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महर्षि रमण:[1] (१८७९-१९५० ई.)
ब्राह्मीस्थितौ सन्ततवर्तमानं कौपीनमात्रं वसनं दधानम्।
अध्यात्मसन्देशमिहाददानं तं त्यागमूर्ति रमणं नमामि ॥
निरन्तर ब्राह्मीस्थिति में बर्तमान, कौपीन (लङ्गोट) मात्र वस्त्र को धारण करने वाले, अध्यात्म सन्देश को संसार में चारों ओर देने वाले त्याग मूर्ति रमण जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
महर्षिनाम्ना प्रथितं पृथिव्यां पाश्चात्यविज्ञानपि बोधयन्तम्।
तपस्विनं साधु समाधिनिष्ठं तं त्यागमूर्ति रमणं नमामि ॥
पृथिवी पर महर्षि के नाम से प्रसिद्ध, पाश्चात्य विद्वानों को भी ज्ञान देते हुए भली-भांति समाधिनिष्ठ तपस्वी, त्यागमूर्ति रमण जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
विज्ञेय आत्मा विबुधैः समस्तैज्ञानादृते जातु न बन्धमुक्तिः।
इत्येवमार्ष ददतं सुबोधं त॑ त्यागमूर्ति रमणं नमामि ॥
सब बुद्धिमानों को आत्मा का ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिये। ज्ञान के बिना कभी बन्धन से मुक्ति नहीं हो सकती। इस प्रकार के आर्ष उत्तम बोध को देने वाले त्याग मूर्ति रमण जी को मैं नमस्कार करता हूँ।
यद् दर्शनादेव जना अनेके प्रपेदिरे शान्तिमनुग्रमू्ते:।
पॉल ब्रन्टनाद्या भुवि यस्य शिष्याः, त॑ त्यागमूर्ति रमणं नमामि॥
जिस सौम्यमूर्ति के दर्शन से ही अनेक लोग शान्ति को प्राप्त करते थे। (इङ्गलैण्ड के सुप्रसिद्ध पत्रकार) पॉल ब्रण्टन् आदि जिनके प्रसिद्ध शिष्य थे, उन त्यागमूर्ति रमण जी को में नमस्कार करता हूँ।
References
- ↑ महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078