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शिक्षा को भारतीय बनाने के अभियान की यह सबसे कठिन श्रेणी है । इसलिये शैक्षिक संगठनों को चाहिये कि वे इस श्रेणी के साथ संवाद स्थापित करें । यह वर्ग बुद्धिमान है, चतुर है, परिस्थिति को समझने वाला है। इस वर्ग के साथ शिक्षा को भारतीय बनाने की अनिवार्यता को लेकर शास्त्रार्थ किया जाय, भावना और बुद्धि दोनों को सम्बोधित किया जाय और जनमानस प्रबोधन से भी अधिक महत्त्वपूर्ण मानकर उनका प्रबोधन किया जाय । उन्हें ही सिस्टम से मुक्त होने का मार्ग बताने के लिये आग्रह किया जाय । शैक्षिक संगठन सरकार से कृपा मांगने के स्थान पर शिक्षा की मुक्ति माँगे । शासकों को भी इस कार्य में साथ में लिया जाय और शासन, प्रशासन, धर्मसंस्थायें और शैक्षिक संगठन मिलकर इस समस्या का समाधान करने का बीडा उठायें।
 
शिक्षा को भारतीय बनाने के अभियान की यह सबसे कठिन श्रेणी है । इसलिये शैक्षिक संगठनों को चाहिये कि वे इस श्रेणी के साथ संवाद स्थापित करें । यह वर्ग बुद्धिमान है, चतुर है, परिस्थिति को समझने वाला है। इस वर्ग के साथ शिक्षा को भारतीय बनाने की अनिवार्यता को लेकर शास्त्रार्थ किया जाय, भावना और बुद्धि दोनों को सम्बोधित किया जाय और जनमानस प्रबोधन से भी अधिक महत्त्वपूर्ण मानकर उनका प्रबोधन किया जाय । उन्हें ही सिस्टम से मुक्त होने का मार्ग बताने के लिये आग्रह किया जाय । शैक्षिक संगठन सरकार से कृपा मांगने के स्थान पर शिक्षा की मुक्ति माँगे । शासकों को भी इस कार्य में साथ में लिया जाय और शासन, प्रशासन, धर्मसंस्थायें और शैक्षिक संगठन मिलकर इस समस्या का समाधान करने का बीडा उठायें।
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इस कठिन क्षेत्र को पार किये - बिना विश्वविद्यालयों में ज्ञानसाधना नहीं हो सकती, न समाजप्रबोधन ही हो सकता है । प्रशासकों के साथ बैठकर सिस्टम को किस प्रकार जकडन मुक्त और जिन्दा बनाया जाय, सिस्टम बन्धन में जकडे क्षेत्रों को किस प्रक्रिया को अपना कर मुक्त करे और मुक्त करने के बाद भी उन क्षेत्रों की सुरक्षा की चिन्ता करे इस विषय पर विमर्श होना चाहिये । इसके उपाय संगठनों को भी सोचने चाहिये ।।
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उदाहरण के लिये शिक्षा का अर्थार्जन के साथ सम्बन्ध विच्छेद कर दिया जाय । अर्थकरी शिक्षा को अर्थोत्पादन के क्षेत्र के साथ जोडा जाय और अर्थोत्पादन के क्षेत्र को मिलने वाली सरकारी सहायता बन्द कर दी जाय । इस कथन का विचार करने पर भी भय लगने की सम्भावना है परन्तु ऐसा किये बिना शिक्षा की या समाज की मुक्ति होना सम्भव ही नहीं है। बड़े उद्योगों का विकेन्द्रीकरण करने से अर्थक्षेत्र स्वायत्त होने का प्रारम्भ होगा।
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अपनी सन्तानों की शिक्षा का दायित्व मातापिता का भी है, अतः उन्हें भी इसमें सहभागी बनाया जाय । जिस प्रकार शिशुसंगोपन और भोजन घर की माता के अधीन होता है उसी प्रकार दस वर्ष तक की आयु की शिक्षा मातापिता के अधीन होनी चाहिये । गृहस्थाश्रम चलाने की शिक्षा घर में ही प्राप्त हो सकती है इसलिये घर की शिक्षा को सम्पूर्ण शिक्षा का महत्त्वपूर्ण अंग मानकर घर को एक विद्यालय के रूप में स्थापित करने का अभियान चलाना चाहिये । इस प्रकार गृहस्थाश्रम की शिक्षा घर में मातापिता के अधीन और अर्थार्जन की शिक्षा अर्थोत्पादन के क्षेत्र के अधीन कर दी जाय तो केवल ज्ञानार्जन की शिक्षा ही बचेगी जिसे विश्वविद्यालयों के अधीन की जा सकती है। विश्वविद्यालय अपने क्षेत्र में जितनी जनसंख्या है उतनी जनसंख्या की सम्पूर्ण शिक्षा की जिम्मेदारी ले और सरकार इन्हें बी कोई सहायता न करें। समाज पर आधारित होकर ही विश्वविद्यालय ज्ञानक्षेत्र के विकास का काम करें । तब ज्ञान, संस्कार और अर्थार्जन तीनों मुक्त श्वास लेंगे ।
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यह काम सरल तो नहीं ही है परन्तु असम्भव भी तो नहीं है । एक एक गाँव में ऐसे शिक्षकों से निवेदन किया जाय
    
==References==
 
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