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शिक्षा ऊपर बताये गये हैं ऐसे अर्थों में भारतीय होनी चाहिये कि नहीं ऐसा यदि पूछा जाय तो लोग बडे असमंजस में पड जायेंगे । उत्तर देते नहीं बनेगा।
 
शिक्षा ऊपर बताये गये हैं ऐसे अर्थों में भारतीय होनी चाहिये कि नहीं ऐसा यदि पूछा जाय तो लोग बडे असमंजस में पड जायेंगे । उत्तर देते नहीं बनेगा।
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आज के जमाने में यह नहीं चलेगा
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==== आज के जमाने में यह नहीं चलेगा ====
 
   
एक ओर तो आज भी भारतीय अन्तर्मन में इन सारी बातों के लिये प्रेम है, आकर्षण है और सुप्त इच्छा है कि यह सब ऐसा ही होना चाहिये । परन्तु व्यावहारिक धरातल पर तो यह सब रम्य स्वप्न जैसा ही लगता है। एक ही बात मन में उठती है कि यह सम्भव ही नहीं है, आज का जमाना अलग है, उसमें यह सब नहीं चलता।
 
एक ओर तो आज भी भारतीय अन्तर्मन में इन सारी बातों के लिये प्रेम है, आकर्षण है और सुप्त इच्छा है कि यह सब ऐसा ही होना चाहिये । परन्तु व्यावहारिक धरातल पर तो यह सब रम्य स्वप्न जैसा ही लगता है। एक ही बात मन में उठती है कि यह सम्भव ही नहीं है, आज का जमाना अलग है, उसमें यह सब नहीं चलता।
    
आज पैसे का बोलबाला है। कोई मुफ्त में पढायेगा नहीं और मुफ्त में मिलने वाली शिक्षा कोई लेगा नहीं ।
 
आज पैसे का बोलबाला है। कोई मुफ्त में पढायेगा नहीं और मुफ्त में मिलने वाली शिक्षा कोई लेगा नहीं ।
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मुफ्त में मिलनेवाली वस्तु का कोई मूल्य नहीं होता।
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आज शिक्षक सम्माननीय नहीं रहा है। वह पैसे के लिये ही तो पढाता है। उसे विद्यार्थी की ही चिन्ता नहीं है तो विद्या की या देश की कैसे होगी ? यदि बन्धन नहीं है तो वह पढायेगा ही नहीं। बन्धन हैं तब भी तो वह सही नीयत नहीं रखता, फिर मुक्त कर देने से तो वह क्या नहीं करेगा ? इसलिये सरकारी नियन्त्रण तो अनिवार्य है, नहीं रहा तो सब अराजक हो जायेगा।
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धर्म की और मुक्ति की तो बात ही बेमानी है । धर्म का नाम लेते ही साम्प्रदायिकता का लेबल चिपक जाता है और हजार प्रकार की परेशानियाँ निर्माण हो जाती है। आज के धर्माचार्य, साधु संन्यासी सब भोंदूगीरी ही तो कर रहे हैं। यह जमाना विज्ञान का है। विज्ञान के जमाने में वेद, उपनिषद पढाना बुद्धिमानी नहीं है । दुनिया आगे बढ़ रही है और हम पीछे जाने की बात कर रहे हैं।
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आज अंग्रेजी सीखनी चाहिये, कम्प्यूटर सीखना चाहिये, मेनेजमेण्ट सिखना चाहिये, टेक्नोलोजी सीखनी चाहिये । भारत को विश्व में स्थान मिलना चाहिये और उसे प्राप्त करने के लिये इन सारे विषयों की आवश्यकता है। वेद, उपनिषद सीखने के लिये संस्कृत सीखनी पडेगी। संस्कृत अब 'आउट ऑफ डेट' है। अंग्रेजी ने विश्वभाषा का स्थान ले लिया है।
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भारत ने अमेरिका में जाकर अपना स्थान बनाना चाहिये और प्रतिष्ठा प्राप्त करनी चाहिये । भारत के लोग बुद्धिमान हैं, कर्तृत्ववान हैं, विश्वमानकों पर खरे उतरने वाले हैं। उन्हें इस दिशा में पुरुषार्थ करना चाहिये । इसके लिये अंग्रेजी, विज्ञान तथा कम्प्यूटर पर प्रभुत्व प्राप्त करना चाहिये । हमें आधुनिक बनना चाहिये ।
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अतः भारतीयता की नहीं, वैश्विकता की आवश्यकता है। प्रयास उसे प्राप्त करने हेतु होने चाहिये ।
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इस प्रकार भारतीयता के सन्दर्भ में आशंका और अविश्वास का वातावरण चारों और फैला हुआ है। बात बहुत कठिन है, जटिल है।
    
कर्तव्य का विचार प्रथम करना है, भोग और सुविधा के बारे में अपने आपको अन्त में रखना है। इस तथ्य का स्वीकार करना तप का प्रथम चरण है। तप त्याग की अपेक्षा करता है । वर्तमान स्थिति को देखते हुए प्रथम त्याग सम्मान और प्रतिष्ठा का करना होगा । आज अनुयायिओं की ओर से जो सम्मान मिलता है और उसके कारण जो प्रतिष्ठा मिलती है वह हमें तप नहीं करने देती। इन दो बातों के लिये सिद्धता करेंगे तो आगे के तप के लिये भी सिद्धता होगी। धर्माचार्यों को आज बौद्धिक तप की बहुत आवश्यकता है। इस तप के मुख्य आयाम इस प्रकार
 
कर्तव्य का विचार प्रथम करना है, भोग और सुविधा के बारे में अपने आपको अन्त में रखना है। इस तथ्य का स्वीकार करना तप का प्रथम चरण है। तप त्याग की अपेक्षा करता है । वर्तमान स्थिति को देखते हुए प्रथम त्याग सम्मान और प्रतिष्ठा का करना होगा । आज अनुयायिओं की ओर से जो सम्मान मिलता है और उसके कारण जो प्रतिष्ठा मिलती है वह हमें तप नहीं करने देती। इन दो बातों के लिये सिद्धता करेंगे तो आगे के तप के लिये भी सिद्धता होगी। धर्माचार्यों को आज बौद्धिक तप की बहुत आवश्यकता है। इस तप के मुख्य आयाम इस प्रकार
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