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४. इस पाठशाला में वेश की तरह अन्य व्यवस्थाएँ भी धार्मिक हैं, पाश्चात्य नकल नहीं । सम्पूर्ण देश में सभी संस्थानों में बैठक व्यवस्था टेबल-कुर्सी की है जो पाश्चात्य है, परन्तु यहाँ की बैठक व्यवस्था नीचे गादी पर बैठकर काम करने की है, जो पूर्णतया धार्मिक व्यवस्था है । धार्मिक लोगों के अनुसार धार्मिक वेशभूषा व धार्मिक व्यवस्था को अपनाना |
 
४. इस पाठशाला में वेश की तरह अन्य व्यवस्थाएँ भी धार्मिक हैं, पाश्चात्य नकल नहीं । सम्पूर्ण देश में सभी संस्थानों में बैठक व्यवस्था टेबल-कुर्सी की है जो पाश्चात्य है, परन्तु यहाँ की बैठक व्यवस्था नीचे गादी पर बैठकर काम करने की है, जो पूर्णतया धार्मिक व्यवस्था है । धार्मिक लोगों के अनुसार धार्मिक वेशभूषा व धार्मिक व्यवस्था को अपनाना |
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५. बेरफुट के मुख्य केन्द्र तिलोणियाँ में उनका कार्यालय, कॉलेज, चिकित्सालय एवं अन्य उपक्रमों के नमूनारूप प्रयोग चलते हैं । यहाँ के चिकित्सालय में दन्त चिकित्सक हो या जल विभाग की प्रयोगशाला का कार्यकर्ता हो या रेडियो ब्रोडकास्टिंग की जिस पर जिम्मेदारी हों, ये सभी ग्रामीण लोग ही हैं, आज के विश्वविद्यालयों के डिग्रीधारी नहीं । चाहे सोलर लेम्प बनाना हो, चाहे सोलर कूकर या सोलर हीटर जैसे प्रोद्योगिक कामों में भी ये ग्रामीण महिलाएँ ही मुख्य भूमिका में होती है | तिलोणियाँ एवं इसके आस-पास के गाँवों में रोजगार के कोई अवसर नहीं है, अतः अधिकांश परिवार गरीब हैं, ऐसे गरीब परिवारों की बहिनों को यह अनोखी पाठशाला व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करती है । इस पाठशाला में पढ़नेवालों को कोई डिग्री नहीं मिलती, परन्तु यहाँ शिक्षित बहनें एक कुशल इंजिनीयर की तरह सोलर कूकर बनाती भी है और उसकी बिक्री भी करती है । बड़े-बड़े सोलर कूकर बनाते समय लोहे की पत्तियों कों काटना, मोड़ना और वेल्डिंग करना पड़ता है । अनोखापन इसी बात में है कि ये सारे काम इसी पाठशाला में पढ़ी ग्रामीण बहनें ही करती हैं । यहाँ से सीखकर वे अपने-अपने गाँव में अपना काम शुरू करती हैं । ये बहने सोलर हीटर भी बनाती हैं और ऑर्डर के अनुसार आस-पास के गाँवों में जाकर हीटर लगाती भी हैं ।
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५. बेरफुट के मुख्य केन्द्र तिलोणियाँ में उनका कार्यालय, कॉलेज, चिकित्सालय एवं अन्य उपक्रमों के नमूनारूप प्रयोग चलते हैं । यहाँ के चिकित्सालय में दन्त चिकित्सक हो या जल विभाग की प्रयोगशाला का कार्यकर्ता हो या रेडियो ब्रोडकास्टिंग की जिस पर जिम्मेदारी हों, ये सभी ग्रामीण लोग ही हैं, आज के विश्वविद्यालयों के डिग्रीधारी नहीं । चाहे सोलर लेम्प बनाना हो, चाहे सोलर कूकर या सोलर हीटर जैसे प्रोद्योगिक कामों में भी ये ग्रामीण महिलाएँ ही मुख्य भूमिका में होती है | तिलोणियाँ एवं इसके आस-पास के गाँवों में रोजगार के कोई अवसर नहीं है, अतः अधिकांश परिवार गरीब हैं, ऐसे गरीब परिवारों की बहिनों को यह अनोखी पाठशाला व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करती है । इस पाठशाला में पढ़नेवालों को कोई डिग्री नहीं मिलती, परन्तु यहाँ शिक्षित बहनें एक कुशल इंजिनीयर की तरह सोलर कूकर बनाती भी है और उसकी बिक्री भी करती है । बड़े-बड़े सोलर कूकर बनाते समय लोहे की पत्तियों कों काटना, मोड़ना और वेल्डिंग करना पड़ता है । अनोखापन इसी बात में है कि ये सारे काम इसी पाठशाला में पढ़ी ग्रामीण बहनें ही करती हैं । यहाँ से सीखकर वे अपने-अपने गाँव में अपना काम आरम्भ करती हैं । ये बहने सोलर हीटर भी बनाती हैं और ऑर्डर के अनुसार आस-पास के गाँवों में जाकर हीटर लगाती भी हैं ।
    
६. सोलर लेम्प बनाना भी इस कॉलेज में सिखाया जाता है, जिसमें देश-विदेश की बहनें सीखने के लिए आती हैं । जिन गाँवों में आज तक बिजली नहीं पहुँची, वहाँ की बहनें यहाँ आकर लेम्प बनाना सीखती हैं । एक और अनोखापन यहाँ देखने को मिलता है, वह यह कि सीखने वाले शिक्षार्थी की सिखाने वाले आचार्य की भाषा एक नहीं होती । एक ही कक्षा में पाँच-छः या कभी-कभी तो इससे भी अधिक भाषा बोलने वाली शिक्षार्थी बहनें होती है । ये अनेक देशों की होती हैं, जैसे - वियतनाम, सोमालिया, लीबेरिया, सूडान, झाँझीबार, सेनेगल आदि । इसी प्रकार हमारे देश के अलग- अलग राज्यों जैसे - असम, उडिसा, हिमाचल प्रदेश आदि से आनेवाली बहनें अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाली होती हैं । इतनी अधिक भाषाओं के लिए दूभाषिया रखना भी सम्भव नहीं होता । सीखना भी कोई सामान्य विषय नहीं, अपितु इलेक्ट्रोनिक्स इंजिनियरींग का काम ae भी नियत समय और मर्यादा में उन ग्रामीण-अनपढ़ बहनों को सीखना होता है । सोलर लेम्प के लिए सर्किट कैसे बनाना, उन्हें एसेम्बल कैसे करना, एसेम्बल करने के बाद उसकी जाँच करना, जाँचते समय कोई समस्या आ गई तो उसका निराकरण करना जैसी सभी बातें वे यहाँ सीखती हैं ।
 
६. सोलर लेम्प बनाना भी इस कॉलेज में सिखाया जाता है, जिसमें देश-विदेश की बहनें सीखने के लिए आती हैं । जिन गाँवों में आज तक बिजली नहीं पहुँची, वहाँ की बहनें यहाँ आकर लेम्प बनाना सीखती हैं । एक और अनोखापन यहाँ देखने को मिलता है, वह यह कि सीखने वाले शिक्षार्थी की सिखाने वाले आचार्य की भाषा एक नहीं होती । एक ही कक्षा में पाँच-छः या कभी-कभी तो इससे भी अधिक भाषा बोलने वाली शिक्षार्थी बहनें होती है । ये अनेक देशों की होती हैं, जैसे - वियतनाम, सोमालिया, लीबेरिया, सूडान, झाँझीबार, सेनेगल आदि । इसी प्रकार हमारे देश के अलग- अलग राज्यों जैसे - असम, उडिसा, हिमाचल प्रदेश आदि से आनेवाली बहनें अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाली होती हैं । इतनी अधिक भाषाओं के लिए दूभाषिया रखना भी सम्भव नहीं होता । सीखना भी कोई सामान्य विषय नहीं, अपितु इलेक्ट्रोनिक्स इंजिनियरींग का काम ae भी नियत समय और मर्यादा में उन ग्रामीण-अनपढ़ बहनों को सीखना होता है । सोलर लेम्प के लिए सर्किट कैसे बनाना, उन्हें एसेम्बल कैसे करना, एसेम्बल करने के बाद उसकी जाँच करना, जाँचते समय कोई समस्या आ गई तो उसका निराकरण करना जैसी सभी बातें वे यहाँ सीखती हैं ।

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