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इसके लिये नियमित दिनचर्या, उचित आहार और व्यायाम करना ही होता है, स्वाध्याय और सत्संग करना होता है, श्रम करना होता है, विभिन्न प्रकार के काम करने होते हैं, सेवा करनी होती है। मन को बलवान बनाने हेतु __ प्राणायाम और ध्यान करना होता है। बुद्धि को तेजस्वी बनाने हेतु वाचन, चिन्तन, मनन करना होता है। ये तो प्रारम्भिक बाते हैं और छोटी आयु में निग्रहपूर्वक करनी होती है। छोटी आयु में मातापिता और शिक्षक यह सब _करवाते हैं। अतः उनकी सेवा और आज्ञापालन भी करना होता है। बडी आयु में अनेक काम जिम्मेदारीपूर्वक करने होते हैं। शास्त्रग्रन्थों का वाचन और सन्तों का उपदेश श्रवण करना होता है। तत्त्व के प्रति निष्ठा और सिद्धान्तपूर्वक जीना होता है। तपश्चर्या करनी होती है। पश्चिम स्वैर आचरण को जीवन का लक्ष्य मानता है, मन में आये वह करने को स्वतन्त्रता मानता है परन्तु भारत में संयम को ही महत्त्वपूर्ण माना है।
 
इसके लिये नियमित दिनचर्या, उचित आहार और व्यायाम करना ही होता है, स्वाध्याय और सत्संग करना होता है, श्रम करना होता है, विभिन्न प्रकार के काम करने होते हैं, सेवा करनी होती है। मन को बलवान बनाने हेतु __ प्राणायाम और ध्यान करना होता है। बुद्धि को तेजस्वी बनाने हेतु वाचन, चिन्तन, मनन करना होता है। ये तो प्रारम्भिक बाते हैं और छोटी आयु में निग्रहपूर्वक करनी होती है। छोटी आयु में मातापिता और शिक्षक यह सब _करवाते हैं। अतः उनकी सेवा और आज्ञापालन भी करना होता है। बडी आयु में अनेक काम जिम्मेदारीपूर्वक करने होते हैं। शास्त्रग्रन्थों का वाचन और सन्तों का उपदेश श्रवण करना होता है। तत्त्व के प्रति निष्ठा और सिद्धान्तपूर्वक जीना होता है। तपश्चर्या करनी होती है। पश्चिम स्वैर आचरण को जीवन का लक्ष्य मानता है, मन में आये वह करने को स्वतन्त्रता मानता है परन्तु भारत में संयम को ही महत्त्वपूर्ण माना है।
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इसलिये व्यक्ति को अपने आपके लिये मर्यादायें निश्चित करना चाहिये, अपने आपको नियमों में बाँधना चाहिये । मन पर नियन्त्रण हेतु अनेक प्रकार से प्रयास करने चाहिये । भारत में इसी हेतु से अनेक प्रकार के व्रत, उपवास, नियम, तीर्थयात्रायें, अनुष्ठान, जप, तप, त्याग, यज्ञ, दान आदि का परामर्श दिया जाता है। उदाहरण के लिये अनेक लोग बिना स्नान किये कुछ खातेपीते नहीं, अपनी इच्छाओं को संयमित कर दान करते हैं, अपनी सुविधाओं को एक ओर रखकर किसी रुग्ण की परिचर्या
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इसलिये व्यक्ति को अपने आपके लिये मर्यादायें निश्चित करना चाहिये, अपने आपको नियमों में बाँधना चाहिये । मन पर नियन्त्रण हेतु अनेक प्रकार से प्रयास करने चाहिये । भारत में इसी हेतु से अनेक प्रकार के व्रत, उपवास, नियम, तीर्थयात्रायें, अनुष्ठान, जप, तप, त्याग, यज्ञ, दान आदि का परामर्श दिया जाता है। उदाहरण के लिये अनेक लोग बिना स्नान किये कुछ खातेपीते नहीं, अपनी इच्छाओं को संयमित कर दान करते हैं, अपनी सुविधाओं को एक ओर रखकर किसी रुग्ण की परिचर्या करते हैं, संन्यासियों की सेवा करते हैं, जप करते हैं । यह सब अपने आपकों नियमन में रखने हेतु होता है । स्वैराचार से शक्तियों का क्षरण होता है, संयम से शक्ति का संचय होता है। निकृष्ट प्रकार के मनोरंजन से रसवृत्ति का ह्रास होता है, उत्तम प्रकार के मनोरंजन से सौन्दर्यबोध और आनन्द की अनुभूति का स्तर भी उच्च होता है । शुद्ध और शिष्ट भाषा के अभ्यास से आभिजात्य प्राप्त होता है। मर्यादापूर्ण और सुरुचिपूर्ण वेश से भी मनोभावों पर विधायक परिणाम होता है।
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इस दृष्टि से भारत की जीवनव्यवस्था में हर व्यक्ति के लिये चार आश्रमों की व्यवस्था दी गई है। ये हैं ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और संन्यस्ताश्रम । इनमें चौथा संन्यस्ताश्रम सबके लिये अनिवार्य नहीं है, प्रथम तीन सबके लिये हैं।
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ब्रह्मचर्य में सभी उपभोगों का निषेध, गृहस्थ में संयमित उपभोग, वानप्रस्थ में उपभोगों का त्याग और संन्यस्त में अपनी समस्त पहचान का त्याग श्रेष्ठ जीवन का लक्षण है। अर्थात् अच्छे संस्कारवान मनुष्य का जीवन त्यागप्रधान ही होता है। त्यागपूर्वक उपभोग करो ऐसा ईशावास्य उपनिषद का कथन है । त्यागपूर्वक उपभोग की गुणवत्ता ही कुछ और होती है । त्यागपूर्वक उपभोग आनन्द का स्रोत होता है।
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पश्चिम के प्रभाव के कारण भारत को आज इस बात का विस्मरण हो गया है। हम भी धीरे धीरे सर्व प्रकार का नियमन छोड रहे हैं । खानपान, वेशभूषा, मनोरंजन आदि में स्वैर हो रहे हैं । यह विकास नहीं है, हास है।
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अतः भारत के लोगों के व्यक्तिगत जीवन में नियम, संयम, सदाचार, दया, क्षमा, उदारता, स्नेह, मैत्रीभाव आदि आयें इसलिये प्रयास होने की आवश्यकता है। धर्मशिक्षा का यह प्रमुख अंग है। घर में, विद्यालय में और समाज में मातापिता, शिक्षक और सन्तमहात्मा लोगों को इसकी, शिक्षा दें ऐसा आग्रह होना चाहिये । वास्तव में ये तीनों होते ही हैं ऐसी शिक्षा देने के लिये । इन गुणों से युक्त जीवन ही मनुष्य का जीवन है अन्यथा वह पशुजीवन है।
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व्यक्तिजीवन में नियमन कम कठिन हो इसलिये संचार माध्यम और सोशयलमीडिया, टीवी और विज्ञापन पर भारी मात्रा में नियन्त्रण होना आवश्यक है। यह काम शासन कर सकता है । मन को बहकाने वाली सामग्री और स्थितियों से लोगों की रक्षा के उपाय करना भी तो आवश्यक है।
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जीवन के नियमन का सन्देश भारत ही विश्व को दे सकता है।
    
==References==
 
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