Difference between revisions of "तेनाली रामा जी - जीवन की मूल्यवान वस्तु"

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Revision as of 10:42, 14 September 2020

विजयनगर राज्य की महानता और तेनालीरामा के बुद्धिकौशल की प्रशंसा चारो फैली हुई थी। हमेशा तेनालीरामा की परीक्षा के लिए कोई ना कोई आता रहता था। एक दिन एक विदेशी दर्शनार्थी विजयनगर राज्य पहुंच। महाराज की सभा लगी थी। सभा में वह दर्शनार्थी आया; उसका स्वागत किया गया। महाराज ने उस दर्शनार्थी से विजयनगर आने के प्रयोजन के बारे पूछा। दर्शनार्थी ने उत्तर दिया "महाराज मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। जो कोई भी इस प्रश्न का उत्तर दे देगा, उसे मैं रत्न जड़ित हार पारितोषिक स्वरूप दूंगा।"

महारज ने दर्शनार्थी को प्रश्न पूछने की अनुमति दे दी। दर्शनार्थी ने प्रश्न किया कि जीवन की सबसे मूल्यवान वस्तु क्या है? सभासदों ने कहा बहुत आसान प्रश्न है। एक एक कर सभी अपना उत्तर देने लगे। किसी ने कहा धन, किसी ने कहा राज्यकोश का धन, किसी ने कहा अच्छा व्यापार, किसी ने कहा परिवार, परन्तु दर्शनार्थी उनके उत्तरों से संतुष्ट नही हुआ। महाराज ने तेनालीरामा की ओर देखा, तेनालीरामा खड़े हुए और उसने उत्तर दिया कि महाराज इस प्रश्न का उत्तर है "स्वतंत्रता"। उत्तर सुनते ही दर्शनार्थी ने कहा "क्या आप इसका प्रमाण दे सकते हैं?" तेनालीरामा ने कहा "जी मैं इसको प्रमाणित कर सकता हूँ, परन्तु इसे प्रमाणित करने के लिये मुझे कुछ समय चाहिए।"

महाराज ने कहा "ठीक है, आप कुछ दिनों तक हमारा आतिथ्य स्वीकार कीजिये। आप के ठहरने की व्यवस्था की जिम्मेदारी तेनालीरामा को दी जाती है। तेनालीरामा ने दर्शनार्थी के ठहरने की पूरी व्यवस्था की, खाने के लिए स्वादिष्ट एवं पसंदीदा भोजन, पीने के लिए विभिन्न प्रकार के रस, मनोरंजन के लिए अच्छे संगीत की व्यवस्था की और प्रत्येक आवश्यकताओं की पूर्ति का आदेश दे दिया गया।

एक दिन दर्शनार्थी ने विश्राम गृह के खिड़की के बाहर मनमोहक दृश्य दिखा। उसे वहां भ्रमण की इच्छा हुई। जैसे ही वह कक्ष के बाहर निकला, वैसे ही सैनिको ने उसे रोक दिया। उसे लगा कि उसकी सुरक्षा के लिए यह व्यवस्था की गई है। कई दिन बीत गये, अब दर्शनार्थी एक ही जगह पर रहते -रहते परेशान हो गया था। उसे सारी सुख सुविधाएं फीकी लगने लगी ।

दशानार्थी महाराज के समक्ष प्रस्तुत हुआ और उसने कहा मैं बहुत परेशान हो चूका हूँ। महाराज ने उससे पूछा क्या आपकी व्यवस्था तेनाली रामा ने अच्छी नहीं की है ? दर्शनार्थी ने उत्तर दिया "नहीं महाराज तेनालीरामा ने व्यवस्था बहुत ही अच्छी की है परन्तु मैं उसका आनंद नहीं ले पा रहा हूँ । एक ही स्थान पर रहते रहते मैं परेशान हो गया हूँ।" महाराज ने कहा "एक ही स्थान पर क्यों?" तेनालीरामा ने उत्तर दिया "महाराज मैं प्रश्न के उत्तर को प्रमाणित कर रहा था कि कितनी भी उत्तम से उत्तम सुख-सुविधा क्यों ना हो परन्तु कैद में रहकर वह सब फीकी लगाती है । स्वतंत्रता सबसे बड़ा उपहार है और सबसे बड़ा धन है।

तेनालीरामा के उत्तर से दर्शनार्थी बहुत प्रसन्न होता है और उसे रत्न जड़ित हर पारितोषिक स्वरुप तेनालीरामा को देता है । महाराज भी तेनालीरामा से बहुत प्रसन्न होते है और उपहार देते है ।