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काण्डों के अनुसार रामायण का कथानक इस प्रकार है -  
 
काण्डों के अनुसार रामायण का कथानक इस प्रकार है -  
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'''बालकाण्ड -''' बालकाण्ड में कुल ७७ सर्ग हैं, जिसके प्रारम्भिक चार सर्गों में रामायण के रचना की पूर्वपीठिका और नारद तथा वाल्मीकि का संवाद है। तदुपरान्त नारद से रामकथा सुनकर निषाद द्वारा क्रौंचवध के दृश्य को देखकर आहत वाल्मीकि ने करुणाभाव से आर्तमन होकर रामकथा को काव्यमय बनाया। इसमें राम के जन्म, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, विश्वामित्र के साथ वनगमन, अहिल्या का उद्धार, विश्वामित्र के यज्ञ में विघ्न डालने वाले राक्षसों के वध, सीता स्वयंवर, शिवधनुष का वृत्तान्त, राम-सीता के विवाह सहित अन्य तीनों भाईयों के विवाह की कथा सविस्तार विवेचन है।
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'''2. बालकाण्ड -''' बालकाण्ड में कुल ७७ सर्ग हैं, जिसके प्रारम्भिक चार सर्गों में रामायण के रचना की पूर्वपीठिका और नारद तथा वाल्मीकि का संवाद है। तदुपरान्त नारद से रामकथा सुनकर निषाद द्वारा क्रौंचवध के दृश्य को देखकर आहत वाल्मीकि ने करुणाभाव से आर्तमन होकर रामकथा को काव्यमय बनाया। इसमें राम के जन्म, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, विश्वामित्र के साथ वनगमन, अहिल्या का उद्धार, विश्वामित्र के यज्ञ में विघ्न डालने वाले राक्षसों के वध, सीता स्वयंवर, शिवधनुष का वृत्तान्त, राम-सीता के विवाह सहित अन्य तीनों भाईयों के विवाह की कथा सविस्तार विवेचन है।  
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'''अयोध्याकाण्ड -''' अयोध्याकाण्ड में ११९ सर्ग हैं। जिसमें विवाहोपरान्त अयोध्या आगत राम के राज्याभिषेक की तैयारी का मनोहारी दृश्य के पश्चात अकस्मात् कैकेयी द्वारा महाराज दशरथ के वचन के पालनार्थ राम, सीता और लक्ष्मण का वनगमन, पुत्र-वियोग से व्याकुल दशरथ की मृत्यु घटना का मार्मिक निरूपण है। तदनन्तर भरत के ननिहाल से लौटने के पश्चात राज्य को स्वीकार न करना, सेना सहित भरत का चित्रकूट जाना, राम को मनाना तथा राम के न मानने एवं भरत को समझाने पर भरत राम की पादुका को लेकर अयोध्या लौटकर नंदिग्राम में निवास करते हुए राज्य का संचालन इत्यादि घटनाएँ निरूपित हैं।  
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'''2. अयोध्याकाण्ड -''' अयोध्याकाण्ड में ११९ सर्ग हैं। जिसमें विवाहोपरान्त अयोध्या आगत राम के राज्याभिषेक की तैयारी का मनोहारी दृश्य के पश्चात अकस्मात् कैकेयी द्वारा महाराज दशरथ के वचन के पालनार्थ राम, सीता और लक्ष्मण का वनगमन, पुत्र-वियोग से व्याकुल दशरथ की मृत्यु घटना का मार्मिक निरूपण है। तदनन्तर भरत के ननिहाल से लौटने के पश्चात राज्य को स्वीकार न करना, सेना सहित भरत का चित्रकूट जाना, राम को मनाना तथा राम के न मानने एवं भरत को समझाने पर भरत राम की पादुका को लेकर अयोध्या लौटकर नंदिग्राम में निवास करते हुए राज्य का संचालन इत्यादि घटनाएँ निरूपित हैं।  
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== रामायण के कुछ अन्य ग्रन्थ ==
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3. '''अरण्यकाण्ड -''' अरण्यकाण्ड में कुल 75 सर्ग हैं। इसमें राम का सीता और लक्ष्मण सहित दण्डकारण्य में निवास करना, ऋषियों की प्रार्थना को सुनकर राम द्वारा राक्षसों के साथ संघर्ष एवं उनका वध, पंचवटी-प्रसंग, लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटना, खर-दूषण जैसे दुर्दान्त राक्षसों का वध, पुनश्च रावण द्वारा छ्ल से सीता का हरण करना, जटायु द्वारा सीता को बचाने का प्रयास एवं रावण के हाथों वीरगति को प्राप्त करना, सीताहरण के पश्चात् राम का विह्वल विलाप करना, राम की कबन्ध से भेंट तथा उसके द्वारा राम को सुग्रीव से मैत्री करने का सुझाव देने जैसे अनेक प्रसंगों का वर्णन है।
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'''4. किष्किन्धाकाण्ड -''' किष्किन्धाकाण्ड में कुल 67 सर्ग हैं। इस काण्ड में सीता माता की खोज करते हुए वसन्त ऋतु की मनोहर छटा को देखकर भगवान् राम का अत्यन्त अधीर होना, हनुमान के प्रयास राम-सुग्रीव में मित्रता होना, सुग्रीव का सीता को खोजने में सहयोग प्रदान करने का आश्वासन देना, राम द्वारा वालि का वध, मरणासन्न वालि को राम द्वारा ज्ञान दिया जाना, वालि का पश्चात्ताप करना और मृत्यु का वरण करना, सुग्रीव का राज्याभिषेक,्पश्चात सुग्रीव का प्रमाद, पुनः राम से आकर क्षमायाचना पूर्वक हनुमान सहित अन्य वानरों को सीता की खोज में भेजना, दक्षिण दिशा में हनुमान का प्रस्थान करना, सम्पाति से भेंट एवं सीता की सूचना से अवगत होना, हनुमान द्वारा समुद्र को पार करने के लिए प्रस्तुत होना इत्यादि कथाएं उपस्थापित हैं।
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'''5. सुंदरकाण्ड -''' सुंदरकाण्ड में कुल 68 सर्ग प्राप्त होते हैं। इसमें मुख्यरूप से हनुमान का सागर लांघना, लंका में प्रवेश करना, रावण के अन्तःपुर में सीता की खोज करना््््् ््््््््््््
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==रामायण के कुछ अन्य ग्रन्थ==
 
रामकथा सम्बन्धी वर्णन करने वाला मुख्य ग्रन्थ तो महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण ही है, रामकथा का प्रमुख स्रोत वही है। रामायण की रचना के पश्चात् रामकथा का अतिशय प्रचार प्रसार हुआ, रचनाकारों के द्वारा विभिन्न प्रान्तीय भाषाओम में रामायण की रचना हुई है। किसी ने वेदान्त तो किसी किसी ने अध्यात्मवाद के विभिन्न पक्षों से राम को जोडकर अनेक रामायण ग्रन्थ लिखे। भारत ही नहीं अपितु तिब्बत, खोतान, जावा, सुमात्रा आदि देशों में भी रामायण का विपुल प्रचार-प्रसार है। इस खण्ड में कुछ प्रमुख रामायण ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है -<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/sanskrit-sahitya-ka-samikshatmak-itihas-dr-kapildeva-dwivedi_compress/page/n129/mode/1up संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास], सन् २०१७, विश्वभारती अनुसंधान परिषद, भदोही (पृ० ११३)। </ref>  
 
रामकथा सम्बन्धी वर्णन करने वाला मुख्य ग्रन्थ तो महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण ही है, रामकथा का प्रमुख स्रोत वही है। रामायण की रचना के पश्चात् रामकथा का अतिशय प्रचार प्रसार हुआ, रचनाकारों के द्वारा विभिन्न प्रान्तीय भाषाओम में रामायण की रचना हुई है। किसी ने वेदान्त तो किसी किसी ने अध्यात्मवाद के विभिन्न पक्षों से राम को जोडकर अनेक रामायण ग्रन्थ लिखे। भारत ही नहीं अपितु तिब्बत, खोतान, जावा, सुमात्रा आदि देशों में भी रामायण का विपुल प्रचार-प्रसार है। इस खण्ड में कुछ प्रमुख रामायण ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है -<ref>डॉ० कपिलदेव द्विवेदी, [https://archive.org/details/sanskrit-sahitya-ka-samikshatmak-itihas-dr-kapildeva-dwivedi_compress/page/n129/mode/1up संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास], सन् २०१७, विश्वभारती अनुसंधान परिषद, भदोही (पृ० ११३)। </ref>  
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#तत्वसंग्रह रामायण
 
#तत्वसंग्रह रामायण
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== रामायण का महत्व ==
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==रामायण का महत्व==
 
महाभारत में वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड के श्लोक का अक्षरशः उल्लेख है - <blockquote>अपि चायं पुरा गीतः श्लोको वाल्मीकिना भुवि। न हन्तव्याः स्त्रियश्चेति यद् ब्रवीषि प्लवंगम॥ पीडाकरममित्राणां यत्स्यात्कर्तव्यमेव च॥ (महा०उद्यो० १४३, ६७-६८)</blockquote>रामायण न केवल काव्य, महाकाव्य या वीर-काव्य ही है। इसका इससे बहुत अधिक महत्व है। यह भारतीयों का आचार-शास्त्र एवं धर्मशास्त्र है। यह मानव जीवन का सर्वांगीण आदर्श प्रस्तुत करता है।
 
महाभारत में वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड के श्लोक का अक्षरशः उल्लेख है - <blockquote>अपि चायं पुरा गीतः श्लोको वाल्मीकिना भुवि। न हन्तव्याः स्त्रियश्चेति यद् ब्रवीषि प्लवंगम॥ पीडाकरममित्राणां यत्स्यात्कर्तव्यमेव च॥ (महा०उद्यो० १४३, ६७-६८)</blockquote>रामायण न केवल काव्य, महाकाव्य या वीर-काव्य ही है। इसका इससे बहुत अधिक महत्व है। यह भारतीयों का आचार-शास्त्र एवं धर्मशास्त्र है। यह मानव जीवन का सर्वांगीण आदर्श प्रस्तुत करता है।
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*वैदिक यज्ञीय सामग्रियों का वर्णन रामायण में मिलता है जैसे - आज्य, हवि, पुरोडाश, कुश तथा खादिरयूप।
 
*वैदिक यज्ञीय सामग्रियों का वर्णन रामायण में मिलता है जैसे - आज्य, हवि, पुरोडाश, कुश तथा खादिरयूप।
 
*यज्ञों में विहित दक्षिणा का प्रचलन रामायणकाल में भी था।
 
*यज्ञों में विहित दक्षिणा का प्रचलन रामायणकाल में भी था।
* यज्ञीय पशुबलि का भी उल्लेख रामायण में प्राप्त हो जाता है।
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*यज्ञीय पशुबलि का भी उल्लेख रामायण में प्राप्त हो जाता है।
 
*रामायण अनेक नीतिवाक्यों, सुभाषितों तथा राजनीतिपरक तथ्यों का संग्रह भी है।
 
*रामायण अनेक नीतिवाक्यों, सुभाषितों तथा राजनीतिपरक तथ्यों का संग्रह भी है।
 
*आशीर्वादात्मक, नमस्कारात्मक अथवा वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण का प्रयोग महाकाव्य में किया जाता है - रामायण में "तपः स्वाध्याय निरतं" इत्यादि पद्य को देखकर ही वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण की प्रवृत्ति हुई।
 
*आशीर्वादात्मक, नमस्कारात्मक अथवा वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण का प्रयोग महाकाव्य में किया जाता है - रामायण में "तपः स्वाध्याय निरतं" इत्यादि पद्य को देखकर ही वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरण की प्रवृत्ति हुई।
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रामायण भारतीय सभ्यता, नगर-ग्रामादि निर्माण, सेतुबन्ध, वर्णाश्रम-व्यवस्था आदि सांस्कृतिक एवं सामाजिक विषयों पर प्रकाश डालने वाला प्रकाश-स्तम्भ है, जिसके प्रकाश में प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का साक्षात् दर्शन होता है।
 
रामायण भारतीय सभ्यता, नगर-ग्रामादि निर्माण, सेतुबन्ध, वर्णाश्रम-व्यवस्था आदि सांस्कृतिक एवं सामाजिक विषयों पर प्रकाश डालने वाला प्रकाश-स्तम्भ है, जिसके प्रकाश में प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का साक्षात् दर्शन होता है।
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== रामायण के टीकाकार एवं टीकाएँ ==
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==रामायण के टीकाकार एवं टीकाएँ==
 
वाल्मीकीय रामायण का महत्व केवल काव्यशास्त्रीय दृष्टि से ही नहीं है अपितु वैष्णव सम्प्रदायों का उपास्य ग्रन्थ भी है, इसलिये मध्य युग में रामायण की व्याख्या करना, प्रतिलिपि करना और पुस्तक की पूजा करना धार्मिक कृत्य का  रूप ले चुका था। पन्द्रहवीं से सत्रहवीं शताब्दी ई० के मध्य रामायण की १० प्रमुख टीकाएं लिखी गयी। रामायण की प्रमुख टीकाओं का विवरण इस प्रकार है -  
 
वाल्मीकीय रामायण का महत्व केवल काव्यशास्त्रीय दृष्टि से ही नहीं है अपितु वैष्णव सम्प्रदायों का उपास्य ग्रन्थ भी है, इसलिये मध्य युग में रामायण की व्याख्या करना, प्रतिलिपि करना और पुस्तक की पूजा करना धार्मिक कृत्य का  रूप ले चुका था। पन्द्रहवीं से सत्रहवीं शताब्दी ई० के मध्य रामायण की १० प्रमुख टीकाएं लिखी गयी। रामायण की प्रमुख टीकाओं का विवरण इस प्रकार है -  
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* रामानुज की रामानुजीय टीका - यह रामायण की सबसे प्रसिद्ध टीका है, इसका उल्लेख वैद्यनाथ दीक्षित ने किया है।
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*रामानुज की रामानुजीय टीका - यह रामायण की सबसे प्रसिद्ध टीका है, इसका उल्लेख वैद्यनाथ दीक्षित ने किया है।
* वेंकट कृष्णाध्वरी की सर्वार्थसार टीका - इसका उल्लेख भी वैद्यनाथ दीक्षित ने किया है।
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*वेंकट कृष्णाध्वरी की सर्वार्थसार टीका - इसका उल्लेख भी वैद्यनाथ दीक्षित ने किया है।
* वैद्यनाथ दीक्षित की रामायण दीपिका
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*वैद्यनाथ दीक्षित की रामायण दीपिका
* ईश्वर दीक्षित की लघुविवरण एवं बृहद्विवरण टीका
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*ईश्वर दीक्षित की लघुविवरण एवं बृहद्विवरण टीका
* महेश्वर तीर्थ कृत रामायण तत्व दीपिका - यह तीर्थीय टीका नाम से भी प्रसिद्ध है।
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*महेश्वर तीर्थ कृत रामायण तत्व दीपिका - यह तीर्थीय टीका नाम से भी प्रसिद्ध है।
* गोविन्दराज कृत रामायणभूषण  - यह गोविन्दराजीय नाम से भी प्रख्यात है। प्रत्येक काण्ड में व्याख्यान के नाम ग्रन्थकार ने भिन्न-भिन्न दिये हैं। इस टीका के काण्डक्रम इस प्रकार हैं - मणिमंजीर, पीताम्बर, रत्नमेखल, मुक्ताहार, शृंगारतिलक, मणिमुकुट तथा रत्नकिरीट।
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*गोविन्दराज कृत रामायणभूषण  - यह गोविन्दराजीय नाम से भी प्रख्यात है। प्रत्येक काण्ड में व्याख्यान के नाम ग्रन्थकार ने भिन्न-भिन्न दिये हैं। इस टीका के काण्डक्रम इस प्रकार हैं - मणिमंजीर, पीताम्बर, रत्नमेखल, मुक्ताहार, शृंगारतिलक, मणिमुकुट तथा रत्नकिरीट।
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==रामायण में इन्द्रियातीत वर्णन==
 
==रामायण में इन्द्रियातीत वर्णन==
आज के वैज्ञानिक युग में भी आकाशवाणी, आकाशीय-पुष्पवृष्टि अलौकिक समयावधि एवं योगमाया का उतना ही महत्त्व है जितना वाल्मीकि के समय में था परन्तु आज के युग में इनका अर्थ परिवर्तन हो रहा है।<ref>शोधगंगा-सन्तोष, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/303331 रामायण में इन्द्रियातीत सन्दर्भ], सन् २०१२, शोधकेन्द्र-महर्षि दयानन्द विश्विद्यालय, रोहतक (पृ० २४३)।</ref>
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रामायण काल में आकाशवाणी, आकाशीय-पुष्पवृष्टि, अलौकिक समयावधि एवं योगमाया आदि इंद्रिय के द्वारा का अगोचर विषयों का वर्णन प्राप्त होता है। रामायण में महर्षि वाल्मीकि ने आकाशवाणी का प्रयोग किया है -  
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आकाशवाणी का अर्थ केवल आकाश से उत्पन्न वाणी नहीं लिया जा सकता जो अलौकिक प्रतीत हो बल्कि वर्तमान समय में आकाशवाणी से अभिप्राय मानव द्वारा आकाश में स्थापित की गई उपग्रह, सैटेलाईट द्वारा भेजी गई तरंगों को रेडियो, टी०वी० इन्टर-नेट आदि यन्त्रों द्वारा ग्रहण कर उसे वाणी रूप में प्रसारित करना है।
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सीता के विवाह के समय सीता जन्म के विषय में राजा जनक स्वयं महर्षि विश्वामित्र आदि को बताते हैं - यज्ञ के लिये भूमिशोधन करते समय खेत में हला चला रहे थे, उसी हल के अग्रभाग से जोती गयी भूमि से एक कन्या प्रकट हुई। उस कन्या को राजा जनक ने अपनी गोद में ले लिया। तभी आकाशवाणी हुई, जो मानवी भाषा में कही गयी है - <blockquote>अन्तरिक्षे च वागुक्ता प्रतिमामानुषी किल। एवमेतप्ररपते धर्मेण तनया तव॥</blockquote>अर्थात् हे नरेश्वर, यह कन्या धर्मतः तुम्हारी ही है। इस प्रकार कन्या के विषय में हुई दिव्य वाणी को सुनकर राजा जनक अत्यन्त प्रसन्न हुये और उस कन्या का नाम सीता रख दिया तथा अपनी बेटी मानकर, उसका लालन-पालन किया।
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आकाशवाणी का अर्थ आकाश से उत्पन्न वाणी लिया जाता है। जो कि अलौकिक प्रतीत होता है।<ref>शोधगंगा-सन्तोष, [https://shodhganga.inflibnet.ac.in/handle/10603/303331 रामायण में इन्द्रियातीत सन्दर्भ], सन् २०१२, शोधकेन्द्र-महर्षि दयानन्द विश्विद्यालय, रोहतक (पृ० २४३)।</ref>
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* रामायण में आकाशीय पुष्प वृष्टि का उल्लेख हुआ है जिसमें आकाश से बादलों द्वारा पुष्प की वृष्टि प्रदर्शित की गई है।
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==रामायणकालीन समाज एवं संस्कृति==
 
==रामायणकालीन समाज एवं संस्कृति==
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