया था । उन्होंने प्रारम्भ में ही जिसे भी जो कहना हो वह कहने के लिए आवाहन किया । एक महात्मा खडे हुए । वे एक बड़ी पीठ के पीठाधीश थे । उनकी पीठ लौकिक दृष्टि से भी बहुत समृद्ध थी और सेवाकार्यों के लिए भी प्रसिद्ध थी । उन्होंने प्रभावी शैली में बात का प्रारम्भ किया ।
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२. सभा आरम्भ हुई । स्वामीजीने खुली चर्चा का आयोजन किया था । उन्होंने प्रारम्भ में ही जिसे भी जो कहना हो वह कहने के लिए आवाहन किया । एक महात्मा खडे हुए । वे एक बड़ी पीठ के पीठाधीश थे । उनकी पीठ लौकिक दृष्टि से भी बहुत समृद्ध थी और सेवाकार्यों के लिए भी प्रसिद्ध थी । उन्होंने प्रभावी शैली में बात का प्रारम्भ किया ।
    
३. मैं स्वामीजी को और सभाजनों को प्रणाम करता हूँ । कल मैंने सारी चर्चा सुनी । शिक्षा का विषय महत्त्वपूर्ण है इस बात से मेरी सहमति है । हमारे पीठ में जिस प्रकार सेवाकार्य होते हैं, अन्नसत्र चलाया जाता है, धर्मादाय चिकित्सालय चलाया जाता है उस प्रकार शिक्षा का भी प्रबन्ध किया गया है ।
 
३. मैं स्वामीजी को और सभाजनों को प्रणाम करता हूँ । कल मैंने सारी चर्चा सुनी । शिक्षा का विषय महत्त्वपूर्ण है इस बात से मेरी सहमति है । हमारे पीठ में जिस प्रकार सेवाकार्य होते हैं, अन्नसत्र चलाया जाता है, धर्मादाय चिकित्सालय चलाया जाता है उस प्रकार शिक्षा का भी प्रबन्ध किया गया है ।
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१. स्वामीजी और आचार्य विश्वावसु स्वामीजी की कुटीर के बाहर एक वृक्ष के नीचे बैठे थे । दोनों चिन्तित दिखाई दे रहे थे । कल की धर्मसभा कोलाहलसभा में परिवर्तित हो गई थी इसकी ही उन्हें चिन्ता हो रही थी । उन्हें ध्माचार्यों से बहुत अपेक्षा थी । परन्तु धर्माचार्यों ने उन अपेक्षाओं की कोई दखल ही नहीं ली।
 
१. स्वामीजी और आचार्य विश्वावसु स्वामीजी की कुटीर के बाहर एक वृक्ष के नीचे बैठे थे । दोनों चिन्तित दिखाई दे रहे थे । कल की धर्मसभा कोलाहलसभा में परिवर्तित हो गई थी इसकी ही उन्हें चिन्ता हो रही थी । उन्हें ध्माचार्यों से बहुत अपेक्षा थी । परन्तु धर्माचार्यों ने उन अपेक्षाओं की कोई दखल ही नहीं ली।
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२. बहुत देर तक मौन रहने के बाद स्वामीजी ने बोलना शुरू किया । उन्होंने कहा कि सारे धर्माचार्य बहुत ही नासमझी का व्यवहार कर रहे थे । उनका मिथ्या अहंकार उन्हें स्थिति को समझने ही नहीं दे रहा है । वे आज्ञानी होकर भी अपने आपको ज्ञानवान समझ रहे हैं। परन्तु ज्ञानियों जैसा विनय उनमें लेश मात्र नहीं है।
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२. बहुत देर तक मौन रहने के बाद स्वामीजी ने बोलना आरम्भ किया । उन्होंने कहा कि सारे धर्माचार्य बहुत ही नासमझी का व्यवहार कर रहे थे । उनका मिथ्या अहंकार उन्हें स्थिति को समझने ही नहीं दे रहा है । वे आज्ञानी होकर भी अपने आपको ज्ञानवान समझ रहे हैं। परन्तु ज्ञानियों जैसा विनय उनमें लेश मात्र नहीं है।
    
३. इनके बड़े बड़े मठ हैं । इनकी बड़ी बडी संस्थायें चलती हैं । इनके अनुयायीओं की संख्या बहुत बडी है। परन्तु यही बातें आवरण बनकर उन्हें सत्य को समझने से रोक रही हैं । धर्म के नाम पर ये अधर्म की दुनिया में विहार कर रहे हैं । विपरीत दिशा में जा रहे हैं और लोगों को ले जा रहे हैं ।
 
३. इनके बड़े बड़े मठ हैं । इनकी बड़ी बडी संस्थायें चलती हैं । इनके अनुयायीओं की संख्या बहुत बडी है। परन्तु यही बातें आवरण बनकर उन्हें सत्य को समझने से रोक रही हैं । धर्म के नाम पर ये अधर्म की दुनिया में विहार कर रहे हैं । विपरीत दिशा में जा रहे हैं और लोगों को ले जा रहे हैं ।
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६. दूसरी बात यह है कि आज समाज में भी “धर्म' संज्ञा अत्यन्त संकुचित अर्थ में प्रयुक्त होती है । विशेष रूप से राजीनति के प्रभाव से धर्म विवाद के घेरे में आ गया है। इस विवाद से उसे मुक्त करने की महती आवश्यकता है । यह काम धर्माचार्य ही कर सकते हैं ।
 
६. दूसरी बात यह है कि आज समाज में भी “धर्म' संज्ञा अत्यन्त संकुचित अर्थ में प्रयुक्त होती है । विशेष रूप से राजीनति के प्रभाव से धर्म विवाद के घेरे में आ गया है। इस विवाद से उसे मुक्त करने की महती आवश्यकता है । यह काम धर्माचार्य ही कर सकते हैं ।
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७. धर्म को विवाद के घेरे में फैँसाने का काम साम्यवादियों ने किया है । धर्म अफीम की गोली है' ऐसा कहने से उनकी तोडफोड की गतिविधियाँ शुरू हुई हैं जो अब “कहीं पर भी धर्म नहीं चाहिये कहने तक पहुँची हैं । राजनीति इससे बहुत प्रभावित हो गई है जिससे मामला और उलझ गया है ।'
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७. धर्म को विवाद के घेरे में फैँसाने का काम साम्यवादियों ने किया है । धर्म अफीम की गोली है' ऐसा कहने से उनकी तोडफोड की गतिविधियाँ आरम्भ हुई हैं जो अब “कहीं पर भी धर्म नहीं चाहिये कहने तक पहुँची हैं । राजनीति इससे बहुत प्रभावित हो गई है जिससे मामला और उलझ गया है ।'
    
८. धर्म को राजनीति और साम्यवाद के घेरे से बाहर निकालना, धर्माचार्यों का प्रथम कर्तव्य है । “धर्म- निरपेक्षता' जैसी संकल्पना कितनी हास्यास्पद और
 
८. धर्म को राजनीति और साम्यवाद के घेरे से बाहर निकालना, धर्माचार्यों का प्रथम कर्तव्य है । “धर्म- निरपेक्षता' जैसी संकल्पना कितनी हास्यास्पद और

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