Changes

Jump to navigation Jump to search
adhyay# moved to refrences
Line 3: Line 3:  
वर्तमान में वर्ण व्यवस्था का अस्तित्व लगभग नष्ट हो गया है। वर्ण तो परमात्मा के बनाए होते हैं इसलिए उन्हें नष्ट करने की सामर्थ्य मनुष्य जाति में नहीं है। लेकिन वर्ण की शुद्धि, वृद्धि और समायोजन की व्यवस्था को हमने उपेक्षित और दुर्लक्षित कर दिया है। इस कारण जिन भिन्न भिन्न प्रकार की सामाजिक और व्यक्तिगत समस्याओं और अव्यवस्थाओं का सामना करना पड रहा है उसकी कल्पना भी हमें नहीं है। ब्राह्मण वर्ण के लोगों का प्रभाव समाज में बहुत हुआ करता था। इसे अंग्रेज जान गए थे। ऐसा नहीं कि उस समय के सभी ब्राह्मण बहुत तपस्वी थे, लेकिन ऐसे तप करनेवाले ब्राह्मण भी रहे होंगे। हम भी देखते हैं कि हिन्दुत्ववादी से लेकर कांग्रेसी तथा कम्यूनिस्ट विचारधारा के प्रारम्भ के नेताओं में ब्राह्मण वर्ण के लोग बड़ी संख्या में थे। डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के लिए अत्यंत आदरणीय ऐसे उनके शिक्षक श्री आम्बावडेकर से लेकर तो उनके विविध आन्दोलनों में सहभागी कई नेता ब्राह्मण थे।
 
वर्तमान में वर्ण व्यवस्था का अस्तित्व लगभग नष्ट हो गया है। वर्ण तो परमात्मा के बनाए होते हैं इसलिए उन्हें नष्ट करने की सामर्थ्य मनुष्य जाति में नहीं है। लेकिन वर्ण की शुद्धि, वृद्धि और समायोजन की व्यवस्था को हमने उपेक्षित और दुर्लक्षित कर दिया है। इस कारण जिन भिन्न भिन्न प्रकार की सामाजिक और व्यक्तिगत समस्याओं और अव्यवस्थाओं का सामना करना पड रहा है उसकी कल्पना भी हमें नहीं है। ब्राह्मण वर्ण के लोगों का प्रभाव समाज में बहुत हुआ करता था। इसे अंग्रेज जान गए थे। ऐसा नहीं कि उस समय के सभी ब्राह्मण बहुत तपस्वी थे, लेकिन ऐसे तप करनेवाले ब्राह्मण भी रहे होंगे। हम भी देखते हैं कि हिन्दुत्ववादी से लेकर कांग्रेसी तथा कम्यूनिस्ट विचारधारा के प्रारम्भ के नेताओं में ब्राह्मण वर्ण के लोग बड़ी संख्या में थे। डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के लिए अत्यंत आदरणीय ऐसे उनके शिक्षक श्री आम्बावडेकर से लेकर तो उनके विविध आन्दोलनों में सहभागी कई नेता ब्राह्मण थे।
   −
किसी व्यवस्था को तोड़ना तुलना में आसान होता है। लेकिन व्यवस्था निर्माण करना अत्यंत कठिन काम होता है। हमने वर्ण व्यवस्था का कोई विकल्प ढूँढे बिना ही इसे नष्ट होने दिया है यह बुद्धिमानी का लक्षण तो नहीं है। ऐसे तो हम नहीं थे। इस परिप्रेक्ष में हमें वर्ण व्यवस्था को समझना होगा।
+
किसी व्यवस्था को तोड़ना तुलना में आसान होता है। लेकिन व्यवस्था निर्माण करना अत्यंत कठिन काम होता है। हमने वर्ण व्यवस्था का कोई विकल्प ढूँढे बिना ही इसे नष्ट होने दिया है यह बुद्धिमानी का लक्षण तो नहीं है। ऐसे तो हम नहीं थे। इस परिप्रेक्ष में हमें वर्ण व्यवस्था को समझना होगा।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड १, अध्याय १५ लेखक - दिलीप केलकर</ref>
    
== वर्ण के कई अर्थ ==
 
== वर्ण के कई अर्थ ==

Navigation menu