Line 7:
Line 7:
यह जानकारी यहाँ देनी ही क्यों चाहिये ? इसलिये कि इस जानकारी का उपयोग विश्वभर में होता है । विश्वविद्यालयों के शोध कार्यों में इनके सन्दर्भ दिये जाते हैं । इन मानकों के आधार पर देशों का मूल्यांकन होता है । जो अन्तर्जाल की दुनिया में सहज संचार करते हैं वे इस बात से परिचित है ।
यह जानकारी यहाँ देनी ही क्यों चाहिये ? इसलिये कि इस जानकारी का उपयोग विश्वभर में होता है । विश्वविद्यालयों के शोध कार्यों में इनके सन्दर्भ दिये जाते हैं । इन मानकों के आधार पर देशों का मूल्यांकन होता है । जो अन्तर्जाल की दुनिया में सहज संचार करते हैं वे इस बात से परिचित है ।
−
यदि इस प्रकार से और इस स्वरूप में विश्व स्थिति का आकलन करना शुरू करेंगे तो वह कितना यान्त्रिक और अमानवीय होगा यह हम समझलें तो यह भी ध्यान में आयेगा । जानकारी से पूर्व इस पद्धति को ही नकारने की आवश्यकता है । इस आवश्यकता की अनुभूति हो उसी हेतु से उस जानकारी को यहाँ प्रस्तुत किया गया है ।
+
यदि इस प्रकार से और इस स्वरूप में विश्व स्थिति का आकलन करना शुरू करेंगे तो वह कितना यान्त्रिक और अमानवीय होगा यह हम समझलें तो यह भी ध्यान में आयेगा । जानकारी से पूर्व इस पद्धति को ही नकारने की आवश्यकता है । इस आवश्यकता की अनुभूति हो उसी हेतु से उस जानकारी को यहाँ प्रस्तुत किया गया है ।
−
=== [[महाद्वीपश: देशों की सूची]] ===
=== [[महाद्वीपश: देशों की सूची]] ===
अफ्रीका, एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, ओशिनिया
अफ्रीका, एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, ओशिनिया
Line 54:
Line 53:
== पर्व २ : विश्वस्थिति का आकलन ==
== पर्व २ : विश्वस्थिति का आकलन ==
+
+
=== वर्तमानकालीन वैश्विक परिस्थिति ===
+
+
==== सोवियत संघ का विनाश ====
+
+
==== युरो आटलिन्टिक विश्व का पतन और इन्डो पेंसिफिक विश्व का उदय ====
+
+
==== इस्लामी आतंकवादका प्रसार ====
+
+
==== चीनने मचाया हुआ उत्पात ====
+
+
=== राजनीतिक प्रवाहों का वैश्विक परिदृश्य ===
+
अमेरिका एक समस्या
+
+
==== विकास की अवधारणा राष्ट्रीय व सामाजिक रचना के मूलभूत आधार से सम्बंधित समस्याएँ ====
+
# बाजार में सामर्थ्यवान ही टिक पायेगा
+
# आर्थिक विषमता में लगातार वृद्धि व टेक्नोलोजी का दुरुपयोग
+
# पारिवारिक अस्थिरता व व्यक्ति का अकेलापन, पश्चिम के अनुकरणीय गुण, पश्चिम द्वारा निर्मित पारिवारिक-सामाजिक-प्राकृतिक समस्याएँ, पारिवारिक समस्याएँ, सामाजिक समरसता, प्राकृतिक संपदा का संरक्षण व सदुपयोग, अन्य राष्ट्रों के प्रति बडप्पन : सोच व जिम्मेदारी,
+
# बौद्धिक-श्रष्टाचार
+
+
==== ऐसी तात्कालिक समस्याएँ, जिन के परिणाम दूर॒गामी हैं, स्वत्व की पहचान (खबशप-गेंद) का भ्रम, ====
+
+
==== वैश्विक समस्याओं का भारत पर प्रभाव, विश्व की अर्थ व्यवस्थाएँ सन १००० से २००३, ====
+
भारत के सात दशक: एक केस-स्टडी,
+
# काल-खंड १, १९४७-६७ (लगभग २० वर्ष) : मेहनतकश ईमानदार नागरिक, मगर रोजी-रोटी की जद्दोजहद,
+
# कालखण्ड -२ (१९६७ से लगभग १९८० तक),
+
# कालखण्ड - 3 (१९८० से लगभग १९९० तक),
+
# कालखण्ड - ४ (१९९० से लगभग २०१० तक) अर्थ व्यवस्था में सम्पन्नता व श्रष्टता का दोहरा विकास
+
+
=== 'द प्रिजन' का सारांश ===
+
+
==== विश्व के ज्ञान और शिक्षा के विभिन्न प्रतिमान, वैश् विकषडयंत्र के संचालन सूत्र, षड़यंत्र की प्रक्रिया, षड़यंत्रकारी घटक, पषड़यंत्र की रणनीति, षड़यंत्र का शिकार भारत, षड़यंत्र निवारण की दिशा ====
+
+
=== आर्थिक हत्यारे की स्वीकारोक्ति ===
+
+
=== अमेरिका का एक्सरे ===
+
+
=== नव साम्यवाद के लक्षण और स्वरूप ===
+
+
=== राष्ट्रवाद की पश्चिमी संकल्पना ===
+
इतिहास और राष्ट्रीयता, पश्चिमी जगत में “नेशन' का स्वरूप, पश्चिम में राष्ट्रीता का विकास और विस्तार, नागरिक राष्ट्रवाद, औपनिवेशिक विरोधी राष्ट्रीयता, अति राष्ट्रवाद, साम्यवादियों का अति राष्ट्रवाद, धार्मिक राष्ट्रवाद, पश्चिमी जगत में राष्ट्र (नेशन) का स्वरूप, विदेशियों द्वारा भ्रम निर्माण, राष्ट्र दर्शन - भारत की प्राचीन अवधारणा, इस्लाम काल में संघर्ष, राष्ट्र दर्शन की अवधारणा, विश्व का उदाहरण, निष्कर्ष
+
+
== पर्व ३ : संकटों का विश्लेषण ==
+
+
=== संकटों का मूल ===
+
जीवनदृष्टि, भारतीय शिक्षा - वैश्विक संकटों का स्वरूप, भौतिकवाद
+
+
=== संकेन्द्री दृष्टि ===
+
मनुष्य केन्द्री रचना का स्वरूप, व्यक्तिकेन्द्री रचना का स्वरूप, स्त्री के प्रति देखने का दृष्टिकोण,
+
+
=== अनर्थक अर्थ ===
+
कामकेन्द्री जीवनव्यवस्था, अर्थपरायण जीवनर्चना, कार्य का आत्मघाती अर्थघटन, पश्चिम का विज्ञान विषयक अआवैज्ञानिक दृष्टिकोण, पश्चिम में तन्त्रज्ञान का कहर
+
+
=== आधुनिक विज्ञान एवं गुलामी का समान आधार ===
+
+
=== कट्टरता ===
+
पश्चिम की साप्राज्यबादी मानसिकता, साम्प्रदायिक कह्टरवाद
+
+
=== वैश्विक समस्याओं का स्त्रोत ===
+
आधुनिकता की. समीक्षा आवश्यक, राजनीति में विश्वसनीयता का संकट, आधुनिक सभ्यता का संकट, बुद्धि की विकृति का संकट, संविधान में पाश्चात्य उदारवादी जीवनदृष्टि, नैतिकता का अभाव, समग्र दृष्टि का अभाव, धर्मनिरपेक्ष शब्द हमारा नहीं, व्यवसायीकरण से धर्मबुद्धि का क्षय, सामंजस्य समान धर्मियों में, विधर्मियों में नहीं, भारतीय परम्परा का आधुनिकीकरण, नैतिक प्रश्नों का समाधान तकनीकसे नहीं, भारत को विशेषज्ञ नहीं तत्त्वदर्शी चाहिए
+
+
=== यूरोपीय आधिपत्य के पाँच सौ वर्ष ===
+
सन् १४९२ से यूरोप तथा विश्व के अन्य देशों की स्थिति, यूरोप के द्वारा विश्व के अन्य देशों की खोज, यूरोप खण्ड का साम्राज्य विस्तार, एशिया में यूरोप का बढ़ता हुआ वर्चस्व, भारतीय समाज एवं राज्य व्यवस्था में प्रवेश, १८८० बस्तियों में वितरित भूमि, (*कणी' में), मवेशियों की संख्या (१५४४ बस्तियों में), व्यवसाय (१५४४ बस्तियों में), कलाम, भारतीय समाज का जबरदस्ती से होनेवाला क्षरण
+
+
=== 'जिहादी आतंकवाद - वैश्विक संकट ===
+
+
== पर्व ४ : भारत की भूमिका ==
+
+
=== भारत की दृष्टि से देखें ===
+
+
==== भारत की दृष्टि से क्यों देखना, ====
+
+
==== भारत को भारत बनने की आवश्यकता, ====
+
+
==== अपनी भूमिका निभाने की सिद्धता, ====
+
+
==== विश्व के सन्दर्भ में विचार, ====
+
+
==== भारत का विश्वकल्याणकारी मानस, ====
+
+
==== आरन्तर्राष्ट्रीय मानक कैसे होने चाहिये !, ====
+
+
==== भारत अपने मानक तैयार करे ====
+
+
=== मनोस्वास्थ्य प्राप्त करें ===
+
+
==== अंग्रेजी और अंग्रेजीयत से मुक्ति ====
+
+
==== ज्ञानात्मक हल ढूँढने की प्रवृत्ति, ====
+
+
==== पतित्रता की रक्षा ====
+
+
==== आत्मविश्वास प्राप्त करना ====
+
+
==== हीनताबोध से मुक्ति ====
+
+
==== स्वतन्त्रता ====
+
+
==== श्रद्धा और विश्वास ====
+
+
==== प्राणशक्ति का अभाव ====
+
+
=== संस्कृति के आधार पर विचार करें ===
+
+
==== प्लास्टिक और प्लास्टिकवाद को नकारना ====
+
+
==== परम्परा गौरव ====
+
+
==== कानून नहीं धर्म ====
+
+
==== पर्यावरण संकल्पना को भारतीय बनाना ====
+
+
==== अहिंसा का अर्थ ====
+
+
==== एकरूपता नहीं एकात्मता ====
+
+
==== धर्म के स्वीकार की बाध्यता ====
+
+
=== समाज को सुदृढ़ बनायें ===
+
+
==== सामाजिक करार सिद्धान्त को नकार ====
+
+
==== लोकतन्त्र पर पुनर्विचार ====
+
+
==== कुट्म्ब व्यवस्था का सुदूढ़ीकरण ====
+
+
==== स्वायत्त समाज की रचना ====
+
+
==== स्थिर समाज बनाना, आश्रम व्यवस्था ====
+
+
==== व्यक्तिगत जीवन को व्यवस्थित करना ====
+
+
==== राष्ट्रीय विवेकशक्ति का विकास ====
+
+
=== आर्थिक स्वातंत्रयनी रक्षा करें ===
+
==== यूरो अमेरिकी अर्थतन्त्र को नकारना किस आधार पर ? ====
+
+
==== विभिन्न व्यवस्थाओं का सन्तुलन ====
+
+
==== अर्थ के प्रभाव से मुक्ति ====
+
+
==== श्रमप्रतिष्ठा ====
+
+
==== ग्रामीणीकरण ====
+
+
==== यन्त्रवाद से मुक्ति ====
+
+
=== युगानुकूल पुनर्ररचना ===
+
+
=== आशा कहाँ है ===
+
+
== पर्व ५ : भारतीय शिक्षा की भूमिका ==
+
+
=== भारतीय शिक्षा का स्वरुप ===
+
भारत में भारतीय शिक्षा की प्रतिष्ठा, शिक्षा का व्यवस्थात्मक पक्ष, अर्थनिरपेक्ष शिक्षा
+
+
=== भारत विश्व को शिक्षा के विषय में क्या कहे ===
+
शिक्षा विषयक संकल्पना बदलना, शिक्षाप्रक्रियाओं को समझना, शिक्षा का विषयवस्तु के बारे में विचार, मानसिकता बदलना, विश्वस्तर पर चलाने लायक चर्चा, सेमेटिक रिलीजन, विश्वविद्यालयों में अध्ययन और चर्चा, विज्ञान, राजनीति, बाजार और धर्म का समन्वय, आर्थिक आधिपत्य के बारे में विचार
+
+
=== आर्न्तर्रा्ट्रीय विश्वविद्यालय ===
+
+
==== विश्व के देशों के सांस्कृतिक इतिहास के अध्ययन की योजना बनानी चाहिये ।, ====
+
+
==== विश्व के विभिन्न सम्प्रदायों का अध्ययन, ====
+
+
==== ज्ञानविज्ञान और शिक्षा की स्थिति का अध्ययन, ====
+
+
==== देशों की आर्थिक, राजनीतिक, भौगोलिक स्थिति का अध्ययन, ====
+
+
==== विश्व के देश भारत को जानें ====
+
+
==== सरकार की भूमिका ====
+
+
=== 'प्रशासक और शिक्षक का संवाद ===
+
+
=== शक्षक, प्रशासक, मन्त्री का वार्तालाप-१ ===
+
+
=== शिक्षक, प्रशासक, मन्त्री का वार्तालाप-2 ===
+
+
=== हिन्द धर्म में समाजसेवा का स्थान ===
+
+
==== समाजसेवा की हिन्दवी मीमांसा ====