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ऋतु का संबंध सूर्य की गति से है। सूर्य क्रान्तिवृत्त में जैसे भ्रमण करते हैं वैसे ही ऋतुओं में बदलाव आ जाता है। ऋतुओं की संख्या ६ है। प्रत्येक ऋतु दो मास के होते हैं। शरत्सम्पात् एवं वसन्तसम्पात् पर ही ६ ऋतुओं का प्रारम्भ निर्भर करता है। वसन्त सम्पात् से वसन्त ऋतु, शरत्सम्पात से शरद ऋतु, सायन मकर से शिशिर ऋतु, सायन कर्क से वर्षा ऋतु प्रारम्भ होती है। अतः सायन मकर या उत्तरायण बिन्दु ही शिशिर ऋतु का प्रारम्भ है। क्रमशः २-२ सौरमास की एक ऋतु होती है।
 
ऋतु का संबंध सूर्य की गति से है। सूर्य क्रान्तिवृत्त में जैसे भ्रमण करते हैं वैसे ही ऋतुओं में बदलाव आ जाता है। ऋतुओं की संख्या ६ है। प्रत्येक ऋतु दो मास के होते हैं। शरत्सम्पात् एवं वसन्तसम्पात् पर ही ६ ऋतुओं का प्रारम्भ निर्भर करता है। वसन्त सम्पात् से वसन्त ऋतु, शरत्सम्पात से शरद ऋतु, सायन मकर से शिशिर ऋतु, सायन कर्क से वर्षा ऋतु प्रारम्भ होती है। अतः सायन मकर या उत्तरायण बिन्दु ही शिशिर ऋतु का प्रारम्भ है। क्रमशः २-२ सौरमास की एक ऋतु होती है।
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इससे कफ-तम, पित्त-सत्त्व, वात-रज की समानता सिद्ध होती है।
 
इससे कफ-तम, पित्त-सत्त्व, वात-रज की समानता सिद्ध होती है।
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=== '''धर्मशास्त्र एवं ऋतुऐं''' ===
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=== धर्मशास्त्र एवं ऋतुऐं ===
 
धर्मशास्त्र की दृष्टि से यज्ञविधान और व्रतविधान- दोनों का ऋतुओं से घनिष्ठ सम्बन्ध है। जैसे-
 
धर्मशास्त्र की दृष्टि से यज्ञविधान और व्रतविधान- दोनों का ऋतुओं से घनिष्ठ सम्बन्ध है। जैसे-
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ब्रह्मपुराण में वसन्त ऋतु में, चैत्रमास में, ब्रह्मा के द्वारा जगत् की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है-<blockquote>चैत्रे मासि जगति ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि। शुक्ले पक्षे समग्रन्तु तदा सूर्योदये सति॥
 
ब्रह्मपुराण में वसन्त ऋतु में, चैत्रमास में, ब्रह्मा के द्वारा जगत् की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है-<blockquote>चैत्रे मासि जगति ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि। शुक्ले पक्षे समग्रन्तु तदा सूर्योदये सति॥
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प्रवर्तयामास तदा कालस्य गणनामपि। ग्रहान् राशीनृतून् मासान्वत्सरान् वत्सराधिपान् ॥</blockquote>भगवद्गीता में महर्षि व्यास ने कुसुमाकर वसन्त के भगवद्रूपता का प्रतिपादन करके प्रधानता का वर्णन किया है-<blockquote>ऋतूनां कुसुमाकरः।</blockquote>वसन्त से संवत्सरारम्भ का क्रम आज भी प्रचलित है। पञ्चाङ्ग का क्रम वसन्त से ही चलता है तथा चैत्र प्रतिपदा को नववर्ष आरम्भ मानते हैं। वसन्त ऋतुराज माना जाता है तथा शरदृतु को आयुर्वेदशास्त्र में वैद्यों की माता माना गया है-<blockquote>वैद्यानां शारदी माता पिता तु कुसुमाकरः।</blockquote>
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प्रवर्तयामास तदा कालस्य गणनामपि। ग्रहान् राशीनृतून् मासान्वत्सरान् वत्सराधिपान् ॥</blockquote>भगवद्गीता में महर्षि व्यास ने कुसुमाकर वसन्त के भगवद्रूपता का प्रतिपादन करके प्रधानता का वर्णन किया है-<blockquote>ऋतूनां कुसुमाकरः।</blockquote>वसन्त से संवत्सरारम्भ का क्रम आज भी प्रचलित है। पञ्चाङ्ग का क्रम वसन्त से ही चलता है तथा चैत्र प्रतिपदा को नववर्ष आरम्भ मानते हैं। वसन्त ऋतुराज माना जाता है तथा शरदृतु को आयुर्वेदशास्त्र में वैद्यों की माता माना गया है-<blockquote>वैद्यानां शारदी माता पिता तु कुसुमाकरः।</blockquote>शतपथ ब्राह्मण में ऋतु के संबंध में इस प्रकार लिखा है- <blockquote>वसंतो ग्रीष्मो वर्षाः। ते देवा ऋतवः। शरद्धेमंतः शिशिरस्ते पितरो स(सूर्यः) यत्रोदगावर्तते। देवेषु तर्हि भवति यत्र दक्षिणावर्तते पितृषु तर्हि भवति॥(शत० ब्रा०२/१/३)</blockquote>'''अर्थ-''' वसंत, ग्रीष्म, वर्षा ये देव - ऋतु में है। शरद, हेमंत और शिशिर ये पितर -ऋतु में हैं। जब उत्तर की ओर सूर्य रहता है तो ऋतुएँ देवों में गिनी जाती है। जब दक्षिण की ओर रहता है तो पितरों में।
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इससे जान पडता है कि शतपथ ब्राह्मण के अनुसार उत्तरायण तब होता था जब सूर्योदय पूर्व-बिन्दु से उत्तर की हट कर होता था।
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तैत्तिरीय में केवल इतना ही है कि ६ महीने तक सूर्य उत्तर जाता रहता है और ६ महीने तक दक्षिण-<blockquote>तस्मादादित्यः षण्मासो दक्षिणेनैति षडुत्तरेण॥ (तै०सं० ६, ५, ३)</blockquote>'''अर्थ-''' इसलिए आदित्य (सूर्य) छः मास दक्षिणायन रहता है और छः मास उत्तरायण।
    
== उद्धरण॥ References ==
 
== उद्धरण॥ References ==
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<references />
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[[Category:Jyotisha]]

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