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भौगोलिक एवं सांस्कृतिक इकाई  
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== भौगोलिक एवं सांस्कृतिक इकाई ==
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विश्व में भारत प्राचीनतम देश है। वह भारतवर्ष और भरतखंड के नाम से भी जाना जाता रहा है। सबका भलीभाँति भरणपोषण करने की क्षमता रखने वाला होने के कारण से उसका यह नाम सार्थक हुआ है। भारत जंबुद्वीप के नौ खंडों में एक खंड है। प्राचीन काल में जिसे खंड कहते थे उसे आज देश कहा जाता है। आज जिसे खंड कहा जाता है उसे प्राचीन काल में द्वीप कहा जाता था। भारत का नाम आज भी भारत ही है। जंबुद्वीप का आज का नाम एशिया खंड है। समुद्र से अलग होने वाला भूभाग ट्वीप (आज की भाषा में खंड) और पर्वत से अलग होने वाला भूभाग खंड (आज की भाषा में देश) कहा जाताहै।
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विश्व में भारत प्राचीनतम देश है । वह भारतवर्ष और
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भारत जंबुद्वीप के अन्य खंडों (देशों) से हिमालय पर्वत से अलग पड़ता है। हिमालय भारत की उत्तरी सीमा है। रत्नाकर भारत की दक्षिण सीमा है। रत्नाकर को आज हिन्द महासागर कहा जाता है। प्राचीन भारत आज से बहुत विशाल था। हिमालय के पूर्व और पश्चिम छोर जहां समुद्र को मिलते थे वहाँ भारत की पूर्व और पश्चिम की सीमा थी । आज भारत की सीमायें बहुत सिकुड़ गईं हैं।
भरतखंड के नाम से भी जाना जाता रहा है । सबका
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भलीभाँति भरणपोषण करने की क्षमता रखने वाला
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होने के कारण से उसका यह नाम सार्थक हुआ है ।
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भारत जंबुद्विप के नौ खंडों में एक खंड है । प्राचीन
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काल में जिसे खंड कहते थे उसे आज देश कहा
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जाता है । आज जिसे खंड कहा जाता है उसे प्राचीन
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काल में द्वीप कहा जाता था । भारत का नाम आज
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भी भारत ही है जंबुद्वीप का आज का नाम एशिया
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खंड है ।
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समुद्र से अलग होने वाला भूभाग ट्वीप ( आज की
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प्राचीन भारत अनेक राज्यों में विभाजित होने पर भी राष्ट्र के रूप में एकसंध था । हिमालय से दक्षिण तक भारत एक राष्ट्र था। वह भारतवर्ष कहलाता था। '''राज्य अनेक राष्ट्र एक''' - ऐसी स्वाभाविक स्थिति थी । राष्ट्र सांस्कृतिक इकाई थी, राज्य शासकीय। धर्म और संस्कृति राष्ट्र की पहचान थी, सत्ता और व्यवस्था राज्य की। राज्य अनेक होने पर भी वे सांस्कृतिक एकात्मता को मानते थे । सांस्कृतिक इकाई का ही महत्त्व अधिक था
भाषा में खंड ) और पर्वत से अलग होने वाला
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भूभाग खंड ( आज की भाषा में देश ) कहा जाता
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है
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भारत जंबुद्वीप के अन्य खंडों ( देशों ) से हिमालय
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सांस्कृतिक इकाई का महत्त्व अधिक होने से धर्म और संस्कृति ही राष्ट्रजीवन के आधारभूत तत्त्व थे। धर्म धारण करने वाला तत्त्व है ऐसा मनीषी कहते हैं। धर्म ही आधारभूत तत्त्व होने से भारत चिरंजीवी बना। यही उसकी प्राचीनता का रहस्य है। किसी भी राष्ट्र को चिरंजीवी बनाने वाला धर्म एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होता रहा। ऐसे हस्तांतरण से ही परंपरा बनती है। परंपरा के कारण व्यक्तियों के आते और जाते रहने पर भी, काल के अनुसार अनेक परिवर्तन होते रहने पर भी राष्ट्र बनारहता है व्यक्ति मरणशील है, राष्ट्र नहीं
पर्वत से अलग पड़ता है । हिमालय भारत की उत्तरी
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सीमा है । रत्नाकर भारत की दक्षिण सीमा है।
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रत्नाकर को आज हिन्द महासागर कहा जाता है ।
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प्राचीन भारत आज से बहुत विशाल था । हिमालय
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के पूर्व और पश्चिम छोर जहां समुद्र को मिलते थे
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वहाँ भारत की पूर्व और पश्चिम की सीमा थी आज
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भारत की सीमायें बहुत सिकुड़ गईं हैं
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प्राचीन भारत अनेक राज्यों में विभाजित होने पर भी
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== विश्वकल्याणकारी ज्ञानोपासना ==
राष्ट्र के रूप में एकसंध था हिमालय से दक्षिण का
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धर्म और संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित करने का साधन शिक्षा है । वास्तव में जो धर्म सिखाती है वही शिक्षा है । भारत जितना प्राचीन है भारत की शिक्षा भी उतनी ही प्राचीन है । वास्तव में जीवन के साथ ही जीवन को चलाने वाली शिक्षा भी उत्पन्न होती है ऐसा कहना ही उचित है भारत का शिक्षा का इतिहास बहुत दीर्घ है। विश्व मानता है कि ऋग्वेद विश्व का प्रथम ज्ञान ग्रंथ है
भारत एक राष्ट्र था । वह भारतवर्ष कहलाता था ।
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राज्य अनेक राष्ट्र एक ऐसी स्वाभाविक स्थिति थी
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ऋग्वेद और उसके साथ ही शेष तीन वेद हैं। भारत की समृद्धि विश्व को अपनी ओर वेद अत्यंत उच्च कोटी की प्रज्ञा का परिणाम है ऐसा आकर्षित करती थी । समृद्धि का उपभोग लेने के
 
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राष्ट्र सांस्कृतिक इकाई थी, राज्य शासकीय । धर्म
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और संस्कृति राष्ट्र की पहचान थी, सत्ता और
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व्यवस्था राज्य की । राज्य अनेक होने पर भी वे
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सांस्कृतिक wat को मानते. थे । किंबहुना
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सांस्कृतिक इकाई का ही महत्त्व अधिक था ।
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सांस्कृतिक इकाई का महत्त्व अधिक होने से धर्म
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और संस्कृति ही राष्ट्रजीवन के आधारभूत तत्त्व थे ।
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धर्म धारण करने वाला तत्त्व है ऐसा मनीषी कहते
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हैं। धर्म ही आधारभूत तत्त्व होने से भारत चिरंजीवी
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बना । यही उसकी प्राचीनता का रहस्य है ।
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किसी भी राष्ट्र को चिरंजीवी बनाने वाला धर्म एक
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पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होता रहा । ऐसे
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हस्तांतरण से ही परंपरा बनती है । परंपरा के कारण
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व्यक्तियों के आते और जाते रहने पर भी, काल के
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अनुसार अनेक परिवर्तन होते रहने पर भी राष्ट्र बना
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रहता है । व्यक्ति मरणशील है, राष्ट्र नहीं ।
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विश्वकल्याणकारी ज्ञानोपासना
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धर्म और संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को
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हस्तान्तरित करने का साधन शिक्षा है । वास्तव में
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धर्म सिखाती है वही शिक्षा है ।
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भारत जितना प्राचीन है भारत की शिक्षा भी उतनी ही
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प्राचीन है । वास्तव में जीवन के साथ ही जीवन को
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चलाने वाली शिक्षा भी उत्पन्न होती है ऐसा कहना
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ही उचित है ।
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भारत का शिक्षा का इतिहास बहुत दीर्घ है । विश्व
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मानता है कि क्ग्वेद विश्व का प्रथम ज्ञान ग्रंथ है ।
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पश्चिमीकरण से भारतीय शिक्षा की मुक्ति
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क्रग्वेद, और उसके साथ ही शेष तीन था। भारत की समृद्धि विश्व को अपनी ओर
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वेद अत्यंत उच्च कोटी की प्रज्ञा का परिणाम है ऐसा आकर्षित करती थी । समृद्धि का उपभोग लेने के
   
प्रथम दर्शन में ही स्पष्ट होता है । लिए अथवा उसे लूटने के लिए बार बार विदेशी
 
प्रथम दर्शन में ही स्पष्ट होता है । लिए अथवा उसे लूटने के लिए बार बार विदेशी
    
१३. इसका अर्थ यह है कि क्रग्वेद से भी अत्यंत प्राचीन आक्रमण होते थे । परंतु भारत उन आक्रमणों का
 
१३. इसका अर्थ यह है कि क्रग्वेद से भी अत्यंत प्राचीन आक्रमण होते थे । परंतु भारत उन आक्रमणों का
काल से भारत की ज्ञानोपासना शुरू हुई और वेद तक सफल प्रतिकार करता रहा ।
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काल से भारत की ज्ञानोपासना आरम्भ हुई और वेद तक सफल प्रतिकार करता रहा ।
 
आते आते अत्यंत प्रगत अवस्था तक पहुंची । विश्व २०. भारत ने अनेक आक्रांताओं को अपना भी लिया
 
आते आते अत्यंत प्रगत अवस्था तक पहुंची । विश्व २०. भारत ने अनेक आक्रांताओं को अपना भी लिया
 
जिसकी कल्पना तक नहीं कर सकता था, ज्ञान की और अपने जीवन के मुख्य प्रवाह में उन्हें समरस कर
 
जिसकी कल्पना तक नहीं कर सकता था, ज्ञान की और अपने जीवन के मुख्य प्रवाह में उन्हें समरस कर
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और निःश्रेयस पारमार्थिक कल्याण को कहते हैं यह जो शिक्षा व्यवस्था थी उसकी विशेषतायें आज भी
 
और निःश्रेयस पारमार्थिक कल्याण को कहते हैं यह जो शिक्षा व्यवस्था थी उसकी विशेषतायें आज भी
 
तो सब जानते ही हैं । इन दोनों के सन्तुलन से ही ध्यान देने योग्य हैं । इन विशेषताओं के कारण ही
 
तो सब जानते ही हैं । इन दोनों के सन्तुलन से ही ध्यान देने योग्य हैं । इन विशेषताओं के कारण ही
जीवन उत्तम पद्धति से चलता है यह मनीषियों ने भारतीय शिक्षा संस्कृति और ज्ञान की परम्परा को न
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जीवन उत्तम पद्धति से चलता है यह मनीषियों ने धार्मिक शिक्षा संस्कृति और ज्ञान की परम्परा को न
 
आर्ष दृष्टि से जाना था । केवल बनाये रखने वाली बनी अपितु उत्तरोत्तर
 
आर्ष दृष्टि से जाना था । केवल बनाये रखने वाली बनी अपितु उत्तरोत्तर
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१९, भारत सुखी था, समृद्ध था, ज्ञानवान था, संस्कारयुक्त मनुष्य को विकास की ओर ले जाने वाले होते हैं ।
 
१९, भारत सुखी था, समृद्ध था, ज्ञानवान था, संस्कारयुक्त मनुष्य को विकास की ओर ले जाने वाले होते हैं ।
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==References==
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[[Category:Education Series]]
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[[Category:Dharmik Shiksha Granthmala(धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला)]]
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[[Category:धार्मिक शिक्षा ग्रंथमाला 4: पश्चिमीकरण से धार्मिक शिक्षा की मुक्ति]]

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