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जीवन के नियमन का सन्देश भारत ही विश्व को दे सकता है।
 
जीवन के नियमन का सन्देश भारत ही विश्व को दे सकता है।
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==== ७. राष्ट्रीय विवेक शक्ति का विकास ====
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जिसमें आत्मविश्वास कम होता है वह दूसरों के अभिप्रायों से जल्दी और अधिक प्रभावित होते हैं। सुभाषित देखिये... <blockquote>पुराणमित्ये व न साधु सर्व</blockquote><blockquote>न चापि काव्य नवमित्यवद्यम् । </blockquote><blockquote>सन्तः परीक्ष्यान्यतरद् भजन्ते</blockquote><blockquote>मूढः परप्रत्ययनेय बुद्धिः ।। </blockquote>अर्थात्
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पुरातन है वह सब अच्छा ही है ऐसा नहीं है, काव्य नवीन है इसलिये उसमें कोई कमी नहीं है ऐसा नहीं है। सन्त लोग पुराना हो या नया अच्छी तरह परीक्षा करके स्वीकार या अस्वीकार करते हैं जबकि मूढ लोग दूसरों की प्रतीति से काम करने की बुद्धि वाले होते हैं।
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इस सुभाषित के पूर्वार्ध की चर्चा करने का अभी सन्दर्भ नहीं है। परप्रत्यय और स्वप्रत्यय की बात है। स्वप्रत्यय का अर्थ है स्वयं की बुद्धि में हुई प्रतीति, साधकबाधक विचार कर स्वयं बनाया हुआ मत, स्वयं का निष्कर्ष । परप्रत्यय का अर्थ है दूसरे की बुद्धि की प्रतीति, दूसरे का मत, दूसरे का निष्कर्ष । दूसरे की प्रतीति से व्यवहार करने वाले मूढ होते हैं अपनी प्रतीति से चलने वाले बुद्धिमान होते हैं।
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भारत का स्वप्रत्यय आज खो गया है। वह पश्चिम
    
==References==
 
==References==
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