Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 146: Line 146:  
अर्थात भगवान ने तो हमारी चारों ओर अद्भुत सुन्दर सृष्टि बनाई है, हमारे जीवन को उन्नत सम्भावनाओं से भर दिया है परन्तु हमें उसके मूल्य का ही पता नहीं है क्योंकि हमने अपने आपको उसके योग्य नहीं बनाया है। इसलिये श्रेष्ठ लोग हमें अपने जीवन को नियमन में ढालने का परामर्श देते हैं।
 
अर्थात भगवान ने तो हमारी चारों ओर अद्भुत सुन्दर सृष्टि बनाई है, हमारे जीवन को उन्नत सम्भावनाओं से भर दिया है परन्तु हमें उसके मूल्य का ही पता नहीं है क्योंकि हमने अपने आपको उसके योग्य नहीं बनाया है। इसलिये श्रेष्ठ लोग हमें अपने जीवन को नियमन में ढालने का परामर्श देते हैं।
   −
पश्चिम हमें स्वैर जीवन जीने के लिये उकसाता है ।
+
पश्चिम हमें स्वैर जीवन जीने के लिये उकसाता है । जीवन कामनाओं की पूर्ति हेतु ही है इसलिये खाओ, पीओ, मौज करो का नारा देता है, परन्तु भारत की मनीषा - हमें नियम संयम से रहकर श्रेष्ठ पद्धति से जीवन का आनन्द लेने का उपदेश देती है। इस प्रकार से श्रेष्ठ आनन्द के उपभोग के लिये शरीर, मन, बुद्धि को नियमन में रखना पड़ता है।
 +
 
 +
इसके लिये नियमित दिनचर्या, उचित आहार और व्यायाम करना ही होता है, स्वाध्याय और सत्संग करना होता है, श्रम करना होता है, विभिन्न प्रकार के काम करने होते हैं, सेवा करनी होती है। मन को बलवान बनाने हेतु __ प्राणायाम और ध्यान करना होता है। बुद्धि को तेजस्वी बनाने हेतु वाचन, चिन्तन, मनन करना होता है। ये तो प्रारम्भिक बाते हैं और छोटी आयु में निग्रहपूर्वक करनी होती है। छोटी आयु में मातापिता और शिक्षक यह सब _करवाते हैं। अतः उनकी सेवा और आज्ञापालन भी करना होता है। बडी आयु में अनेक काम जिम्मेदारीपूर्वक करने होते हैं। शास्त्रग्रन्थों का वाचन और सन्तों का उपदेश श्रवण करना होता है। तत्त्व के प्रति निष्ठा और सिद्धान्तपूर्वक जीना होता है। तपश्चर्या करनी होती है। पश्चिम स्वैर आचरण को जीवन का लक्ष्य मानता है, मन में आये वह करने को स्वतन्त्रता मानता है परन्तु भारत में संयम को ही महत्त्वपूर्ण माना है।
 +
 
 +
इसलिये व्यक्ति को अपने आपके लिये मर्यादायें निश्चित करना चाहिये, अपने आपको नियमों में बाँधना चाहिये । मन पर नियन्त्रण हेतु अनेक प्रकार से प्रयास करने चाहिये । भारत में इसी हेतु से अनेक प्रकार के व्रत, उपवास, नियम, तीर्थयात्रायें, अनुष्ठान, जप, तप, त्याग, यज्ञ, दान आदि का परामर्श दिया जाता है। उदाहरण के लिये अनेक लोग बिना स्नान किये कुछ खातेपीते नहीं, अपनी इच्छाओं को संयमित कर दान करते हैं, अपनी सुविधाओं को एक ओर रखकर किसी रुग्ण की परिचर्या
    
==References==
 
==References==
1,815

edits

Navigation menu