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==== प्रश्नावली से पाप्त उत्तर ====
 
==== प्रश्नावली से पाप्त उत्तर ====
महाराष्ट्र के नासिक जिले में एक विद्यालय है जहाँ मितव्ययता हेतु नित्य विविध प्रयोग होते हैं । उस विद्यालय के शिक्षकों को यह प्रश्नावली मिली थी। विद्यालय मे २० शिक्षिकाएँ थी परंतु उत्तर मात्र एक ही प्राप्त हुआ। हमारे विद्यालय में मितव्ययिता की नीति हम सब मिलकर एक विचार से लागू करते हैं। इसलिए २० प्रश्नावली की जगह चर्चा करके एकने उत्तरावली भरी तो भी चलेगा यह विचार हम सबने किया। विद्यालय की मितव्ययिता का प्रत्यक्ष उदाहरण इस तरह प्राप्त हुआ।
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महाराष्ट्र के नासिक जिले में एक विद्यालय है जहाँ मितव्ययता हेतु नित्य विविध प्रयोग होते हैं । उस विद्यालय के शिक्षकों को यह प्रश्नावली मिली थी। विद्यालय मे २० शिक्षिकाएँ थी परंतु उत्तर मात्र एक ही प्राप्त हुआ। हमारे विद्यालय में मितव्ययिता की नीति हम सब मिलकर एक विचार से लागू करते हैं। अतः २० प्रश्नावली की जगह चर्चा करके एकने उत्तरावली भरी तो भी चलेगा यह विचार हम सबने किया। विद्यालय की मितव्ययिता का प्रत्यक्ष उदाहरण इस तरह प्राप्त हुआ।
    
विद्यार्थियों के लिए शैक्षिक सामग्री निर्माण करते समय ज्यादातर घरों में फिजूल वस्तुएँ होती हैं उसका ही उपयोग हम करते हैं।
 
विद्यार्थियों के लिए शैक्षिक सामग्री निर्माण करते समय ज्यादातर घरों में फिजूल वस्तुएँ होती हैं उसका ही उपयोग हम करते हैं।
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कहें तो -
 
कहें तो -
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ज्ञान पवित्र है, श्रेष्ठ है, अर्थ से ऊपर है इसलिए उसे अर्थ से परे ही रखना चाहिये ऐसी कल्पना हमारे यहाँ रही है।  
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ज्ञान पवित्र है, श्रेष्ठ है, अर्थ से ऊपर है अतः उसे अर्थ से परे ही रखना चाहिये ऐसी कल्पना हमारे यहाँ रही है।  
    
२. ज्ञान और अर्थ दो भिन्न स्वरूप की बातें हैं। अर्थ भौतिक क्षेत्र का हिस्सा है जबकि ज्ञान का क्षेत्र अभौतिक है। वह मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक क्षेत्र में विहार करता है। दोनों का स्वभाव भिन्न है, व्यवहार की पद्धति भिन्न है। इस कारण से भी शिक्षा का क्षेत्र अर्थ निरपेक्ष रहना चाहिये ऐसी सहज समझ हमारे समाज में विकसित हुई थी।  
 
२. ज्ञान और अर्थ दो भिन्न स्वरूप की बातें हैं। अर्थ भौतिक क्षेत्र का हिस्सा है जबकि ज्ञान का क्षेत्र अभौतिक है। वह मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक क्षेत्र में विहार करता है। दोनों का स्वभाव भिन्न है, व्यवहार की पद्धति भिन्न है। इस कारण से भी शिक्षा का क्षेत्र अर्थ निरपेक्ष रहना चाहिये ऐसी सहज समझ हमारे समाज में विकसित हुई थी।  
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# गुरुदक्षिणा विद्याध्ययन के बदले में ही दी जाती है, और उससे ही गुरु का जीवन निर्वाह चलता है यह वास्तविकता होते हुए भी इसमें जीवन निर्वाह की और गुरु द्वारा अध्यापन करवाने की गणना करने के स्थान पर कृतज्ञता एवं गुरुऋण से उऋण होने का भाव ही मुख्य है। विद्या एवं धन की बराबरी नहीं हो सकती। विद्या से धन श्रेष्ठ नहीं अपितु धन से विद्या श्रेष्ठ है। हमारे यहाँ यही स्वीकार्य है।  
 
# गुरुदक्षिणा विद्याध्ययन के बदले में ही दी जाती है, और उससे ही गुरु का जीवन निर्वाह चलता है यह वास्तविकता होते हुए भी इसमें जीवन निर्वाह की और गुरु द्वारा अध्यापन करवाने की गणना करने के स्थान पर कृतज्ञता एवं गुरुऋण से उऋण होने का भाव ही मुख्य है। विद्या एवं धन की बराबरी नहीं हो सकती। विद्या से धन श्रेष्ठ नहीं अपितु धन से विद्या श्रेष्ठ है। हमारे यहाँ यही स्वीकार्य है।  
 
# गुरुदक्षिणा के बारे में कोई नियम, कोई कानून, कोई अनिवार्यता या कोई शर्त न होते हुए भी, हमारे सामने स्पष्ट है कि गुरु का जीवन निर्वाह इस पर ही निर्भर है फिर भी गुरु इसके बारे में तनिक भी चिन्ता करते नहीं । ऐसा होने पर भी गुरु का निर्वाह कभी रुकता नहीं। यह दर्शाता है कि विश्वास, श्रद्धा, आदर, कृतज्ञता और अपेक्षारहितता ये सब सामर्थ्य, कायदाकानून, नियम और शर्तों की अपेक्षा अधिक मूल्यवान हैं।  
 
# गुरुदक्षिणा के बारे में कोई नियम, कोई कानून, कोई अनिवार्यता या कोई शर्त न होते हुए भी, हमारे सामने स्पष्ट है कि गुरु का जीवन निर्वाह इस पर ही निर्भर है फिर भी गुरु इसके बारे में तनिक भी चिन्ता करते नहीं । ऐसा होने पर भी गुरु का निर्वाह कभी रुकता नहीं। यह दर्शाता है कि विश्वास, श्रद्धा, आदर, कृतज्ञता और अपेक्षारहितता ये सब सामर्थ्य, कायदाकानून, नियम और शर्तों की अपेक्षा अधिक मूल्यवान हैं।  
# गुरुदक्षिणा की संकल्पना श्रेष्ठ एवं संस्कारित समाज में ही सम्भव है। मनुष्य में निहित सद्वृत्ति के आधार पर ही ऐसी व्यवस्थाएँ सम्भव होती हैं। स्वार्थ, अप्रामाणिकता, कृतज्ञता का अभाव जैसी दुष्प्रवृत्तियाँ जब प्रबल बनती हैं तब शर्ते, कायदा-कानून भंग होते हैं, इसलिए दण्ड आदि सभी व्यवस्थाएँ करनी पड़ती हैं।  
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# गुरुदक्षिणा की संकल्पना श्रेष्ठ एवं संस्कारित समाज में ही सम्भव है। मनुष्य में निहित सद्वृत्ति के आधार पर ही ऐसी व्यवस्थाएँ सम्भव होती हैं। स्वार्थ, अप्रामाणिकता, कृतज्ञता का अभाव जैसी दुष्प्रवृत्तियाँ जब प्रबल बनती हैं तब शर्ते, कायदा-कानून भंग होते हैं, अतः दण्ड आदि सभी व्यवस्थाएँ करनी पड़ती हैं।  
 
# समाज आधारित शिक्षण का यह उत्तम नमूना है। इसकी सम्पूर्ण व्यवस्था में शिक्षक और विद्यार्थी-गुरु और शिष्य - के मध्य में अथवा इन दोनों का नियमन करने वाला कोई तत्त्व, कोई व्यवस्था नहीं होती। फिर यह सरकारी अर्थात् राजकीय और प्रशासनिक व्यवस्था भी नहीं है। यह सांस्कृतिक एवं सामाजिक व्यवस्था है।  
 
# समाज आधारित शिक्षण का यह उत्तम नमूना है। इसकी सम्पूर्ण व्यवस्था में शिक्षक और विद्यार्थी-गुरु और शिष्य - के मध्य में अथवा इन दोनों का नियमन करने वाला कोई तत्त्व, कोई व्यवस्था नहीं होती। फिर यह सरकारी अर्थात् राजकीय और प्रशासनिक व्यवस्था भी नहीं है। यह सांस्कृतिक एवं सामाजिक व्यवस्था है।  
 
हमारा यह दृढ़ मत बना हुआ होता है कि आज के समय में ऐसी व्यवस्था सम्भव ही नहीं हो सकती। किसी भी प्रकार की अनिवार्यता न हो तो कोई पढ़ेगा नहीं, अनिवार्यता न हो तो कोई फीस ही न देगा, पहले से वेतन निश्चित नहीं होगा तो कोई पढ़ायेगा ही नहीं। परन्तु ऐसा मानना अपने आपको ही कम आँकना है। आज भी यह दुनियाँ जैसे भी चल रही है, वह कायदा-कानून, न्याय और दण्ड के आधार पर नहीं प्रत्युत मनुष्य में बची हुई अच्छाई के आधार पर ही चल रही है। ऐसी अच्छाई और संस्कारिता के आधार पर होने वाली व्यवस्थाओं को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए और अधिक संस्कारित समाज निर्माण करने की ओर गति बढ़ानी होगी।
 
हमारा यह दृढ़ मत बना हुआ होता है कि आज के समय में ऐसी व्यवस्था सम्भव ही नहीं हो सकती। किसी भी प्रकार की अनिवार्यता न हो तो कोई पढ़ेगा नहीं, अनिवार्यता न हो तो कोई फीस ही न देगा, पहले से वेतन निश्चित नहीं होगा तो कोई पढ़ायेगा ही नहीं। परन्तु ऐसा मानना अपने आपको ही कम आँकना है। आज भी यह दुनियाँ जैसे भी चल रही है, वह कायदा-कानून, न्याय और दण्ड के आधार पर नहीं प्रत्युत मनुष्य में बची हुई अच्छाई के आधार पर ही चल रही है। ऐसी अच्छाई और संस्कारिता के आधार पर होने वाली व्यवस्थाओं को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए और अधिक संस्कारित समाज निर्माण करने की ओर गति बढ़ानी होगी।
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किसी वस्तु का व्यर्थ में उपयोग करना, यह लापरवाही है। अतः किसी भी वस्तु का व्यर्थ में उपयोग नहीं करना चाहिए।  
 
किसी वस्तु का व्यर्थ में उपयोग करना, यह लापरवाही है। अतः किसी भी वस्तु का व्यर्थ में उपयोग नहीं करना चाहिए।  
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इसलिए आज हम व्यर्थ के उपयोग को किस प्रकार रोकना चाहिए, जानेंगे।  
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अतः आज हम व्यर्थ के उपयोग को किस प्रकार रोकना चाहिए, जानेंगे।  
    
==== व्यर्थ में पानी मत बहाओ ====
 
==== व्यर्थ में पानी मत बहाओ ====
Line 404: Line 404:  
ये सभी आवाजें सबको अच्छी लगती है। वर्षा का रिमझिम - रिमझिम गिरता पानी देखकर तो गीत गाने का मन करता है.....। जरा सोचें, क्या हम पानी के बिना जीवित रह सकते हैं, भला ? बिल्कुल नहीं।
 
ये सभी आवाजें सबको अच्छी लगती है। वर्षा का रिमझिम - रिमझिम गिरता पानी देखकर तो गीत गाने का मन करता है.....। जरा सोचें, क्या हम पानी के बिना जीवित रह सकते हैं, भला ? बिल्कुल नहीं।
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प्यास लगते ही पानी न मिले तो ऊपर-नीचे हो जाते हैं। क्यों कि पानी ही जीवन है। इसलिए पानी का सोच समझकर उपयोग करना चाहिए। पानी को व्यर्थ में नहीं बहाना चाहिए। इसके लिए हमें क्या - क्या करना चाहिए ?  
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प्यास लगते ही पानी न मिले तो ऊपर-नीचे हो जाते हैं। क्यों कि पानी ही जीवन है। अतः पानी का सोच समझकर उपयोग करना चाहिए। पानी को व्यर्थ में नहीं बहाना चाहिए। इसके लिए हमें क्या - क्या करना चाहिए ?  
 
# पानी पीते समय जितना चाहिए उतना पानी ही लेना चाहिए। पहले अधिक लेना और बाद में बचा हुआ फेंक देना । अपने इस व्यवहार को बदलना चाहिए।  
 
# पानी पीते समय जितना चाहिए उतना पानी ही लेना चाहिए। पहले अधिक लेना और बाद में बचा हुआ फेंक देना । अपने इस व्यवहार को बदलना चाहिए।  
# कपड़े धोने, बर्तन साफ करने, नहाने और साफ-सफाई के लिए पानी की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए आवश्यकता के अनुसार ही पानी का उपयोग करना चाहिए। नल को खुला छोड़ कर हाथ-मुँह नहीं धोना, बाल्टी और मग का उपयोग करना चाहिए । इसी प्रकार फव्वारे के नीचे खड़े खड़े नहाने से पता ही नहीं चलता कि कितना पानी व्यर्थ में बह गया।  
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# कपड़े धोने, बर्तन साफ करने, नहाने और साफ-सफाई के लिए पानी की आवश्यकता पड़ती है। अतः आवश्यकता के अनुसार ही पानी का उपयोग करना चाहिए। नल को खुला छोड़ कर हाथ-मुँह नहीं धोना, बाल्टी और मग का उपयोग करना चाहिए । इसी प्रकार फव्वारे के नीचे खड़े खड़े नहाने से पता ही नहीं चलता कि कितना पानी व्यर्थ में बह गया।  
 
# वर्षा का पानी हमारे घर की छत पर गिरता है और नाली से होता हुआ बाहर गली में बह जाता है । हमें इस पानी को घर के टेंक में इकट्ठा करना चाहिए। इसके लिए बाहर खुलने वाली नालियों के मुँह टेंकसें जोड़ देने चाहिए।  
 
# वर्षा का पानी हमारे घर की छत पर गिरता है और नाली से होता हुआ बाहर गली में बह जाता है । हमें इस पानी को घर के टेंक में इकट्ठा करना चाहिए। इसके लिए बाहर खुलने वाली नालियों के मुँह टेंकसें जोड़ देने चाहिए।  
 
# गर्मियों में पानी घटता है, कुँए सूख जाते हैं । अगर हमने वर्षाका पानी जमीन में उतारा तो कुँए नहीं सूखेंगे । और गर्मियों में भी पानी की कमी नहीं होगी।
 
# गर्मियों में पानी घटता है, कुँए सूख जाते हैं । अगर हमने वर्षाका पानी जमीन में उतारा तो कुँए नहीं सूखेंगे । और गर्मियों में भी पानी की कमी नहीं होगी।
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बल्ब, पंखा, फ्रिज, ईस्त्री, टी.वी. रेलगाड़ियाँ मशीनें आदि अनेक वस्तुओं को चलाने के लिए बिजली का उपयोग होता है।
 
बल्ब, पंखा, फ्रिज, ईस्त्री, टी.वी. रेलगाड़ियाँ मशीनें आदि अनेक वस्तुओं को चलाने के लिए बिजली का उपयोग होता है।
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बिजली पानी में से पैदा होती है । बिजली कोयले से भी बनाई जाती है। पानी कम होगा तो बिजली कम बनेगी। कोयला कम होगा तब भी बिजली कम बनेगी। इसलिए बिजली का उपयोग भी सावधानी पूर्वक करना चाहिए। सबको बिजली चाहिए । ऐसी बिजली फालतू में खर्च न हो, इसके लिए क्या करना चाहिए ?
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बिजली पानी में से पैदा होती है । बिजली कोयले से भी बनाई जाती है। पानी कम होगा तो बिजली कम बनेगी। कोयला कम होगा तब भी बिजली कम बनेगी। अतः बिजली का उपयोग भी सावधानी पूर्वक करना चाहिए। सबको बिजली चाहिए । ऐसी बिजली फालतू में खर्च न हो, इसके लिए क्या करना चाहिए ?
    
कमरे से बाहर निकलते समय बल्ब, पंखा, एसी बन्द करने चाहिए । ताला लगाने से पहले देख लेना चाहिए कि सब खटके बन्द हैं या नहीं।
 
कमरे से बाहर निकलते समय बल्ब, पंखा, एसी बन्द करने चाहिए । ताला लगाने से पहले देख लेना चाहिए कि सब खटके बन्द हैं या नहीं।
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हम रेल, बस, कार, विमान, जहाज द्वारा यात्रा करते हैं। इन सभी वाहनों के लिए पेट्रोल, डीजल या बिजली की आवश्यकता पड़ती है।
 
हम रेल, बस, कार, विमान, जहाज द्वारा यात्रा करते हैं। इन सभी वाहनों के लिए पेट्रोल, डीजल या बिजली की आवश्यकता पड़ती है।
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तुम अपनी माँ के साथ समीप ही दुकान पर जाते हो । किस साधन से ? स्कूटर से । स्कूटर के लिए भी तो पेट्रोल या डीजल की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए इतना निकट जाने के लिए स्कूटर का उपयोग करना ठीक नहीं । क्यों ?
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तुम अपनी माँ के साथ समीप ही दुकान पर जाते हो । किस साधन से ? स्कूटर से । स्कूटर के लिए भी तो पेट्रोल या डीजल की आवश्यकता पड़ती है। अतः इतना निकट जाने के लिए स्कूटर का उपयोग करना ठीक नहीं । क्यों ?
    
इन वाहनों को चलाने में लगने वाला पेट्रोल या डीजल जमीन में से निकाला जाता है। हम वाहनों को जहाँ चाहें, वहाँ ले जायेंगे तो कुछ ही समय में पेट्रोल-डीजल समाप्त हो जायेंगे । ये लकड़ी की तरह तो है नहीं कि पेड़ काटा तो वह फिर से उग आयेगा । ये तो एकबार समाप्त हुए हुए तो फिर नहीं बनते । इसके अतिरिक्त ये महंगे होने से पैसा भी बहुत खर्च होता है।
 
इन वाहनों को चलाने में लगने वाला पेट्रोल या डीजल जमीन में से निकाला जाता है। हम वाहनों को जहाँ चाहें, वहाँ ले जायेंगे तो कुछ ही समय में पेट्रोल-डीजल समाप्त हो जायेंगे । ये लकड़ी की तरह तो है नहीं कि पेड़ काटा तो वह फिर से उग आयेगा । ये तो एकबार समाप्त हुए हुए तो फिर नहीं बनते । इसके अतिरिक्त ये महंगे होने से पैसा भी बहुत खर्च होता है।
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इन वाहनों के अधिक उपयोग से वायु प्रदूषण अधिक होता है । इसका धुंआ सारी हवा में फैल जाता है। दूसरी और सारे वाहनों की चिल्ल-पौं से ध्वनि प्रदूषण भी होता है। ये सभी प्रदूषण पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं।
 
इन वाहनों के अधिक उपयोग से वायु प्रदूषण अधिक होता है । इसका धुंआ सारी हवा में फैल जाता है। दूसरी और सारे वाहनों की चिल्ल-पौं से ध्वनि प्रदूषण भी होता है। ये सभी प्रदूषण पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं।
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इसलिए यों ही चक्कर मारने के लिए बड़ों से वाहन चलाने की जिद मत करना । इससे ईंधन की बचत होगी और पैसा भी बचेगा । काम से दूर दूर जाने के लिए ही वाहन का उपयोग कीजिए । निकट में जाना है तो साइकिल का उपयोग कीजिए । यही सबके लिए योग्य है।
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अतः यों ही चक्कर मारने के लिए बड़ों से वाहन चलाने की जिद मत करना । इससे ईंधन की बचत होगी और पैसा भी बचेगा । काम से दूर दूर जाने के लिए ही वाहन का उपयोग कीजिए । निकट में जाना है तो साइकिल का उपयोग कीजिए । यही सबके लिए योग्य है।
    
सादगी अपनाओ, ईंधन बचाओ।
 
सादगी अपनाओ, ईंधन बचाओ।
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माँ ने समझाया, देख बेटा ! इस तरह खाकर अन्न को बिगाड़ मत । यह गिरा हुआ व्यर्थ जाता है। तुझे पता है, अन्न कितनी मुश्किल से उगाया जाता है ?
 
माँ ने समझाया, देख बेटा ! इस तरह खाकर अन्न को बिगाड़ मत । यह गिरा हुआ व्यर्थ जाता है। तुझे पता है, अन्न कितनी मुश्किल से उगाया जाता है ?
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माँ ने बात को आगे बढ़ाया, ऐसे कितने ही लोग हैं जिन्हें एक समय भी भरपेट खाने को नहीं मिलता, उन्हें भूखा ही सोना पड़ता है। हमें तो भरपेट खाने को मिलता है, इसलिए अन्न बिगाड़ना नहीं, व्यवस्थित ढंग से खाना चाहिए।
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माँ ने बात को आगे बढ़ाया, ऐसे कितने ही लोग हैं जिन्हें एक समय भी भरपेट खाने को नहीं मिलता, उन्हें भूखा ही सोना पड़ता है। हमें तो भरपेट खाने को मिलता है, अतः अन्न बिगाड़ना नहीं, व्यवस्थित ढंग से खाना चाहिए।
    
इतने में ही नन्दिनी खड़ी हो गई। उसने थाली में बहुत सारी सामग्री छोड़ दी थी। माँ ने फिर कहा, बेटा ! थाली में झूठा नहीं छोड़ते । अन्न बहुत मूल्यवान है । अन्न तो पूर्णब्रह्म है, झूठा छोड़कर उसका अपमान नहीं करना चाहिए। उसे खाजा।
 
इतने में ही नन्दिनी खड़ी हो गई। उसने थाली में बहुत सारी सामग्री छोड़ दी थी। माँ ने फिर कहा, बेटा ! थाली में झूठा नहीं छोड़ते । अन्न बहुत मूल्यवान है । अन्न तो पूर्णब्रह्म है, झूठा छोड़कर उसका अपमान नहीं करना चाहिए। उसे खाजा।
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कक्षा में पेंसिल से लिखते समय भार देकर लिखते हो, जिससे उसकी नौंक टूट जाती है और उसे बार बार छीलना पड़ता है। बार-बार छीलने से पेंसिल जल्दी खत्म हो जाती है।
 
कक्षा में पेंसिल से लिखते समय भार देकर लिखते हो, जिससे उसकी नौंक टूट जाती है और उसे बार बार छीलना पड़ता है। बार-बार छीलने से पेंसिल जल्दी खत्म हो जाती है।
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पुस्तक पढ़ते समय हम उसे दोहरी मोड़ देते हैं, जिससे पुस्तक खराब हो जाती है । पुस्तक पर पैन से या पेंसिल से लकीरें बना डालते हैं, कुछ भी लिख देते हैं । ऐसी पुस्तकें पढ़ने लायक नहीं रहती । पुस्तक को हम सम्भालकर नहीं रखते, उसका मुखपृष्ठ फट जाता है। परीक्षा आने आने तक तो वह फटेहाल हो जाती है, इसलिए नई लानी पड़ती है।
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पुस्तक पढ़ते समय हम उसे दोहरी मोड़ देते हैं, जिससे पुस्तक खराब हो जाती है । पुस्तक पर पैन से या पेंसिल से लकीरें बना डालते हैं, कुछ भी लिख देते हैं । ऐसी पुस्तकें पढ़ने लायक नहीं रहती । पुस्तक को हम सम्भालकर नहीं रखते, उसका मुखपृष्ठ फट जाता है। परीक्षा आने आने तक तो वह फटेहाल हो जाती है, अतः नई लानी पड़ती है।
    
पैन से लिखते समय भी सावधनी रखनी पड़ती है। बार बार स्याही नहीं छिटकनी चाहिए। भार देकर नहीं लिखना चाहिए अन्यथा निब या रीफिल खराब हो जाती है। हम रीफिल खत्म होने से पहले ही फेंक देते हैं, पैन बेकार हो जाता है।
 
पैन से लिखते समय भी सावधनी रखनी पड़ती है। बार बार स्याही नहीं छिटकनी चाहिए। भार देकर नहीं लिखना चाहिए अन्यथा निब या रीफिल खराब हो जाती है। हम रीफिल खत्म होने से पहले ही फेंक देते हैं, पैन बेकार हो जाता है।
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टी.वी. पर तुम अनेक वस्तुओं का विज्ञापन देखते __ हो । तुम्हें विज्ञापन वाली वस्तु पसन्द आ जाती है। वह वस्तु शीघ्र ही बापुजी लाकर मुझे दें, ऐसा तुम्हें लगता है ।
 
टी.वी. पर तुम अनेक वस्तुओं का विज्ञापन देखते __ हो । तुम्हें विज्ञापन वाली वस्तु पसन्द आ जाती है। वह वस्तु शीघ्र ही बापुजी लाकर मुझे दें, ऐसा तुम्हें लगता है ।
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तुम विज्ञापन देख-देखकर उसके शिकार हो जाते हो, और धोखा खाते हो । विज्ञापन वाली वस्तुएँ बहुत अच्छी होती हैं और आवश्यक होती हैं, यह तुम्हारे मन में बैठ जाता है। परन्तु वे वस्तुएँ उतनी अच्छी नहीं होती, जितनी दिखाई जाती है। माँ-बापुजी इस बात को जानते हैं, वे मना करते हैं। परन्तु तुम्हें लगता है कि वे दिलाना नहीं चाहते । इसलिए तुम जिद कर लेते हो, वस्तु घर में आ जाती है, परन्तु बेकार होकर पड़ी रहती है । व्यर्थ में पैसा खर्च होता है।
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तुम विज्ञापन देख-देखकर उसके शिकार हो जाते हो, और धोखा खाते हो । विज्ञापन वाली वस्तुएँ बहुत अच्छी होती हैं और आवश्यक होती हैं, यह तुम्हारे मन में बैठ जाता है। परन्तु वे वस्तुएँ उतनी अच्छी नहीं होती, जितनी दिखाई जाती है। माँ-बापुजी इस बात को जानते हैं, वे मना करते हैं। परन्तु तुम्हें लगता है कि वे दिलाना नहीं चाहते । अतः तुम जिद कर लेते हो, वस्तु घर में आ जाती है, परन्तु बेकार होकर पड़ी रहती है । व्यर्थ में पैसा खर्च होता है।
    
ऐसा ही कपड़ों में होता है। दूसरे मित्रों की देखादेखी में तुम वह खरीद तो लेते हो, परन्तु व्यर्थ में पैसा खर्च होता है, उसका क्या ? तुम्हें भी उनकी बात माननी चाहिए।
 
ऐसा ही कपड़ों में होता है। दूसरे मित्रों की देखादेखी में तुम वह खरीद तो लेते हो, परन्तु व्यर्थ में पैसा खर्च होता है, उसका क्या ? तुम्हें भी उनकी बात माननी चाहिए।
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पैसा बहुत महत्त्व की वस्तु है । पैसा देकर ही अन्य वस्तुएँ प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए पैसा बहुत सोच-समझकर खर्च करना चाहिए । पैसा कमाने में बापुजी को बहुत मेहनत करनी पड़ती है। इसलिए किसी वस्तु को लेने के लिए जिद नहीं करनी चाहिए। वे जो लाकर देते हैं, उनका आनन्दपूर्वक उपयोग करना चाहिए।
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पैसा बहुत महत्त्व की वस्तु है । पैसा देकर ही अन्य वस्तुएँ प्राप्त कर सकते हैं। अतः पैसा बहुत सोच-समझकर खर्च करना चाहिए । पैसा कमाने में बापुजी को बहुत मेहनत करनी पड़ती है। अतः किसी वस्तु को लेने के लिए जिद नहीं करनी चाहिए। वे जो लाकर देते हैं, उनका आनन्दपूर्वक उपयोग करना चाहिए।
    
अब समझ में आया होगा कि पैसा कितना महत्त्वपूर्ण है। अगर आज तुम पैसे का उपयोग विचार पूर्वक करोगे तो ही वह पैसा आपके अच्छे कामों में साथ देगा। इसीलिए तो कहा जाता है, पैसा ही सबकुछ है ।
 
अब समझ में आया होगा कि पैसा कितना महत्त्वपूर्ण है। अगर आज तुम पैसे का उपयोग विचार पूर्वक करोगे तो ही वह पैसा आपके अच्छे कामों में साथ देगा। इसीलिए तो कहा जाता है, पैसा ही सबकुछ है ।
    
==== समय का पालन करना सीखो ====
 
==== समय का पालन करना सीखो ====
बिजली, पानी, ईंधन, अन्न, शालोपयोगी वस्तुएँ आदि । ये सभी वस्तुएँ हमारे लिए महत्त्वपूर्ण हैं । इसलिए इन्हें व्यर्थ में गँवाना नहीं चाहिए। यह आपकी समझ में आया होगा ?
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बिजली, पानी, ईंधन, अन्न, शालोपयोगी वस्तुएँ आदि । ये सभी वस्तुएँ हमारे लिए महत्त्वपूर्ण हैं । अतः इन्हें व्यर्थ में गँवाना नहीं चाहिए। यह आपकी समझ में आया होगा ?
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मित्रों । अभी भी कितनी ही महत्त्वपूर्ण ऐसी वस्तुएँ हैं जो हमें दिखाई तो नहीं देती परन्तु हमारे लिए बहुत आवश्यक होती हैं। 'समय' यह एक ऐसी ही महत्त्वपूर्ण वस्तु है। गया हुआ समय फिर कभी भी लौट कर नहीं आता । आप प्रतिदिन का समय पत्रक बनाते हैं न । समय पत्रक बनाने के बहुत लाभ हैं। किस समय कौनसा काम करना है, यह ध्यान में रहता है, इसलिए व्यर्थ में समय नहीं जाता । पढ़ना, खेलना, भोजन करना, आराम करना, घर के कामों में सहयोग करना आदि सभी काम प्रतिदिन करने ही चाहिए।
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मित्रों । अभी भी कितनी ही महत्त्वपूर्ण ऐसी वस्तुएँ हैं जो हमें दिखाई तो नहीं देती परन्तु हमारे लिए बहुत आवश्यक होती हैं। 'समय' यह एक ऐसी ही महत्त्वपूर्ण वस्तु है। गया हुआ समय फिर कभी भी लौट कर नहीं आता । आप प्रतिदिन का समय पत्रक बनाते हैं न । समय पत्रक बनाने के बहुत लाभ हैं। किस समय कौनसा काम करना है, यह ध्यान में रहता है, अतः व्यर्थ में समय नहीं जाता । पढ़ना, खेलना, भोजन करना, आराम करना, घर के कामों में सहयोग करना आदि सभी काम प्रतिदिन करने ही चाहिए।
    
कभी-कभी हम सारा दिन खेलते ही रहते हैं, उस समय तो भूख भी नहीं लगती । कभी पढ़ते ही रहते हैं तो कभी यों ही बैठे-बैठे बेकार में समय गाँवा देते हैं। कभी दिनभर टी.वी. अथवा कम्प्यूटर के सामने अड्डा जमा लेते हैं। अन्यथा पूरा दिन आलसी की तरह बिस्तर में पड़े रहते हैं। यह तो समय बिगाड़ना है। हमें समय नहीं बिगाड़ना चाहिए, उसका पूरापूरा उपयोग करना चाहिए। क्योंकि बीता हुआ समय फिर लौट कर नहीं आता।
 
कभी-कभी हम सारा दिन खेलते ही रहते हैं, उस समय तो भूख भी नहीं लगती । कभी पढ़ते ही रहते हैं तो कभी यों ही बैठे-बैठे बेकार में समय गाँवा देते हैं। कभी दिनभर टी.वी. अथवा कम्प्यूटर के सामने अड्डा जमा लेते हैं। अन्यथा पूरा दिन आलसी की तरह बिस्तर में पड़े रहते हैं। यह तो समय बिगाड़ना है। हमें समय नहीं बिगाड़ना चाहिए, उसका पूरापूरा उपयोग करना चाहिए। क्योंकि बीता हुआ समय फिर लौट कर नहीं आता।
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प्रत्येक काम समय पर करो । एक पल भी खाली मत बैठो। तुम विद्यार्थी हो इसलिए अधिक समय पढ़ाई में लगाओ । मन लगाकर पढो । केवल पुस्तक लेकर बैठने से पढ़ाई नहीं होती, उससे तो समय बिगड़ता है, इसलिए समझकर पढ़ो । समझने में मन लगाओ, समय का पूरा पूरा सदुपयोग करो।
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प्रत्येक काम समय पर करो । एक पल भी खाली मत बैठो। तुम विद्यार्थी हो अतः अधिक समय पढ़ाई में लगाओ । मन लगाकर पढो । केवल पुस्तक लेकर बैठने से पढ़ाई नहीं होती, उससे तो समय बिगड़ता है, अतः समझकर पढ़ो । समझने में मन लगाओ, समय का पूरा पूरा सदुपयोग करो।
    
अवकाश के दिनों में आलसी मत बनो । खूब खेलो, खूब सीखो, सीखने के लिए बहुत सारा पड़ा है। खूब पुस्तकें पढ़ो। इससे ज्ञान बढ़ता है, फिर पछताना नहीं पड़ता।
 
अवकाश के दिनों में आलसी मत बनो । खूब खेलो, खूब सीखो, सीखने के लिए बहुत सारा पड़ा है। खूब पुस्तकें पढ़ो। इससे ज्ञान बढ़ता है, फिर पछताना नहीं पड़ता।
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यह टोली कक्षामें खूब शरारतें करती थी। ये कभी किसी की नहीं मानते थे। पढ़ने से तो ये कोसों दूर थे। आज तो शिक्षिका बहनने उन्हें राम की कॉपियाँ दिखाई और खूब डाँट लगाई।
 
यह टोली कक्षामें खूब शरारतें करती थी। ये कभी किसी की नहीं मानते थे। पढ़ने से तो ये कोसों दूर थे। आज तो शिक्षिका बहनने उन्हें राम की कॉपियाँ दिखाई और खूब डाँट लगाई।
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राम की कॉपियाँ बहुत व्यवस्थित थीं। राम सभी बातों में बहुत व्यवस्थित था । उसका लेख भी बहुत सुन्दर था। इसलिए वह सबका लाडला भी था। परन्तु यह चौकड़ी राम से नाराज रहती थी।
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राम की कॉपियाँ बहुत व्यवस्थित थीं। राम सभी बातों में बहुत व्यवस्थित था । उसका लेख भी बहुत सुन्दर था। अतः वह सबका लाडला भी था। परन्तु यह चौकड़ी राम से नाराज रहती थी।
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आज तो कक्षा में राम के कारण ही शिक्षिका बहन ने उन चारों को डाँटा था। इसलिए उन्होंने राम को पाठ पढाने का निश्चय किया । इतने में उन्हें दूर से राम आता दिखाई दिया।
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आज तो कक्षा में राम के कारण ही शिक्षिका बहन ने उन चारों को डाँटा था। अतः उन्होंने राम को पाठ पढाने का निश्चय किया । इतने में उन्हें दूर से राम आता दिखाई दिया।
    
बंटीने कहा, मैं राम को ऐसा फटकारूँगा कि वह आगे से कभी हमारे सामने आने की हिम्मत ही नहीं करेगा। विद्यालय से ही अपना नाम कटवा लेगा।
 
बंटीने कहा, मैं राम को ऐसा फटकारूँगा कि वह आगे से कभी हमारे सामने आने की हिम्मत ही नहीं करेगा। विद्यालय से ही अपना नाम कटवा लेगा।
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सामने वाले व्यक्ति के साथ बात करते समय नम्रतापूर्वक बोलना चाहिए। अगर हम क्रोधित होकर बात करेंगे तो क्रोध में हमारे मुँह से कठोर शब्द ही निकलेंगे।
 
सामने वाले व्यक्ति के साथ बात करते समय नम्रतापूर्वक बोलना चाहिए। अगर हम क्रोधित होकर बात करेंगे तो क्रोध में हमारे मुँह से कठोर शब्द ही निकलेंगे।
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शब्द तीर के समान होते हैं । धनुष से छूटा हुआ तीर जैसे लौटता नहीं, उसी प्रकार मुँह से निकला शब्द भी वापस नहीं आता। इसलिए शब्दों का उपयोग सोचसमझकर करना चाहिए।  
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शब्द तीर के समान होते हैं । धनुष से छूटा हुआ तीर जैसे लौटता नहीं, उसी प्रकार मुँह से निकला शब्द भी वापस नहीं आता। अतः शब्दों का उपयोग सोचसमझकर करना चाहिए।  
    
लगातार बोलते नहीं रहना चाहिए। हमेशा अर्थपूर्ण बात ही करनी चाहिए । व्यर्थ की बकबक टालनी चाहिए । इसका अर्थ यह है कि फालतु शब्द नहीं निकालना चाहिए। बहुत अधिक बोल-बोल करने से भी थकान होती भगवानने अच्छा बोलने के लिए हमें मुँह दिया है। कभी भी गलत नहीं बोलना चाहिए । हम अच्छा बोलेंगे तो दूसरे लोग हमारे साथ भी अच्छा बोलेंगे।
 
लगातार बोलते नहीं रहना चाहिए। हमेशा अर्थपूर्ण बात ही करनी चाहिए । व्यर्थ की बकबक टालनी चाहिए । इसका अर्थ यह है कि फालतु शब्द नहीं निकालना चाहिए। बहुत अधिक बोल-बोल करने से भी थकान होती भगवानने अच्छा बोलने के लिए हमें मुँह दिया है। कभी भी गलत नहीं बोलना चाहिए । हम अच्छा बोलेंगे तो दूसरे लोग हमारे साथ भी अच्छा बोलेंगे।
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कक्षा चल रही थी। बहनजी ने कक्षा में प्रवेश किया तो सबने उन्हें नमस्ते किया। बहनजी ने उपस्थिति भरी और मीरा को बुलाया।
 
कक्षा चल रही थी। बहनजी ने कक्षा में प्रवेश किया तो सबने उन्हें नमस्ते किया। बहनजी ने उपस्थिति भरी और मीरा को बुलाया।
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मीरा आई तो बहिनजीने उसे बताया कि आज बुधवार है, आने वाले शनिवार को हमारे विद्यालय में भाषण की प्रतियोगिता होगी। अपनी कक्षा में से मैंने तुम्हारा नाम लिखवाया है। इसलिए तू आजसे ही तैयारी आरम्भ कर दे।
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मीरा आई तो बहिनजीने उसे बताया कि आज बुधवार है, आने वाले शनिवार को हमारे विद्यालय में भाषण की प्रतियोगिता होगी। अपनी कक्षा में से मैंने तुम्हारा नाम लिखवाया है। अतः तू आजसे ही तैयारी आरम्भ कर दे।
    
प्रतियोगिता का विषय है, 'मेरा प्रिय त्योहार'
 
प्रतियोगिता का विषय है, 'मेरा प्रिय त्योहार'
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तुमने आजतक कभी किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया, इसलिए तुम्हारा नाम निश्चित किया है ।
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तुमने आजतक कभी किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया, अतः तुम्हारा नाम निश्चित किया है ।
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मीरा बोलने से घबराती थीं, इसलिए उसने बहिनजी को मना कर दिया। घर आकर वह रोने लगीं। माँ ने उसे गोद में बिठाकर पूछा तो सारी बात ध्यान में आ गाई ।
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मीरा बोलने से घबराती थीं, अतः उसने बहिनजी को मना कर दिया। घर आकर वह रोने लगीं। माँ ने उसे गोद में बिठाकर पूछा तो सारी बात ध्यान में आ गाई ।
    
माँ ने कहा, अरे ! तू रो किसलिए रही है ? इतना अच्छा अवसर तुझे मिला है, घबरा मत । मेहनत कर, मैं तेरी मदद करूँगी। प्रयत्न करने से सबकुछ आता है। बहुत अच्छी तरह याद कर । आये हुए अवसर को कभी जाने नहीं देना चाहिए।
 
माँ ने कहा, अरे ! तू रो किसलिए रही है ? इतना अच्छा अवसर तुझे मिला है, घबरा मत । मेहनत कर, मैं तेरी मदद करूँगी। प्रयत्न करने से सबकुछ आता है। बहुत अच्छी तरह याद कर । आये हुए अवसर को कभी जाने नहीं देना चाहिए।
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देखो ! अगर मीरा ने आया हुआ अवसर जाने दिया होता तो वह भाषण से डरती ही रहती। उसे अपनी क्षमता ध्यान में नहीं आती।
 
देखो ! अगर मीरा ने आया हुआ अवसर जाने दिया होता तो वह भाषण से डरती ही रहती। उसे अपनी क्षमता ध्यान में नहीं आती।
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इसलिए प्रत्येक अवसर का लाभ उठाना चाहिए। कोई भी अवसर जाने मत दो । प्रयत्न करो, यश तो मिलता ही है।  
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अतः प्रत्येक अवसर का लाभ उठाना चाहिए। कोई भी अवसर जाने मत दो । प्रयत्न करो, यश तो मिलता ही है।  
    
==== व्यर्थ मत गँवाओ ====
 
==== व्यर्थ मत गँवाओ ====

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