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९. जो लेने से अधिक देने में विश्वास करता हो, अपने से पहले दूसरों का विचार करता हो, अपने से छोटों का रक्षण और पोषण करने को अपना कर्तव्य मानता हो, किसी की भी स्वतन्त्रता को छीनता न हो उस देश को विश्वास होना चाहिये कि वह अन्यों को भी अच्छा जीवन जीने की राह दिखा सकता है।  
 
९. जो लेने से अधिक देने में विश्वास करता हो, अपने से पहले दूसरों का विचार करता हो, अपने से छोटों का रक्षण और पोषण करने को अपना कर्तव्य मानता हो, किसी की भी स्वतन्त्रता को छीनता न हो उस देश को विश्वास होना चाहिये कि वह अन्यों को भी अच्छा जीवन जीने की राह दिखा सकता है।  
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१०. जो देश हमेशा चराचर के हित की ही कामना करता
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१०. जो देश हमेशा चराचर के हित की ही कामना करता हो, सम्पूर्ण पृथ्वी को कुटुम्ब मानता हो, सबको अपना मानता हो वह देश विश्व को हितकारी मार्ग पर चलना सिखा सकता है। जो कभी किसी को पराजित करने की कामना न करता हो, किसी पर अत्याचार न करता हो उससे किसी को भय नहीं हो सकता । उस पर सब भरोसा कर सकते है।
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११. जिस देश को आत्मज्ञानी पूर्वजोंसे ज्ञान का, तपस्वी ऋषियों से तप का, पराक्रमी राजाओं से शौर्य का, हरिश्चन्द्र जैसे राजओं से सत्यनिष्ठा का, वेदव्यास, याज्ञवल्क्य जैसे शास्त्रज्ञों का उत्तराधिकार प्राप्त हुआ हो उस देश से विश्व के अन्य देश भी लाभान्वित हो सकते हैं, अपने लिये प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।
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१२. जहाँ धन कमाने वाला अपने लिये बाद में और अपनों के लिये पहले खर्च करता हो, भोजन बनाने वाला सबको खिलाकर खाता हो, अन्न ऊगाने वाला सबके लिये अन्न की चिन्ता करता हो, जहाँ चींटियों से लेकर समस्त प्राणी और वनस्पति के आहार और सुरक्षा की व्यवस्था करना गृहस्थ धर्म का अंग हो वह कैसे पिछडा हो सकता है । कैसे दरिद्र हो सकता है ?
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१३. जो भूमि को माता मानता हों, नदियों को लोकमाता कहता हो, अग्नि को पवित्र मानकर उसकी साक्षी में सारे शुभकार्य करता हो, जो वृक्षों के प्रति स्नेह रखता हो, जो आकाश को पिता मानता हो और सबकी शान्ति की प्रार्थना करता हो वह किसी को भी आतंकित नहीं कर सकता। जो सबका भला चाहता है वही श्रेष्ठ होता है और उसका कभी नाश नहीं होता।
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१४. जो प्रकृति का शोषण कर पर्यावरण का प्रक्षण कर विश्व के अन्य देशों के लिये संकट निर्माण करते हैं, अमर्याद उपयोग के कारण जिनकी मानसिक शान्ति और स्थिर बुद्धि का नाश हुआ है, जिनका जीवन अनीतिमान है, जो सम्पूर्ण पृथ्वी को लूटकर स्वयं उपभोग करना चाहते हैं, जो दुनिया को आतंकवाद से भयभीत ही रखना चाहते हैं वे देश नम्बर वन कैसे हो सकते हैं ? वे सुखी भी कैसे हो सकते हैं ? दूसरों के विनाश के निमित्त बननेवाले स्वयं के विनाश को ही तो निमन्त्रित कर रहे हैं।
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१५. जो धर्म को सम्प्रदाय में सीमित नहीं करता है, जो सभी सम्प्रदायों का आदर करता है, जिसके साम्प्रदायिक कर्मकाण्ड और भौतिक विज्ञान में परस्पर विरोध नहीं है, जो समय के साथ अपने कर्मकाण्डों का स्वरूप भी बदलता है, जो चिरपुरातन के साथ नित्यनूतनता का समन्वय करता है, जो तत्त्व और व्यवहार को एकदूसरे से भिन्न नहीं समझता और तत्त्व के अनुसार व्यवहार करता है वह वास्तव में बुद्धिमान है, संकटों का निवारण करने में सक्षम है।
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१६. जो सत्य को धर्म की ही वाणी मानता हो, सर्वभूतों के हित का पर्याय मानता हो, सत्य के लिये कुछ भी छोड सकता हो, अन्तिम विजय सत्य की ही होती है ऐसा मानता हो वह अपनी कल्याणकारी शक्ति पर क्यों विश्वास नहीं कर सकता ? अपने आपका विस्मरण उसे कैसे हो सकता है ? ।
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१७. अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को जो सार्वभौम महाव्रत मानकर अपनी आत्मसाक्षात्कार की साधना का प्रथम चरण मानता हो, जो अपने आपको ब्रह्म ही मानता हो और सृष्टि समस्त उसके लिये ब्रह्म का ही आविष्कार है इसलिये उसके साथ अद्वेत का अनुभव करता हो, जो सबकी स्वतन्त्र सत्ता का स्वीकार और सम्मान करता हो, उससे विश्व आश्वस्त ही हो सकता है, भयभीत नहीं। ऐसे देश को स्वयं भी किसी से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं।
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१८. जो स्वतन्त्रता को स्वैराचार नहीं मानता, समानता के लिये एकरूपता का आग्रह नहीं रखता, जिसका विश्वनागरिकत्व कानून से नहीं, एकात्मभाव से सिद्ध होता है, जिसकी न्यायदेवता अन्धी नहीं विवेक के चक्षु से युक्त है जिसकी बुद्धि आत्मनिष्ठ है, वह विश्व को शास्त्रों से नहीं अपितु प्रेम से जीतता है, उसके सामने जीता गया भी पराजित नहीं होता।
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१९. जिस देश के धर्म और संस्कृति की विश्व के अनेक चिन्तकों ने प्रसंसा की, जिस देश की विज्ञान और तन्त्रज्ञान की उपलब्धियों पर यूरोप के अनेक तन्त्रज्ञान निष्णात विस्मित हुए, जिस देश की कलाकारीगरी की आजतक विश्व में कहीं बराबरी नहीं हो सकी उस देश को दरिद्रता का भय कैसे हो सकता है। ऐसा देश विश्व को चिरन्तर समृद्धि के उपाय बता सकता है।
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२०. भौतिक समृद्धि, कलाकारीगरी, विज्ञान और तत्त्वज्ञान, शौर्य और पराक्रम, नीति और सदाचार, सिद्धान्त और व्यवहार, राजनीति और व्यापार आदि सर्व क्षेत्रों में भारत हमेशा अग्रणी रहा है। आज भी है। विश्व को आज भी वह सर्व क्षेत्रों में पथप्रदर्शन कर सकता है। आवश्यकता है खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः प्राप्त करने की।
    
==References==
 
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