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कच्चे की औसत आयु ६५-७० वर्ष फिर भी बैंक कच्चे को मोर्टगेज नहीं करेगा । यह व्यवस्था का  दोष है । स्वदेशी तकनीक की उपेक्षा और विदेशी. झुकी हो, प्रकाश बायीं ओर से पीछे तकनीक को प्रात्सहन देने के कारण हमारे कारीगर बेकार होते है और धीरे -धीरे स्वदेशी तकनीक लुप्त होती जाती है।  
 
कच्चे की औसत आयु ६५-७० वर्ष फिर भी बैंक कच्चे को मोर्टगेज नहीं करेगा । यह व्यवस्था का  दोष है । स्वदेशी तकनीक की उपेक्षा और विदेशी. झुकी हो, प्रकाश बायीं ओर से पीछे तकनीक को प्रात्सहन देने के कारण हमारे कारीगर बेकार होते है और धीरे -धीरे स्वदेशी तकनीक लुप्त होती जाती है।  
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से आता हो । श्यामपट्ट पूर्व दिशा की दीवार में हो बेकार होते हैं और धीरे-धीरे स्वदेशी तकनीक लुप्त. जिससे विद्यार्थी पूर्वाभिमुख बैठ सके । गुरु का स्थान
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==== (७) कक्षा कक्ष में बैठक व्यवस्था योग के अनुसार हो ====
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वर्तमान में कक्षा कक्ष में बिना उपस्कर नीचे बैठना गरीबी का सूचक बना दिया गया है। इसलिए दो तीन वर्ष के बालकों के लिए भी टेबल-कुर्सी अथवा डेस्क और बेंच की व्यवस्था है। भले ही वह उनके ज्ञानार्जन के प्रतिकूल है किन्तु विद्यालय को उच्च स्तर का बताने के लिए फर्नीचर आवश्यक हो गया है।
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होती जाती है । ऊपर व शिष्य का स्थान नीचे होना चाहिए ।
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जबकि वास्तविकता यह है कि पढ़ते समय बालक के मस्तिष्क को उर्जा की अधिक आवश्यकता रहती है। टेबल-कुर्सी पर पैर लटका कर बैठने से वह ऊर्जा अधोगामी होकर पैरों के माध्यम से पृथ्वी में समा जाती है। इसलिए बालक अधिक समय तक नहीं पढ़ पाते, उनका सिर दुखने लगता है। ग्रहण शीलता कम हो जाती है। इसके स्थान पर बैठने की व्यवस्था नीचे करने पर बालक सिद्धासन या सुखासन में बैठता है तो दोनों पैरों में बंध लगने से उर्जा अधोगामी न होकर उर्ध्वगामी हो जाती है, जिससे बालक अधिक समय तक अध्ययन में लगा रहता है। मन एकाग्र रहता है और ग्रहणशीलता बनी रहती है। अर्थात् फर्नीचर पर पैर लटकाकर बैठना ज्ञानार्जन के प्रतिकूल है और सुखासन में नीचे बैठना ज्ञानार्जन के अनुकूल है । हमें चाहिए कि हम फर्नीचर के स्थान पर कक्षा कक्ष में कोमल सूती व मोटे आसन की व्यवस्था बालकों के लिए करें ।
(७) कक्षा कक्ष में बैठक व्यवस्था योग के अनुसार हो... (८१ विद्यालय में जल व्यवस्था स्वास्थ्य के
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वर्तमान में कक्षा कक्ष में बिना उपस्कर नीचे बैठना अनुकूल हो
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गरीबी का सूचक बना दिया गया है । इसलिए दो तीन आजकल विद्यालयों में जल व्यवस्था का आधार
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वर्ष के बालकों के लिए भी टेबल-कुर्सी अथवा डेस्क... वाटर कूलर बन गये हैं । वाटर कूलर का कोल्ड अथवा
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बडी कक्षाओं में जहाँ फर्नीचर आवश्यक हो वहाँ भी हल्का फर्नीचर हो ताकि उसे आवश्यकता पड़ने पर समेट कर एक और रखा जा सके और कक्षा कक्ष में अन्य गतिविधियाँ या प्रयोग करवाये जा सके। अन्यथा भारी लोहे का फर्नीचर कक्षा में अन्य गतिविधियाँ करवाने में बाधक अधिक बनता है, साधक तो बिल्कुल नहीं मेज की ऊपरी सतह सपाट न हो, तिरछी आगे की ओर
और बेंच की व्यवस्था है । भले ही वह उनके ज्ञानार्जन .... चिल्ड पानी बालकों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।
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के प्रतिकूल है किन्तु विद्यालय को उच्च स्तर का बताने पानी पर हुए सभी शोध एवं हमारा अपना अनुभव
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के लिए फर्नीचर आवश्यक हो गया है । यही सिद्ध करता है कि मिट्टी के घड़े का पानी सर्वाधिक
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जबकि वास्तविकता यह है कि पढ़ते समय बालक... शुद्ध एवं शीतल होता हैं । इसी जल से तृप्ति होती है।
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झुकी हो, प्रकाश बायीं ओर से पीछे से आता हो श्यामपट्ट पूर्व दिशा की दीवार में हो जिससे विद्यार्थी पूर्वाभिमुख बैठ सके। गुरु का स्थान ऊपर व शिष्य का स्थान नीचे होना चाहिए ।  
के मस्तिष्क को उर्जा की अधिक आवश्यकता रहती है ।.. कोल्ड या चिल्ड पानी से प्यास नहीं बुझती ।
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टेबल-कुर्सी पर पैर लटका कर बैठने से वह ऊर्जा इसी प्रकार आजकल प्लास्टिक बोतलों में पानी
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अधोगामी होकर पैरों के माध्यम से पृथ्वी में समा जाती... सर्वत्र सुलभ बना दिया गया है हर कोई व्यक्ति यात्रा में
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है । इसलिए बालक अधिक समय तक नहीं पढ़ पाते, इन बोतलों का पानी बिना विचार के पीता रहता है।
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उनका सिर दुखने लगता है । ग्रहण शीलता कम हो जाती .. जबकि शोध तो यह सिद्ध करते हैं कि मिट्टी के घड़े में
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है। इसके स्थान पर बैठने की व्यवस्था नीचे करने पर... रखा पानी ६ घंटों में किटाणु रहित होकर शुद्ध हो जाता
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बालक सिद्धासन या सुखासन में बैठता है तो दोनों पैरों में है। तांबे के कलश में रखा पानी १२ घंटों मे किटाणु
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बंध लगने से उर्जा अधोगामी न होकर उर्ध्वगामी हो जाती. रहित होता है। काँच के बर्तन में रखा पानी जैसा
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है, जिससे बालक अधिक समय तक अध्ययन में लगा... है, वैसा ही रहता है परन्तु प्लास्टिक के बर्तन में रखे
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रहता है। मन एकाग्र रहता है और पग्रहणशीलता बनी... पानी में १२ घंटे बाद किटाणु नष्ट होने के स्थान पर वृद्धि
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रहती है। अर्थात्‌ फर्नीचर पर पैर लटकाकर बैठना. कर लेते हैं।
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VARA के प्रतिकूल है और सुखासन में नीचे बैठना इसलिए जल व्यवस्था आधुनिक उपकरणों एवं
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VARA के अनुकूल है । हमें चाहिए कि हम फर्नीचर के... प्लास्टिक के बर्तनों के स्थान पर मिट्टी के घड़ो में ही
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स्थान पर कक्षा कक्ष में कोमल सूती व मोटे आसन की... करनी चाहिए । विद्यालयों में बहुत अच्छी प्याऊ बनानी
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व्यवस्था बालकों के लिए करें । चाहिए और वाटर कूलर हटा देने चाहिए ।
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बड़ी कक्षाओं में जहाँ फर्नीचर आवश्यक हो वहाँ
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==== (८) विद्यालय में जल व्यवस्था स्वास्थ्य के अनुकूल हो ====
भी हल्का फर्नीचर हो ताकि उसे आवश्यकता पड़ने पर
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आजकल विद्यालयों में जल व्यवस्था का आधार वाटर कूलर बन गये हैं। वाटर कूलर का कोल्ड अथवा चिल्ड पानी बालकों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।
समेट कर एक और रखा जा सके और कक्षा कक्ष में
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अन्य गतिविधियाँ या प्रयोग करवाये जा सके । अन्यथा विद्यालय भवनों में सबसे बड़ी समस्या तापमान
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भारी लोहे का फर्नीचर कक्षा में अन्य गतिविधियाँ करवाने... नियन्त्रण की रहती है । आजकल तापमान नियन्त्रित करने
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में बाधक अधिक बनता है, साधक तो बिल्कुल नहीं ।.... के लिए अप्राकृतिक उपकरणों का सहारा लिया जाता है,
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मेज की ऊपरी सतह सपाट न हो, तिरछी आगे की ओर... जैसे पंखें, कूलर, ए.सी. आदि
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(९) विद्यालय में तापमान नियन्त्रण की
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पानी पर हुए सभी शोध एवं हमारा अपना अनुभव यही सिद्ध करता है कि मिट्टी के घड़े का पानी सर्वाधिक शुद्ध एवं शीतल होता हैं । इसी जल से तृप्ति होती है। कोल्ड या चिल्ड पानी से प्यास नहीं बुझती।
प्राकृतिक व्यवस्था हो
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इसी प्रकार आजकल प्लास्टिक बोतलों में पानी सर्वत्र सुलभ बना दिया गया है। हर कोई व्यक्ति यात्रा में इन बोतलों का पानी बिना विचार के पीता रहता है। जबकि शोध तो यह सिद्ध करते हैं कि मिट्टी के घड़े में रखा पानी ६ घंटों में किटाणु रहित होकर शुद्ध हो जाता है। तांबे के कलश में रखा पानी १२ घंटों मे किटाणु  रहित होता है। काँच के बर्तन में रखा पानी जैसा है, वैसा ही रहता है परन्तु प्लास्टिक के बर्तन में रखे पानी में १२ घंटे बाद किटाणु नष्ट होने के स्थान पर वृद्धि कर लेते हैं।
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इसलिए जल व्यवस्था आधुनिक उपकरणों एवं प्लास्टिक के बर्तनों के स्थान पर मिट्टी के घड़ो में ही करनी चाहिए । विद्यालयों में बहुत अच्छी प्याऊ बनानी चाहिए और वाटर कूलर हटा देने चाहिए ।
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==== (९) विद्यालय में तापमान नियन्त्रण की प्राकृतिक व्यवस्था हो ====
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विद्यालय भवनों में सबसे बड़ी समस्या तापमान नियन्त्रण की रहती है। आजकल तापमान नियन्त्रित करने के लिए अप्राकृतिक उपकरणों का सहारा लिया जाता है, जैसे पंखें, कूलर, ए.सी. आदि ।
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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विज्ञान कहता है कि ठंडी हवा नीचे रहती है और गर्म हवा हल्की होकर ऊपर उठती है । आज के कमरों में हवादान बनाये ही नहीं जाते, इसलिए गर्म हवा बाहर नहीं निकल पाती । कमरों में पंखे चलते हैं, वे पंखे गर्म हवा को ऊपर आने ही नहीं देते और गर्म हवा को ही फेंकते रहते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । इसलिए तापमान का नियंत्रण प्राकृतिक उपायों से ही करना चाहिए । हमारे देश में यह तकनीक थी।
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===== कुछ प्राकृतिक उपाय इस प्रकार हैं =====
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१. कमरों की दीवारें अधिक मोटाई की हों । निर्माण में प्रयुक्त सामग्री लोहे-सीमेन्ट के स्थान पर चूना व लकड़ी आदि हो ।
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विज्ञान कहता है कि ठंडी हवा... विचार नहीं किया जाता । निर्माण पूर्ण होने के पश्चात्‌ उसे
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. कमरों में हवादान (वेन्टीलेटर) अवश्य बनायें जायें हवादान आमने-सामने होने से क्रॉस वेन्टीलेशन होता है।
नीचे रहती है और गर्म हवा हल्की होकर ऊपर उठती है ।.. ध्वनि रोधी (डीपव झीष) बनाया जाता है ऐसा करने से
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आज के कमरों में हवादान बनाये ही नहीं जाते, इसलिए... समय, शक्ति व आर्थिक व्यय अतिरिक्त लगता है ।
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गर्म हवा बाहर नहीं निकल पाती । कमरों में पंखे चलते हैं, हमारे शिल्पशाख्र के ऐसे उदाहरण आज भी हैं,
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३. दीवारें सूर्य की रोशनी से तपती हों तो दो तीन फीट की दूरी पर मेंहदी की दीवार बनाई जाय ।
वे पंखे गर्म हवा को ऊपर आने ही नहीं देते और गर्म हवा. जहाँ न तो उसे साउन्ड प्रुफ बनाने की आवश्यकता है,
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को ही फेंकते रहते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।.. और ना ही माइक लगाने की आवश्यकता पड़ती है।
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इसलिए तापमान का नियंत्रण प्राकृतिक उपायों से ही करना. जोलकोंडा का किला ध्वनिशाख्र का अद्भुत उदाहरण है ।
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चाहिए । हमारे देश में यह तकनीक थी | किले के मुख्य ट्वार का रक्षक ताली बजाता है तो किले
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कुछ प्राकृतिक उपाय इस प्रकार हैं की सातवीं मंजिल में बैठे व्यक्ति को वह ताली स्पष्ट
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सुनाई देती है ।
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१... कमरों की दीवारें अधिक मोटाई की हों । निर्माण में हमारे यहाँ निर्मित प्राचीन रंगशालाएँ जहाँ नाटक
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प्रयुक्त सामग्री लोहे-सीमेन्ट के स्थान पर चूना व मंचित होते थे, उस विशाल सभागार में ध्वनि व्यवस्था
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लकड़ी आदि हो । ऐसी उत्तम रहती थी कि मंच से बोलने वाले नट की
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२... कमरों में हवादान (वेन्टीलेटर) अवश्य बनायें जायें । आवाज बिना माइक के ७० फिट तक बैठे हुए दर्शकों को
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हवादान आमने-सामने होने से क्रॉस वेन्टीलेशन समान रूप से एक जैसी सुनाई देती थी, चाहे वह आगे
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हा । न बैठा है या पीछे ।
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... दीवारें सूर्य की रोशनी से तपती हों तो दो तीन फीट आज के विद्यालय भवनों में इसका अभाव होने के
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की दूरी पर मेंहदी की दीवार बनाई जाय । कारण कक्षा-कक्षों में आचार्य को माइक का सहारा लेना
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४... स्थान-स्थान पर नीम के पेड़ लगाने चाहिए, ताकि... पड़ता है अथवा चिछ्ठाना पड़ता है। कुछ भवन तो ऐसे
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उनकी छाया छत को गरम न होने दे । बन जाते हैं जहाँ सदैव बच्चों का हो हा ही गूंजता
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५. कमरों की छतें सीधी-सपाट होने से छत पर सूर्य. रहता है मानो वह विद्यालय न होकर मछली बाजार हो ।
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किरणें सीधी और अधिक पड़ती हैं, जिससे छतें.. अतः व्यवस्था करते समय ताप नियंत्रण की भाँति ध्वनि
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बहुत तपती हैं । इसलिए सपाट छतों के स्थान पर. नियंत्रण की ओर भी ध्यान देना नितान्त आवश्यक है |
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पिरेंमिड आकार की छतें बनाने से वे कम गर्म होती
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हैं। हमारे गाँवों में झोंपडियों का आकार यही होता... (११) विद्यालय वेश मौसम के अनुसार हो
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है, इसलिए वे ठंडी रहती हैं । वेश का सीधा सम्बन्ध व्यक्ति के स्वास्थ्य से है ।
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शोध कहते हैं कि सीधी सपाट छत वाले कमरे में... शरीर रक्षा हेतु वेश होना चाहिए। किन्तु आज प्रमुख
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रखी खाद्य वस्तु बहुत जल्दी खराब हो जाती है, जबकि... बिन्दु हो गया है सुन्दर दिखना अर्थात्‌ फैशन । आज
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पिरामिड आकार वाले कमरे में रखी खाद्य वस्तु अधिक. विद्यालयों में वेश का निर्धारण दुकानदार करता है जिसमें
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समय तक खराब नहीं होती | उसका व संचालकों का आर्थिक हित जुड़ा रहता है ।
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गर्म जलवायु वाले प्रदेश में छोटे-छोटे बच्चों को
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बूट-मोजों से लेकर टाई से बाँधने की व्यवस्था उनके
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साथ अन्याय है । इसलिए वेश सदैव सादा व शरीर रक्षा
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आज के भवनों में निर्माण के समय ध्वनि शास्त्र का... करने वाला होना चाहिए, अंग्रेज बाबू बनाने वाला नहीं,
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(१०) विद्यालय में ध्वनि व्यवस्था भारतीय
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शिल्पशासख्रानुसार हो
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पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
      
स्वदेशी भाव जगाने वाला होना चाहिए ।
 
स्वदेशी भाव जगाने वाला होना चाहिए ।
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