Changes

Jump to navigation Jump to search
लेख सम्पादित किया
Line 1: Line 1:  
{{One source|date=January 2019}}
 
{{One source|date=January 2019}}
   −
प्रस्तावना
+
== प्रस्तावना ==
 
मोक्ष प्राप्ति या पूर्णत्व की प्राप्ति यह भारतीय समाज का हमेशा लक्ष्य रहा है| इस दृष्टी से कृषि के क्षेत्र में हमारे पूर्वजों ने कृषि प्रक्रिया का पूर्णत्व के स्तरपर अध्ययन और विकास किया था| दसों-हजार वर्षों से खेती होनेपर भी हमारी भूमि बंजर नहीं हुई| वर्तमान के रासायनिक कृषि के काल को छोड़ दें तो अभीतक हमारी भूमि उर्वरा रही है|  
 
मोक्ष प्राप्ति या पूर्णत्व की प्राप्ति यह भारतीय समाज का हमेशा लक्ष्य रहा है| इस दृष्टी से कृषि के क्षेत्र में हमारे पूर्वजों ने कृषि प्रक्रिया का पूर्णत्व के स्तरपर अध्ययन और विकास किया था| दसों-हजार वर्षों से खेती होनेपर भी हमारी भूमि बंजर नहीं हुई| वर्तमान के रासायनिक कृषि के काल को छोड़ दें तो अभीतक हमारी भूमि उर्वरा रही है|  
 
मोक्ष प्राप्ति के लिए धर्माचरण, धर्माचरण के लिए अच्छा शरीर और अच्छे शरीर के लिए अच्छा अन्न आवश्यक होता है| कहा गया है “शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम्”| इस विचार से भी हमारी कृषि दृष्टि आकार लेती है|  
 
मोक्ष प्राप्ति के लिए धर्माचरण, धर्माचरण के लिए अच्छा शरीर और अच्छे शरीर के लिए अच्छा अन्न आवश्यक होता है| कहा गया है “शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम्”| इस विचार से भी हमारी कृषि दृष्टि आकार लेती है|  
Line 25: Line 25:  
हमारे किसान अब कुछ पिछडे हुए नहीं रहे हैं| अत्याधुनिक जनुकीय तन्त्रज्ञान से निर्माण किये गए संकरित बीज, अत्याधुनिक रासायनिक खरपतवार, महंगी रासायनिक खाद, उत्तम से उत्तम रासायनिक कीटक नाशकों का उपयोग करना अब वे बहुत अच्छी तरह जानते हैं| फिर भी किसानों की यह स्थिति क्यों है?  
 
हमारे किसान अब कुछ पिछडे हुए नहीं रहे हैं| अत्याधुनिक जनुकीय तन्त्रज्ञान से निर्माण किये गए संकरित बीज, अत्याधुनिक रासायनिक खरपतवार, महंगी रासायनिक खाद, उत्तम से उत्तम रासायनिक कीटक नाशकों का उपयोग करना अब वे बहुत अच्छी तरह जानते हैं| फिर भी किसानों की यह स्थिति क्यों है?  
 
उपर्युक्त सभी बातें हमें इस विषयपर गहराई से विचार करने को बाध्य करती हैं| ऐसा समझ में आता है कि कुछ मूलमें ही गड़बड़ हुई है| इसलिए हम पुरे समाज के जीवन की जड़ में जाकर इस समस्या का विचार करेंगे|
 
उपर्युक्त सभी बातें हमें इस विषयपर गहराई से विचार करने को बाध्य करती हैं| ऐसा समझ में आता है कि कुछ मूलमें ही गड़बड़ हुई है| इसलिए हम पुरे समाज के जीवन की जड़ में जाकर इस समस्या का विचार करेंगे|
अभारतीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली और व्यवस्थाएँ
+
 
 +
== अभारतीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली और व्यवस्थाएँ ==
 
वर्तमान में हमने अभारतीय जीवन के प्रतिमान को अपनाया हुआ है| हमारी जीवनदृष्टि, जीवनशैली और जीवन की व्यवस्थाएँ सब अभारतीय हो गया है| जबतक हम इस भारतीय और अभारतीय प्रतिमान में जो अन्तर है उसे नहीं समझेंगे इस समस्या की जड़ तक नहीं पहुँच सकेंगे| जीवनदृष्टि, जीवनशैली और जीवन की व्यवस्थाएँ ये सब मिलकर जीवन का प्रतिमान बनता है| अभारतीय जीवनदृष्टि का आधार उनकी विश्व निर्माण की कल्पना में है| उनकी समझ के अनुसार विश्व का निर्माण या तो अपने आप हुआ है या किसी गौड़ ने या अल्लाने किया है| किन्तु इसे बनाया गया है जड़ पदार्थ से ही| आधुनिक विज्ञान भी इसे जड़ से बना हुआ ही मानता है| इन जड़ पदार्थों में होनेवाली रासायनिक प्रक्रियाओं के परिणाम स्वरूप जीव पैदा हो गया| सभी जीव रासायनिक प्रक्रियाओं के पुलिंदे मात्र हैं| इसी तरह हमारा मनुष्य के रूप में जन्म हुआ है| इस जन्म से पहले मैं नहीं था| इस जन्म के बाद भी मैं नहीं रहूँगा| इन मान्यताओं के आधारपर इस अभारतीय जीवनदृष्टि के निम्न सूत्र बनते हैं|  
 
वर्तमान में हमने अभारतीय जीवन के प्रतिमान को अपनाया हुआ है| हमारी जीवनदृष्टि, जीवनशैली और जीवन की व्यवस्थाएँ सब अभारतीय हो गया है| जबतक हम इस भारतीय और अभारतीय प्रतिमान में जो अन्तर है उसे नहीं समझेंगे इस समस्या की जड़ तक नहीं पहुँच सकेंगे| जीवनदृष्टि, जीवनशैली और जीवन की व्यवस्थाएँ ये सब मिलकर जीवन का प्रतिमान बनता है| अभारतीय जीवनदृष्टि का आधार उनकी विश्व निर्माण की कल्पना में है| उनकी समझ के अनुसार विश्व का निर्माण या तो अपने आप हुआ है या किसी गौड़ ने या अल्लाने किया है| किन्तु इसे बनाया गया है जड़ पदार्थ से ही| आधुनिक विज्ञान भी इसे जड़ से बना हुआ ही मानता है| इन जड़ पदार्थों में होनेवाली रासायनिक प्रक्रियाओं के परिणाम स्वरूप जीव पैदा हो गया| सभी जीव रासायनिक प्रक्रियाओं के पुलिंदे मात्र हैं| इसी तरह हमारा मनुष्य के रूप में जन्म हुआ है| इस जन्म से पहले मैं नहीं था| इस जन्म के बाद भी मैं नहीं रहूँगा| इन मान्यताओं के आधारपर इस अभारतीय जीवनदृष्टि के निम्न सूत्र बनते हैं|  
 
व्यक्तिवादिता या स्वार्थवादिता : जब व्यक्तिगत स्वार्थ को महत्त्व होता है तो वहां दुर्बल के स्वार्थ को कोई नहीं पूछता| इसलिए बलवानों के स्वार्थ के लिए समाज में व्यवस्थाएं बनतीं हैं| फिर “सर्व्हायव्हल ऑफ़ द फिटेस्ट” याने जो बलवान होगा वही जियेगा| जो दुर्बल होगा वह बलवान के लिए और बलवान की इच्छा के अनुसार जियेगा| इसी का अर्थ है “एक्स्प्लोयटेशन ऑफ़ द वीक” याने बलवान को दुर्बल का शोषण करने की छूट है| इस मान्यता के कारण मनुष्य की सामाजिकता की भावना नष्ट हो जाती है| हर परिस्थिति में वह केवल अपने हित का ही विचार करता है|  
 
व्यक्तिवादिता या स्वार्थवादिता : जब व्यक्तिगत स्वार्थ को महत्त्व होता है तो वहां दुर्बल के स्वार्थ को कोई नहीं पूछता| इसलिए बलवानों के स्वार्थ के लिए समाज में व्यवस्थाएं बनतीं हैं| फिर “सर्व्हायव्हल ऑफ़ द फिटेस्ट” याने जो बलवान होगा वही जियेगा| जो दुर्बल होगा वह बलवान के लिए और बलवान की इच्छा के अनुसार जियेगा| इसी का अर्थ है “एक्स्प्लोयटेशन ऑफ़ द वीक” याने बलवान को दुर्बल का शोषण करने की छूट है| इस मान्यता के कारण मनुष्य की सामाजिकता की भावना नष्ट हो जाती है| हर परिस्थिति में वह केवल अपने हित का ही विचार करता है|  
Line 50: Line 51:  
नौकरों का इकोनोमिक्स पनपता है| ९९ % नौकर और मुश्किल से १ % मालिक| सारा समाज नौकरों की मानसिकता का बन जाता है|
 
नौकरों का इकोनोमिक्स पनपता है| ९९ % नौकर और मुश्किल से १ % मालिक| सारा समाज नौकरों की मानसिकता का बन जाता है|
 
व्यक्तिवादिता के कारण जो स्वार्थ भाव पनपता है वह मानव की सामाजिकता की और परस्परावलंबन की भावना को नष्ट कर देता है| कुटुम्ब टूट जाते हैं| समाज लिव्ह इन रिलेशनशिप याने स्वेच्छा सहनिवास की ओर बढ़ता है| आत्मनाश की दिशा प्राप्त करता है|
 
व्यक्तिवादिता के कारण जो स्वार्थ भाव पनपता है वह मानव की सामाजिकता की और परस्परावलंबन की भावना को नष्ट कर देता है| कुटुम्ब टूट जाते हैं| समाज लिव्ह इन रिलेशनशिप याने स्वेच्छा सहनिवास की ओर बढ़ता है| आत्मनाश की दिशा प्राप्त करता है|
भारतीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली और व्यवस्था समूह का ढाँचा  
+
 
प्रारंभ में केवल परमात्मा था| उसने अपने में से ही सरे विश्व का सृजन किया| सारे विश्व के अस्तित्व ये परमात्मा के ही भिन्न भिन्न रूप हैं| इसलिए चराचर विश्व में परस्पर संबंधों का आधार एकात्मता है| आत्मीयता है| प्यार है| कुटुम्ब भावना है| विश्व निर्माण की इस भारतीय मान्यता के कारण भारतीय जीवनदृष्टि के निम्न सूत्र बनते हैं|
+
== भारतीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली और व्यवस्था समूह का ढाँचा ==
 +
प्रारंभ में केवल परमात्मा था| उसने अपने में से ही सरे विश्व का सृजन किया| सारे विश्व के अस्तित्व ये परमात्मा के ही भिन्न भिन्न रूप हैं| इसलिए चराचर विश्व में परस्पर संबंधों का आधार एकात्मता है| आत्मीयता है| प्यार है| कुटुम्ब भावना है| विश्व निर्माण की इस भारतीय मान्यता के कारण भारतीय जीवनदृष्टि के निम्न सूत्र बनते हैं|
 
चराचर विश्व के परस्पर सम्बन्ध एकात्मता के हैं| एकात्मता की व्यावहारिक अभिव्यक्ति कुटुम्ब भावना है|  
 
चराचर विश्व के परस्पर सम्बन्ध एकात्मता के हैं| एकात्मता की व्यावहारिक अभिव्यक्ति कुटुम्ब भावना है|  
 
विश्व में परस्परावलंबन और चक्रीयता है| जिस प्रकार विश्व परमात्मा में से बना उसी तरह विश्व परमात्मा में विलीन हो जाएगा|  
 
विश्व में परस्परावलंबन और चक्रीयता है| जिस प्रकार विश्व परमात्मा में से बना उसी तरह विश्व परमात्मा में विलीन हो जाएगा|  
Line 65: Line 67:  
अपने कर्तव्य और अन्यों के अधिकारों की पुर्ति का आग्रह करना| जब सब अपने अपने कर्तव्य करते हैं तो सभी के अधिकारों की पूर्ति तो अपने आप ही हो जाती है|
 
अपने कर्तव्य और अन्यों के अधिकारों की पुर्ति का आग्रह करना| जब सब अपने अपने कर्तव्य करते हैं तो सभी के अधिकारों की पूर्ति तो अपने आप ही हो जाती है|
 
ऋणमुक्ति : ५ प्रकार के ऋण होते हैं| देव ऋण, पितर ऋण, ऋषि ऋण, नृऋण और भूत ऋण| भारतीय मान्यता है कि जब ये ऋण बढ़ाते जाते हैं हम अगले जन्म में अधम गति को याने हीं जन्म को प्राप्त होते हैं| और इस जन्म में यदि ऋणों से अधिक ऋण मुक्ति होती है तो हम श्रेष्ठ गति को प्राप्त होते हैं|
 
ऋणमुक्ति : ५ प्रकार के ऋण होते हैं| देव ऋण, पितर ऋण, ऋषि ऋण, नृऋण और भूत ऋण| भारतीय मान्यता है कि जब ये ऋण बढ़ाते जाते हैं हम अगले जन्म में अधम गति को याने हीं जन्म को प्राप्त होते हैं| और इस जन्म में यदि ऋणों से अधिक ऋण मुक्ति होती है तो हम श्रेष्ठ गति को प्राप्त होते हैं|
कृषि सम्बन्धी भारतीय दृष्टि
+
 
 +
== कृषि सम्बन्धी भारतीय दृष्टि ==
 
भारतीय मान्यता है – उत्तम खेती माध्यम व्यापार और कनिष्ठ नौकरी|  
 
भारतीय मान्यता है – उत्तम खेती माध्यम व्यापार और कनिष्ठ नौकरी|  
 
भारतीय मान्यता के अनुसार अन्न को परब्रह्म माना गया है| इस परब्रह्म का निर्माता तो सृष्टि निर्माता का ही लघुरूप होता है|  
 
भारतीय मान्यता के अनुसार अन्न को परब्रह्म माना गया है| इस परब्रह्म का निर्माता तो सृष्टि निर्माता का ही लघुरूप होता है|  
Line 81: Line 84:  
भारतीय कृषि गो आधारित होती है| खेती के लिए लगनेवाले मानव, जमीन, बीज, हवा से मिलनेवाला नत्र वायु और पानी ये ५ बातें छोड़कर सभी बातें भारतीय गो से प्राप्त होती है| इसीलिए भी गो को हम गोमाता मानते हैं| अभारतीय गायों के दूध में मानव के लिए हानिकारक ऐसा बीसीएम ७ यह रसायन पाया जाता है| केवल भारतीय गो के दूध में यह विषैला रसायन नहीं होता| इससे मिलनेवाले बैल खेती के लिए गोबर और गोमूत्र देने के साथ ही धान्य और सामान के वहन के लिए उपयुक्त होते है| इन के उपयोग से खनिज तेल की आवश्यकता नहीं रह जाती| गोबर के बारे में हम मानते हैं की गोबर में तो लक्ष्मीजी का वास होता है| गोबर गैस का उपयोग चूल्हा जलाने के लिए भी होता है| दूध तो गो से मिलनेवाला आनुशंगिक लाभ होता था|
 
भारतीय कृषि गो आधारित होती है| खेती के लिए लगनेवाले मानव, जमीन, बीज, हवा से मिलनेवाला नत्र वायु और पानी ये ५ बातें छोड़कर सभी बातें भारतीय गो से प्राप्त होती है| इसीलिए भी गो को हम गोमाता मानते हैं| अभारतीय गायों के दूध में मानव के लिए हानिकारक ऐसा बीसीएम ७ यह रसायन पाया जाता है| केवल भारतीय गो के दूध में यह विषैला रसायन नहीं होता| इससे मिलनेवाले बैल खेती के लिए गोबर और गोमूत्र देने के साथ ही धान्य और सामान के वहन के लिए उपयुक्त होते है| इन के उपयोग से खनिज तेल की आवश्यकता नहीं रह जाती| गोबर के बारे में हम मानते हैं की गोबर में तो लक्ष्मीजी का वास होता है| गोबर गैस का उपयोग चूल्हा जलाने के लिए भी होता है| दूध तो गो से मिलनेवाला आनुशंगिक लाभ होता था|
 
भारतीय मान्यता के अनुसार किसानों को यदि जीने के लिए संगठन बनाने की आवश्यकता निर्माण होती है तो या तो किसान नष्ट हो जाएगा या फिर वह समाज क नष्ट कर देगा| वर्तमान में किसान जीने के लिए संघर्ष कर रहा है| वर्तमान जीवन के अभारतीय प्रतिमान में किसानों का संगठित होना अत्यधिक कठिन होने के कारण किसान नष्ट ही होंगे| यही हो रहा है|
 
भारतीय मान्यता के अनुसार किसानों को यदि जीने के लिए संगठन बनाने की आवश्यकता निर्माण होती है तो या तो किसान नष्ट हो जाएगा या फिर वह समाज क नष्ट कर देगा| वर्तमान में किसान जीने के लिए संघर्ष कर रहा है| वर्तमान जीवन के अभारतीय प्रतिमान में किसानों का संगठित होना अत्यधिक कठिन होने के कारण किसान नष्ट ही होंगे| यही हो रहा है|
किसान को पुन: प्रतिष्ठित कैसे करें?  
+
 
 +
== किसान को पुन: प्रतिष्ठित कैसे करें? ==
 
वर्तमान में जिस प्रतिमान में हम जी रहे हैं वह अभारतीय या यूरो अमरीकी जीवन का प्रतिमान है| इस प्रतिमान में हमारे किसानों को कोइ स्थान नहीं है| इस प्रतिमान में तो ठेके की कृषि ही चलेगी| औद्योगिक कृषि ही चलेगी| जीवन के प्रतिमान का परिवर्तन करना सरल बात नहीं है| यह परिवर्तन की प्रक्रिया जैसे शिक्षा क्षेत्र में चलानी चाहिए उसी प्रकार शासकीय , आर्थिक ऐसे सभी क्षेत्रों में एकसाथ चलनी चाहिए|  
 
वर्तमान में जिस प्रतिमान में हम जी रहे हैं वह अभारतीय या यूरो अमरीकी जीवन का प्रतिमान है| इस प्रतिमान में हमारे किसानों को कोइ स्थान नहीं है| इस प्रतिमान में तो ठेके की कृषि ही चलेगी| औद्योगिक कृषि ही चलेगी| जीवन के प्रतिमान का परिवर्तन करना सरल बात नहीं है| यह परिवर्तन की प्रक्रिया जैसे शिक्षा क्षेत्र में चलानी चाहिए उसी प्रकार शासकीय , आर्थिक ऐसे सभी क्षेत्रों में एकसाथ चलनी चाहिए|  
 
लेकिन चलाएगा कौन? सामान्यत: तो इसका उत्तर जो समस्या से पीड़ित है और जो पीड़ितों की पीड़ा को समझते हैं और दूर भी करना चाहते हैं वे लोग ही परिवर्तन के लिए पहल करेंगे| हमारी मान्यता है – उद्धरेत् आत्मनात्मानाम् | मेरा उद्धार कोई अन्य नहीं कर सकता| अन्यों की मदद मिल सकती है| पहल तो मुझे ही करनी होगी| और करनेवाले को तो ईश्वर भी सहायता करता है|  
 
लेकिन चलाएगा कौन? सामान्यत: तो इसका उत्तर जो समस्या से पीड़ित है और जो पीड़ितों की पीड़ा को समझते हैं और दूर भी करना चाहते हैं वे लोग ही परिवर्तन के लिए पहल करेंगे| हमारी मान्यता है – उद्धरेत् आत्मनात्मानाम् | मेरा उद्धार कोई अन्य नहीं कर सकता| अन्यों की मदद मिल सकती है| पहल तो मुझे ही करनी होगी| और करनेवाले को तो ईश्वर भी सहायता करता है|  
किसान को क्या करना होगा?
+
 
 +
== किसान को क्या करना होगा? ==
 
किसान को यह समझ लेना चाहिए कि ग्राम यदि ग्राम बने रहेंगे तो वह बचेगा| शहरीकरण में उसका नष्ट होना सुनिश्चित है| ग्राम की व्याख्या है – स्थानिक संसाधनों के आधारपर जीनेवाला परस्परावलंबी कुटुम्बों का स्वावलंबी समुदाय| एक ढंग से एक बड़ा ग्राम-कुटुम्ब| किसान को निम्न बातें करनी होंगी|   
 
किसान को यह समझ लेना चाहिए कि ग्राम यदि ग्राम बने रहेंगे तो वह बचेगा| शहरीकरण में उसका नष्ट होना सुनिश्चित है| ग्राम की व्याख्या है – स्थानिक संसाधनों के आधारपर जीनेवाला परस्परावलंबी कुटुम्बों का स्वावलंबी समुदाय| एक ढंग से एक बड़ा ग्राम-कुटुम्ब| किसान को निम्न बातें करनी होंगी|   
 
१. अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम करना| व्यय को कम से कम रखना|
 
१. अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम करना| व्यय को कम से कम रखना|
Line 94: Line 99:  
७. खेती को आनुवंशिक बनाने के लिए खेती को कौटुम्बिक उद्योग बनाना|  
 
७. खेती को आनुवंशिक बनाने के लिए खेती को कौटुम्बिक उद्योग बनाना|  
 
८. बच्चों को भी वर्तमान शिक्षा केन्द्रों से दूर रखकर अच्छी शिक्षा के लिए किसी वानप्रस्थी त्यागमयी योग्य शिक्षक की व्यवस्था करना| शिक्षक की आजीविका की चिंता ग्राम करे ऐसी व्यवस्था बिठाना| सीखने के लिए सारा विश्व ही ग्राम है, लेकिन जीने के लिए ग्राम ही विश्व है ऐसा जिन का दृढ़ निश्चय है ऐसे बच्चों को ही केवल अध्ययन के लिए, नई उपयुक्त बातें सीखने के लिए ही ग्राम से बाहर भेजना|  
 
८. बच्चों को भी वर्तमान शिक्षा केन्द्रों से दूर रखकर अच्छी शिक्षा के लिए किसी वानप्रस्थी त्यागमयी योग्य शिक्षक की व्यवस्था करना| शिक्षक की आजीविका की चिंता ग्राम करे ऐसी व्यवस्था बिठाना| सीखने के लिए सारा विश्व ही ग्राम है, लेकिन जीने के लिए ग्राम ही विश्व है ऐसा जिन का दृढ़ निश्चय है ऐसे बच्चों को ही केवल अध्ययन के लिए, नई उपयुक्त बातें सीखने के लिए ही ग्राम से बाहर भेजना|  
९. यथासंभव ग्राम में से धन, पानी और जीने के लिए युवक बाहर नहीं जाए यह देखना होगा|  
+
९. यथासंभव ग्राम में से धन, पानी और जीने के लिए युवक बाहर नहीं जाए यह देखना होगा|
किसान की पीड़ा को समझनेवाले लोगों को क्या करना होगा?  
+
 
 +
== किसान की पीड़ा को समझनेवाले लोगों को क्या करना होगा? ==
 
बाहर से उपदेश देना सरल होता है| लेकिन उसके लिए स्वत: त्याग करना बहुत कठिन होता है| लेकिन इस त्याग के अभाव में तो चिंता जताना केवल अवडंबर ही होगा| किसान बचाने की इच्छा है ऐसे लोगों को निम्न बातें करनी चाहिए|  
 
बाहर से उपदेश देना सरल होता है| लेकिन उसके लिए स्वत: त्याग करना बहुत कठिन होता है| लेकिन इस त्याग के अभाव में तो चिंता जताना केवल अवडंबर ही होगा| किसान बचाने की इच्छा है ऐसे लोगों को निम्न बातें करनी चाहिए|  
 
१.  ग्राम से सीधे किसान से उत्पाद प्राप्त करने की व्यवस्था बिठाना| उत्पाद का उचित मूल्य किसान को देना|
 
१.  ग्राम से सीधे किसान से उत्पाद प्राप्त करने की व्यवस्था बिठाना| उत्पाद का उचित मूल्य किसान को देना|
Line 103: Line 109:  
५. सम्भव हो तो शहर छोड़कर ग्राम का चयन कर ग्राम में रहने को जाना|   
 
५. सम्भव हो तो शहर छोड़कर ग्राम का चयन कर ग्राम में रहने को जाना|   
 
६. अभारतीय प्रतिमान के जिस भी क्षेत्र में हम कार्यरत हों उस के परिवर्तन और भारतीय जीवन के प्रतिमान की प्रतिष्ठापना की प्रक्रिया को चालना देना|
 
६. अभारतीय प्रतिमान के जिस भी क्षेत्र में हम कार्यरत हों उस के परिवर्तन और भारतीय जीवन के प्रतिमान की प्रतिष्ठापना की प्रक्रिया को चालना देना|
उपसंहार  
+
 
 +
== उपसंहार ==
 
वर्तमान में उपर्युक्त बातें किसानों को बतानेपर वे पलटकर पूछेंगे कि यह सब उपदेश हमें ही क्यों दे रहे हैं? इन सब बातों का हम पालन करेंगे तो हम तो गरीब ही रहेंगे| और केवल गरीब ही नहीं रहेंगे तो आज जैसे कई किसान आत्महत्या कर रहे हैं वैसे हमें भी आत्महत्या करनी पड़ेगी| उन का कहना तो उचित ही है| लेकिन फिर इसका हल कैसे निकलेगा? किसी को तो पहल करनी ही होगी| किसान यदि अन्य समाज के बदलने की राह देखेगा तो न किसान बचेगा और न ही समाज| वह जब भारतीय पद्धति से खेती करेगा तो वह स्वावलंबी बनेगा| जब वह स्वावलंबी बनेगा तो आत्महत्या की नौबत ही नहीं आएगी|  
 
वर्तमान में उपर्युक्त बातें किसानों को बतानेपर वे पलटकर पूछेंगे कि यह सब उपदेश हमें ही क्यों दे रहे हैं? इन सब बातों का हम पालन करेंगे तो हम तो गरीब ही रहेंगे| और केवल गरीब ही नहीं रहेंगे तो आज जैसे कई किसान आत्महत्या कर रहे हैं वैसे हमें भी आत्महत्या करनी पड़ेगी| उन का कहना तो उचित ही है| लेकिन फिर इसका हल कैसे निकलेगा? किसी को तो पहल करनी ही होगी| किसान यदि अन्य समाज के बदलने की राह देखेगा तो न किसान बचेगा और न ही समाज| वह जब भारतीय पद्धति से खेती करेगा तो वह स्वावलंबी बनेगा| जब वह स्वावलंबी बनेगा तो आत्महत्या की नौबत ही नहीं आएगी|  
 
बचपन में एक कहानी सुनी थी| एक बार किसी गाँव में कई वर्षोंतक बारिश नहीं हुई| हर साल बारिश होगी इसलिए सब किसान तैयारी करते थे| मेंढक टर्राते थे| पक्षी अपने घोसलों का रखरखाव करते थे| मोर नाचते थे| लेकिन सब व्यर्थ हो जाता था| बारिश नहीं आती थी| सब तैयारी व्यर्थ हो जाती थी| सब निराश हो गए थे| अब की बार फिर बारिश के दिन आए| लेकिन किसानों ने ठान लिया था कि अब वे खेती की तैयारी नहीं करेंगे| किसानों ने कोई तैयारी नहीं की| मेंढकों ने टर्राना बंद कर दिया| पक्षियों ने अपने घोसलों का रखरखाव नहीं किया| लेकिन एक मोर ने सोचा यह तो ठीक नहीं है| औरों ने अपना काम बंद किया होगा तो करने दो| मैं क्यों मेरा काम नहीं करूँ? उसने तय किया की बादल आयें या न आयें, बारिश हो या नहीं, वह तो अपना काम करेगा| वह निकला और लगा झूमझूम कर नाचने| उस को नाचते देखकर पक्षियों को लगा की हम क्यों अपना काम छोड़ दें| वे भी लगे अपने घोसलों के रखरखाव में| मेंढकों ने सोचा वे भी क्यों अपना काम छोड़ें| वे भी लगे टर्राने| फिर किसान भी सोचने लगा ये सब अपना काम कर रहे हैं, फिर मैं क्यों अपना काम छोड़ दूँ ? वह भी लगा तैयारी करने| ऐसे सब को अपना काम करते देखकर वरुण देवता जो बारिश लाते हैं, उन को शर्म महसूस हुई| मेंढक, मोर जैसे प्राणी भी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं| फिर मैंने अपना काम क्यों छोड़ा है ? वह झपटे| बादलों को संगठित किया और लगे पानी बरसाने| किसान खुशहाल हो गया| सारा गाँव खुशहाल हो गया|  
 
बचपन में एक कहानी सुनी थी| एक बार किसी गाँव में कई वर्षोंतक बारिश नहीं हुई| हर साल बारिश होगी इसलिए सब किसान तैयारी करते थे| मेंढक टर्राते थे| पक्षी अपने घोसलों का रखरखाव करते थे| मोर नाचते थे| लेकिन सब व्यर्थ हो जाता था| बारिश नहीं आती थी| सब तैयारी व्यर्थ हो जाती थी| सब निराश हो गए थे| अब की बार फिर बारिश के दिन आए| लेकिन किसानों ने ठान लिया था कि अब वे खेती की तैयारी नहीं करेंगे| किसानों ने कोई तैयारी नहीं की| मेंढकों ने टर्राना बंद कर दिया| पक्षियों ने अपने घोसलों का रखरखाव नहीं किया| लेकिन एक मोर ने सोचा यह तो ठीक नहीं है| औरों ने अपना काम बंद किया होगा तो करने दो| मैं क्यों मेरा काम नहीं करूँ? उसने तय किया की बादल आयें या न आयें, बारिश हो या नहीं, वह तो अपना काम करेगा| वह निकला और लगा झूमझूम कर नाचने| उस को नाचते देखकर पक्षियों को लगा की हम क्यों अपना काम छोड़ दें| वे भी लगे अपने घोसलों के रखरखाव में| मेंढकों ने सोचा वे भी क्यों अपना काम छोड़ें| वे भी लगे टर्राने| फिर किसान भी सोचने लगा ये सब अपना काम कर रहे हैं, फिर मैं क्यों अपना काम छोड़ दूँ ? वह भी लगा तैयारी करने| ऐसे सब को अपना काम करते देखकर वरुण देवता जो बारिश लाते हैं, उन को शर्म महसूस हुई| मेंढक, मोर जैसे प्राणी भी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं| फिर मैंने अपना काम क्यों छोड़ा है ? वह झपटे| बादलों को संगठित किया और लगे पानी बरसाने| किसान खुशहाल हो गया| सारा गाँव खुशहाल हो गया|  
890

edits

Navigation menu