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== प्रस्तावना ==
 
== प्रस्तावना ==
वर्तमान में भारत में दर्जनों भाषाएँ बोली जातीं हैं। ऐसा कहते हैं कि ५ कोस पर पानी और दस कोस पर बानी (वाणी) बदल जाती है। इस तरह बोली भाषाएं तो शायद हजारों की संख्या में होंगी। भाषाओं की अनेकता और विविधता के कारण संपर्क भाषा की समस्या भी बहुत जटिल हो गयी है। भाषाओं के अनुसार प्रान्तों के निर्माण के कारण कुछ सुविधा तो हुई, लेकिन इस के साथ ही भाषिक अस्मिताओं के झगड़े भी शुरू हो गए हैं। राष्ट्रीयता की भावना की कमी के कारण ये भाषिक अस्मिताएँ दो पड़ोसी प्रान्तों को एक दूसरे को शत्रु के रूप में खडा कर रहीं हैं। इस सन्दर्भ में धार्मिक (भारतीय) भाषा दृष्टि की समझ और क्रियान्वयन महत्वपूर्ण है। आगे हम अब भाषा के विषय में दो तरह से धार्मिक (भारतीय) दृष्टि का विचार करेंगे। पहला है दीर्घकालीन और दूसरा है वर्तमानकालीन परिस्थितियों से सम्बंधित।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड २, अध्याय ३०, लेखक - दिलीप केलकर</ref>  
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वर्तमान में भारत में दर्जनों भाषाएँ बोली जातीं हैं। ऐसा कहते हैं कि ५ कोस पर पानी और दस कोस पर बानी (वाणी) बदल जाती है। इस तरह बोली भाषाएं तो शायद हजारों की संख्या में होंगी। भाषाओं की अनेकता और विविधता के कारण संपर्क भाषा की समस्या भी बहुत जटिल हो गयी है। भाषाओं के अनुसार प्रान्तों के निर्माण के कारण कुछ सुविधा तो हुई, लेकिन इस के साथ ही भाषिक अस्मिताओं के झगड़े भी आरम्भ हो गए हैं। राष्ट्रीयता की भावना की कमी के कारण ये भाषिक अस्मिताएँ दो पड़ोसी प्रान्तों को एक दूसरे को शत्रु के रूप में खडा कर रहीं हैं। इस सन्दर्भ में धार्मिक (भारतीय) भाषा दृष्टि की समझ और क्रियान्वयन महत्वपूर्ण है। आगे हम अब भाषा के विषय में दो तरह से धार्मिक (भारतीय) दृष्टि का विचार करेंगे। पहला है दीर्घकालीन और दूसरा है वर्तमानकालीन परिस्थितियों से सम्बंधित।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड २, अध्याय ३०, लेखक - दिलीप केलकर</ref>  
    
== भाषा विकास ==
 
== भाषा विकास ==
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# भारतीय / प्रांतीय भाषाओं को सरकारी व्यवहार की और न्यायालयों की भाषा बनाना । इस हेतु सभी राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना होगा। दो भिन्नभाषी प्रांतों का परस्पर व्यवहार भी अंग्रेजी की जगह हिंदी में चलाना होगा। हमारे देश की सभी भाषाएं 'राष्ट्रभाषाएं' है। अन्य देश छोटे होने से, छोटे देशों की 'राष्ट्रभाषा' एक होना स्वाभाविक है। हमारा देश बडा है। इसलिये हमारी १८ राष्ट्रभाषाएं है। हिंदी और तमिल या तेलुगु या मराठी या पंजाबी सभी भाषाएं समान है । सर्वसहमती से किसी भी एक राष्ट्रीय भाषा को राष्ट्र की सम्पर्क भाषा बनाने के प्रयास करने चाहिये। प्राचीन काल में संस्कृत संपर्क भाषा थी। हम निश्चय करें तो वर्तमान में भी संस्कृत में संपर्क भाषा बनने की सामर्थ्य है।  
 
# भारतीय / प्रांतीय भाषाओं को सरकारी व्यवहार की और न्यायालयों की भाषा बनाना । इस हेतु सभी राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना होगा। दो भिन्नभाषी प्रांतों का परस्पर व्यवहार भी अंग्रेजी की जगह हिंदी में चलाना होगा। हमारे देश की सभी भाषाएं 'राष्ट्रभाषाएं' है। अन्य देश छोटे होने से, छोटे देशों की 'राष्ट्रभाषा' एक होना स्वाभाविक है। हमारा देश बडा है। इसलिये हमारी १८ राष्ट्रभाषाएं है। हिंदी और तमिल या तेलुगु या मराठी या पंजाबी सभी भाषाएं समान है । सर्वसहमती से किसी भी एक राष्ट्रीय भाषा को राष्ट्र की सम्पर्क भाषा बनाने के प्रयास करने चाहिये। प्राचीन काल में संस्कृत संपर्क भाषा थी। हम निश्चय करें तो वर्तमान में भी संस्कृत में संपर्क भाषा बनने की सामर्थ्य है।  
 
# विश्वभर की सभी भाषाओं में उपलब्ध भद्र ज्ञान के ग्रंथों का धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में अनुवाद करने हेतु राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक एक विभाग का निर्माण जिसका उद्देश्य ही ‘भारतीय भाषाओं को वैविध्य की दृष्टिसे भी समृद्ध बनाना’ होगा। इस विभाग का काम युद्धस्तर पर चलाना होगा। विश्व का लिखित अलिखित भद्र ज्ञान धार्मिक (भारतीय) भाषाओं मे उपलब्ध कराना होगा।  
 
# विश्वभर की सभी भाषाओं में उपलब्ध भद्र ज्ञान के ग्रंथों का धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में अनुवाद करने हेतु राष्ट्रीय स्तर से लेकर जिला स्तर तक एक विभाग का निर्माण जिसका उद्देश्य ही ‘भारतीय भाषाओं को वैविध्य की दृष्टिसे भी समृद्ध बनाना’ होगा। इस विभाग का काम युद्धस्तर पर चलाना होगा। विश्व का लिखित अलिखित भद्र ज्ञान धार्मिक (भारतीय) भाषाओं मे उपलब्ध कराना होगा।  
# प्रगत पाठयक्रमों का अध्ययन-अध्यापन धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में, विशेषत: शुरू में हिंदी में और फिर अन्य भाषाओं में प्रारंभ करना होगा। इस हेतु प्रगत पाठयक्रमों के लिये उपयुक्त तकनीकी शब्द निर्माण का काम हमारी राजभाषा प्रसार समिती कर रही थी। उसे फिर गति और शक्ति देनी होगी। अंग्रेजी मे सिखाया जानेवाला ५ वर्ष का अभियांत्रिकी का पाठयक्रम अपनी भाषा में सीखने के लिये बच्चों को २/२.५ वर्ष पर्याप्त होते है। अपनी भाषा में प्रगत पाठयक्रम लाने से बच्चों के यौवन के २/२.५ वर्ष वर्ष व्यर्थ जाने से बच जाएंगे। देश के स्तर पर हमारे करोडों युवक वर्षों का आज होनेवाला अपव्यय हम टाल सकेंगे। इस हेतु प्रगत पाठयक्रम अपनी भाषा मे लाने का काम अविलम्ब करना होगा।  
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# प्रगत पाठयक्रमों का अध्ययन-अध्यापन धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में, विशेषत: आरम्भ में हिंदी में और फिर अन्य भाषाओं में प्रारंभ करना होगा। इस हेतु प्रगत पाठयक्रमों के लिये उपयुक्त तकनीकी शब्द निर्माण का काम हमारी राजभाषा प्रसार समिती कर रही थी। उसे फिर गति और शक्ति देनी होगी। अंग्रेजी मे सिखाया जानेवाला ५ वर्ष का अभियांत्रिकी का पाठयक्रम अपनी भाषा में सीखने के लिये बच्चों को २/२.५ वर्ष पर्याप्त होते है। अपनी भाषा में प्रगत पाठयक्रम लाने से बच्चों के यौवन के २/२.५ वर्ष वर्ष व्यर्थ जाने से बच जाएंगे। देश के स्तर पर हमारे करोडों युवक वर्षों का आज होनेवाला अपव्यय हम टाल सकेंगे। इस हेतु प्रगत पाठयक्रम अपनी भाषा मे लाने का काम अविलम्ब करना होगा।  
 
# तत्वज्ञान, समाजशास्त्र, न्यायशास्त्र, धर्मशास्त्र, राज्यशास्त्र, नीतिशास्त्र जैसे शास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, गृहनिर्माण शास्त्र, व्यवस्थापन शास्त्र, जल-प्रबंधन शास्त्र, कण-भौतिकी, रसायन, अणू-विज्ञान आदि भिन्न भिन्न विषयों के संबंध में धार्मिक (भारतीय) दृष्टिकोणपर आधारित साहित्य धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में विश्व के सम्मुख शक्ति, व्याप्ति और गति के साथ प्रस्तुत करना।  
 
# तत्वज्ञान, समाजशास्त्र, न्यायशास्त्र, धर्मशास्त्र, राज्यशास्त्र, नीतिशास्त्र जैसे शास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, गृहनिर्माण शास्त्र, व्यवस्थापन शास्त्र, जल-प्रबंधन शास्त्र, कण-भौतिकी, रसायन, अणू-विज्ञान आदि भिन्न भिन्न विषयों के संबंध में धार्मिक (भारतीय) दृष्टिकोणपर आधारित साहित्य धार्मिक (भारतीय) भाषाओं में विश्व के सम्मुख शक्ति, व्याप्ति और गति के साथ प्रस्तुत करना।  
 
# संस्कृत मे उपलब्ध ग्रंथों में प्रतिपादित विषयों की वर्तमान काल के सापेक्ष पुनर्प्रस्तुति करना। इससे विश्वकल्याण की दृष्टि हमें प्राप्त होगी। चराचर के साथ एकात्मता की भावना के आधारपर विकसित भिन्न भिन्न विषयों के ज्ञान का अगाध सागर हम विश्व के सामने प्रस्तुत कर सकेंगे।  
 
# संस्कृत मे उपलब्ध ग्रंथों में प्रतिपादित विषयों की वर्तमान काल के सापेक्ष पुनर्प्रस्तुति करना। इससे विश्वकल्याण की दृष्टि हमें प्राप्त होगी। चराचर के साथ एकात्मता की भावना के आधारपर विकसित भिन्न भिन्न विषयों के ज्ञान का अगाध सागर हम विश्व के सामने प्रस्तुत कर सकेंगे।  

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