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| हम काव्य की रचना करते हैं, इसका अर्थ है शब्दों और पंक्तियों को साथ साथ रखकर कोई एक भाव या विचार की अभिव्यक्ति करते हैं । मैदान में छात्रों को विशिष्ट रचना में खड़े कर हम व्यायाम के लिए कोई एक आकृति बनाते हैं । उदाहरण के लिए स्वस्तिक या शंख या कमल । हम नगर रचना करते हैं अर्थात् कौन से भवन कौन से रास्ते किस प्रकार होंगे, यह निश्चित् करते हैं । बगीचा कहाँ होगा, जलाशय कहाँ होगा, मंदिर कहाँ होगा, गोचर कहाँ होगा, यह निश्चित करते हैं । निवास के भवन कहाँ होंगे ? विभिन्न प्रकार के कार्यालय कहाँ होंगे, कारखाने कहाँ होंगे ? इसकी योजना करते हैं । संगीत में हम स्वरों की रचना करते हैं, इनमें से ही विभिन्न राग-रागिनियाँ निर्मित होती हैं, विभिन्न बंदिशें निर्माण होती हैं । | | हम काव्य की रचना करते हैं, इसका अर्थ है शब्दों और पंक्तियों को साथ साथ रखकर कोई एक भाव या विचार की अभिव्यक्ति करते हैं । मैदान में छात्रों को विशिष्ट रचना में खड़े कर हम व्यायाम के लिए कोई एक आकृति बनाते हैं । उदाहरण के लिए स्वस्तिक या शंख या कमल । हम नगर रचना करते हैं अर्थात् कौन से भवन कौन से रास्ते किस प्रकार होंगे, यह निश्चित् करते हैं । बगीचा कहाँ होगा, जलाशय कहाँ होगा, मंदिर कहाँ होगा, गोचर कहाँ होगा, यह निश्चित करते हैं । निवास के भवन कहाँ होंगे ? विभिन्न प्रकार के कार्यालय कहाँ होंगे, कारखाने कहाँ होंगे ? इसकी योजना करते हैं । संगीत में हम स्वरों की रचना करते हैं, इनमें से ही विभिन्न राग-रागिनियाँ निर्मित होती हैं, विभिन्न बंदिशें निर्माण होती हैं । |
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− | इस प्रकार रचना का संबंध निर्माण से है। व्यवस्था का संबंध सुविधा और आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ है । उदाहरण के लिए हम नगर में, विद्यालय में, कार्यालय में या घर में प्रकाश और पानी की व्यवस्था करते हैं । किसी कार्यक्रम में लोगों को बैठने की व्यवस्था करते हैं । सबको सुनाई दे इस प्रकार से ध्वनि की व्यवस्था करते हैं । सबके लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं, सब में अर्थव्यवस्था होती है, राज्यव्यवस्था होती है, शिक्षा व्यवस्था होती है । धर्म व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, कानून व्यवस्था आदि भी बहुत बड़ी व्यवस्थाएँ हैं । व्यवस्थाएँ आवश्यकता की पूर्ति के लिए तो होती ही हैं साथ ही सब कुछ ठीक बना रहे, इसलिए भी होती हैं । | + | इस प्रकार रचना का संबंध निर्माण से है। व्यवस्था का संबंध सुविधा और आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ है । उदाहरण के लिए हम नगर में, विद्यालय में, कार्यालय में या घर में प्रकाश और पानी की व्यवस्था करते हैं । किसी कार्यक्रम में लोगों को बैठने की व्यवस्था करते हैं । सबको सुनाई दे इस प्रकार से ध्वनि की व्यवस्था करते हैं । सबके लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं, सब में अर्थव्यवस्था होती है, राज्यव्यवस्था होती है, शिक्षा व्यवस्था होती है । धर्म व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, कानून व्यवस्था आदि भी बहुत बड़ी व्यवस्थाएँ हैं । व्यवस्थाएँ आवश्यकता की पूर्ति के लिए तो होती ही हैं साथ ही सब कुछ ठीक बना रहे, अतः भी होती हैं । |
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| प्रक्रिया किसी भी पदार्थ की बनावट के साथ सम्बंधित होती है । उदाहरण के लिए रोटी बनाते समय विभिन्न प्रकार की क्रियाओं का एक निश्चित क्रम बना होता है । वस्त्र बनाने की एक निश्चित पद्धति होती है । भवन स्चना में जो विभिन्न प्रकार की क्रियाएँ हैं, उनका निश्चित क्रम और एक दूसरे के साथ सम्बंध होता है । प्रक्रिया का पदार्थ की बनावट पर परिणाम होता है । उदाहरण के लिए घड़ा बनाते समय मिट्टी को ठीक तरह से गूँधा नहीं गया या ठीक तरह से भट्टी में पकाया नहीं गया तो घड़ा कच्चा रह जाता है । वस्त्र बनाते समय यदि धागे को पक्का नहीं बनाया गया तो वस्त्र अच्छा नहीं बनता। कपड़ा रंगने के समय यदि प्रक्रिया ठीक से नहीं हुई तो कपड़े का रंग कच्चा रह जाता है और पानी में भिगोते समय उतर जाता है या दूसरे कपड़े पर बैठ जाता है । भवन बनाते समय ईंटों को और प्लास्टर को पानी से सींचा नहीं गया तो दीवारें कच्ची रह जाती हैं । अध्यापन करते समय छात्र को ठीक से समझ में आया कि नहीं, यह देखा नहीं गया तो ठीक से अध्यापन नहीं होता । एक वस्तु में जितने भी पदार्थ होते हैं उनकी मिलावट ठीक मात्रा में और ठीक पद्धति से नहीं हुई तो वस्तु अच्छी नहीं बनती । इसका अर्थ है कि प्रक्रिया का अत्यंत महत्व है । | | प्रक्रिया किसी भी पदार्थ की बनावट के साथ सम्बंधित होती है । उदाहरण के लिए रोटी बनाते समय विभिन्न प्रकार की क्रियाओं का एक निश्चित क्रम बना होता है । वस्त्र बनाने की एक निश्चित पद्धति होती है । भवन स्चना में जो विभिन्न प्रकार की क्रियाएँ हैं, उनका निश्चित क्रम और एक दूसरे के साथ सम्बंध होता है । प्रक्रिया का पदार्थ की बनावट पर परिणाम होता है । उदाहरण के लिए घड़ा बनाते समय मिट्टी को ठीक तरह से गूँधा नहीं गया या ठीक तरह से भट्टी में पकाया नहीं गया तो घड़ा कच्चा रह जाता है । वस्त्र बनाते समय यदि धागे को पक्का नहीं बनाया गया तो वस्त्र अच्छा नहीं बनता। कपड़ा रंगने के समय यदि प्रक्रिया ठीक से नहीं हुई तो कपड़े का रंग कच्चा रह जाता है और पानी में भिगोते समय उतर जाता है या दूसरे कपड़े पर बैठ जाता है । भवन बनाते समय ईंटों को और प्लास्टर को पानी से सींचा नहीं गया तो दीवारें कच्ची रह जाती हैं । अध्यापन करते समय छात्र को ठीक से समझ में आया कि नहीं, यह देखा नहीं गया तो ठीक से अध्यापन नहीं होता । एक वस्तु में जितने भी पदार्थ होते हैं उनकी मिलावट ठीक मात्रा में और ठीक पद्धति से नहीं हुई तो वस्तु अच्छी नहीं बनती । इसका अर्थ है कि प्रक्रिया का अत्यंत महत्व है । |
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− | हम शारीरिक और मानसिक रूप से जो- जो भी करते हैं, वह सारी क्रियाएँ हैं । तत्व के व्यावहारिक स्वरूप का यह बहुत बड़ा आयाम है, शरीर से हम बहुत सारी क्रियाएँ करते हैं उदाहरण के लिए चलना, उठना, बैठना, पकड़ना, फेंकना, बोलना, गाना इत्यादि। मानसिक रूप से हम विचार करते हैं, इच्छाएँ करते हैं और विभिन्न प्रकार के भावों का अनुभव करते हैं । हमारी पसंद-नापसंद होती है । इन शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का बनावट, रचना, व्यवस्था आदि सभी पर बहुत बड़ा परिणाम होता है । सम्पूर्ण विश्व के समग्र व्यवहार में रचना, व्यवस्था, प्रक्रिया और क्रिया की बहुत बड़ी भूमिका है । इसलिए इन सभी बातों के लिए बहुत सजग और कुशल रहना चाहिए। | + | हम शारीरिक और मानसिक रूप से जो- जो भी करते हैं, वह सारी क्रियाएँ हैं । तत्व के व्यावहारिक स्वरूप का यह बहुत बड़ा आयाम है, शरीर से हम बहुत सारी क्रियाएँ करते हैं उदाहरण के लिए चलना, उठना, बैठना, पकड़ना, फेंकना, बोलना, गाना इत्यादि। मानसिक रूप से हम विचार करते हैं, इच्छाएँ करते हैं और विभिन्न प्रकार के भावों का अनुभव करते हैं । हमारी पसंद-नापसंद होती है । इन शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का बनावट, रचना, व्यवस्था आदि सभी पर बहुत बड़ा परिणाम होता है । सम्पूर्ण विश्व के समग्र व्यवहार में रचना, व्यवस्था, प्रक्रिया और क्रिया की बहुत बड़ी भूमिका है । अतः इन सभी बातों के लिए बहुत सजग और कुशल रहना चाहिए। |
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| == युगानुकूलता के मानक == | | == युगानुकूलता के मानक == |
| इन सभी के लिए कुछ सामान्य मानक बने हुए हैं । ये मानक इस प्रकार हैं: | | इन सभी के लिए कुछ सामान्य मानक बने हुए हैं । ये मानक इस प्रकार हैं: |
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− | '''एक''', हमारा सारा व्यवहार सत्य और धर्म के अविरोधी होना चाहिए । '''दूसरा''', चराचर के हित और सुख का अविरोधी होना चाहिए । '''तीसरा''', पर्यावरण के अविरोधी होना चाहिए । '''चौथा''' मनुष्य के स्वास्थ्य के अविरोधी होना चाहिए । '''पाँचवा''', अहिंसक होना चाहिए । वैसे तो सत्य और धर्म के अविरोधी होना चाहिए, ऐसा कहने में शेष सारे मानक समाविष्ट हो जाते हैं तथापि सरलता पूर्वक समझने के लिए इतने विभाग किए हैं । सत्य के अविरोधी ही क्यों होना चाहिए ? इसलिए कि सत्य ऋत की वाचिक अभिव्यक्ति है । ऋत विश्व नियम को कहते हैं । नियम से ही विश्व का सारा व्यवहार सुचारु रूप से चलता है । इसलिए उसका पालन करना अनिवार्य है । ऋत उन्हें नियमों में बताता है, सत्य वाणी में अभिव्यक्त करता है । इसलिए उसका पालन करना चाहिए । | + | '''एक''', हमारा सारा व्यवहार सत्य और धर्म के अविरोधी होना चाहिए । '''दूसरा''', चराचर के हित और सुख का अविरोधी होना चाहिए । '''तीसरा''', पर्यावरण के अविरोधी होना चाहिए । '''चौथा''' मनुष्य के स्वास्थ्य के अविरोधी होना चाहिए । '''पाँचवा''', अहिंसक होना चाहिए । वैसे तो सत्य और धर्म के अविरोधी होना चाहिए, ऐसा कहने में शेष सारे मानक समाविष्ट हो जाते हैं तथापि सरलता पूर्वक समझने के लिए इतने विभाग किए हैं । सत्य के अविरोधी ही क्यों होना चाहिए ? अतः कि सत्य ऋत की वाचिक अभिव्यक्ति है । ऋत विश्व नियम को कहते हैं । नियम से ही विश्व का सारा व्यवहार सुचारु रूप से चलता है । अतः उसका पालन करना अनिवार्य है । ऋत उन्हें नियमों में बताता है, सत्य वाणी में अभिव्यक्त करता है । अतः उसका पालन करना चाहिए । |
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− | ऋत ही धर्म है । धर्म से ही सारे ब्रह्मांड का धारण होता है, इसलिए उसका आधार लेना चाहिए । धर्म को कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए। सत्य और धर्म को छोड़ने से सर्व प्रकार के संकट आते हैं । चराचर के हित और सुख का ध्यान क्यों रखना चाहिए ? इसलिए क्योंकि चर और अचर एक दूसरे के साथ अभिन्न रूप से संलग्न हैं । एक के दुःख का सभी पर प्रभाव होता है । एक के भले से सभी का भला होता है, हम समझें या न समझें, मानें या न मानें, कोई चाहे या न चाहे ऐसा होता ही है क्योंकि छोटे-बड़े सभी का एक दूसरे के साथ सम्बन्ध है । यह सम्बन्ध हमने नहीं बनाया । वह तो विश्व की रचना के समय से ही बना हुआ है । इसलिए उसके अविरोधी होना ही हमारे लिए बाध्यता है । पर्यावरण के अविरोधी क्यों होना चाहिए ? | + | ऋत ही धर्म है । धर्म से ही सारे ब्रह्मांड का धारण होता है, अतः उसका आधार लेना चाहिए । धर्म को कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए। सत्य और धर्म को छोड़ने से सर्व प्रकार के संकट आते हैं । चराचर के हित और सुख का ध्यान क्यों रखना चाहिए ? अतः क्योंकि चर और अचर एक दूसरे के साथ अभिन्न रूप से संलग्न हैं । एक के दुःख का सभी पर प्रभाव होता है । एक के भले से सभी का भला होता है, हम समझें या न समझें, मानें या न मानें, कोई चाहे या न चाहे ऐसा होता ही है क्योंकि छोटे-बड़े सभी का एक दूसरे के साथ सम्बन्ध है । यह सम्बन्ध हमने नहीं बनाया । वह तो विश्व की रचना के समय से ही बना हुआ है । अतः उसके अविरोधी होना ही हमारे लिए बाध्यता है । पर्यावरण के अविरोधी क्यों होना चाहिए ? |
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− | पर्यावरण का अर्थ है, हमारे चारों ओर की प्रकृति । यह प्रकृति पंचमहाभूत, मन, बुद्धि और अहंकार की बनी है । हमारे चारों ओर पृथ्वी, जल, अभि, वायु और आकाश विभिन्न रूप धारण कर फैले हुए हैं । हमारे चारों ओर वनस्पति जगत है तो कहीं प्राणी जगत फैला हुआ है। हमारे चारों ओर बसे हुए मनुष्यों के मन के भाव अहंकार के विविध रूप और बुद्धि की सारी क्रिया-प्रक्रियाएँ फैली हुई हैं। इन सब के प्रति अविरोधी रहना सत्य और धर्म का आचरण करने के बराबर है । इन सबका ध्यान रखना व्यवहार के लिए बहुत आवश्यक है । मनुष्य के स्वास्थ्य के अविरोधी क्यों होना चाहिए ? इसलिए कि मनुष्य का स्वास्थ्य यदि ठीक नहीं रहा तो हित और सुख की सारी सम्भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं । | + | पर्यावरण का अर्थ है, हमारे चारों ओर की प्रकृति । यह प्रकृति पंचमहाभूत, मन, बुद्धि और अहंकार की बनी है । हमारे चारों ओर पृथ्वी, जल, अभि, वायु और आकाश विभिन्न रूप धारण कर फैले हुए हैं । हमारे चारों ओर वनस्पति जगत है तो कहीं प्राणी जगत फैला हुआ है। हमारे चारों ओर बसे हुए मनुष्यों के मन के भाव अहंकार के विविध रूप और बुद्धि की सारी क्रिया-प्रक्रियाएँ फैली हुई हैं। इन सब के प्रति अविरोधी रहना सत्य और धर्म का आचरण करने के बराबर है । इन सबका ध्यान रखना व्यवहार के लिए बहुत आवश्यक है । मनुष्य के स्वास्थ्य के अविरोधी क्यों होना चाहिए ? अतः कि मनुष्य का स्वास्थ्य यदि ठीक नहीं रहा तो हित और सुख की सारी सम्भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं । |
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− | कहा ही है{{Citation needed}} , <blockquote>शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम् ।</blockquote>धर्म के आचरण का प्रमुख साधन शरीर है । इस कथन के तत्व को समझाने की आवश्यकता नहीं है । इसलिए हम जो जो भी रचना, व्यवस्था, क्रिया, प्रक्रिया आदि सब करते हैं, वे शरीर स्वास्थ्य के अनुकूल होनी चाहिए । | + | कहा ही है{{Citation needed}} , <blockquote>शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम् ।</blockquote>धर्म के आचरण का प्रमुख साधन शरीर है । इस कथन के तत्व को समझाने की आवश्यकता नहीं है । अतः हम जो जो भी रचना, व्यवस्था, क्रिया, प्रक्रिया आदि सब करते हैं, वे शरीर स्वास्थ्य के अनुकूल होनी चाहिए । |
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| ==References== | | ==References== |