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| एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय । अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा ॥७- ६॥ | | एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय । अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा ॥७- ६॥ |
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| + | etad-yonīni bhūtāni sarvāṇīty upadhāraya ahaṁ kṛtsnasya jagataḥ prabhavaḥ pralayas tathā ॥ 7- 6 ॥ |
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| मत्तः परतरं नान्यत्किंचिदस्ति धनंजय । मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥७- ७॥ | | मत्तः परतरं नान्यत्किंचिदस्ति धनंजय । मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥७- ७॥ |
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| + | mattaḥ parataraṁ nānyat kiñcid asti dhanañ-jaya mayi sarvam idaṁ protaṁ sūtre maṇi-gaṇā iva ॥ 7- 7 ॥ |
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| रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः । प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥७- ८॥ | | रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः । प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥७- ८॥ |
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| + | raso ’ham apsu kaunteya prabhāsmi śaśi-sūryayoḥ praṇavaḥ sarva-vedeṣu śabdaḥ khe pauruṣaṁ nṛṣu ॥ 7- 8 ॥ |
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| पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ । जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥७- ९॥ | | पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ । जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥७- ९॥ |
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| + | puṇyo gandhaḥ pṛthivyāṁ ca tejaś cāsmi vibhāvasau jīvanaṁ sarva-bhūteṣu tapaś cāsmi tapasviṣu ॥ 7- 9 ॥ |
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| बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् । बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ॥७- १०॥ | | बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् । बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ॥७- १०॥ |
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| + | bījaṁ māṁ sarva-bhūtānāṁ viddhi pārtha sanātanam buddhir buddhimatām asmi tejas tejasvinām aham ॥ 7- 10 ॥ |
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| बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् । धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ॥७- ११॥ | | बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् । धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ॥७- ११॥ |
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| + | balaṁ balavatāṁ cāhaṁ kāma-rāga-vivarjitam dharmāviruddho bhūteṣu kāmo ’smi bharatarṣabha ॥ 7- 11 ॥ |
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| ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये । मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ॥७- १२॥ | | ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये । मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ॥७- १२॥ |
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| + | ye caiva sāttvikā bhāvā rājasās tāmasāś ca ye matta eveti tān viddhi na tv ahaṁ teṣu te mayi ॥ 7- 12 ॥ |
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| त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् । मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम् ॥७- १३॥ | | त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् । मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम् ॥७- १३॥ |
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| + | tribhir guṇa-mayair bhāvair ebhiḥ sarvam idaṁ jagat mohitaṁ nābhijānāti mām ebhyaḥ param avyayam ॥ 7- 13 ॥ |
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| दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया । मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥७- १४॥ | | दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया । मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥७- १४॥ |
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| + | daivī hy eṣā guṇa-mayī mama māyā duratyayā mām eva ye prapadyante māyām etāṁ taranti te ॥ 7- 14 ॥ |
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| न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः । माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ॥७- १५॥ | | न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः । माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ॥७- १५॥ |
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| + | na māṁ duṣkṛtino mūḍhāḥ prapadyante narādhamāḥ māyayāpahṛta-jñānā āsuraṁ bhāvam āśritāḥ ॥ 7- 15 ॥ |
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| चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन । आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥७- १६॥ | | चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन । आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥७- १६॥ |
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| + | catur-vidhā bhajante māṁ janāḥ su-kṛtino ’rjuna ārto jijñāsur arthārthī jñānī ca bharatarṣabha ॥ 7- 16 ॥ |
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| तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते । प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥७- १७॥ | | तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते । प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः ॥७- १७॥ |
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| + | teṣāṁ jñānī nitya-yukta eka-bhaktir viśiṣyate priyo hi jñānino ’tyartham ahaṁ sa ca mama priyaḥ ॥ 7- 17 ॥ |
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| उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम् । आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम् ॥७- १८॥ | | उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम् । आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम् ॥७- १८॥ |
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| + | udārāḥ sarva evaite jñānī tv ātmaiva me matam āsthitaḥ sa hi yuktātmā mām evānuttamāṁ gatim ॥ 7- 18 ॥ |
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| बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते । वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥७- १९॥ | | बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते । वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥७- १९॥ |
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| + | bahūnāṁ janmanām ante jñānavān māṁ prapadyate vāsudevaḥ sarvam iti sa mahātmā su-durlabhaḥ ॥ 7- 19 ॥ |
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| कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः । तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥७- २०॥ | | कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः । तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥७- २०॥ |
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| + | kāmais tais tair hṛta-jñānāḥ prapadyante ’nya-devatāḥ taṁ taṁ niyamam āsthāya prakṛtyā niyatāḥ svayā ॥ 7- 20 ॥ |
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| यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति । तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ॥७- २१॥ | | यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति । तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ॥७- २१॥ |
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| + | yo yo yāṁ yāṁ tanuṁ bhaktaḥ śraddhayārcitum icchati tasya tasyācalāṁ śraddhāṁ tām eva vidadhāmy aham ॥ 7- 21 ॥ |
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| स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते । लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान् ॥७- २२॥ | | स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते । लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान् ॥७- २२॥ |
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| + | sa tayā śraddhayā yuktas tasyārādhanam īhate labhate ca tataḥ kāmān mayaiva vihitān hi tān ॥ 7- 22 ॥ |
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| अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् । देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥७- २३॥ | | अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् । देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥७- २३॥ |
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| + | antavat tu phalaṁ teṣāṁ tad bhavaty alpa-medhasām devān deva-yajo yānti mad-bhaktā yānti mām api ॥ 7- 23 ॥ |
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| अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः । परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥७- २४॥ | | अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः । परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥७- २४॥ |
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| + | avyaktaṁ vyaktim āpannaṁ manyante mām abuddhayaḥ paraṁ bhāvam ajānanto mamāvyayam anuttamam ॥ 7- 24 ॥ |
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| नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः । मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥७- २५॥ | | नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः । मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥७- २५॥ |
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| + | nāhaṁ prakāśaḥ sarvasya yoga-māyā-samāvṛtaḥ mūḍho ’yaṁ nābhijānāti loko mām ajam avyayam ॥ 7- 25 ॥ |
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| वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन । भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ॥७- २६॥ | | वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन । भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ॥७- २६॥ |
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| + | vedāhaṁ samatītāni vartamānāni cārjuna bhaviṣyāṇi ca bhūtāni māṁ tu veda na kaścana ॥ 7- 26 ॥ |
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| इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत । सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥७- २७॥ | | इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत । सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥७- २७॥ |
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| + | icchā-dveṣa-samutthena dvandva-mohena bhārata sarva-bhūtāni sammohaṁ sarge yānti paran-tapa ॥ 7- 27 ॥ |
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| येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् । ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः ॥७- २८॥ | | येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् । ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः ॥७- २८॥ |
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| + | yeṣāṁ tv anta-gataṁ pāpaṁ janānāṁ puṇya-karmaṇām te dvandva-moha-nirmuktā bhajante māṁ dṛḍha-vratāḥ ॥ 7- 28 ॥ |
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| जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये । ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् ॥७- २९॥ | | जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये । ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् ॥७- २९॥ |
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| + | jarā-maraṇa-mokṣāya mām āśritya yatanti ye te brahma tad viduḥ kṛtsnam adhyātmaṁ karma cākhilam ॥ 7- 29 ॥ |
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| साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः । प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ॥७- ३०॥ | | साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः । प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ॥७- ३०॥ |
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| + | sādhibhūtādhidaivaṁ māṁ sādhiyajñaṁ ca ye viduḥ prayāṇa-kāle ’pi ca māṁ te vidur yukta-cetasaḥ ॥ 7- 29 ॥ |
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| ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे ज्ञानविज्ञानयोगो नाम सप्तमोऽध्यायः ॥ ७ ॥ | | ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे ज्ञानविज्ञानयोगो नाम सप्तमोऽध्यायः ॥ ७ ॥ |