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* सन्तों को चाहिये कि वे कृतिशील, समर्थ, ज्ञानयुक्त सज्जनता का उपदेश दें।
 
* सन्तों को चाहिये कि वे कृतिशील, समर्थ, ज्ञानयुक्त सज्जनता का उपदेश दें।
 
* बलवानों को चाहिये कि वे दुर्बलों की रक्षा और आततायी को दण्ड दें, समाज को निर्वीर्य न बनने दें, बल का प्रयोग कर अन्याय न करें ।
 
* बलवानों को चाहिये कि वे दुर्बलों की रक्षा और आततायी को दण्ड दें, समाज को निर्वीर्य न बनने दें, बल का प्रयोग कर अन्याय न करें ।
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==== ८. विश्व के लिये भारत के व्यावहारिक आदर्श ====
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* आय से अधिक खर्च न करो । दान और बचत को अनिवार्य मानो।
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* किसी भी प्रकार की परम्परा को खण्डित न करो । परम्परा खण्डित करने को सामाजिक सांस्कृतिक अपराध मानो ।
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* सहअस्तित्व के सिद्धान्त की रक्षा करो । सहअस्तित्व में नहीं माननेवाले से अधिक समर्थ बनो।
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* शस्त्र, धन, सत्ता, बल से सत्य, धर्म, प्रेम और ज्ञान के सामर्थ्य को श्रेष्ठत्तर मानो । उसी सामर्थ्य को प्राप्त करो और बढाओ।
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* क्षुद्र से क्षुद्र पदार्थ की स्वतन्त्र सत्ता का स्वीकार करो, सम्मान करो और उसकी रक्षा करो।
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* भलाई के उद्देश्य से किये गये छोटे से छोटे प्रयास की दुर्गति नहीं होती है यह निश्चय से मानो।
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* त्यागपूर्वक उपभोग करो।
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* मन के बुद्धि के और बुद्धि को आत्मा के वश में रखो।
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* अनीति से समृद्धि और सुख का नाश होता है।
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* दूसरों को गुलाम बनाने की चाह रखने वालों का तत्काल तो नहीं अपितु अल्पकाल में नाश ही होता है।
    
==References==
 
==References==
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