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परमात्मा ने मनुष्य को स्वतन्त्रता दी, और साथ में सक्रिय अन्तःकरण भी दिया।<ref>भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला १), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> अन्तःकरण के चार आयाम हैं मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त। इस अन्तःकरण के कारण वह भटक भी जाता है और ठीक भी हो जाता है। मनुष्य का जीवन भटकने और ठिकाने लगने के व्यवहारों से ही ओतप्रोत रहता है। इसी अन्तःकरण को लेकर वह समष्टि और सृष्टि में व्यवहार करता है।
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== प्रस्तावना ==
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परमात्मा ने मनुष्य को स्वतन्त्रता दी, और साथ में सक्रिय अन्तःकरण भी दिया।<ref>भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ३, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> अन्तःकरण के चार आयाम हैं मन, बुद्धि, अहंकार और चित्त। इस अन्तःकरण के कारण वह भटक भी जाता है और ठीक भी हो जाता है। मनुष्य का जीवन भटकने और ठिकाने लगने के व्यवहारों से ही ओतप्रोत रहता है। इसी अन्तःकरण को लेकर वह समष्टि और सृष्टि में व्यवहार करता है।
    
शिक्षा और अन्तःकरण का दुहरा सम्बन्ध है। शिक्षा का प्रथम चरण है व्यक्ति के बहिःकरण और अन्तःकरण की निहित क्षमताओं का विकास करना, उन्हें कार्यान्वित करना और दूसरा चरण है विकसित अन्तःकरण से ज्ञान प्राप्त करना। दोनों प्रक्रियाएँ एक के बाद एक भी होती हैं और साथ साथ भी चलती हैं । समझने के लिये हम विश्लेषण करते हैं परन्तु वास्तव में तो यह समज रूप से चलती ही रहती है।
 
शिक्षा और अन्तःकरण का दुहरा सम्बन्ध है। शिक्षा का प्रथम चरण है व्यक्ति के बहिःकरण और अन्तःकरण की निहित क्षमताओं का विकास करना, उन्हें कार्यान्वित करना और दूसरा चरण है विकसित अन्तःकरण से ज्ञान प्राप्त करना। दोनों प्रक्रियाएँ एक के बाद एक भी होती हैं और साथ साथ भी चलती हैं । समझने के लिये हम विश्लेषण करते हैं परन्तु वास्तव में तो यह समज रूप से चलती ही रहती है।

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