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== परिभाषा ==
 
== परिभाषा ==
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जिस स्कन्ध में सभी प्रकार की गणितीय प्रक्रिया के साथ उपपत्तियों का समावेश है, वह सिद्धान्त स्कन्ध है। ग्रह, नक्षत्र एवं तारों की स्थिति आदि निरूपण में गणितशास्त्र के मूल सिद्धान्तों का उद्भव एवं विकास हुआ। त्रुट्यादि से प्रलयकाल पर्यन्त की गई काल गणना जिस स्कन्ध में हो उसे सिद्धान्त स्कन्ध कहते हैं।
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जिस स्कन्ध में सभी प्रकार की गणितीय प्रक्रिया के साथ उपपत्तियों का समावेश है, वह सिद्धान्त स्कन्ध है। ग्रह, नक्षत्र एवं तारों की स्थिति आदि निरूपण में गणितशास्त्र के मूल सिद्धान्तों का उद्भव एवं विकास हुआ। त्रुट्यादि से प्रलयकाल पर्यन्त की गई काल गणना जिस स्कन्ध में हो उसे सिद्धान्त स्कन्ध कहते हैं। सिद्धान्तज्योतिष को परिभाषित करते हुये भास्कराचार्य जी ने कहा है-<ref>प्रो० रामचन्द्र पाण्डेय, संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास सिद्धान्तज्योतिष, सन् २०१२, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ (पृ०३७७)।</ref><blockquote>त्रुट्यादिप्रलयान्तकालकलना-मानप्रभेदः क्रमाच्चारश्च घुसदां द्विधा च गणितं प्रश्नास्तथा सोत्तराः।भूधिष्णग्रहसंस्थितेश्च कथनं यन्त्रादि यत्रोच्यते सिद्धान्तः स उदाहृतोऽत्र गणितस्कन्धप्रबन्धे बुधैः॥ (सिद्धान्तशिरोमणि, गणिताध्याय, श्लो. ६)</blockquote>जहाँ त्रुटि (काल की लघुतम इकाई) से लेकर प्रलयान्त काल तक की काल गणना की गई हो, कालमानों के सौर-सावन-नाक्षत्र आदि भेदों का निरूपण किया गया हो, ग्रहों की मार्गवक्र-शीघ्र-मन्द आदि गतियो का निरूपण हो, अंक (पाटी) गणित, एवं बीजगणित दोनों गणित विधाओं का विवेचन किया गया हो, उत्तर सहित प्रश्नों का विवेचन हो, पृथ्वी की स्थिति, स्वरूप एवं गति का निरूपण हो, ग्रहों की कक्षा क्रम एवं वेधोपयोगी यन्त्रों का जहाँ वर्णन किया गया हो उसे सिद्धान्त ज्योतिष कहा गया है।
 
== सिद्धान्त ज्योतिष के भेद ==
 
== सिद्धान्त ज्योतिष के भेद ==
 
सिद्धान्त स्कन्धको गणित स्कन्धके नामसे भी जाना जाता है। सूक्ष्म-विभाजन की दृष्टिसे गणित स्कन्धके भी पुनः तीन विभाग माने जाते हैं जो कि - प्रथम सिद्धान्त, द्वितीय तन्त्र और तृतीय करण रूप में प्रतिष्ठित हैं।<ref>प्रो० श्रीचन्द्रमौलीजी उपाध्याय, ज्योतिषशास्त्रका सामान्य परिचय, कल्याण- ज्योतिषतत्त्वांक, सन् २०१४, गोरखपुर गीताप्रेस (पृ० १८४)।</ref>
 
सिद्धान्त स्कन्धको गणित स्कन्धके नामसे भी जाना जाता है। सूक्ष्म-विभाजन की दृष्टिसे गणित स्कन्धके भी पुनः तीन विभाग माने जाते हैं जो कि - प्रथम सिद्धान्त, द्वितीय तन्त्र और तृतीय करण रूप में प्रतिष्ठित हैं।<ref>प्रो० श्रीचन्द्रमौलीजी उपाध्याय, ज्योतिषशास्त्रका सामान्य परिचय, कल्याण- ज्योतिषतत्त्वांक, सन् २०१४, गोरखपुर गीताप्रेस (पृ० १८४)।</ref>
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