तेनाली रामा जी - लालची और छली को शिक्षा

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एक बार तेनालीरामा नगर में भ्रमण कर रहे थे। एक बुजुर्ग व्यक्ति बहुत ही उदास बैठा हुआ था। तेनालीरामा ने उस बुजुर्ग व्यक्ति से पूछा आप उदास क्यों बैठे है। बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा कि विजय नगर में लालच और छल बहुत बढ़ गई है। तेनालीरामा को विश्वास नहीं हुआ विजयनगर राज्य में ऐसा नहीं हो सकता । उन्होंने गुप्तचरों से इस विषय में खोजबीन करने को कहा। गुप्तचरों ने इस विषय की पूर्ण जानकारी निकालकर तेनालीरामा को बताया की एक साहूकार है जो सभी से बहुत ही अधिक मूल्य में आवशयकता की वस्तुओ को दे रहा है । उन वस्तुओ में कुछ ना कुछ गलतियाँ निकलकर जुर्माना भी जमा करवा रहा है।

तेनालीरामा ने जब यह बात सुनी उन्हें बहुत बुरा लगा कि विजयनगर में यह बात सही नहीं है। उस साहूकार को उसकी गलती का अनुभव करना आवश्यक है । तेनालीरामा ने उसे ठीक करने के लिए एक युक्ति सोची। तेनालीरामा उस साहूकार के पास गए, और उन्होंने कहा "हमारे भवन में भोज करवाना है, कुछ बर्तनों की आवश्यकता है, मिल जायेगा क्या?" साहूकार ने उत्तर दिया, "क्यों नहीं? अवश्य मिलेगा बताइए कितने बर्तन चाहिए।" तेनालीरामा ने कहा "जी मुझे तीन बड़े पतीलों की आवश्यकता है।" साहूकार ने कहा "प्रतिदिन की २ सोने की मुहरे लगेगी।" तेनालीरामा समझ गए थे की मूल्य बहुत अधिक है परन्तु उस साहूकार को ठीक करने के लिए यह व्यय आवश्यक था। तेनालीरामा ने बर्तन लिए और हाट में गए। वहां उन्होंने एकदम वैसे ही दिखने वाले छोटे बर्तन ख़रीदे। दूसरे दिन तेनालीरामा साहूकार का बर्तन देने गए। तेनालीरामा ने साहूकार से कहा "बंधू आपके बर्तन गर्भावस्था में थे! उन्होंने बर्तनों को जन्म दिया है।"

तेनालीरामा की बातें सुन साहूकार मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ और तेनालीरामा को मूर्ख समझने लगा। "मुझे बर्तन भी मिल गया, पैसे भी मिल गए, इसके अलावा तीन बर्तन और उपहार में मिल गए" । कुछ दिन बीतने के बाद तेनालीरामा दोबारा साहूकार के पास आये। साहूकार से तेनालीरामा ने कहा कि हमारे घर पर कुछ अतिथि आने वाले है और हमें उनके लिए भोजन की व्यवस्था करनी और बर्तन कम पड़ रहे है । हमें कुछ बर्तनों की आवश्कता है।"

साहूकार मन ही मन प्रसन्न हो गया की फिर उसे लाभ होने वाला है। साहूकार ने तेनालीरामा को बर्तन देते समय बताया की बर्तन गर्भावस्था में है, कृपया इनका ध्यान रखियेगा और समय पर लौटा दीजियेगा। कई दिन बीत गये । साहूकार को चिन्ता होने लगी और वह उनके घर पहुच गया। साहूकार ने तेनालीरामा से कहा "मेरे बर्तन कहाँ है? अभी तक आपने मुझे दिया नही।" तेनालीरामा ने कहा, "आप के बर्तन गर्भावस्था मे थे जन्म देते समय उनकी मृत्यु हो गई।"

साहूकार तेनालीरामा पर नाराज होने लगा कि "आप को मेरा बर्तन देना ही होगा आप मुझे मूर्ख नही बना सकते। मैं महाराज से आप की शिकायत करूंगा।"

दोनों महाराज के समक्ष न्याय के लिए पहुचतें है। तेनालीरामा ने महाराज को उस विषय के बारे मे पूर्ण अवगत कराया। महाराज तुरंत साहूकार के उपर नाराज हो गए और कहने लगे "पहली बार तेनालीरामा बर्तन देते है, तब आप मान्य करके रख लेते है की उसमे जीव है। आज जब आप का नुकसान होने लगा तब आप कहते है कि बर्तन में जीव नही होता है।"

महाराज ने साहूकार को जुर्माना लगाया। साहूकार सोचता रह गया कि मेरे लालच की वजह से मुझे बहुत बड़ा नुकसान हो गया। आगे से मैं कभी लालच नहीं करूंगा और किसी को कभी धोखा नही दूंगा। तेनालीरामा की बुद्धिकौशल और राष्ट्रभक्ति से महाराज बहुत प्रसन्न होते है।