Difference between revisions of "Adiparva Adhyaya 25 (आदिपर्वणि अध्यायः २५)"
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− | मातुरन्तिकमागच्छत्परं पारं महोदधेः॥ 1-25-1 | + | सौतिरुवाच |
− | + | ततः कामगमः पक्षी महावीर्यो महाबलः। | |
− | यत्र सा विनता तस्मिन्पणितेन पराजिता। | + | अरुणं चात्मनः पृष्ठमुपारोप्य पितुर्गृहात्। |
− | + | मातुरन्तिकमागच्छत्परं पारं महोदधेः॥ 1-25-1 | |
− | अतीव दुखसंतप्ता दासीभावमुपागता॥ 1-25-2 | + | यत्र सा विनता तस्मिन्पणितेन पराजिता। |
− | + | अतीव दुखसंतप्ता दासीभावमुपागता॥ 1-25-2 | |
− | ततः कदाचिद्विनतां प्रणतां पुत्रसंनिधौ। | + | ततः कदाचिद्विनतां प्रणतां पुत्रसंनिधौ। |
− | + | काले चाहूय वचनं कद्रूरिदमभाषत॥ 1-25-3 | |
− | काले चाहूय वचनं कद्रूरिदमभाषत॥ 1-25-3 | + | नागानामालयं भद्रे सुरम्यं चारुदर्शनम्। |
− | + | समुद्रकुक्षावेकान्ते तत्र मां विनते नय॥ 1-25-4 | |
− | नागानामालयं भद्रे सुरम्यं चारुदर्शनम्। | + | ततः सुपर्णमाता तामवहत्सर्पमातरम्। |
− | + | पन्नगान्गरुडश्चापि मातुर्वचनचोदितः॥ 1-25-5 | |
− | समुद्रकुक्षावेकान्ते तत्र मां विनते नय॥ 1-25-4 | + | स सूर्यमभितो याति वैनतेयो विहंगमः। |
− | + | सूर्यरश्मिप्रतप्ताश्च मूर्छिताः पन्नगाभवन्॥ 1-25-6 | |
− | ततः सुपर्णमाता तामवहत्सर्पमातरम्। | + | तदवस्थान्सुतान्दृष्ट्वा कद्रूः शक्रमथास्तुवत्। |
− | + | नमस्ते सर्वदेवेश नमस्ते बलसूदन॥ 1-25-7 | |
− | पन्नगान्गरुडश्चापि मातुर्वचनचोदितः॥ 1-25-5 | + | नमुचिघ्न नमस्तेऽस्तु सहस्राक्ष शचीपते। |
− | + | सर्पाणां सूर्यतप्तानां वारिणा त्वं प्लवो भव॥ 1-25-8 | |
− | स सूर्यमभितो याति वैनतेयो विहंगमः। | + | त्वमेव परमं त्राणमस्माकममरोत्तम। |
− | + | ईशो ह्यसि पयः स्रष्टुं त्वमनल्पं पुरन्दर॥ 1-25-9 | |
− | सूर्यरश्मिप्रतप्ताश्च मूर्छिताः पन्नगाभवन्॥ 1-25-6 | + | त्वमेव मेघस्त्वं वायुस्त्वमग्निर्विद्युतोऽम्बरे। |
− | + | त्वमभ्रगणविक्षेप्ता त्वामेवाहुर्महाघनम्॥ 1-25-10 | |
− | तदवस्थान्सुतान्दृष्ट्वा कद्रूः शक्रमथास्तुवत्। | + | त्वं वज्रमतुलं घोरं घोषवांस्त्वं बलाहकः। |
− | + | स्रष्टा त्वमेव लोकानां संहर्ता चापराजितः॥ 1-25-11 | |
− | नमस्ते सर्वदेवेश नमस्ते बलसूदन॥ 1-25-7 | + | त्वं ज्योतिः सर्वभूतानां त्वमादित्यो विभावसुः। |
− | + | त्वं महद्भूतमाश्चर्यं त्वं राजा त्वं सुरोत्तमः॥ 1-25-12 | |
− | नमुचिघ्न नमस्तेऽस्तु सहस्राक्ष शचीपते। | + | त्वं विष्णुस्त्वं सहस्राक्षस्त्वं देवस्त्वं परायणम्। |
− | + | त्वं सर्वममृतं देव त्वं सोमः परमार्चितः॥ 1-25-13 | |
− | सर्पाणां सूर्यतप्तानां वारिणा त्वं प्लवो भव॥ 1-25-8 | + | त्वं मुहूर्तस्तिथिस्त्वं च त्वं लवस्त्वं पुनः क्षणः। |
− | + | शुक्लस्त्वं बहुलस्त्वं च कला काष्ठा त्रुटिस्तथा। | |
− | त्वमेव परमं त्राणमस्माकममरोत्तम। | + | संवत्सरर्तवो मासा रजन्यश्च दिनानि च॥ 1-25-14 |
− | + | त्वमुत्तमा सगिरिवना वसुन्धरा सभास्करं वितिमिरमम्बरं तथा। | |
− | ईशो ह्यसि पयः स्रष्टुं त्वमनल्पं पुरन्दर॥ 1-25-9 | + | महोदधिः सतिमितिमिंगिलस्तथा महोर्मिमान्बहुमकरो झषाकुलः॥ 1-25-15 |
− | + | महायशास्त्वमिति सदाभिपूज्यसे मनीषिभिर्मुदितमना महर्षिभिः। | |
− | त्वमेव मेघस्त्वं वायुस्त्वमग्निर्विद्युतोऽम्बरे। | + | अभिष्टुतः पिबसि च सोममध्वरे वषट्कृतान्यपि च हवींषि भूतये॥ 1-25-16 |
− | + | त्वं विप्रैः सततमिहेज्यसे फलार्थं वेदाङ्गेष्वतुलबलौघ गीयसे च। | |
− | त्वमभ्रगणविक्षेप्ता त्वामेवाहुर्महाघनम्॥ 1-25-10 | + | त्वद्धेतोर्यजनपरायणा द्विजेन्द्रा वेदाङ्गान्यभिगमयन्ति सर्वयत्नैः॥ 1-25-17 |
− | + | इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सौपर्णे पञ्चविंशोऽध्यायः ॥ 25 ॥ | |
− | त्वं वज्रमतुलं घोरं घोषवांस्त्वं बलाहकः। | + | [[:Category:Kadru|''Kadru'']] [[:Category:Prayers|''Prayers'']] [[:Category:Prayers of Kadru|''Prayers of Kadru'']] |
− | + | [[:Category:Prayers of Kadru to Indra|''Prayers of Kadru to Indra'']] | |
− | स्रष्टा त्वमेव लोकानां संहर्ता चापराजितः॥ 1-25-11 | + | [[:Category:Fainted|''Fainted'']] [[:Category:Fainted snakes|''Fainted snakes'']] |
− | + | [[:Category:Snakes fainted by heat of Surya|''Snakes fainted by heat of Surya'']] | |
− | त्वं ज्योतिः सर्वभूतानां त्वमादित्यो विभावसुः। | + | [[:Category:Snakes fainted by heat of Sun|''Snakes fainted by heat of Sun'']] |
− | + | [[:Category:कद्रू|''कद्रू'']] [[:Category:प्रार्थना|''प्रार्थना'']] | |
− | त्वं महद्भूतमाश्चर्यं त्वं राजा त्वं सुरोत्तमः॥ 1-25-12 | + | [[:Category:कद्रूकी प्रार्थना|''कद्रूकी प्रार्थना'']] [[:Category:कद्रूकी इन्द्रको प्रार्थना|''कद्रूकी इन्द्रको प्रार्थना'']] |
− | + | [[:Category:मूर्च्छित सर्प|''मूर्च्छित सर्प'']] [[:Category:मूर्च्छित|''मूर्च्छित'']] | |
− | त्वं विष्णुस्त्वं सहस्राक्षस्त्वं देवस्त्वं परायणम्। | + | [[:Category:तापसे मूर्च्छित सर्प|''तापसे मूर्च्छित सर्प'']] |
− | + | [[:Category:सूर्यके तापसे मूर्च्छित सर्प|''सूर्यके तापसे मूर्च्छित सर्प'']] | |
− | त्वं सर्वममृतं देव त्वं सोमः परमार्चितः॥ 1-25-13 | ||
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− | त्वं मुहूर्तस्तिथिस्त्वं च त्वं लवस्त्वं पुनः क्षणः। | ||
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− | शुक्लस्त्वं बहुलस्त्वं च कला काष्ठा त्रुटिस्तथा। | ||
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− | संवत्सरर्तवो मासा रजन्यश्च दिनानि च॥ 1-25-14 | ||
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− | त्वमुत्तमा सगिरिवना वसुन्धरा सभास्करं वितिमिरमम्बरं तथा। | ||
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− | महोदधिः सतिमितिमिंगिलस्तथा महोर्मिमान्बहुमकरो झषाकुलः॥ 1-25-15 | ||
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− | महायशास्त्वमिति सदाभिपूज्यसे मनीषिभिर्मुदितमना महर्षिभिः। | ||
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− | अभिष्टुतः पिबसि च सोममध्वरे वषट्कृतान्यपि च हवींषि भूतये॥ 1-25-16 | ||
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− | त्वं विप्रैः सततमिहेज्यसे फलार्थं वेदाङ्गेष्वतुलबलौघ गीयसे च। | ||
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− | त्वद्धेतोर्यजनपरायणा द्विजेन्द्रा वेदाङ्गान्यभिगमयन्ति सर्वयत्नैः॥ 1-25-17 | ||
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− | इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सौपर्णे पञ्चविंशोऽध्यायः ॥ 25 ॥ |
Latest revision as of 15:55, 14 October 2019
सौतिरुवाच ततः कामगमः पक्षी महावीर्यो महाबलः। अरुणं चात्मनः पृष्ठमुपारोप्य पितुर्गृहात्। मातुरन्तिकमागच्छत्परं पारं महोदधेः॥ 1-25-1 यत्र सा विनता तस्मिन्पणितेन पराजिता। अतीव दुखसंतप्ता दासीभावमुपागता॥ 1-25-2 ततः कदाचिद्विनतां प्रणतां पुत्रसंनिधौ। काले चाहूय वचनं कद्रूरिदमभाषत॥ 1-25-3 नागानामालयं भद्रे सुरम्यं चारुदर्शनम्। समुद्रकुक्षावेकान्ते तत्र मां विनते नय॥ 1-25-4 ततः सुपर्णमाता तामवहत्सर्पमातरम्। पन्नगान्गरुडश्चापि मातुर्वचनचोदितः॥ 1-25-5 स सूर्यमभितो याति वैनतेयो विहंगमः। सूर्यरश्मिप्रतप्ताश्च मूर्छिताः पन्नगाभवन्॥ 1-25-6 तदवस्थान्सुतान्दृष्ट्वा कद्रूः शक्रमथास्तुवत्। नमस्ते सर्वदेवेश नमस्ते बलसूदन॥ 1-25-7 नमुचिघ्न नमस्तेऽस्तु सहस्राक्ष शचीपते। सर्पाणां सूर्यतप्तानां वारिणा त्वं प्लवो भव॥ 1-25-8 त्वमेव परमं त्राणमस्माकममरोत्तम। ईशो ह्यसि पयः स्रष्टुं त्वमनल्पं पुरन्दर॥ 1-25-9 त्वमेव मेघस्त्वं वायुस्त्वमग्निर्विद्युतोऽम्बरे। त्वमभ्रगणविक्षेप्ता त्वामेवाहुर्महाघनम्॥ 1-25-10 त्वं वज्रमतुलं घोरं घोषवांस्त्वं बलाहकः। स्रष्टा त्वमेव लोकानां संहर्ता चापराजितः॥ 1-25-11 त्वं ज्योतिः सर्वभूतानां त्वमादित्यो विभावसुः। त्वं महद्भूतमाश्चर्यं त्वं राजा त्वं सुरोत्तमः॥ 1-25-12 त्वं विष्णुस्त्वं सहस्राक्षस्त्वं देवस्त्वं परायणम्। त्वं सर्वममृतं देव त्वं सोमः परमार्चितः॥ 1-25-13 त्वं मुहूर्तस्तिथिस्त्वं च त्वं लवस्त्वं पुनः क्षणः। शुक्लस्त्वं बहुलस्त्वं च कला काष्ठा त्रुटिस्तथा। संवत्सरर्तवो मासा रजन्यश्च दिनानि च॥ 1-25-14 त्वमुत्तमा सगिरिवना वसुन्धरा सभास्करं वितिमिरमम्बरं तथा। महोदधिः सतिमितिमिंगिलस्तथा महोर्मिमान्बहुमकरो झषाकुलः॥ 1-25-15 महायशास्त्वमिति सदाभिपूज्यसे मनीषिभिर्मुदितमना महर्षिभिः। अभिष्टुतः पिबसि च सोममध्वरे वषट्कृतान्यपि च हवींषि भूतये॥ 1-25-16 त्वं विप्रैः सततमिहेज्यसे फलार्थं वेदाङ्गेष्वतुलबलौघ गीयसे च। त्वद्धेतोर्यजनपरायणा द्विजेन्द्रा वेदाङ्गान्यभिगमयन्ति सर्वयत्नैः॥ 1-25-17 इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सौपर्णे पञ्चविंशोऽध्यायः ॥ 25 ॥ Kadru Prayers Prayers of Kadru Prayers of Kadru to Indra Fainted Fainted snakes Snakes fainted by heat of Surya Snakes fainted by heat of Sun कद्रू प्रार्थना कद्रूकी प्रार्थना कद्रूकी इन्द्रको प्रार्थना मूर्च्छित सर्प मूर्च्छित तापसे मूर्च्छित सर्प सूर्यके तापसे मूर्च्छित सर्प