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| | == साथ मिलकर दायित्व निभाना == | | == साथ मिलकर दायित्व निभाना == |
| − | जब छात्र और गुरु अथवा आचार्य साथ साथ रहते | + | जब छात्र और गुरु अथवा आचार्य साथ साथ रहते हैं तब छात्रों को गुरुकुल चलाने के दायित्व में भी सहभागिता करनी होती है । साफ सफाई के सारे काम, भिक्षा माँगकर लाना, गुरुकुल के निभाव के लिये यदि भूमि है और उसमें खेती होती है तो खेती का काम, गोपालन, भूमि की लिपाई, लकड़ी लाना, गुरु, गुरुपत्नी और अन्य वरिष्ठ जनों की सेवा शुश्रूषा आदि जितने भी कार्य हैं, बराबरी की हिस्सेदारी से हर छात्र को करना है। इस प्रकार व्यावहारिक और आर्थिक रूप से छात्र और गुरु अथवा आचार्य समान रूप से दायित्व निभाते हैं। |
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| − | हैं तब छात्रों को गुरुकुल चलाने के दायित्व में भी
| + | व्यावहारिक ही नहीं तो शैक्षिक दृष्टि से भी छात्र गुरु के दायित्व में सहभागी होते हैं। बड़े और अनुभवी या पुराने छात्र छोटे और नये छात्रों को सिखाते हैं । इस प्रकार अध्ययन अध्यापन की एक शृंखला बनती है। इसकी व्यावहारिक उपादेयता तो है ही, साथ ही शैक्षिक उपादेयता भी है। “अध्ययन की पूर्णता अध्यापन में है' यह शैक्षिक सिद्धान्त यहाँ पूर्ण रूप से मूर्त होता है। एक दृष्टि से वरिष्ठतम से कनिष्ठतम का अध्ययन अध्यापन एक साथ चलता है। अतः व्यावहारिक और शैक्षिक दोनों दृष्टियों से यह शिक्षा समग्रता में होती है। जीवन जितना समग्रता में है, उतनी ही समग्रता में यह शिक्षा व्यवस्था भी है। वर्तमान में भी देश में अनेक आवासीय विद्यालय चलते हैं । विश्वविद्यालयों में छात्रावासों का प्रावधान होता है। परन्तु ये छात्रावास केवल आवास और भोजन की सुविधा के लिये ही होते हैं। अध्ययन कार्य के साथ इनका कोई सम्बन्ध नहीं होता है। छात्रावास प्रमुखों को केवल व्यवस्था देखना होता है। कहीं कहीं पर छात्रावासों में प्रथा या संस्कार के अन्य कार्यक्रम होते हैं और अनुशासन के नियम भी होते हैं। फिर भी अध्ययन के अन्तर्गत ये नहीं होते हैं। एक सीमित अर्थ में हम आवासीय विद्यालयों को गुरुकुल में परिवर्तित कर सकते हैं । यदि छात्रालय सहित का विद्यालय चौबीस घण्टे के विद्यालय में परिवर्तित कर दें और अध्ययन को दिनचर्या तथा जीवनचर्या का हिस्सा बनाकर निरन्तर शिक्षा की योजना बना दें तो गुरुकुल संकल्पना का कुछ अंश साकार हो सकता है । |
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| − | सहभागिता करनी होती है । साफ सफाई के सारे काम,
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| − | भिक्षा माँगकर लाना, गुरुकुल के निभाव के लिये यदि भूमि
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| − | है और उसमें खेती होती है तो खेती का काम, गोपालन,
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| − | भूमि की लिपाई, लकड़ी लाना, गुरु, गुरुपत्नी और अन्य
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| − | वरिष्ठ जनों की सेवा शुश्रूषा आदि जितने भी कार्य हैं,
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| − | बराबरी की हिस्सेदारी से हर छात्र को करना है। इस
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| − | प्रकार व्यावहारिक और आर्थिक रूप से छात्र और गुरु
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| − | भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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| − | व्यावहारिक ही नहीं तो शैक्षिक दृष्टि से भी छात्र गुरु | |
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| − | के दायित्व में सहभागी होते हैं । बड़े और अनुभवी या | |
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| − | पुराने छात्र छोटे और नये छात्रों को सिखाते हैं । इस प्रकार | |
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| − | अध्ययन अध्यापन की एक शृंखला बनती है । इसकी | |
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| − | व्यावहारिक उपादेयता तो है ही, साथ ही शैक्षिक उपादेयता | |
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| − | भी है । “अध्ययन की पूर्णता अध्यापन में है' यह शैक्षिक | |
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| − | सिद्धान्त यहाँ पूर्ण रूप से मूर्त होता है । एक दृष्टि से | |
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| − | वरिष्ठतम से कनिष्ठतम का अध्ययन अध्यापन एक साथ | |
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| − | चलता है । अतः व्यावहारिक और शैक्षिक दोनों दृष्टियों से | |
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| − | यह शिक्षा समग्रता में होती है । जीवन जितना समग्रता में | |
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| − | वर्तमान में भी देश में अनेक आवासीय विद्यालय | |
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| − | चलते हैं । विश्वविद्यालयों में छात्रावासों का प्रावधान होता | |
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| − | सुविधा के लिये ही होते हैं । अध्ययन कार्य के साथ इनका | |
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| − | व्यवस्था देखना होता है। कहीं कहीं पर छात्रावासों में | |
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| − | अनुशासन के नियम भी होते हैं । फिर भी अध्ययन के | |
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| − | अन्तर्गत ये नहीं होते हैं। एक सीमित अर्थ में हम | |
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| − | आवासीय विद्यालयों को गुरुकुल में परिवर्तित कर सकते | |
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| − | हैं । यदि छात्रालय सहित का विद्यालय चौबीस घण्टे के | |
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| − | विद्यालय में परिवर्तित कर दें और अध्ययन को दिनचर्या | |
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| − | तथा जीवनचर्या का हिस्सा बनाकर निरन्तर शिक्षा की | |
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| − | योजना बना दें तो गुरुकुल संकल्पना का कुछ अंश साकार | |
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| − | हो सकता है । | |
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| | == कुलपति == | | == कुलपति == |
| − | कुलपति गुरुकुल का अधिष्ठाता होता है। पूर्ण | + | कुलपति गुरुकुल का अधिष्ठाता होता है। पूर्ण गुरुकुल उसका होता है और उसके नियंत्रण में होता है । वह राजा अथवा अन्य किसी सत्ता ट्वारा नियुक्त नहीं होता है, न उसके अधीन होता है । साथ ही सम्पूर्ण गुरुकुल का सर्वप्रकार का दायित्व उसका होता है । जिस विद्याकेन्द्र में दस हजार छात्र अध्ययन करते हैं उसे ही गुरुकुल कहा जाता है और उसके अधिष्ठाता को कुलपति कहा जाता है । इन सब के आवास, भोजन, वस्त्र आदि की व्यवस्था करना कुलपति का दायित्व होता है। फिर भी कुलपति केवल प्रबन्ध करने वाला नहीं होता । ज्ञान के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ आचार्य, ज्ञान के किसी न किसी क्षेत्र का या क्षेत्रों का प्रवर्तक ही कुलपति होता है । अर्थात् उसमें ज्ञानशक्ति, शासनशक्ति. और व्यवस्थाशक्ति का. समन्वय होना अपेक्षित है । |
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| − | गुरुकुल उसका होता है और उसके नियंत्रण में होता है । | |
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| − | वह राजा अथवा अन्य किसी सत्ता ट्वारा नियुक्त नहीं होता | |
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| − | सर्वप्रकार का दायित्व उसका होता है । जिस विद्याकेन्द्र में | |
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| − | दस हजार छात्र अध्ययन करते हैं उसे ही गुरुकुल कहा | |
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| − | पर्व ४ : शिक्षक, विद्यार्थी एवं अध्ययन
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| − | जाता है और उसके अधिष्ठाता को कुलपति कहा जाता | |
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| − | केवल प्रबन्ध करने वाला नहीं होता । ज्ञान के क्षेत्र में | |
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| − | का प्रवर्तक ही कुलपति होता है । अर्थात् उसमें ज्ञानशक्ति, | |
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| − | शासनशक्ति. और व्यवस्थाशक्ति का. समन्वय होना | |
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| − | अपेक्षित है । | |
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| − | वर्तमान में एक मात्र 'कुलपति' संज्ञा प्रचलन में है ।
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| − | विश्वविद्यालयों के कुलपति होते हैं । परन्तु इनके अर्थ की
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| − | व्याप्ति बहुत सीमित हो गई है। सर्वप्रथम तो यह
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| − | विद्याकीय नहीं अपितु राजकीय नियुक्ति होती है । दूसरे
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| − | वास्तविक कुलपति जिसे अब कुलाधिपति कहा जाता है,
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| − | राज्य का राज्यपाल होता है। अतः कुलपति अब
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| − | विश्वविद्यालय का अधिष्ठाता नहीं अपितु शासन करने वाली
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| − | सर्वोच्च सत्ता के अधीन होता है। विश्वविद्यालय का
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| − | आर्थिक दायित्व कुलपति का नहीं अपितु शासन का होता
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| − | है। निजी विश्वविद्यालयों में भी कुलपति वेतन लेने वाला
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| − | कर्मचारी होता है । ज्ञान के क्षेत्र में सम्पूर्ण विश्वविद्यालय
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| − | का अधिष्ठाता होना उससे अपेक्षित नहीं है। उसका
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| − | विश्वविद्यालय के साथ अपत्य जैसा स्नेह होना सम्भव नहीं
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| − | होता है क्यों कि न वह विश्वविद्यालय की स्थापना करता
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| − | है, न वह परंपरा से नियुक्त हुआ होता है । इसका प्रभाव
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| − | स्वयं उसके ऊपर, छात्रों के ऊपर और समस्त ज्ञानविश्व के
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| − | ऊपर होता है । सम्पूर्ण तंत्र व्यक्तिनिरपेक्ष बन जाता है ।
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| − | कुलपति मौन भूमिका में रहता है और व्यवस्थातंत्र ही
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| − | प्रमुख हो जाता है । इन सभी बिन्दुओं को ध्यान में लेने
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| − | पर कह सकते हैं कि मूल “कुलपति संज्ञा वर्तमान
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| − | “कुलपति संज्ञा से अत्यन्त भिन्न है। वास्तविकता तो
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| − | यही है कि आकर्षक लगने के कारण हमने संज्ञायें तो
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| − | प्राचीन पद्धति से ली हैं परंतु उनके तत्त्वार्थ और व्यवहारार्थ
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| − | दोनों पूर्णरूप से बदल दिये हैं। इस कारण से मन और
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| − | बुद्धि दोनों में संभ्रम पैदा होता है । हम कुछ आभासी विश्व
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| − | में रहने लगते हैं ।
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| − | R98
| + | वर्तमान में एक मात्र 'कुलपति' संज्ञा प्रचलन में है । विश्वविद्यालयों के कुलपति होते हैं । परन्तु इनके अर्थ की व्याप्ति बहुत सीमित हो गई है। सर्वप्रथम तो यह विद्याकीय नहीं अपितु राजकीय नियुक्ति होती है । दूसरे वास्तविक कुलपति जिसे अब कुलाधिपति कहा जाता है, राज्य का राज्यपाल होता है। अतः कुलपति अब विश्वविद्यालय का अधिष्ठाता नहीं अपितु शासन करने वाली सर्वोच्च सत्ता के अधीन होता है। विश्वविद्यालय का आर्थिक दायित्व कुलपति का नहीं अपितु शासन का होता है। निजी विश्वविद्यालयों में भी कुलपति वेतन लेने वाला कर्मचारी होता है । ज्ञान के क्षेत्र में सम्पूर्ण विश्वविद्यालय का अधिष्ठाता होना उससे अपेक्षित नहीं है। उसका विश्वविद्यालय के साथ अपत्य जैसा स्नेह होना सम्भव नहीं होता है क्यों कि न वह विश्वविद्यालय की स्थापना करता है, न वह परंपरा से नियुक्त हुआ होता है । इसका प्रभाव स्वयं उसके ऊपर, छात्रों के ऊपर और समस्त ज्ञानविश्व के ऊपर होता है । सम्पूर्ण तंत्र व्यक्तिनिरपेक्ष बन जाता है । |
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| − | निःशुल्क शिक्षा एवं स्वायत्तता
| + | कुलपति मौन भूमिका में रहता है और व्यवस्थातंत्र ही प्रमुख हो जाता है । इन सभी बिन्दुओं को ध्यान में लेने पर कह सकते हैं कि मूल “कुलपति संज्ञा वर्तमान “कुलपति संज्ञा से अत्यन्त भिन्न है। वास्तविकता तो यही है कि आकर्षक लगने के कारण हमने संज्ञायें तो प्राचीन पद्धति से ली हैं परंतु उनके तत्त्वार्थ और व्यवहारार्थ दोनों पूर्णरूप से बदल दिये हैं। इस कारण से मन और बुद्धि दोनों में संभ्रम पैदा होता है । हम कुछ आभासी विश्व में रहने लगते हैं । |
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| | + | == निःशुल्क शिक्षा एवं स्वायत्तता == |
| | गुरुकुल की शिक्षा पूर्णरूप से निःशुल्क होती थी । | | गुरुकुल की शिक्षा पूर्णरूप से निःशुल्क होती थी । |
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