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| विशेषतो ब्राह्मणेषु सदाचारावलम्बिषु॥ 3-2-6 | | विशेषतो ब्राह्मणेषु सदाचारावलम्बिषु॥ 3-2-6 |
| [[:Category:Yudhishtir - brahmans conversation|''Yudhishtir - brahmans conversation'']] [[:Category:युधिष्टीर ब्राह्मण संवाद|''युधिष्टीर ब्राह्मण संवाद'']] | | [[:Category:Yudhishtir - brahmans conversation|''Yudhishtir - brahmans conversation'']] [[:Category:युधिष्टीर ब्राह्मण संवाद|''युधिष्टीर ब्राह्मण संवाद'']] |
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| युधिष्ठिर उवाच | | युधिष्ठिर उवाच |
| ममापि परमा भक्तिर्ब्राह्मणेषु सदा द्विजाः। | | ममापि परमा भक्तिर्ब्राह्मणेषु सदा द्विजाः। |
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| यथा ह्यामिषमाकाशे पक्षिभिः श्वापदैर्भुवि। | | यथा ह्यामिषमाकाशे पक्षिभिः श्वापदैर्भुवि। |
| भक्ष्यते सलिले मत्स्यैस्तथा सर्वत्र वित्तवान्॥ 3-2-39 | | भक्ष्यते सलिले मत्स्यैस्तथा सर्वत्र वित्तवान्॥ 3-2-39 |
− | [[:Category:anarthas|''anarthas'']] [[:Category:अनर्थ|''अनर्थ'']] [:Category:Disadvantages of being wealthy|''Disadvantages of being wealthy'']] [[:Category:धन दोष|''धन दोष'']] | + | [[:Category:anarthas|''anarthas'']] [[:Category:अनर्थ|''अनर्थ'']] [[:Category:Disadvantages of being wealthy|''Disadvantages of being wealthy'']] [[:Category:धन दोष|''धन दोष'']] |
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| अर्थ एव हि केषाञ्चिदनर्थं भजते नृणाम्। | | अर्थ एव हि केषाञ्चिदनर्थं भजते नृणाम्। |
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| तृषितस्य च पानीयं क्षुधितस्य च भोजनम्॥ 3-2-54 | | तृषितस्य च पानीयं क्षुधितस्य च भोजनम्॥ 3-2-54 |
| चक्षुर्दद्यान्मनो दद्याद्वाचं दद्यात्सुभाषिताम्। | | चक्षुर्दद्यान्मनो दद्याद्वाचं दद्यात्सुभाषिताम्। |
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| उत्थाय चासनं दद्यादेष धर्मः सनातनः। | | उत्थाय चासनं दद्यादेष धर्मः सनातनः। |
| रत्युत्थायाभिगमनं कुर्यान्न्यायेन चार्चनम्॥ 3-2-55 | | रत्युत्थायाभिगमनं कुर्यान्न्यायेन चार्चनम्॥ 3-2-55 |