Difference between revisions of "तेनाली रामा जी - मटके का मुँह"
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अपने आदेश दिया था की मै तुम्हारा मुख देखना नहीं चाहता हूँ इसलिए मै मटके के मुख में आया हूँ , सच में आपको मेरा मुख दिख रही कही कुम्भर ने मुझे छिद्र वाली मटकी तो नहीं दे दी। महाराज तेनालीरामा की युक्ति पर हँस पड़े और युक्ति की शाबाशी देने लगे। सारा गुस्सा शांत हो गया और महाराज ने कहा "तेनालीरामा जी आप अपनी बुद्धिकौसल से हमारा मन जीत ही लेते है "| | अपने आदेश दिया था की मै तुम्हारा मुख देखना नहीं चाहता हूँ इसलिए मै मटके के मुख में आया हूँ , सच में आपको मेरा मुख दिख रही कही कुम्भर ने मुझे छिद्र वाली मटकी तो नहीं दे दी। महाराज तेनालीरामा की युक्ति पर हँस पड़े और युक्ति की शाबाशी देने लगे। सारा गुस्सा शांत हो गया और महाराज ने कहा "तेनालीरामा जी आप अपनी बुद्धिकौसल से हमारा मन जीत ही लेते है "| | ||
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+ | [[Category:बाल कथाए एवं प्रेरक प्रसंग]] |
Revision as of 15:05, 12 September 2020
महाराज कृष्णदेवराय एक दिन तेनालीरामा से बहुत ही अधिक नाराज थे । महाराज इतने अधिक नाराज थे की उन्होंने सभी मंत्री गण एवं दरबारियों के समक्ष तेनालीरामा को डाटते हुए कहा की दरबार से बहार निकल जाइये, कल से मै आपका चेहरा नहीं देखना चाहता । तेनालीरामा दरबार से बहार चले जाते है ।
दुसरे दिन जब महाराज दरबार की तरफ आ रहे थे तभी कुछ चाटुकार मार्ग में मिल गए और महाराज से कहने लगे की " महाराज आपने तेनाली रामा को ज्यादा सर पर चढ़ा रखा है वह किसी की आज्ञा ही नहीं सुनता है। आपकी आज्ञा का भी पालन उसने नहीं किया । महाराज ने पुछा मेरी कौन सी आज्ञा का पालन नही किया ? चाटुकारों ने उत्तर दिया महाराज आपने तेनालीरामा को दरबार में आने से मना किया था परन्तु उन्होंने आपकी आज्ञा का उलंघन करते हुए दरबार में आसन जमाकर बैठा है ।
आपका तो वह आदर भीं नहीं कर रहा है । महाराज और भी क्रोधित हो गए और दरबार की ओर बढ़ चले दरबार में पहुंच कर उन्होंने देखा की तेनालीरामा मिटटी के घड़े में अपना चेहरा छुपाया हुआ था और उस पर आंख और पत्तो से कान ओर बाल बनाये थे जैसे कोई जानवर का मुख हों । महाराज ने क्रोध भरे स्वर कहाँ "तेनालीरामा जी यह क्या मजाक कर रहे है आप मेरा अपमान कर रहे है और आज्ञा का उल्लंघन कर रहे है । आप मृत्यु दण्ड के भागी है । तेनालीरामा ने उत्तर दिया महाराज मैंने तो आपका अपमान नहीं किया और आपकी आज्ञा का पूर्ण रूप से पालन किया है ।
अपने आदेश दिया था की मै तुम्हारा मुख देखना नहीं चाहता हूँ इसलिए मै मटके के मुख में आया हूँ , सच में आपको मेरा मुख दिख रही कही कुम्भर ने मुझे छिद्र वाली मटकी तो नहीं दे दी। महाराज तेनालीरामा की युक्ति पर हँस पड़े और युक्ति की शाबाशी देने लगे। सारा गुस्सा शांत हो गया और महाराज ने कहा "तेनालीरामा जी आप अपनी बुद्धिकौसल से हमारा मन जीत ही लेते है "|