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| सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन । अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम् ॥१०- ३२॥ | | सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन । अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम् ॥१०- ३२॥ |
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| + | sargāṇām ādir antaś ca madhyaṁ caivāham arjuna adhyātma-vidyā vidyānāṁ vādaḥ pravadatām aham ॥ 10 - 32 ॥ |
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| अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च । अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः ॥१०- ३३॥ | | अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च । अहमेवाक्षयः कालो धाताहं विश्वतोमुखः ॥१०- ३३॥ |
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| + | akṣarāṇām a-kāro ’smi dvandvaḥ sāmāsikasya ca aham evākṣayaḥ kālo dhātāhaṁ viśvato-mukhaḥ ॥ 10 - 33 ॥ |
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| मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम् । कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ॥१०- ३४॥ | | मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम् । कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा ॥१०- ३४॥ |
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| + | mṛtyuḥ sarva-haraś cāham udbhavaś ca bhaviṣyatām kīrtiḥ śrīr vāk ca nārīṇāṁ smṛtir medhā dhṛtiḥ kṣamā ॥ 10 - 34 ॥ |
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| बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् । मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ॥१०- ३५॥ | | बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् । मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ॥१०- ३५॥ |
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| + | bṛhat-sāma tathā sāmnāṁ gāyatrī chandasām aham māsānāṁ mārga-śīrṣo ’ham ṛtūnāṁ kusumākaraḥ ॥ 10 - 35 ॥ |
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| द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् । जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम् ॥१०- ३६॥ | | द्यूतं छलयतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् । जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि सत्त्वं सत्त्ववतामहम् ॥१०- ३६॥ |
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| + | dyūtaṁ chalayatām asmi tejas tejasvinām aham jayo ’smi vyavasāyo ’smi sattvaṁ sattvavatām aham ॥ 10 - 36 ॥ |
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| वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनंजयः । मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥१०- ३७॥ | | वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनंजयः । मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः ॥१०- ३७॥ |
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| + | vṛṣṇīnāṁ vāsudevo ’smi pāṇḍavānāṁ dhanañ-jayaḥ munīnām apy ahaṁ vyāsaḥ kavīnām uśanā kaviḥ ॥ 10 - 37 ॥ |
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| दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् । मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ॥१०- ३८॥ | | दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् । मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् ॥१०- ३८॥ |
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| + | daṇḍo damayatām asmi nītir asmi jigīṣatām maunaṁ caivāsmi guhyānāṁ jñānaṁ jñānavatām aham ॥ 10 - 38 ॥ |
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| यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन । न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम् ॥१०- ३९॥ | | यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन । न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम् ॥१०- ३९॥ |
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| + | yac cāpi sarva-bhūtānāṁ bījaṁ tad aham arjuna na tad asti vinā yat syān mayā bhūtaṁ carācaram ॥ 10 - 39 ॥ |
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| नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप । एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया ॥१०- ४०॥ | | नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परन्तप । एष तूद्देशतः प्रोक्तो विभूतेर्विस्तरो मया ॥१०- ४०॥ |
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− | श्रीमदूर्जितमेव वा । तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम् ॥१०- ४१॥ | + | nānto ’sti mama divyānāṁ vibhūtīnāṁ paran-tapa eṣa tūddeśataḥ prokto vibhūter vistaro mayā ॥ 10 - 40 ॥ |
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| + | यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा । तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम् ॥१०- ४१॥ |
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| + | yad yad vibhūtimat sattvaṁ śrīmad ūrjitam eva vā tat tad evāvagaccha tvaṁ mama tejo-’ṁśa-sambhavam ॥ 10 - 41 ॥ |
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| अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन । विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत् ॥१०- ४२॥ | | अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन । विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत् ॥१०- ४२॥ |
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| + | atha vā bahunaitena kiṁ jñātena tavārjuna viṣṭabhyāham idaṁ kṛtsnam ekāṁśena sthito jagat ॥ 10 - 42 ॥ |
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| == References == | | == References == |
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