Difference between revisions of "कौआ चला मोर की चाल"

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Revision as of 16:08, 24 July 2020

जंगल में एक कौआ था जो अपनी बदसूरती से परेसान था | एक दिन कौए ने जंगल में मोरों की बहुत- सी पंख बिखरी पड़ी देखीं. वह अत्यंत प्रसन्न होकर कहने लगा- वाह भगवान! बड़ी कृपा की आपने, जो मेरी पुकार सुन ली| मैं अभी इन पूंछों से अच्छा खासा मोर बन जाता हूं. इसके बाद कौए ने मोरों की पूंछें अपनी पूंछ के आसपास लगा ली. फिर वह नया रूप देखकर बोला- अब तो मैं मोरों से भी सुंदर हो गया हूं. अब उन्हीं के पास चलकर उनके साथ आनंद मनाता हूं. वह बड़े अभिमान से मोरों के सामने पहुंचा. उसे देखते ही मोरों ने ठहाका लगाया. एक मोर ने कहा- जरा देखो इस दुष्ट कौए को. यह हमारी फेंकी हुई पूंछें लगाकर मोर बनने चला है. लगाओ बदमाश को चोंचों व पंजों से कस-कसकर ठोकरें. यह सुनते ही सभी मोर कौए पर टूट पड़े और मार-मारकर उसे अधमरा कर दिया.

कौआ भागा-भागा अन्य कौए के पास जाकर मोरों की शिकायत करने लगा तो एक बुजुर्ग कौआ बोला- सुनते हो इस अधम की बातें. यह हमारा उपहास करता था और मोर बनने के लिए बावला रहता था. इसे इतना भी ज्ञान नहीं कि जो प्राणी अपनी जाति से संतुष्ट नहीं रहता, वह हर जगह अपमान पाता है. आज यह मोरों से पिटने के बाद हमसे मिलने आया है. लगाओ इस धोखेबाज को.इतना सुनते ही सभी कौओं ने मिलकर उसकी अच्छी धुलाई की.

कहानी से सीख

ईश्वर ने हमें जिस रूप और आकार में बनाया है, हमें उसी में संतुष्ट रहकर अपने कर्मो पर ध्यान देना चाहिए. कर्म ही महानता का द्वार खोलता है.