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=== अध्याय ४८ ===
 
=== अध्याय ४८ ===
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* '''मनोरंजन''' : अस्थिर, अशान्त, आसक्त, कामपूर्ण मन को अधिक अशान्त, अधिक अस्थिर, अधिक आसक्त, अधिक कामी बनानेवाला, उसी मन को खुश करने हेतु सौन्दर्य और सौन्दर्यबोध को विकृत बना देने वाला तत्त्व पश्चिम के लिये मनोरंजन है तो वास्तिविक विकास के मार्गों को अवरुद्ध कर देता है।  
 
* '''मनोरंजन''' : अस्थिर, अशान्त, आसक्त, कामपूर्ण मन को अधिक अशान्त, अधिक अस्थिर, अधिक आसक्त, अधिक कामी बनानेवाला, उसी मन को खुश करने हेतु सौन्दर्य और सौन्दर्यबोध को विकृत बना देने वाला तत्त्व पश्चिम के लिये मनोरंजन है तो वास्तिविक विकास के मार्गों को अवरुद्ध कर देता है।  
 
* '''समृद्धि''' : दारिद्य, हीनता और विनाश की ओर ले जाने वाला भौतिक पदार्थों का आधिक्य जो प्रथम दूसरों का और अन्त में स्वयं का भी नाश करता है।  
 
* '''समृद्धि''' : दारिद्य, हीनता और विनाश की ओर ले जाने वाला भौतिक पदार्थों का आधिक्य जो प्रथम दूसरों का और अन्त में स्वयं का भी नाश करता है।  
* '''ज्ञान''' : भौतिक जगत के जडतापूर्ण रहस्यों को जानने की और गति, विकास, समृद्धि आदि को प्राप्त करने हेतु जानकारी का प्रयोग करने की शक्ति जो मुक्ति के स्थान पर शक्ति का संचय कर नाश का कारण बनती
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* '''ज्ञान''' : भौतिक जगत के जड़तापूर्ण रहस्यों को जानने की और गति, विकास, समृद्धि आदि को प्राप्त करने हेतु जानकारी का प्रयोग करने की शक्ति जो मुक्ति के स्थान पर शक्ति का संचय कर नाश का कारण बनती
* '''विज्ञान''' : यह एक तात्त्विक मोहजाल से निकली संकल्पना है जिसने सारे चेतनायुक्त अस्तित्वों को जड सिद्ध कर दिया है और जगत को अनिष्टों के जाल में फंसा दिया है।  
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* '''विज्ञान''' : यह एक तात्त्विक मोहजाल से निकली संकल्पना है जिसने सारे चेतनायुक्त अस्तित्वों को जड़ सिद्ध कर दिया है और जगत को अनिष्टों के जाल में फंसा दिया है।  
 
* '''आधुनिकता''' : अत्यन्त आकर्षक लगने वाली यह संकल्पना वास्तव में चर्चसत्ता और राज्यसत्ता के संघर्ष से जन्मी निधार्मिक संकल्पना है जिसमें 'विज्ञान' की भी भूमिका है। भौतिकता, संस्कारहीनता, अमानवीयता आदि का विचित्र मिश्रण है । इसका न कोई सार्थक आधार है न स्वरूप ।
 
* '''आधुनिकता''' : अत्यन्त आकर्षक लगने वाली यह संकल्पना वास्तव में चर्चसत्ता और राज्यसत्ता के संघर्ष से जन्मी निधार्मिक संकल्पना है जिसमें 'विज्ञान' की भी भूमिका है। भौतिकता, संस्कारहीनता, अमानवीयता आदि का विचित्र मिश्रण है । इसका न कोई सार्थक आधार है न स्वरूप ।
 
'''भारत को चाहिये कि इन सभी सुन्दर शब्दों के सही अर्थ विश्व के समक्ष प्रस्तुत करे ।'''
 
'''भारत को चाहिये कि इन सभी सुन्दर शब्दों के सही अर्थ विश्व के समक्ष प्रस्तुत करे ।'''
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'''इसाईयत और हिंसा तथा असहिष्णुता'''
 
'''इसाईयत और हिंसा तथा असहिष्णुता'''
 
* प्रभू ने आधी रात को मिडा दो के सभी पहलौठों ( नवजात बों ) - सिंहासनपर विराजमान फिराऊन के पहलौठों से लेकर बन्दीगृह मे पड़े कैदी के पहलौठे और पुओं के पहलौठों तक - को मार डाला - निर्गमन ग्रंथ १२/२९  
 
* प्रभू ने आधी रात को मिडा दो के सभी पहलौठों ( नवजात बों ) - सिंहासनपर विराजमान फिराऊन के पहलौठों से लेकर बन्दीगृह मे पड़े कैदी के पहलौठे और पुओं के पहलौठों तक - को मार डाला - निर्गमन ग्रंथ १२/२९  
* प्रभू ने लोगों के बीच विषैले सांप भेजे और उनके देश से बहुत से इस्राएली मर गये - गणना ग्रंथ २१/६  
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* प्रभू ने लोगोंं के मध्य विषैले सांप भेजे और उनके देश से बहुत से इस्राएली मर गये - गणना ग्रंथ २१/६  
* प्रभू की ओर से अग्नि आयी और उसने ढाई सौ लोगों (यहूदी) को भस्म कर दिया, जो धूप चढाने आये थे - गणना ग्रंथ १६/३५  
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* प्रभू की ओर से अग्नि आयी और उसने ढाई सौ लोगोंं (यहूदी) को भस्म कर दिया, जो धूप चढाने आये थे - गणना ग्रंथ १६/३५  
 
* इसलिये प्रभू ने इस्राएल में महामारी भेजी । इस्राएल के सत्तर हजार लोग मर गये - पहला इतिहास ग्रंथ २१/१४  
 
* इसलिये प्रभू ने इस्राएल में महामारी भेजी । इस्राएल के सत्तर हजार लोग मर गये - पहला इतिहास ग्रंथ २१/१४  
* बेत-मेमो के कुछ निवासियों ने प्रभू की मंजूषा खोलकर उसके अन्दर झाँका, इसलिये प्रभू ने लोगों में पचास हजार सत्तर मनुष्यों को मार डाला - सॅम्युएल का पहला ग्रंथ ६/१९  
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* बेत-मेमो के कुछ निवासियों ने प्रभू की मंजूषा खोलकर उसके अन्दर झाँका, इसलिये प्रभू ने लोगोंं में पचास हजार सत्तर मनुष्यों को मार डाला - सॅम्युएल का पहला ग्रंथ ६/१९  
 
* जो व्यक्ति प्रभू के नाम को कोसता है, वह मार डाला जाये । सारा समुदाय उसे पत्थर से मार डाले-लेवी ग्रंथ २४/१६  
 
* जो व्यक्ति प्रभू के नाम को कोसता है, वह मार डाला जाये । सारा समुदाय उसे पत्थर से मार डाले-लेवी ग्रंथ २४/१६  
 
* छ : दिन तक काम किया जाये और सातवें दिन तुम विश्राम दिवस मनाओ । वह प्रभू का पवित्र दिन होगा । जो उस दिन काम करेगा उसे प्राणदंड दिया जायेगा - निर्गमन ग्रंथ ३५/२  
 
* छ : दिन तक काम किया जाये और सातवें दिन तुम विश्राम दिवस मनाओ । वह प्रभू का पवित्र दिन होगा । जो उस दिन काम करेगा उसे प्राणदंड दिया जायेगा - निर्गमन ग्रंथ ३५/२  
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==== ६. इसाईयत और स्त्री ====
 
==== ६. इसाईयत और स्त्री ====
 
* उसने (ईश्वरने) स्त्री से यह कहा,' मैं तुम्हारी गर्भावस्था का कष्ट बढाऊंगा और तुम पीडा में सन्तान को जन्म दोगी । तुम वासना के कारण पति में आसक्त होगी और वह तुमपर शासन करेगा - उत्पत्ति ग्रंथ ३/१६  
 
* उसने (ईश्वरने) स्त्री से यह कहा,' मैं तुम्हारी गर्भावस्था का कष्ट बढाऊंगा और तुम पीडा में सन्तान को जन्म दोगी । तुम वासना के कारण पति में आसक्त होगी और वह तुमपर शासन करेगा - उत्पत्ति ग्रंथ ३/१६  
* पुरूष स्त्री से नही बना बल्कि स्त्री पुरूष से बनी - और पुरूष की सृष्टी स्त्री के लिये नहीं हुई बल्कि पुरूष के लिये स्त्री की सृष्टी हुई - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र ११/८,९  
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* पुरूष स्त्री से नही बना बल्कि स्त्री पुरूष से बनी - और पुरूष की सृष्टि स्त्री के लिये नहीं हुई बल्कि पुरूष के लिये स्त्री की सृष्टि हुई - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र ११/८,९  
 
* धर्मशिक्षा के समय स्त्रियाँ अधीनता स्वीकार करते हुवे मौन रहें - मैं नहीं चाहता कि वे शिक्षा दें या पुरुषों पर अधिकार जतायें । वे मौन ही रहें - क्यों कि आदम पहले बना हव्वा बाद में - और आदम बहकावे में नहीं पडा बल्कि हव्वा ने बहकावे में पड़कर अपराध किया - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र ५/११ से १४  
 
* धर्मशिक्षा के समय स्त्रियाँ अधीनता स्वीकार करते हुवे मौन रहें - मैं नहीं चाहता कि वे शिक्षा दें या पुरुषों पर अधिकार जतायें । वे मौन ही रहें - क्यों कि आदम पहले बना हव्वा बाद में - और आदम बहकावे में नहीं पडा बल्कि हव्वा ने बहकावे में पड़कर अपराध किया - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र ५/११ से १४  
 
* जिस तरह कलिसिया मसीह के अधीन रहती है उसी तरह पत्नी को भी सब बातों में पति के अधीन रहना चाहिये - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र ५/२४
 
* जिस तरह कलिसिया मसीह के अधीन रहती है उसी तरह पत्नी को भी सब बातों में पति के अधीन रहना चाहिये - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र ५/२४
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* आप की धर्मसभाओं में भी स्त्रियाँ मौन रहें। उन्हें बोलने की अनुमति नहीं है। वे अपनी अधीनता स्वीकार करें जैसा कि संहिता कहती है कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र १४/३४
 
* आप की धर्मसभाओं में भी स्त्रियाँ मौन रहें। उन्हें बोलने की अनुमति नहीं है। वे अपनी अधीनता स्वीकार करें जैसा कि संहिता कहती है कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र १४/३४
 
- यदि वे किसी बात की जानकारी प्राप्त करना चाहती है तो वे घर में अपने पतियों से पूछे । धर्मसभामें बोलना स्त्री के लिये लज्जा की बात है - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र १४३५  
 
- यदि वे किसी बात की जानकारी प्राप्त करना चाहती है तो वे घर में अपने पतियों से पूछे । धर्मसभामें बोलना स्त्री के लिये लज्जा की बात है - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र १४३५  
* यदि उसने अपराध किया और अपने पति के साथ विश्वासघात किया, तो वह शाप लानेवाला जल, जो याजक उसे पिलाता है, उस में असह्य पीडा उत्पन्न करेगा । स्त्री का पेट फूल जायेगा, उसकी जा घुल जायेंगी और उसका नाम उसके लोगों में अभिशाप्त हो जायेगा -गणना ग्रंथ ५/२७  
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* यदि उसने अपराध किया और अपने पति के साथ विश्वासघात किया, तो वह शाप लानेवाला जल, जो याजक उसे पिलाता है, उस में असह्य पीडा उत्पन्न करेगा । स्त्री का पेट फूल जायेगा, उसकी जा घुल जायेंगी और उसका नाम उसके लोगोंं में अभिशाप्त हो जायेगा -गणना ग्रंथ ५/२७  
 
* यदि प्रभु, तुम्हारा ईश्वर उसे तुम्हारे हवाले करे तो उसका प्रत्येक पुरूष तलवार के घाट उतार दिया जाये - स्त्रियाँ, बच्चे, पू और जो कुछ उस नगर में है - वह सब तुम अपने अधिकार में कर लो और अपने शत्रुओं से लूटे हुए माल का उपभोग करो - विधि विवरण ग्रंथ २०/ १३, १४  
 
* यदि प्रभु, तुम्हारा ईश्वर उसे तुम्हारे हवाले करे तो उसका प्रत्येक पुरूष तलवार के घाट उतार दिया जाये - स्त्रियाँ, बच्चे, पू और जो कुछ उस नगर में है - वह सब तुम अपने अधिकार में कर लो और अपने शत्रुओं से लूटे हुए माल का उपभोग करो - विधि विवरण ग्रंथ २०/ १३, १४  
 
* इसलिये सब लड़कों को मार डालो और उन स्त्रीयों को भी जिनका पुरूष के साथ प्रसंग हवा है, किंतु तुम उन सब कन्याओं को जिनका पुरूषों से प्रसंग नहीं हुवा है अपने लिये जीवित रखो - गणना ग्रंथ ३१/१७,१८  
 
* इसलिये सब लड़कों को मार डालो और उन स्त्रीयों को भी जिनका पुरूष के साथ प्रसंग हवा है, किंतु तुम उन सब कन्याओं को जिनका पुरूषों से प्रसंग नहीं हुवा है अपने लिये जीवित रखो - गणना ग्रंथ ३१/१७,१८  
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* जब कोई आदमी अपनी लडकी को दासी के रूप में बेचे, तो वह दासों की तरह नही छोडी जायेगी  
 
* जब कोई आदमी अपनी लडकी को दासी के रूप में बेचे, तो वह दासों की तरह नही छोडी जायेगी  
 
- - यदि वह अपने स्वामी को पसन्द न आये, जिसने उसे खरीदा है, तो वह उसे बेच सकता है। उसे किसी विदाशी व्यक्ति को न बेचा जाये, क्यों कि यह उसके साथ विश्वासघात होगा - निर्गमन ग्रंथ २१/७,८  
 
- - यदि वह अपने स्वामी को पसन्द न आये, जिसने उसे खरीदा है, तो वह उसे बेच सकता है। उसे किसी विदाशी व्यक्ति को न बेचा जाये, क्यों कि यह उसके साथ विश्वासघात होगा - निर्गमन ग्रंथ २१/७,८  
* न्यायाधिकरण (इन्क्विझिशन) का काम था घोर अत्याचार करना । - - उसने लाखों भाग्यहीन स्त्रियों को जादूगरनिया कहकर आग में झोंक दिया और धर्म के नामपर अनेक प्रकार के लोगों पर कई तरह के अत्याचार किए - बांड रसेल' व्हाय आय ऍम नॉट ए क्रिचियन एड अदर एसेज ऑन रिलीजन' पृष्ठ २४, ७वा संस्करण
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* न्यायाधिकरण (इन्क्विझिशन) का काम था घोर अत्याचार करना । - - उसने लाखों भाग्यहीन स्त्रियों को जादूगरनिया कहकर आग में झोंक दिया और धर्म के नामपर अनेक प्रकार के लोगोंं पर कई तरह के अत्याचार किए - बांड रसेल' व्हाय आय ऍम नॉट ए क्रिचियन एड अदर एसेज ऑन रिलीजन' पृष्ठ २४, ७वा संस्करण
    
==== ७. विश्वकल्याण ====
 
==== ७. विश्वकल्याण ====
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==== १०. मनुस्मृति और स्त्री ====
 
==== १०. मनुस्मृति और स्त्री ====
 
<blockquote>'''परपत्नी त्या स्त्री स्यात् असम्बन्धा च योनितः ।'''</blockquote><blockquote>'''तां ब्रूयात् भवतीत्येवम् सुभगे भगिनीति वा ।।'''  '''२.१२९''' </blockquote><blockquote>जो स्त्री परपत्नी है अथवा योनिसम्बन्ध से सम्बन्धित नहीं है उसे 'भवति', 'सुभगे' अथवा 'भगिनी' ऐसा सम्बोधन करना चाहिये (अर्थात् उससे आदरपूर्वक बात करनी चाहिये )। </blockquote><blockquote>'''उपाध्यायात् दशाचार्यः आचार्याणां शतं पिता । २.१४५''' </blockquote><blockquote>'''सहस्रं तु पितृन् माता गौरवेणाऽतिरिच्यते ॥''' </blockquote><blockquote>उपाध्याय (पैसे लेकर पढाने वाले) से आचार्य का गौरव दसगुना अधिक है, आचार्य से सौ गुना पिता का और पिता से सहस्र गुना माता का गौरव अधिक है। </blockquote><blockquote>'''स्त्रीधनानि तु ये: मोहात् उपजीवन्ति बान्धवाः ।''' </blockquote><blockquote>'''नारी यानानि वस्त्रं वा ते पाणा यान्त्यधोगतिम् ।।३.५२''' </blockquote><blockquote>'''पितृभिः भ्रातृभिश्चैताः पतिभिस्वेदरैस्तथा ।''' </blockquote><blockquote>'''पूज्याः भूषयितव्याश्च बहु कल्याणमिप्सुभिः ।। ३.५५''' </blockquote><blockquote>\अत्यन्त कल्याण चाहने वाले पिता, भाई, पति, देवर आदि ने स्त्री का सम्मान करना चाहिये और आभरण आदि अनेक प्रकार से उसे आभूषित करना चाहिये । </blockquote><blockquote>'''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।''' </blockquote><blockquote>'''यौतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राऽफलाः क्रियाः ।। ३.५६''' </blockquote><blockquote>जहाँ त्रियों का सम्मान किया जाता है वहाँ देवता प्रसन्न होकर रहते हैं । जहाँ उनका सम्मान नहीं होता वहाँ किसी कामकाज का फल नहीं मिलता। </blockquote><blockquote>'''पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने ।''' </blockquote><blockquote>'''रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति ।।''' '''९.३'''</blockquote><blockquote>स्त्री की रक्षा कुमारी अवस्था में पिता, यौवनावस्था में पति और वृद्धावस्थामां पुत्रने करनी चाहिये । स्त्री को असुरक्षित नहीं रखनी चाहिये ।</blockquote>'''अन्य सुभाषित'''<blockquote>'''न गृहं गृहमित्याहुः गृहिणी गृहमुच्यते ।'''</blockquote><blockquote>'''गृहं तु गृहिणीहीन कान्तारादतिरिच्यते ॥''' </blockquote>मकान को घर नहीं कहते, गृहिणी को ही गृह कहते हैं। बिना गृहिणी के घर बीहड जंगल से भी। अधिक बीहड होता है।
 
<blockquote>'''परपत्नी त्या स्त्री स्यात् असम्बन्धा च योनितः ।'''</blockquote><blockquote>'''तां ब्रूयात् भवतीत्येवम् सुभगे भगिनीति वा ।।'''  '''२.१२९''' </blockquote><blockquote>जो स्त्री परपत्नी है अथवा योनिसम्बन्ध से सम्बन्धित नहीं है उसे 'भवति', 'सुभगे' अथवा 'भगिनी' ऐसा सम्बोधन करना चाहिये (अर्थात् उससे आदरपूर्वक बात करनी चाहिये )। </blockquote><blockquote>'''उपाध्यायात् दशाचार्यः आचार्याणां शतं पिता । २.१४५''' </blockquote><blockquote>'''सहस्रं तु पितृन् माता गौरवेणाऽतिरिच्यते ॥''' </blockquote><blockquote>उपाध्याय (पैसे लेकर पढाने वाले) से आचार्य का गौरव दसगुना अधिक है, आचार्य से सौ गुना पिता का और पिता से सहस्र गुना माता का गौरव अधिक है। </blockquote><blockquote>'''स्त्रीधनानि तु ये: मोहात् उपजीवन्ति बान्धवाः ।''' </blockquote><blockquote>'''नारी यानानि वस्त्रं वा ते पाणा यान्त्यधोगतिम् ।।३.५२''' </blockquote><blockquote>'''पितृभिः भ्रातृभिश्चैताः पतिभिस्वेदरैस्तथा ।''' </blockquote><blockquote>'''पूज्याः भूषयितव्याश्च बहु कल्याणमिप्सुभिः ।। ३.५५''' </blockquote><blockquote>\अत्यन्त कल्याण चाहने वाले पिता, भाई, पति, देवर आदि ने स्त्री का सम्मान करना चाहिये और आभरण आदि अनेक प्रकार से उसे आभूषित करना चाहिये । </blockquote><blockquote>'''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।''' </blockquote><blockquote>'''यौतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राऽफलाः क्रियाः ।। ३.५६''' </blockquote><blockquote>जहाँ त्रियों का सम्मान किया जाता है वहाँ देवता प्रसन्न होकर रहते हैं । जहाँ उनका सम्मान नहीं होता वहाँ किसी कामकाज का फल नहीं मिलता। </blockquote><blockquote>'''पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने ।''' </blockquote><blockquote>'''रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति ।।''' '''९.३'''</blockquote><blockquote>स्त्री की रक्षा कुमारी अवस्था में पिता, यौवनावस्था में पति और वृद्धावस्थामां पुत्रने करनी चाहिये । स्त्री को असुरक्षित नहीं रखनी चाहिये ।</blockquote>'''अन्य सुभाषित'''<blockquote>'''न गृहं गृहमित्याहुः गृहिणी गृहमुच्यते ।'''</blockquote><blockquote>'''गृहं तु गृहिणीहीन कान्तारादतिरिच्यते ॥''' </blockquote>मकान को घर नहीं कहते, गृहिणी को ही गृह कहते हैं। बिना गृहिणी के घर बीहड जंगल से भी। अधिक बीहड होता है।
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==References==
 
==References==
<references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
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<references />धार्मिक शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण धार्मिक शिक्षा (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
[[Category:भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा]]
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[[Category:धार्मिक शिक्षा ग्रंथमाला 5: वैश्विक संकटों का निवारण धार्मिक शिक्षा]]
 
[[Category:Education Series]]
 
[[Category:Education Series]]
[[Category:Bhartiya Shiksha Granthmala(भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला)]]
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[[Category:Dharmik Shiksha Granthmala(धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला)]]

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