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| महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् । यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥१०- २५॥ | | महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् । यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ॥१०- २५॥ |
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| + | maharṣīṇāṁ bhṛgur ahaṁ girām asmy ekam akṣaram yajñānāṁ japa-yajño ’smi sthāvarāṇāṁ himālayaḥ ॥ 10 - 25 ॥ |
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| अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः । गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥१०- २६॥ | | अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः । गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः ॥१०- २६॥ |
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| + | aśvatthaḥ sarva-vṛkṣāṇāṁ devarṣīṇāṁ ca nāradaḥ gandharvāṇāṁ citrarathaḥ siddhānāṁ kapilo muniḥ ॥ 10 - 26 ॥ |
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| उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् । ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥१०- २७॥ | | उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम् । ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम् ॥१०- २७॥ |
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| + | uccaiḥśravasam aśvānāṁ viddhi mām amṛtodbhavam airāvataṁ gajendrāṇāṁ narāṇāṁ ca narādhipam ॥ 10 - 27 ॥ |
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| आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक् । प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ॥१०- २८॥ | | आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक् । प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः ॥१०- २८॥ |
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| + | āyudhānām ahaṁ vajraṁ dhenūnām asmi kāma-dhuk prajanaś cāsmi kandarpaḥ sarpāṇām asmi vāsukiḥ ॥ 10 - 28 ॥ |
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| अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् । पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥१०- २९॥ | | अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम् । पितॄणामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम् ॥१०- २९॥ |
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| + | anantaś cāsmi nāgānāṁ varuṇo yādasām aham pitṝṇām aryamā cāsmi yamaḥ saṁyamatām aham ॥ 10 - 29 ॥ |
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| प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम् । मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥१०- ३०॥ | | प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम् । मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥१०- ३०॥ |
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| + | prahlādaś cāsmi daityānāṁ kālaḥ kalayatām aham mṛgāṇāṁ ca mṛgendro ’haṁ vainateyaś ca pakṣiṇām ॥ 10 - 30 ॥ |
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| पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम् । झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥१०- ३१॥ | | पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम् । झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥१०- ३१॥ |
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| + | pavanaḥ pavatām asmi rāmaḥ śastra-bhṛtām aham jhaṣāṇāṁ makaraś cāsmi srotasām asmi jāhnavī ॥ 10 - 31 ॥ |
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| सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन । अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम् ॥१०- ३२॥ | | सर्गाणामादिरन्तश्च मध्यं चैवाहमर्जुन । अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम् ॥१०- ३२॥ |