Difference between revisions of "Aranyakanda Sarga 1 (आरण्यकाण्डे सर्गः १)"
m (test) |
m (Ckanak93 moved page Aranyakanda Sarga 1 (आरण्यकाण्डे प्रथमसर्गः) to Aranyakanda Sarga 1 (आरण्यकाण्डे सर्गः १) without leaving a redirect: Title edited) |
||
(9 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
− | + | __TOC__ | |
प्रविश्य तु महारण्यं दण्डकारण्यमात्मवान्। | प्रविश्य तु महारण्यं दण्डकारण्यमात्मवान्। | ||
− | ददर्श रामो दुर्धर्षस्तापसाश्रममण्डलम्।।3.1.1।। | + | ददर्श रामो दुर्धर्षस्तापसाश्रममण्डलम्।।3.1.1।। |
− | आश्रमपरिसरः || Hermitage | + | === आश्रमपरिसरः || Hermitage === |
− | + | कुशचीरपरिक्षिप्तं ब्राह्म्या लक्ष्म्या समावृतम्। | |
− | + | यथा प्रदीप्तं दुर्दर्शं गगने सूर्यमण्डलम्।।3.1.2।। | |
− | + | शरण्यं सर्वभूतानां सुसम्मृष्टाजिरं सदा। | |
− | यथा प्रदीप्तं दुर्दर्शं गगने सूर्यमण्डलम्।।3.1.2।। | + | मृगैर्बहुभिराकीर्णं पक्षिसङ्घैस्समावृतम्।।3.1.3।। |
− | + | पूजितं च प्रनृत्तं च नित्यमप्सरसां गणैः। | |
− | शरण्यं सर्वभूतानां सुसम्मृष्टाजिरं सदा। | + | विशालैरग्निशरणैः स्रुग्भाण्डैरजिनैः कुशैः।।3.1.4।। |
− | + | समिद्भिस्तोयकलशैः फलमूलैश्च शोभितम्। | |
− | मृगैर्बहुभिराकीर्णं पक्षिसङ्घैस्समावृतम्।।3.1.3।। | + | आरण्यैश्च महावृक्षैः पुण्यैस्स्वादुफलैर्वृतम्।।3.1.5।। |
− | + | बलिहोमार्चितं पुण्यं ब्रह्मघोषनिनादितम्। | |
− | पूजितं च प्रनृत्तं च नित्यमप्सरसां गणैः। | + | पुष्पैश्चान्यैः परिक्षिप्तं पद्मिन्या च सपद्मया।।3.1.6।। |
− | + | फलमूलाशनैर्दान्तैश्चीरकृष्णाजिनाम्बरैः। | |
− | विशालैरग्निशरणैः स्रुग्भाण्डैरजिनैः कुशैः।।3.1.4।। | + | सूर्यवैश्वानराभैश्च पुराणैर्मुनिभिर्वुतम्।।3.1.7।। |
− | + | पुण्यैश्च नियताहारैः शोभितं परमर्षिभिः। | |
− | समिद्भिस्तोयकलशैः फलमूलैश्च शोभितम्। | + | तद्ब्रह्मभवनप्रख्यं ब्रह्मघोषनिनादितम्।।3.1.8।। |
− | + | [[:Category:Hermitage|''Hermitage'']] [[:Category:आश्रमपरिसरः|''आश्रमपरिसरः'']] | |
− | आरण्यैश्च महावृक्षैः पुण्यैस्स्वादुफलैर्वृतम्।।3.1.5।। | ||
− | |||
− | बलिहोमार्चितं पुण्यं ब्रह्मघोषनिनादितम्। | ||
− | |||
− | पुष्पैश्चान्यैः परिक्षिप्तं पद्मिन्या च सपद्मया।।3.1.6।। | ||
− | |||
− | फलमूलाशनैर्दान्तैश्चीरकृष्णाजिनाम्बरैः। | ||
− | |||
− | सूर्यवैश्वानराभैश्च पुराणैर्मुनिभिर्वुतम्।।3.1.7।। | ||
− | |||
− | पुण्यैश्च नियताहारैः शोभितं परमर्षिभिः। | ||
− | |||
− | तद्ब्रह्मभवनप्रख्यं ब्रह्मघोषनिनादितम्।।3.1.8।। | ||
ब्रह्मविद्भिर्महाभागैर्ब्राह्मणैरुपशोभितम्। | ब्रह्मविद्भिर्महाभागैर्ब्राह्मणैरुपशोभितम्। | ||
Line 51: | Line 38: | ||
मङ्गलानि प्रयुञ्जानाः प्रत्यगृह्णन्दृढव्रताः।।3.1.12।। | मङ्गलानि प्रयुञ्जानाः प्रत्यगृह्णन्दृढव्रताः।।3.1.12।। | ||
− | रामवर्णनम् || Description of Rama | + | === रामवर्णनम् || Description of Rama === |
− | + | रूपसंहननं लक्ष्मीं सौकुमार्यं सुवेषताम्। | |
− | रूपसंहननं लक्ष्मीं सौकुमार्यं सुवेषताम्। | + | ददृशुर्विस्मिताकारा रामस्य वनवासिनः।।3.1.13।। |
− | + | [[:Category:Description of Rama|''Description of Rama'']] [[:Category:रामवर्णनम्|''रामवर्णनम्'']] | |
− | ददृशुर्विस्मिताकारा रामस्य वनवासिनः।।3.1.13।। | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
वैदेहीं लक्ष्मणं रामं नेत्रैरनिमिषैरिव। | वैदेहीं लक्ष्मणं रामं नेत्रैरनिमिषैरिव। | ||
Line 69: | Line 51: | ||
अतिथिं पर्णशालायां राघवं संन्यवेशयन्।।3.1.15।। | अतिथिं पर्णशालायां राघवं संन्यवेशयन्।।3.1.15।। | ||
− | सत्कृतिः, आतिथ्यम् || Hospitality | + | === सत्कृतिः, आतिथ्यम् || Hospitality === |
− | + | ततो रामस्य सत्कृत्य विधिना पावकोपमाः। | |
− | ततो रामस्य सत्कृत्य विधिना पावकोपमाः। | + | आजह्रुस्ते महाभागाः सलिलं धर्मचारिणः।।3.1.16।। |
− | + | पुष्पं मूलं फलं सर्वमाश्रमं च महात्मनः। | |
− | आजह्रुस्ते महाभागाः सलिलं धर्मचारिणः।।3.1.16।। | + | निवेदयित्वा धर्मज्ञास्ते ततः प्राञ्जलयोऽब्रुवन्।।3.1.17।। |
− | + | [[:Category:Hospitality|''Hospitality'']] [[:Category:सत्कृतिः|''सत्कृतिः'']] [[:Category:आतिथ्यम्|''आतिथ्यम्'']] | |
− | पुष्पं मूलं फलं सर्वमाश्रमं च महात्मनः। | ||
− | |||
− | निवेदयित्वा धर्मज्ञास्ते ततः प्राञ्जलयोऽब्रुवन्।।3.1.17।। | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | + | === रामवर्णनम् || Description of Rama === | |
+ | धर्मपालो जनस्यास्य शरण्यस्त्वं महायशाः। | ||
+ | पूजनीयश्च मान्यश्च राजा दण्डधरो गुरुः।।3.1.18।। | ||
+ | [[:Category:Description of Rama|''Description of Rama'']] [[:Category:रामवर्णनम्|''रामवर्णनम्'']] | ||
− | राजा तस्माद्वरान्भोगान्रम्यान् भुङक्तेलोकनमस्कृतः।।3.1.19।। | + | === Importance of King === |
+ | इन्द्रस्येह चतुर्भागः प्रजा रक्षति राघव। | ||
+ | राजा तस्माद्वरान्भोगान्रम्यान् भुङक्तेलोकनमस्कृतः।।3.1.19।। | ||
+ | [[:Category:Importance of King|''Importance of King'']] | ||
− | राजधर्मः || Duties of a king | + | === राजधर्मः || Duties of a king === |
− | + | ते वयं भवता रक्ष्या भवद्विषयवासिनः। | |
− | ते वयं भवता रक्ष्या भवद्विषयवासिनः। | + | नगरस्थो वनस्थो वा त्वं नो राजा जनेश्वरः।।3.1.20।। |
− | + | [[:Category:Duties of a king|''Duties of a king'']] [[:Category:राजधर्मः|''राजधर्मः'']] | |
− | नगरस्थो वनस्थो वा त्वं नो राजा जनेश्वरः।।3.1.20।। | ||
न्यस्तदण्डा वयं राजञ्जितक्रोधा जितेन्द्रियाः। | न्यस्तदण्डा वयं राजञ्जितक्रोधा जितेन्द्रियाः। | ||
रक्षणीयास्त्वया शश्वदगर्भभूतास्तपोधनाः।।3.1.21।। | रक्षणीयास्त्वया शश्वदगर्भभूतास्तपोधनाः।।3.1.21।। | ||
+ | |||
+ | === सत्कृतिः, आतिथ्यम् || Hospitality === | ||
+ | एवमुक्त्वा फलैर्मूलैः पुष्पैर्वन्यैश्च राघवम्। | ||
+ | अन्यैश्च विविधाहारैः सलक्ष्मणमपूजयन्।।3.1.22।। | ||
+ | [[:Category:Hospitality|''Hospitality'']] [[:Category:सत्कृतिः|''सत्कृतिः'']] [[:Category:आतिथ्यम्|''आतिथ्यम्'']] | ||
तथान्ये तापसास्सिद्धा रामं वैश्वानरोपमाः। | तथान्ये तापसास्सिद्धा रामं वैश्वानरोपमाः। | ||
न्यायवृत्ता यथान्यायं तर्पयामासुरीश्वरम्।।3.1.23।। | न्यायवृत्ता यथान्यायं तर्पयामासुरीश्वरम्।।3.1.23।। | ||
+ | |||
+ | [[Category:अरण्यकाण्डम्]] | ||
+ | [[Category:दण्डकारण्यम्]] | ||
[[Category:Dandaka forest]] | [[Category:Dandaka forest]] | ||
+ | [[Category:आश्रमपरिसरः]] | ||
[[Category:Hermitage]] | [[Category:Hermitage]] | ||
+ | [[Category:रामवर्णनम्]] | ||
[[Category:Description of Rama]] | [[Category:Description of Rama]] | ||
+ | [[Category:सत्कृतिः]] | ||
+ | [[Category:आतिथ्यम्]] | ||
[[Category:Hospitality]] | [[Category:Hospitality]] | ||
[[Category:Importance of King]] | [[Category:Importance of King]] | ||
+ | [[Category:राजधर्मः]] | ||
[[Category:Duties of a king]] | [[Category:Duties of a king]] |
Latest revision as of 16:53, 1 May 2019
प्रविश्य तु महारण्यं दण्डकारण्यमात्मवान्।
ददर्श रामो दुर्धर्षस्तापसाश्रममण्डलम्।।3.1.1।।
आश्रमपरिसरः || Hermitage
कुशचीरपरिक्षिप्तं ब्राह्म्या लक्ष्म्या समावृतम्। यथा प्रदीप्तं दुर्दर्शं गगने सूर्यमण्डलम्।।3.1.2।। शरण्यं सर्वभूतानां सुसम्मृष्टाजिरं सदा। मृगैर्बहुभिराकीर्णं पक्षिसङ्घैस्समावृतम्।।3.1.3।। पूजितं च प्रनृत्तं च नित्यमप्सरसां गणैः। विशालैरग्निशरणैः स्रुग्भाण्डैरजिनैः कुशैः।।3.1.4।। समिद्भिस्तोयकलशैः फलमूलैश्च शोभितम्। आरण्यैश्च महावृक्षैः पुण्यैस्स्वादुफलैर्वृतम्।।3.1.5।। बलिहोमार्चितं पुण्यं ब्रह्मघोषनिनादितम्। पुष्पैश्चान्यैः परिक्षिप्तं पद्मिन्या च सपद्मया।।3.1.6।। फलमूलाशनैर्दान्तैश्चीरकृष्णाजिनाम्बरैः। सूर्यवैश्वानराभैश्च पुराणैर्मुनिभिर्वुतम्।।3.1.7।। पुण्यैश्च नियताहारैः शोभितं परमर्षिभिः। तद्ब्रह्मभवनप्रख्यं ब्रह्मघोषनिनादितम्।।3.1.8।। Hermitage आश्रमपरिसरः
ब्रह्मविद्भिर्महाभागैर्ब्राह्मणैरुपशोभितम्।
तद्दृष्ट्वा राघवः श्रीमांस्तापसाश्रममण्डलम्।।3.1.9।।
अभ्यगच्छन्महातेजा विज्यं कृत्वा महद्धनुः।
दिव्यज्ञानोपपन्नास्ते रामं दृष्ट्वा महर्षयः।।3.1.10।।
अभ्यगच्छन्स्तदा प्रीता वैदेहीं च यशस्विनीम्।
ते तं सोममिवोद्यन्तं दृष्ट्वा वै धर्मचारिणम्।।3.1.11।।
लक्ष्मणं चैव दृष्ट्वा तु वैदेहीं च यशस्विनीम्।
मङ्गलानि प्रयुञ्जानाः प्रत्यगृह्णन्दृढव्रताः।।3.1.12।।
रामवर्णनम् || Description of Rama
रूपसंहननं लक्ष्मीं सौकुमार्यं सुवेषताम्। ददृशुर्विस्मिताकारा रामस्य वनवासिनः।।3.1.13।। Description of Rama रामवर्णनम्
वैदेहीं लक्ष्मणं रामं नेत्रैरनिमिषैरिव।
आश्चर्यभूतान्ददृशुः सर्वे ते वनचारिणः।।3.1.14।।
अत्रैनं हि महाभागा स्सर्वभूतहिते रताः।
अतिथिं पर्णशालायां राघवं संन्यवेशयन्।।3.1.15।।
सत्कृतिः, आतिथ्यम् || Hospitality
ततो रामस्य सत्कृत्य विधिना पावकोपमाः। आजह्रुस्ते महाभागाः सलिलं धर्मचारिणः।।3.1.16।। पुष्पं मूलं फलं सर्वमाश्रमं च महात्मनः। निवेदयित्वा धर्मज्ञास्ते ततः प्राञ्जलयोऽब्रुवन्।।3.1.17।। Hospitality सत्कृतिः आतिथ्यम्
रामवर्णनम् || Description of Rama
धर्मपालो जनस्यास्य शरण्यस्त्वं महायशाः। पूजनीयश्च मान्यश्च राजा दण्डधरो गुरुः।।3.1.18।। Description of Rama रामवर्णनम्
Importance of King
इन्द्रस्येह चतुर्भागः प्रजा रक्षति राघव। राजा तस्माद्वरान्भोगान्रम्यान् भुङक्तेलोकनमस्कृतः।।3.1.19।। Importance of King
राजधर्मः || Duties of a king
ते वयं भवता रक्ष्या भवद्विषयवासिनः। नगरस्थो वनस्थो वा त्वं नो राजा जनेश्वरः।।3.1.20।। Duties of a king राजधर्मः
न्यस्तदण्डा वयं राजञ्जितक्रोधा जितेन्द्रियाः।
रक्षणीयास्त्वया शश्वदगर्भभूतास्तपोधनाः।।3.1.21।।
सत्कृतिः, आतिथ्यम् || Hospitality
एवमुक्त्वा फलैर्मूलैः पुष्पैर्वन्यैश्च राघवम्। अन्यैश्च विविधाहारैः सलक्ष्मणमपूजयन्।।3.1.22।। Hospitality सत्कृतिः आतिथ्यम्
तथान्ये तापसास्सिद्धा रामं वैश्वानरोपमाः।
न्यायवृत्ता यथान्यायं तर्पयामासुरीश्वरम्।।3.1.23।।