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| | जडान्धबधिरोन्मत्ततमोभूतं जगद्भवेत्॥ 1-1-90 | | जडान्धबधिरोन्मत्ततमोभूतं जगद्भवेत्॥ 1-1-90 |
| | यदि ज्ञानहुताशेन सम्यङ्नोज्ज्वलितं भवेत्। | | यदि ज्ञानहुताशेन सम्यङ्नोज्ज्वलितं भवेत्। |
| | + | तमसान्धस्य लोकस्य वेष्टितस्य स्वकर्मभिः॥ 1-1-91 |
| | + | ज्ञानाञ्जनशलाकाभिः बुद्धिनेत्रोत्सवः कृतः। |
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| − | तमसान्धस्य लोकस्य वेष्टितस्य स्वकर्मभिः॥ 1-1-91
| + | (अज्ञानतिमिरान्धस्य लोकस्य तु विचेष्टतः। |
| − | ज्ञानाञ्जनशलाकाभिः बुद्धिनेत्रोत्सवः कृतः।
| + | ज्ञानाञ्जनशलाकाभिर्नेत्रोन्मीलनकारकम्॥) |
| − | (अज्ञानतिमिरान्धस्य लोकस्य तु विचेष्टतः। | + | धर्मार्थकाममोक्षार्थैः समासव्यासकीर्तनैः॥ 1-1-92 |
| − | ज्ञानाञ्जनशलाकाभिर्नेत्रोन्मीलनकारकम्॥) | + | तथा भारतसूर्येण नृणां विनिहतं तमः। |
| − | धर्मार्थकाममोक्षार्थैः समासव्यासकीर्तनैः॥ 1-1-92 | + | पुराणपूर्णचन्द्रेण श्रुतिज्योत्स्नाः प्रकाशिताः॥ 1-1-93 |
| − | तथा भारतसूर्येण नृणां विनिहतं तमः। | + | नृबुद्धिकैरवाणां च कृतमेतत्प्रकाशनम्। |
| − | पुराणपूर्णचन्द्रेण श्रुतिज्योत्स्नाः प्रकाशिताः॥ 1-1-93 | + | इतिहासप्रदीपेन मोहावरणघातिना॥ 1-1-94 |
| − | नृबुद्धिकैरवाणां च कृतमेतत्प्रकाशनम्। | + | लोकगर्भगृहं कृत्स्नं यथावत्सम्प्रकाशितम्। |
| − | इतिहासप्रदीपेन मोहावरणघातिना॥ 1-1-94 | + | संग्रहाध्यायबीजो वै पौलोमास्तीकमूलवान्॥ 1-1-95 |
| − | लोकगर्भगृहं कृत्स्नं यथावत्सम्प्रकाशितम्। | + | सम्भवस्कन्धविस्तारः सभारण्यविटङ्कवान्। |
| − | संग्रहाध्यायबीजो वै पौलोमास्तीकमूलवान्॥ 1-1-95 | + | अरणीपर्वरूपाढ्यो विराटोद्योगसारवान्॥ 1-1-96 |
| − | सम्भवस्कन्धविस्तारः सभारण्यविटङ्कवान्। | + | भीष्मपर्वमहाशाखो द्रोणपर्वपलाशवान्। |
| − | अरणीपर्वरूपाढ्यो विराटोद्योगसारवान्॥ 1-1-96 | + | कर्णपर्वसितैः पुष्पैः शल्यपर्वसुगन्धिभिः॥ 1-1-97 |
| − | भीष्मपर्वमहाशाखो द्रोणपर्वपलाशवान्। | + | स्त्रीपर्वैषीकविश्रामः शान्तिपर्वमहाफलः। |
| − | कर्णपर्वसितैः पुष्पैः शल्यपर्वसुगन्धिभिः॥ 1-1-97 | + | अश्वमेधामृतरसस्त्वाश्रमस्थानसंश्रयः॥ 1-1-98 |
| − | स्त्रीपर्वैषीकविश्रामः शान्तिपर्वमहाफलः। | + | मौसलः श्रुतिसंक्षेपः शिष्टद्विजनिषेवितः। |
| − | अश्वमेधामृतरसस्त्वाश्रमस्थानसंश्रयः॥ 1-1-98 | + | सर्वेषां कविमुख्यानामुपजीव्यो भविष्यति॥ 1-1-99 |
| − | मौसलः श्रुतिसंक्षेपः शिष्टद्विजनिषेवितः। | + | पर्जन्य इव भूतानामाश्र[मक्ष]यो भारतद्रुमः। |
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| − | सर्वेषां कविमुख्यानामुपजीव्यो भविष्यति॥ 1-1-99
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| − | पर्जन्य इव भूतानामाश्र[मक्ष]यो भारतद्रुमः।
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| | सौतिरुवाच एवमाभाष्यं तं ब्रह्मा जगाम स्वं निवेशनम्। | | सौतिरुवाच एवमाभाष्यं तं ब्रह्मा जगाम स्वं निवेशनम्। |