Line 9: |
Line 9: |
| | | |
| === प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर === | | === प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर === |
− | इस वैचारिक स्वरूप की प्रश्नावली पर गुजरात के आचार्यो ने अपने कुछ मत प्रकट किए।वास्तव में विद्यालय मे अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में आचार्य और छात्रो के बीच आंतरक्रिया चलती है; अतः इन दोनो का ही विद्यालय होता है। प्रबंध समिती, शासन, प्रधानाचार्य अन्य कर्मचारी अभिभावक ये पाँच घटक पूरक बनना चाहिये।विद्यालय का परिचय गुरु के ही नाम से होता है ऐसी परंपरा भारत मे रही है। वसिष्ठ, सांदिपनी, द्रोणाचार्य इनके गुरुकुल उनके ही नाम से पहचाने जाते थे। टैगोर जी का शान्तिनिकेतन, तिलक जी का न्यूइंग्लिश स्कूल, गांधीजी का बुनियादी विद्यालय रहा है। इसलिए आचार्य और छात्र दोनों का ही विद्यालय अभिप्रेत है। | + | इस वैचारिक स्वरूप की प्रश्नावली पर गुजरात के आचार्यो ने अपने कुछ मत प्रकट किए।वास्तव में विद्यालय मे अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में आचार्य और छात्रो के मध्य आंतरक्रिया चलती है; अतः इन दोनो का ही विद्यालय होता है। प्रबंध समिती, शासन, प्रधानाचार्य अन्य कर्मचारी अभिभावक ये पाँच घटक पूरक बनना चाहिये।विद्यालय का परिचय गुरु के ही नाम से होता है ऐसी परंपरा भारत मे रही है। वसिष्ठ, सांदिपनी, द्रोणाचार्य इनके गुरुकुल उनके ही नाम से पहचाने जाते थे। टैगोर जी का शान्तिनिकेतन, तिलक जी का न्यूइंग्लिश स्कूल, गांधीजी का बुनियादी विद्यालय रहा है। अतः आचार्य और छात्र दोनों का ही विद्यालय अभिप्रेत है। |
| | | |
− | प्रबंध समिति भवन आदि व्यवस्था करे। आज शासन अनुदान द्वारा आचार्यों की वेतनपूर्ति, प्रधानाचार्य आचार्यों को शैक्षिक मार्गदर्शन, अन्य कर्मचारी प्रशासकीय व्यवस्थाएँ सम्भालना, अभिभावक विद्यालय की आपूर्ति करना, इसमे सहायक बने। परंतु आज प्रबंधन समिति एवं शासन अपना अधिकार जमाने का कार्य करते है। इन सब घटकों का व्यवहारिक स्वरूप के संदर्भ मे प्रबंध समिति एवं शासन विद्यालय के संरक्षक प्रधानाचार्य आचार्य एवं कर्मचारियों के मार्गदर्शक तथा शासन प्रबंध समिती और विद्यालय के बीच सेतू के रूप में कार्य करे, अभिभावक का आचार्यों के साथ आत्मीय सबंध हो। विद्यालय मे श्रद्धा हो ऐसा मत प्रकट हुआ। | + | प्रबंध समिति भवन आदि व्यवस्था करे। आज शासन अनुदान द्वारा आचार्यों की वेतनपूर्ति, प्रधानाचार्य आचार्यों को शैक्षिक मार्गदर्शन, अन्य कर्मचारी प्रशासकीय व्यवस्थाएँ सम्भालना, अभिभावक विद्यालय की आपूर्ति करना, इसमे सहायक बने। परंतु आज प्रबंधन समिति एवं शासन अपना अधिकार जमाने का कार्य करते है। इन सब घटकों का व्यवहारिक स्वरूप के संदर्भ मे प्रबंध समिति एवं शासन विद्यालय के संरक्षक प्रधानाचार्य आचार्य एवं कर्मचारियों के मार्गदर्शक तथा शासन प्रबंध समिती और विद्यालय के मध्य सेतू के रूप में कार्य करे, अभिभावक का आचार्यों के साथ आत्मीय सबंध हो। विद्यालय मे श्रद्धा हो ऐसा मत प्रकट हुआ। |
| | | |
− | छात्र का विकास यह बात समान रूप से यह सभी को लागू चाहिये तथा सभी में घनिष्टता होनी चाहिये। | + | छात्र का विकास यह बात समान रूप से यह सभी को लागू चाहिये तथा सभी में घनिष्ठता होनी चाहिये। |
| | | |
| ==== विमर्श ==== | | ==== विमर्श ==== |
Line 74: |
Line 74: |
| | | |
| ==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ==== | | ==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ==== |
− | विद्याभारती केवल प्रान्त के कृष्णदासजीने प्रान्त के आचार्य प्रश्नावली भरवायी है। भाषा की समस्या के कारण प्रश्न और उत्तर समझने में दोनो तरफ से कठिनाई महसूस हुई। फिर भी उत्साह से यह कार्य किया गया अतः चर्चा के माध्यम से जो समझ में आया उसे अभिमत मे स्थान दिया है। आचार्य एवं अभिभावकों ने इस प्रश्नावली के संबंध मे कुछ विचार किया है। निसर्ग समृद्ध भूमि का जिन्हें प्रत्यक्ष अनुभव है। अतः निसर्ग के साथ रहने हेतू भ्रमण (ट्रिप) योजना करना यही विचार प्रधान मानकर प्रश्नावली के उत्तर लिखे गये। भ्रमण के लिए अच्छे स्थान एवं उनके नाम बताए गये। भ्रमण समय में कौन सी सावधानीयाँ रखना इसका भी विचार हुआ परन्तु भ्रमण के साथ शैक्षिक बातों का विचार बहुत कम रहा। | + | विद्याभारती केवल प्रान्त के कृष्णदासजीने प्रान्त के आचार्य प्रश्नावली भरवायी है। भाषा की समस्या के कारण प्रश्न और उत्तर समझने में दोनो तरफ से कठिनाई अनुभव हुई। तथापि उत्साह से यह कार्य किया गया अतः चर्चा के माध्यम से जो समझ में आया उसे अभिमत मे स्थान दिया है। आचार्य एवं अभिभावकों ने इस प्रश्नावली के संबंध मे कुछ विचार किया है। निसर्ग समृद्ध भूमि का जिन्हें प्रत्यक्ष अनुभव है। अतः निसर्ग के साथ रहने हेतू भ्रमण (ट्रिप) योजना करना यही विचार प्रधान मानकर प्रश्नावली के उत्तर लिखे गये। भ्रमण के लिए अच्छे स्थान एवं उनके नाम बताए गये। भ्रमण समय में कौन सी सावधानीयाँ रखना इसका भी विचार हुआ परन्तु भ्रमण के साथ शैक्षिक बातों का विचार बहुत कम रहा। |
| | | |
| अत्यंत विचारपूर्ण और गहराई मे विचार करने वाली यह दस प्रश्नों की प्रश्नावली थी। देखना और निरीक्षण करना दोनों भी दृश्येंद्रिय से की जानेवाली क्रियाएँ हैं। देखना आँखोंसे होता है परंतु निरीक्षण मे आँखों के साथ मन और बुद्धी भी जुड़ते हैं। उसी प्रकार भ्रमण और शैक्षिक भ्रमण में भी अंतर है। आज विद्यालयों में भ्रमण कार्यक्रम का अर्थ भ्रमण इतना ही किया जाता है। | | अत्यंत विचारपूर्ण और गहराई मे विचार करने वाली यह दस प्रश्नों की प्रश्नावली थी। देखना और निरीक्षण करना दोनों भी दृश्येंद्रिय से की जानेवाली क्रियाएँ हैं। देखना आँखोंसे होता है परंतु निरीक्षण मे आँखों के साथ मन और बुद्धी भी जुड़ते हैं। उसी प्रकार भ्रमण और शैक्षिक भ्रमण में भी अंतर है। आज विद्यालयों में भ्रमण कार्यक्रम का अर्थ भ्रमण इतना ही किया जाता है। |
Line 106: |
Line 106: |
| # भ्रमण में जाने से पूर्व स्थानों की पूरी जानकारी, यात्रा का उद्देश्य, वहाँ जाकर करने के काम, वापस आकर देने के वृत्त हेतु करने के कार्य की जानकारी देनी चाहिये। | | # भ्रमण में जाने से पूर्व स्थानों की पूरी जानकारी, यात्रा का उद्देश्य, वहाँ जाकर करने के काम, वापस आकर देने के वृत्त हेतु करने के कार्य की जानकारी देनी चाहिये। |
| # यात्रा के दौरान जिन आचारों का पालन करना है उस सम्बन्ध में उचित पद्धति से विद्यार्थियों का प्रबोधन करना चाहिये। यह बात बहुत कठिन है क्योंकि भ्रमण के साथ विद्यार्थियों की उन्मुक्तता की वृत्ति जुड़ी हुई होती है। दैनन्दिन जीवन में भी उनकी अभिमुखता शिक्षा, संस्कृति, देश आदि की ओर बनाना कठिन हो जाता है। सारा विद्यार्थीजगत भ्रमण की ओर मनोरंजन की दृष्टि से देखता है तब एक विद्यालय के विद्यार्थियों को यात्रा के दौरान शिष्ट व्यवहार करने को कहना कठिन ही होता है तथापि कुछ विद्यालयों के उदाहरण ऐसे भी हैं जो इस बात को सम्भव बनाते हैं। उनके अनुभव से हम कह सकते हैं कि यह कार्य कठिन अवश्य होगा, असम्भव नहीं है। | | # यात्रा के दौरान जिन आचारों का पालन करना है उस सम्बन्ध में उचित पद्धति से विद्यार्थियों का प्रबोधन करना चाहिये। यह बात बहुत कठिन है क्योंकि भ्रमण के साथ विद्यार्थियों की उन्मुक्तता की वृत्ति जुड़ी हुई होती है। दैनन्दिन जीवन में भी उनकी अभिमुखता शिक्षा, संस्कृति, देश आदि की ओर बनाना कठिन हो जाता है। सारा विद्यार्थीजगत भ्रमण की ओर मनोरंजन की दृष्टि से देखता है तब एक विद्यालय के विद्यार्थियों को यात्रा के दौरान शिष्ट व्यवहार करने को कहना कठिन ही होता है तथापि कुछ विद्यालयों के उदाहरण ऐसे भी हैं जो इस बात को सम्भव बनाते हैं। उनके अनुभव से हम कह सकते हैं कि यह कार्य कठिन अवश्य होगा, असम्भव नहीं है। |
− | # भ्रमण के दौरान लेखन पुस्तिका में अनुभव लिखकर स्मृति में रखने लायक स्थानों के छायाचित्र लेना, सम्बन्धित लोगों के साथ वार्तालाप करना, वहाँ यदि कोई गाइड है तो उसे प्रश्न पूछना आदि बातों में शिक्षकों ने विद्यार्थीयों का मार्गदर्शन और सहायता करनी चाहिये। एक स्थान पर बार बार जाना होता नहीं है अतः पूर्ण रूप से अनुभव लेना आवश्यक है। | + | # भ्रमण के दौरान लेखन पुस्तिका में अनुभव लिखकर स्मृति में रखने लायक स्थानों के छायाचित्र लेना, सम्बन्धित लोगोंं के साथ वार्तालाप करना, वहाँ यदि कोई गाइड है तो उसे प्रश्न पूछना आदि बातों में शिक्षकों ने विद्यार्थीयों का मार्गदर्शन और सहायता करनी चाहिये। एक स्थान पर बार बार जाना होता नहीं है अतः पूर्ण रूप से अनुभव लेना आवश्यक है। |
| # वापस आने के बाद अनुभव कथन और लेखन, वृत्त-कथन और लेखन, छायाचित्रों की प्रदर्शनी आदि कार्यक्रम करने चाहिये। अपना किस विषय के साथ कैसा सम्बन्ध जुड़ा यह भी समझाना चाहिये। | | # वापस आने के बाद अनुभव कथन और लेखन, वृत्त-कथन और लेखन, छायाचित्रों की प्रदर्शनी आदि कार्यक्रम करने चाहिये। अपना किस विषय के साथ कैसा सम्बन्ध जुड़ा यह भी समझाना चाहिये। |
| # शैक्षिक भ्रमण यह क्रियात्मक शिक्षण ही है। शिक्षण में यदि आनन्द आता है तो यह विशेष लाभ है। यह आनन्द शैक्षिक है तो और भी लाभ है। आनन्द जानकारी की तरह बाहर से हृदय में नहीं डाला जाता, वह अन्दर जन्मता है और बाहर प्रकट होता है। ऐसे आनन्द का अनुभव आता है तो भ्रमण कार्यक्रम सार्थक हुआ यह कह सकते हैं। शिक्षकों को इस दिशा में प्रयास करना चाहिये। | | # शैक्षिक भ्रमण यह क्रियात्मक शिक्षण ही है। शिक्षण में यदि आनन्द आता है तो यह विशेष लाभ है। यह आनन्द शैक्षिक है तो और भी लाभ है। आनन्द जानकारी की तरह बाहर से हृदय में नहीं डाला जाता, वह अन्दर जन्मता है और बाहर प्रकट होता है। ऐसे आनन्द का अनुभव आता है तो भ्रमण कार्यक्रम सार्थक हुआ यह कह सकते हैं। शिक्षकों को इस दिशा में प्रयास करना चाहिये। |
Line 144: |
Line 144: |
| | | |
| ==== विमर्श ==== | | ==== विमर्श ==== |
− | जब से भारत में अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व स्थापित हुआ है तब से विचार के क्षेत्र में घालमेल शुरू हो गया है। इसमें बहुत बड़ी भूमिका अनुवाद की है। धार्मिक भाषाओं के संकल्पनात्मक शब्दों के अंग्रेजी अनुवाद इसके खास उदाहरण हैं। उदाहरण के लिये 'धर्म' का अनुवाद ‘रिलीजन' और 'संस्कृति' का अनुवाद 'कल्चर' किया जाता है। यदि केवल अनुवाद तक ही बात सीमित रहती है तब बहत चिन्ता की बात नहीं रहती है। यदि अंग्रेजी भाषी लोग ‘संस्कृति' को 'कल्चर' के रूप में और 'धर्म' को ‘रिलीजन' के रूप में समझते हैं तब सीमित समझ उनकी ही समस्या बनेगी । परन्तु हुआ यह है कि हम धार्मिक 'धर्म' को 'रिलीजन' और 'संस्कृति' को 'कल्चर' समझने लगे हैं। अंग्रेजी को ही मानक के रूप में प्रतिष्ठित करने का और उसे प्रमाण के रूप में स्वीकार करने का कार्य हमारे देश का बौद्धिक जगत तथा सरकार करती है। परिणाम स्वरूप सामान्यजन को भी उसका स्वीकार करना ही पड़ता है। भले ही हम धार्मिक भाषा में संस्कृति' बोले, हमारे मनमस्तिष्क में उसकी समझ 'कल्चर' के रूप में ही होती है। | + | जब से भारत में अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व स्थापित हुआ है तब से विचार के क्षेत्र में घालमेल आरम्भ हो गया है। इसमें बहुत बड़ी भूमिका अनुवाद की है। धार्मिक भाषाओं के संकल्पनात्मक शब्दों के अंग्रेजी अनुवाद इसके खास उदाहरण हैं। उदाहरण के लिये 'धर्म' का अनुवाद ‘रिलीजन' और 'संस्कृति' का अनुवाद 'कल्चर' किया जाता है। यदि केवल अनुवाद तक ही बात सीमित रहती है तब बहत चिन्ता की बात नहीं रहती है। यदि अंग्रेजी भाषी लोग ‘संस्कृति' को 'कल्चर' के रूप में और 'धर्म' को ‘रिलीजन' के रूप में समझते हैं तब सीमित समझ उनकी ही समस्या बनेगी । परन्तु हुआ यह है कि हम धार्मिक 'धर्म' को 'रिलीजन' और 'संस्कृति' को 'कल्चर' समझने लगे हैं। अंग्रेजी को ही मानक के रूप में प्रतिष्ठित करने का और उसे प्रमाण के रूप में स्वीकार करने का कार्य हमारे देश का बौद्धिक जगत तथा सरकार करती है। परिणाम स्वरूप सामान्यजन को भी उसका स्वीकार करना ही पड़ता है। भले ही हम धार्मिक भाषा में संस्कृति' बोले, हमारे मनमस्तिष्क में उसकी समझ 'कल्चर' के रूप में ही होती है। |
| | | |
| इसलिये प्रथम आवश्यकता ‘संस्कृति' को 'कल्चर' से मुक्त कर संस्कृति' के ही अर्थ में समझने की है। | | इसलिये प्रथम आवश्यकता ‘संस्कृति' को 'कल्चर' से मुक्त कर संस्कृति' के ही अर्थ में समझने की है। |
Line 156: |
Line 156: |
| अतः विद्यालयों में केवल रंगमंच कार्यक्रम अर्थात् नृत्य, गीत, नाटक और रंगोली, चित्र, सुशोभन ही सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं है। ये सब भी अपने आपमें सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हैं। उनके साथ जब शुभ और पवित्र भाव, शुद्ध आनन्द और मुक्ति की भावना जुडती हैं तब वे सांस्कृतिक कार्यक्रम कहे जाने योग्य होते हैं, अन्यथा वे केवल मनोरंजन कार्यक्रम होते हैं। संस्कृति के मूल तत्वों के अभाव में तो वे भडकाऊ, उत्तेजक और निकृष्ट मनोवृत्तियों का ही प्रकटीकरण बन जाते हैं। अतः पहली बात तो जिन्हें हम एक रूढि के तहत सांस्कृतिक कार्यक्रम कहते हैं उन्हें परिष्कृत करने की अवश्यकता है। इसके लिये कुल मिलाकर रुचि परिष्कृत करने की आवश्यकता होती है। | | अतः विद्यालयों में केवल रंगमंच कार्यक्रम अर्थात् नृत्य, गीत, नाटक और रंगोली, चित्र, सुशोभन ही सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं है। ये सब भी अपने आपमें सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हैं। उनके साथ जब शुभ और पवित्र भाव, शुद्ध आनन्द और मुक्ति की भावना जुडती हैं तब वे सांस्कृतिक कार्यक्रम कहे जाने योग्य होते हैं, अन्यथा वे केवल मनोरंजन कार्यक्रम होते हैं। संस्कृति के मूल तत्वों के अभाव में तो वे भडकाऊ, उत्तेजक और निकृष्ट मनोवृत्तियों का ही प्रकटीकरण बन जाते हैं। अतः पहली बात तो जिन्हें हम एक रूढि के तहत सांस्कृतिक कार्यक्रम कहते हैं उन्हें परिष्कृत करने की अवश्यकता है। इसके लिये कुल मिलाकर रुचि परिष्कृत करने की आवश्यकता होती है। |
| | | |
− | साथ ही शरीर के अंगउपांगों से होने वाले सभी छोटे छोटे काम उत्तम और सही पद्धति से करने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये कागज चिपकाने का, कपडे की तह करने का, बस्ते में सामान जमाने का, कपडे पहनने का काम भी उत्तम पद्धति से करने का अभ्यास बनाना चाहिये। | + | साथ ही शरीर के अंगउपांगों से होने वाले सभी छोटे छोटे काम उत्तम और सही पद्धति से करने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये कागज चिपकाने का, कपड़े की तह करने का, बस्ते में सामान जमाने का, कपड़े पहनने का काम भी उत्तम पद्धति से करने का अभ्यास बनाना चाहिये। |
| | | |
| दूसरी आवश्यकता मनोभावों को शुद्ध करने की होती है। | | दूसरी आवश्यकता मनोभावों को शुद्ध करने की होती है। |
Line 197: |
Line 197: |
| | | |
| ==== विद्यालय साधनास्थली है ==== | | ==== विद्यालय साधनास्थली है ==== |
− | विद्यालय शिक्षक एवं छात्रो की साधनास्थली है। तपस्थली है। अतः वह पवित्र स्थान है। जहाँ छात्र का शारीरिक, मानसिक, प्राणिक, बौद्धिक एवं आत्मिक विकास होता है वह गौरवप्राप्त विद्यालय होता है। पर्यावरण, स्वच्छता, अन्याय का प्रतिकार करना इस प्रकार समाज को सुल्यवस्थित रखनेवाले सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यों में जिसका सक्रीय सहयोग हो वह प्रतिष्ठित विद्यालय है । विद्यालय सामाजिक चेतना का केन्द्र है इसलिए समाज को मार्गदर्शन करना उसका दायित्व बनता है। हिन्दुत्व का दूष्टीकोन एवं हिन्दुत्वनिष्ठ व्यवहार का आग्रह रखनेवाला विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होता है। | + | विद्यालय शिक्षक एवं छात्रो की साधनास्थली है। तपस्थली है। अतः वह पवित्र स्थान है। जहाँ छात्र का शारीरिक, मानसिक, प्राणिक, बौद्धिक एवं आत्मिक विकास होता है वह गौरवप्राप्त विद्यालय होता है। पर्यावरण, स्वच्छता, अन्याय का प्रतिकार करना इस प्रकार समाज को सुल्यवस्थित रखनेवाले सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यों में जिसका सक्रीय सहयोग हो वह प्रतिष्ठित विद्यालय है । विद्यालय सामाजिक चेतना का केन्द्र है अतः समाज को मार्गदर्शन करना उसका दायित्व बनता है। हिन्दुत्व का दूष्टीकोन एवं हिन्दुत्वनिष्ठ व्यवहार का आग्रह रखनेवाला विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होता है। |
| | | |
| परंतु आज हमारी भ्रमित सोच एवं शिक्षा के व्यवसायीकरण से प्रतिष्ठा के मापदंड उल्टे पड़े दिखाई देते है। अंग्रेजी माध्यम, सी.बी.एस.सी., इ.सी.एस.ई बोर्ड के मान्यता प्राप्त विद्यालय क्रमशः समाज मे प्रतिष्ठित बने है। प्रतिष्ठित होने के नाते प्रवेश अधिक अतः छात्रसंख्या अधिक यह भी प्रतिष्ठा का लक्षण माना जाता है। प्रतिष्ठा प्राप्त है तो लाखों रुपया शुल्क लेना प्रतिष्ठा बन गई है। बडा, भव्य एवं वातानुकुलित कॉम्प्यूटराइड विद्यालय प्रतिष्ठा के मापदृण्ड बने है। अनेक प्रतियोगिताओं में सहभागी होना एवं उसमे प्रथम क्रमांक प्राप्त करने हेतु अनुचित मार्ग अपनाना यह बात स्वाभाविक लगती है। ऐसी अनिष्ट बातों को हटाकर ज्ञान की प्रतिष्ठा हो वह विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होगा यह समझ विकसित करना धार्मिक शिक्षा का व्यावहारिक आयाम है। | | परंतु आज हमारी भ्रमित सोच एवं शिक्षा के व्यवसायीकरण से प्रतिष्ठा के मापदंड उल्टे पड़े दिखाई देते है। अंग्रेजी माध्यम, सी.बी.एस.सी., इ.सी.एस.ई बोर्ड के मान्यता प्राप्त विद्यालय क्रमशः समाज मे प्रतिष्ठित बने है। प्रतिष्ठित होने के नाते प्रवेश अधिक अतः छात्रसंख्या अधिक यह भी प्रतिष्ठा का लक्षण माना जाता है। प्रतिष्ठा प्राप्त है तो लाखों रुपया शुल्क लेना प्रतिष्ठा बन गई है। बडा, भव्य एवं वातानुकुलित कॉम्प्यूटराइड विद्यालय प्रतिष्ठा के मापदृण्ड बने है। अनेक प्रतियोगिताओं में सहभागी होना एवं उसमे प्रथम क्रमांक प्राप्त करने हेतु अनुचित मार्ग अपनाना यह बात स्वाभाविक लगती है। ऐसी अनिष्ट बातों को हटाकर ज्ञान की प्रतिष्ठा हो वह विद्यालय प्रतिष्ठा प्राप्त होगा यह समझ विकसित करना धार्मिक शिक्षा का व्यावहारिक आयाम है। |
Line 226: |
Line 226: |
| परन्तु आजकल स्थिति कुछ विपरीत भी बनी है। आज विद्यालय उनके भवन, सुविधाओं और विद्यार्थी संख्या से जाने जाते हैं । विद्यालय परिसर जितना विशाल, विद्यालय का भवन जितना भव्य, भवनों की संख्या जितनी अधिक, वाहन जितने अधिक, विद्यालय की सुविधायें जितनी अद्यतन और इन सबके अनुपात में विद्यालय का शुल्क जितना ऊँचा उतनी विद्यालय की प्रतिष्ठा भी अधिक । | | परन्तु आजकल स्थिति कुछ विपरीत भी बनी है। आज विद्यालय उनके भवन, सुविधाओं और विद्यार्थी संख्या से जाने जाते हैं । विद्यालय परिसर जितना विशाल, विद्यालय का भवन जितना भव्य, भवनों की संख्या जितनी अधिक, वाहन जितने अधिक, विद्यालय की सुविधायें जितनी अद्यतन और इन सबके अनुपात में विद्यालय का शुल्क जितना ऊँचा उतनी विद्यालय की प्रतिष्ठा भी अधिक । |
| | | |
− | अंग्रेजी माध्यम प्रतिष्ठा का और एक विषय है । जितनी कम आयु में अंग्रेजी पढाया जाता है उतनी अधिक प्रतिष्ठा होती है । अंग्रेजी के साथ साथ यदि अन्य विदेशी भाषायें भी सिखाई जाती हैं तो और भी अच्छा है। विद्यालय में यदि विदेशी छात्र पढ़ते हैं तो वह भी गौरव का विषय बनता है । विदेशी मेहमान आते हैं तो प्रतिष्ठा बढती है । | + | अंग्रेजी माध्यम प्रतिष्ठा का और एक विषय है । जितनी कम आयु में अंग्रेजी पढाया जाता है उतनी अधिक प्रतिष्ठा होती है । अंग्रेजी के साथ साथ यदि अन्य विदेशी भाषायें भी सिखाई जाती हैं तो और भी अच्छा है। विद्यालय में यदि विदेशी छात्र पढ़ते हैं तो वह भी गौरव का विषय बनता है । विदेशी अतिथि आते हैं तो प्रतिष्ठा बढती है । |
| | | |
| विदेशी खेल खेले जाते हैं, विदेश में शैक्षिक भ्रमण के लिये जाना होता है, आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड की मान्यता है, विदेशी वेश का गणवेश, विद्यालय के कैण्टीन में कण्टीनेन्टल नाश्ता मिलता है तो विद्यालय प्रतिष्ठित माना जाता है । | | विदेशी खेल खेले जाते हैं, विदेश में शैक्षिक भ्रमण के लिये जाना होता है, आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड की मान्यता है, विदेशी वेश का गणवेश, विद्यालय के कैण्टीन में कण्टीनेन्टल नाश्ता मिलता है तो विद्यालय प्रतिष्ठित माना जाता है । |
Line 245: |
Line 245: |
| # चरित्र का सम्मान करना होगा । शिक्षकों को स्वयं चरित्रवान बनकर विद्यार्थियों को चरित्रवान बनाना होगा। | | # चरित्र का सम्मान करना होगा । शिक्षकों को स्वयं चरित्रवान बनकर विद्यार्थियों को चरित्रवान बनाना होगा। |
| # परीक्षा केन्द्रों को विद्यालय में लाना होगा। शिक्षक ही अपने विद्यार्थियों को प्रमाणपत्र दे सकें ऐसा विश्वसनीय बनना होगा। | | # परीक्षा केन्द्रों को विद्यालय में लाना होगा। शिक्षक ही अपने विद्यार्थियों को प्रमाणपत्र दे सकें ऐसा विश्वसनीय बनना होगा। |
− | # विद्यालय भवन और सुविधाओं से नहीं अपितु ज्ञान और चरित्र से जाना जाय इसे बार बार लोगों के समक्ष बताना होगा। | + | # विद्यालय भवन और सुविधाओं से नहीं अपितु ज्ञान और चरित्र से जाना जाय इसे बार बार लोगोंं के समक्ष बताना होगा। |
| # धार्मिक ज्ञानधारा को युगानुकूल प्रवाहित करने हेतु अध्ययन और अनुसन्धान के कार्य को धार्मिक जीवनदृष्टि में केन्द्रित करना होगा। | | # धार्मिक ज्ञानधारा को युगानुकूल प्रवाहित करने हेतु अध्ययन और अनुसन्धान के कार्य को धार्मिक जीवनदृष्टि में केन्द्रित करना होगा। |
| यह एक आन्तरिक परिवर्तन है और धैर्यपूर्वक निरन्तर प्रयास की अपेक्षा करता है । चाणक्य और तक्षशिला यदि आदर्श हैं तो इन आदर्शों को मूर्त करना कोई सरल काम नहीं है। | | यह एक आन्तरिक परिवर्तन है और धैर्यपूर्वक निरन्तर प्रयास की अपेक्षा करता है । चाणक्य और तक्षशिला यदि आदर्श हैं तो इन आदर्शों को मूर्त करना कोई सरल काम नहीं है। |