Difference between revisions of "Vanaparva Adhyaya 7 (वनपर्वणि अध्यायः ७)"
Jump to navigation
Jump to search
(Added tags) |
m |
||
(2 intermediate revisions by one other user not shown) | |||
Line 22: | Line 22: | ||
पितुस्ते वचनं तात न ग्रहीष्यन्ति कर्हिचित्॥ 3-7-8 | पितुस्ते वचनं तात न ग्रहीष्यन्ति कर्हिचित्॥ 3-7-8 | ||
[[:Category:प्रतिज्ञा|''प्रतिज्ञा'']] | [[:Category:प्रतिज्ञा|''प्रतिज्ञा'']] | ||
− | |||
अथवा ते ग्रहीष्यन्ति पुनरेष्यन्ति वा पुरम्। | अथवा ते ग्रहीष्यन्ति पुनरेष्यन्ति वा पुरम्। | ||
Line 28: | Line 27: | ||
सर्वे भवामो मध्यस्था राज्ञश्छन्दानुवर्तिनः। | सर्वे भवामो मध्यस्था राज्ञश्छन्दानुवर्तिनः। | ||
छिद्रं बहु प्रपश्यन्तः पाण्डवानां सुसंवृताः॥ 3-7-10 | छिद्रं बहु प्रपश्यन्तः पाण्डवानां सुसंवृताः॥ 3-7-10 | ||
+ | [[:Category:Vidura's advice to Duryodhana|''Vidura's advice to Duryodhana'']] | ||
दुःशासन उवाच | दुःशासन उवाच | ||
Line 33: | Line 33: | ||
एवमेतन्महाप्राज्ञ यथा वदसि मातुल। | एवमेतन्महाप्राज्ञ यथा वदसि मातुल। | ||
नित्यं हि मे कथयतस्तव बुद्धिर्विरोचते॥ 3-7-11 | नित्यं हि मे कथयतस्तव बुद्धिर्विरोचते॥ 3-7-11 | ||
+ | [[:Category:Vidura's advice to Duryodhana|''Vidura's advice to Duryodhana'']] | ||
कर्ण उवाच | कर्ण उवाच | ||
− | काममीक्षामहे सर्वे दुर्योधन तवेप्सितम्। | + | काममीक्षामहे सर्वे दुर्योधन तवेप्सितम्। |
− | + | ऐकमत्यं हि नो राजन्सर्वेषामेव लक्षये॥ 3-7-12 | |
− | ऐकमत्यं हि नो राजन्सर्वेषामेव लक्षये॥ 3-7-12 | + | नागमिष्यन्ति ते धीरा अकृत्वा कालसंविदम्। |
− | + | आगमिष्यन्ति चेन्मोहात्पुनर्द्यूतेन ताञ्जय॥ 3-7-13 | |
− | नागमिष्यन्ति ते धीरा अकृत्वा कालसंविदम्। | + | [[:Category:Karna's advice to Duryodhana|''Karna's advice to Duryodhana'']] |
− | |||
− | आगमिष्यन्ति चेन्मोहात्पुनर्द्यूतेन ताञ्जय॥ 3-7-13 | ||
वैशम्पायन उवाच | वैशम्पायन उवाच | ||
− | एवमुक्तस्तु कर्णेन राजा दुर्योधनस्तदा। | + | एवमुक्तस्तु कर्णेन राजा दुर्योधनस्तदा। |
− | + | नातिहृष्टमनाः क्षिप्रमभवत्स पराङ्मुखः॥ 3-7-14 | |
− | नातिहृष्टमनाः क्षिप्रमभवत्स पराङ्मुखः॥ 3-7-14 | + | उपलभ्य ततः कर्णो विवृत्य नयने शुभे। |
− | + | रोषाद्दुःशासनं चैव सौबलं च तमेव च॥ 3-7-15 | |
− | उपलभ्य ततः कर्णो विवृत्य नयने शुभे। | + | उवाच परमक्रुद्ध उद्यम्यात्मानमात्मना। |
− | + | अथो मम मतं यत्तु तन्निबोधत भूमिपाः॥ 3-7-16 | |
− | रोषाद्दुःशासनं चैव सौबलं च तमेव च॥ 3-7-15 | + | प्रियं सर्वे करिष्यामो राज्ञः किङ्करपाणयः। |
− | + | न चास्य शक्नुमः स्थातुं प्रिये सर्वे ह्यतन्द्रिताः॥ 3-7-17 | |
− | उवाच परमक्रुद्ध उद्यम्यात्मानमात्मना। | + | वयं तु शस्त्राण्यादाय रथानास्थाय दंशिताः। |
− | + | गच्छामः सहिता हन्तुं पाण्डवान्वनगोचरान्॥ 3-7-18 | |
− | अथो मम मतं यत्तु तन्निबोधत भूमिपाः॥ 3-7-16 | + | तेषु सर्वेषु शान्तेषु गतेष्वविदितां गतिम्। |
− | + | निर्विवादा भविष्यन्ति धार्तराष्ट्रास्तथा वयम्॥ 3-7-19 | |
− | प्रियं सर्वे करिष्यामो राज्ञः किङ्करपाणयः। | + | यावदेव परिद्यूना यावच्छोकपरायणाः। |
− | + | यावन्मित्रविहीनाश्च तावच्छक्या मतं मम॥ 3-7-20 | |
− | न चास्य शक्नुमः स्थातुं प्रिये सर्वे ह्यतन्द्रिताः॥ 3-7-17 | + | तस्य तद्वचनं श्रुत्वा पूजयन्तः पुनः पुनः। |
− | + | बाढमित्येव ते सर्वे प्रत्यूचुः सूतजं तदा॥ 3-7-21 | |
− | वयं तु शस्त्राण्यादाय रथानास्थाय दंशिताः। | + | [[:Category:Karna's advice to Duryodhana|''Karna's advice to Duryodhana'']] |
− | |||
− | गच्छामः सहिता हन्तुं पाण्डवान्वनगोचरान्॥ 3-7-18 | ||
− | |||
− | तेषु सर्वेषु शान्तेषु गतेष्वविदितां गतिम्। | ||
− | |||
− | निर्विवादा भविष्यन्ति धार्तराष्ट्रास्तथा वयम्॥ 3-7-19 | ||
− | |||
− | यावदेव परिद्यूना यावच्छोकपरायणाः। | ||
− | |||
− | यावन्मित्रविहीनाश्च तावच्छक्या मतं मम॥ 3-7-20 | ||
− | |||
− | तस्य तद्वचनं श्रुत्वा पूजयन्तः पुनः पुनः। | ||
− | |||
− | बाढमित्येव ते सर्वे प्रत्यूचुः सूतजं तदा॥ 3-7-21 | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | प्रज्ञाचक्षुषमासीनमुवाचाभ्येत्य सत्वरम्॥ 3-7-24 | + | एवमुक्त्वा सुसंरब्धा रथैः सर्वे पृथक्पृथक्। |
+ | निर्ययुः पाण्डवान्हन्तुं सहिताः कृतनिश्चयाः॥ 3-7-22 | ||
+ | तान्प्रस्थितान्परिज्ञाय कृष्णद्वैपायनः प्रभुः। | ||
+ | आजगाम विशुद्धात्मा दृष्ट्वा दिव्येन चक्षुषा॥ 3-7-23 | ||
+ | प्रतिषिध्याथ तान्सर्वान्भगवाँल्लोकपूजितः। | ||
+ | प्रज्ञाचक्षुषमासीनमुवाचाभ्येत्य सत्वरम्॥ 3-7-24 | ||
+ | [[:Category:Maharishi Veda Vyasa|''Maharishi Veda Vyasa'']] | ||
इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि अरण्यपर्वणि व्यासागमने सप्तमोऽध्यायः॥ 7 ॥ | इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि अरण्यपर्वणि व्यासागमने सप्तमोऽध्यायः॥ 7 ॥ |
Latest revision as of 09:54, 14 August 2019
वैशम्पायन उवाच
श्रुत्वा च विदुरं प्राप्तं राज्ञा च परिसान्त्वितम्। धृतराष्ट्रात्मजो राजा पर्यतप्यत दुर्मतिः॥ 3-7-1 स सौबलेयमानाय्य कर्णदुःशासनौ तथा। अब्रवीद्वचनं राजा प्रविश्याबुद्धिजं तमः॥ 3-7-2 एष प्रत्यागतो मन्त्री धृतराष्ट्रस्य धीमतः। विदुरः पाण्डुपुत्राणां सुहृद्विद्वान्हिते रतः॥ 3-7-3 यावदस्य पुनर्बुद्धिं विदुरो नापकर्षति। पाण्डवानयने तावन्मन्त्रयध्वं हितं मम॥ 3-7-4 अथ पश्याम्यहं पार्थान्प्राप्तानिह कथञ्चन। पुनः शोषं गमिष्यामि निरम्बुर्निरवग्रहः॥ 3-7-5 विषमुद्बन्धनं चैव शस्त्रमग्निप्रवेशनम्। करिष्ये न हि तानृद्धान्पुनर्द्रष्टुमिहोत्सहे॥ 3-7-6 Duryodhana's hatred for Pandavas
शकुनिरुवाच
किं बालिशमतिं राजन्नास्थितोऽसि विशाम्पते। गतास्ते समयं कृत्वा नैतदेवं भविष्यति॥ 3-7-7 सत्यवाक्यस्थिताः सर्वे पाण्डवा भरतर्षभ। पितुस्ते वचनं तात न ग्रहीष्यन्ति कर्हिचित्॥ 3-7-8 प्रतिज्ञा अथवा ते ग्रहीष्यन्ति पुनरेष्यन्ति वा पुरम्। निरस्य समयं सर्वे पणोऽस्माकं भविष्यति॥ 3-7-9 सर्वे भवामो मध्यस्था राज्ञश्छन्दानुवर्तिनः। छिद्रं बहु प्रपश्यन्तः पाण्डवानां सुसंवृताः॥ 3-7-10 Vidura's advice to Duryodhana
दुःशासन उवाच
एवमेतन्महाप्राज्ञ यथा वदसि मातुल। नित्यं हि मे कथयतस्तव बुद्धिर्विरोचते॥ 3-7-11 Vidura's advice to Duryodhana
कर्ण उवाच
काममीक्षामहे सर्वे दुर्योधन तवेप्सितम्। ऐकमत्यं हि नो राजन्सर्वेषामेव लक्षये॥ 3-7-12 नागमिष्यन्ति ते धीरा अकृत्वा कालसंविदम्। आगमिष्यन्ति चेन्मोहात्पुनर्द्यूतेन ताञ्जय॥ 3-7-13 Karna's advice to Duryodhana
वैशम्पायन उवाच
एवमुक्तस्तु कर्णेन राजा दुर्योधनस्तदा। नातिहृष्टमनाः क्षिप्रमभवत्स पराङ्मुखः॥ 3-7-14 उपलभ्य ततः कर्णो विवृत्य नयने शुभे। रोषाद्दुःशासनं चैव सौबलं च तमेव च॥ 3-7-15 उवाच परमक्रुद्ध उद्यम्यात्मानमात्मना। अथो मम मतं यत्तु तन्निबोधत भूमिपाः॥ 3-7-16 प्रियं सर्वे करिष्यामो राज्ञः किङ्करपाणयः। न चास्य शक्नुमः स्थातुं प्रिये सर्वे ह्यतन्द्रिताः॥ 3-7-17 वयं तु शस्त्राण्यादाय रथानास्थाय दंशिताः। गच्छामः सहिता हन्तुं पाण्डवान्वनगोचरान्॥ 3-7-18 तेषु सर्वेषु शान्तेषु गतेष्वविदितां गतिम्। निर्विवादा भविष्यन्ति धार्तराष्ट्रास्तथा वयम्॥ 3-7-19 यावदेव परिद्यूना यावच्छोकपरायणाः। यावन्मित्रविहीनाश्च तावच्छक्या मतं मम॥ 3-7-20 तस्य तद्वचनं श्रुत्वा पूजयन्तः पुनः पुनः। बाढमित्येव ते सर्वे प्रत्यूचुः सूतजं तदा॥ 3-7-21 Karna's advice to Duryodhana
एवमुक्त्वा सुसंरब्धा रथैः सर्वे पृथक्पृथक्। निर्ययुः पाण्डवान्हन्तुं सहिताः कृतनिश्चयाः॥ 3-7-22 तान्प्रस्थितान्परिज्ञाय कृष्णद्वैपायनः प्रभुः। आजगाम विशुद्धात्मा दृष्ट्वा दिव्येन चक्षुषा॥ 3-7-23 प्रतिषिध्याथ तान्सर्वान्भगवाँल्लोकपूजितः। प्रज्ञाचक्षुषमासीनमुवाचाभ्येत्य सत्वरम्॥ 3-7-24 Maharishi Veda Vyasa
इति श्रीमहाभारते वनपर्वणि अरण्यपर्वणि व्यासागमने सप्तमोऽध्यायः॥ 7 ॥