Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "शुरु" to "आरम्भ"
Line 138: Line 138:  
# कक्षा चल रही है तब शिक्षक की अनुमति के बिना विद्यार्थी तो क्या कोई भी नहीं आ सकता, यहाँ तक कि मुख्याध्यापक भी नहीं। जिस प्रकार मुख्याध्यापक विद्यालय का मुखिया है, शिक्षक अपनी कक्षा का मुखिया है। उसकी आज्ञा या अनुमति के बिना कुछ नहीं हो सकता। आजकल निरीक्षण करने के लिये आये हुए सरकारी शिक्षाविभाग के अधिकारी अनुमति माँगने की शिष्टता नहीं दर्शाते, परवाह भी नहीं करते । परन्तु यह होना अपेक्षित है।
 
# कक्षा चल रही है तब शिक्षक की अनुमति के बिना विद्यार्थी तो क्या कोई भी नहीं आ सकता, यहाँ तक कि मुख्याध्यापक भी नहीं। जिस प्रकार मुख्याध्यापक विद्यालय का मुखिया है, शिक्षक अपनी कक्षा का मुखिया है। उसकी आज्ञा या अनुमति के बिना कुछ नहीं हो सकता। आजकल निरीक्षण करने के लिये आये हुए सरकारी शिक्षाविभाग के अधिकारी अनुमति माँगने की शिष्टता नहीं दर्शाते, परवाह भी नहीं करते । परन्तु यह होना अपेक्षित है।
 
# कक्षा में शिक्षक के आसन पर और कोई नहीं बैठ सकता । कक्षा के बाहर अनेक व्यक्ति आयु में, ज्ञान में, अधिकार में शिक्षक से बड़े हो सकते हैं, वहाँ शिक्षक उनका उचित सम्मान करेगा परन्तु कक्षा के अन्दर सब शिक्षक का ही सम्मान करेंगे। विद्यार्थियों को भी इस बात की जानकारी होनी चाहिये, अन्यथा वे स्वयं ही खडे हो जाते हैं । शिक्षक का सम्मान करना है यह विषय शिक्षक स्वयं नहीं बतायेंगे, मुख्याध्यापक ने स्वयं विद्यालय के सभी छात्रों को सिखानी चाहिये। कक्षा में यदि मुख्याध्यापक या कोई वरिष्ठ अधिकारी या कोई सन्त आते हैं तब शिक्षक स्वयं विद्यार्थियों को खडे होकर प्रणाम करने की आज्ञा दे यही उचित पद्धति है।
 
# कक्षा में शिक्षक के आसन पर और कोई नहीं बैठ सकता । कक्षा के बाहर अनेक व्यक्ति आयु में, ज्ञान में, अधिकार में शिक्षक से बड़े हो सकते हैं, वहाँ शिक्षक उनका उचित सम्मान करेगा परन्तु कक्षा के अन्दर सब शिक्षक का ही सम्मान करेंगे। विद्यार्थियों को भी इस बात की जानकारी होनी चाहिये, अन्यथा वे स्वयं ही खडे हो जाते हैं । शिक्षक का सम्मान करना है यह विषय शिक्षक स्वयं नहीं बतायेंगे, मुख्याध्यापक ने स्वयं विद्यालय के सभी छात्रों को सिखानी चाहिये। कक्षा में यदि मुख्याध्यापक या कोई वरिष्ठ अधिकारी या कोई सन्त आते हैं तब शिक्षक स्वयं विद्यार्थियों को खडे होकर प्रणाम करने की आज्ञा दे यही उचित पद्धति है।
# कभी कभी मुख्याध्यापक, अन्य शिक्षक, अभिभावक या निरीक्षक भिन्न भिन्न कारणों से कक्षा देखना चाहते हैं। तब शिष्टाचार यह कहता है कि वे सब विद्यार्थियों की तरह कक्षा शुरु होने से पूर्व, शिक्षक कक्षा में आने से पूर्व कक्षा में पीछे जाकर बैठें और शिक्षक जब आयें. विद्यार्थियों की तरह शिक्षक को आदर दें और कक्षा के अनुशासन का पालन करें । विद्यार्थियों को यह अनुभव न होने दें कि कक्षा में शिक्षक से भी बड़ा कोई होता है।
+
# कभी कभी मुख्याध्यापक, अन्य शिक्षक, अभिभावक या निरीक्षक भिन्न भिन्न कारणों से कक्षा देखना चाहते हैं। तब शिष्टाचार यह कहता है कि वे सब विद्यार्थियों की तरह कक्षा आरम्भ होने से पूर्व, शिक्षक कक्षा में आने से पूर्व कक्षा में पीछे जाकर बैठें और शिक्षक जब आयें. विद्यार्थियों की तरह शिक्षक को आदर दें और कक्षा के अनुशासन का पालन करें । विद्यार्थियों को यह अनुभव न होने दें कि कक्षा में शिक्षक से भी बड़ा कोई होता है।
 
# कक्षा में शिक्षक जब तक खडे हों विद्यार्थी बैठने में संकोच करेंगे। वे बैठें यह उचित भी नहीं है। वह अशिष्ट आचरण है। अतः बैठकर पढाना, उत्तर आदि जाँचने की आवश्यकता हो तो विद्यार्थी का उठकर शिक्षक के पास जाना उचित है। शिक्षक खडे होकर पढायें । स्वयं विद्यार्थी के पास जायें ऐसी व्यवस्था उचित नहीं है। एक बार इस सिद्धान्त का स्वीकार हुआ तो उसके अनुकूल सारी व्यवस्थायें हो सकती हैं। आजकल तो हम पाश्चात्य सिद्धान्त के अनुसार चलते हैं इसलिये शिक्षक से खडे खडे पढाने की अपेक्षा करते हैं, फिर उसमें सुविधा देखते हैं । वास्तव में सभाओं में भाषण भी बैठकर होने चाहिये । निवेदन करना है तभी खडा होकर किया जाता है, प्रवचन, विषय प्रस्तुति, उपदेश, आदि खडे होकर नहीं दिये जातें ।
 
# कक्षा में शिक्षक जब तक खडे हों विद्यार्थी बैठने में संकोच करेंगे। वे बैठें यह उचित भी नहीं है। वह अशिष्ट आचरण है। अतः बैठकर पढाना, उत्तर आदि जाँचने की आवश्यकता हो तो विद्यार्थी का उठकर शिक्षक के पास जाना उचित है। शिक्षक खडे होकर पढायें । स्वयं विद्यार्थी के पास जायें ऐसी व्यवस्था उचित नहीं है। एक बार इस सिद्धान्त का स्वीकार हुआ तो उसके अनुकूल सारी व्यवस्थायें हो सकती हैं। आजकल तो हम पाश्चात्य सिद्धान्त के अनुसार चलते हैं इसलिये शिक्षक से खडे खडे पढाने की अपेक्षा करते हैं, फिर उसमें सुविधा देखते हैं । वास्तव में सभाओं में भाषण भी बैठकर होने चाहिये । निवेदन करना है तभी खडा होकर किया जाता है, प्रवचन, विषय प्रस्तुति, उपदेश, आदि खडे होकर नहीं दिये जातें ।
 
# कक्षा में या कक्षा के बाहर विद्यालय परिसर में शिक्षक आज्ञा करें, सूचना दें और विद्यार्थी उसका पालन न करें यह सम्भव ही नहीं है। जहाँ शिक्षक और विद्यार्थी अच्छे हों वहाँ देर से आये, अशिष्ट आचरण किया, गृहकार्य नहीं किया, सूचना या आज्ञा का पालन नहीं किया ऐसा हो ही नहीं सकता । दोनों का अच्छा होना पहली आवश्यकता है। दोनों अच्छे नहीं हैं तब तक अध्ययन अध्यापन हो ही नहीं सकता । इसलिये अच्छाई प्रथम सिखाना चाहिये, बाद में विषय । ये तो आचरण के विषय हैं । विद्यार्थी छोटे होते हैं। तब तो वे सरलता से यह सब करते हैं परन्तु अच्छे और सही आचरण का स्रोत हृदय के भाव होते हैं। शिक्षक के हृदय में विद्यार्थियों के प्रति प्रेम और विद्यार्थियों के हृदय में शिक्षक के प्रति श्रद्धा ही विनयशील आचरण का स्रोत है । विद्यार्थियों में श्रद्धा के भाव का स्रोत भी शिक्षक के हृदय का प्रेम ही है। जब यह होता है तब विद्यार्थी बड़े होते हैं तब विनयशील बने रहते हैं, नहीं तो किशोर आयु के विद्यार्थियों के लिये विनयशील होना कठिन हो जाता है। महाविद्यालय के विद्यार्थी विनयशील बने रहें इसके लिये शिक्षक में प्रेम और आचारनिष्ठा के साथ साथ ज्ञाननिष्ठा भी आवश्यक होती है। शिक्षक में यदि ये तीन नहीं हैं तो युवा विद्यार्थियों का विनयशील होना कठिन हो जाता है।
 
# कक्षा में या कक्षा के बाहर विद्यालय परिसर में शिक्षक आज्ञा करें, सूचना दें और विद्यार्थी उसका पालन न करें यह सम्भव ही नहीं है। जहाँ शिक्षक और विद्यार्थी अच्छे हों वहाँ देर से आये, अशिष्ट आचरण किया, गृहकार्य नहीं किया, सूचना या आज्ञा का पालन नहीं किया ऐसा हो ही नहीं सकता । दोनों का अच्छा होना पहली आवश्यकता है। दोनों अच्छे नहीं हैं तब तक अध्ययन अध्यापन हो ही नहीं सकता । इसलिये अच्छाई प्रथम सिखाना चाहिये, बाद में विषय । ये तो आचरण के विषय हैं । विद्यार्थी छोटे होते हैं। तब तो वे सरलता से यह सब करते हैं परन्तु अच्छे और सही आचरण का स्रोत हृदय के भाव होते हैं। शिक्षक के हृदय में विद्यार्थियों के प्रति प्रेम और विद्यार्थियों के हृदय में शिक्षक के प्रति श्रद्धा ही विनयशील आचरण का स्रोत है । विद्यार्थियों में श्रद्धा के भाव का स्रोत भी शिक्षक के हृदय का प्रेम ही है। जब यह होता है तब विद्यार्थी बड़े होते हैं तब विनयशील बने रहते हैं, नहीं तो किशोर आयु के विद्यार्थियों के लिये विनयशील होना कठिन हो जाता है। महाविद्यालय के विद्यार्थी विनयशील बने रहें इसके लिये शिक्षक में प्रेम और आचारनिष्ठा के साथ साथ ज्ञाननिष्ठा भी आवश्यक होती है। शिक्षक में यदि ये तीन नहीं हैं तो युवा विद्यार्थियों का विनयशील होना कठिन हो जाता है।

Navigation menu