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→‎विषय अनुसार कक्ष रचना: लेख सम्पादित किया
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# किसी भी विषय का अध्ययन केवल निश्चित समय पर, निश्चित समयावधि में, निश्चित पद्धति और प्रक्रिया से, निश्चित एक ही स्थान पर नहीं हो सकता है। यह बहुत कृत्रिम पद्धति है। शिक्षा जैसी आध्यात्मिक प्रक्रिया, जो सम्पूर्ण व्यक्तित्व के साथ जुड़ी हुई है, यांत्रिक पद्धति से नहीं हो सकती है । जीवन जिस प्रकार चलता है उसी प्रकार से शिक्षा भी चलती है ।  
 
# किसी भी विषय का अध्ययन केवल निश्चित समय पर, निश्चित समयावधि में, निश्चित पद्धति और प्रक्रिया से, निश्चित एक ही स्थान पर नहीं हो सकता है। यह बहुत कृत्रिम पद्धति है। शिक्षा जैसी आध्यात्मिक प्रक्रिया, जो सम्पूर्ण व्यक्तित्व के साथ जुड़ी हुई है, यांत्रिक पद्धति से नहीं हो सकती है । जीवन जिस प्रकार चलता है उसी प्रकार से शिक्षा भी चलती है ।  
 
# इसलिए कक्षों का विभाजन कक्षाओं के अनुसार करने के स्थान पर विषयों के अनुसार करना उचित है। यह शिक्षा के जीवमान स्वभाव को ध्यान में रखकर की गई व्यवस्था है ।  
 
# इसलिए कक्षों का विभाजन कक्षाओं के अनुसार करने के स्थान पर विषयों के अनुसार करना उचित है। यह शिक्षा के जीवमान स्वभाव को ध्यान में रखकर की गई व्यवस्था है ।  
# इस प्रकार विभाजन करने से विभिन्न विषयों के स्वरूप के अनुसार व्यवस्था करने की सुविधा निर्माण होती है। हर विषय का कक्ष उस विषय की प्रयोगशाला हो सकता है । विषय के साथ संबन्धित सम्पूर्ण साहित्य और सामाग्री उस कक्ष में हो सकती है । बैठक व्यवस्था से लेकर वातावरण होगा और छात्र अपनी अपनी क्षमता के अनुसार उसी विषय के अनुरूप बनाया जा सकता है । विज्ञान किसी विषय का पाठ्यक्रम बारह, ग्यारह या हो की प्रयोगशाला, उद्योग की कार्यशाला, संगीत की सकता है कि पंद्रह वर्षों में पूर्ण करेंगे । अर्थात बारह संगीतशाला, चित्र तथा अन्य कलाओं की वर्षों कि अवधि में कोई छात्र बारह वर्ष सामाजिक कलाशाला, भाषा और साहित्य का साहित्यमंदिर, शास्त्रों का अध्ययन पूर्ण करता है तो उसके तीन बचे इतिहास और भूगोल की पुरातत्त्वशाला आदि की हुए वर्ष कठिन लगने वाले विषय का अधिक रचना की जा सकती है । अध्ययन करने के लिए दे सकता है ।
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# इस प्रकार विभाजन करने से विभिन्न विषयों के स्वरूप के अनुसार व्यवस्था करने की सुविधा निर्माण होती है। हर विषय का कक्ष उस विषय की प्रयोगशाला हो सकता है । विषय के साथ संबन्धित सम्पूर्ण साहित्य और सामाग्री उस कक्ष में हो सकती है ।  
# ''ऐसा करने से विषयों की साधनसामग्री एक ही स्थान... ११. इस व्यवस्था में अध्ययन स्वाभाविक हो सकता है,''
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# बैठक व्यवस्था से लेकर वातावरण उसी विषय के अनुरूप बनाया जा सकता है । विज्ञान की प्रयोगशाला, उद्योग की कार्यशाला, संगीत की संगीतशाला, चित्र तथा अन्य कलाओं की कलाशाला, भाषा और साहित्य का साहित्यमंदिर, इतिहास और भूगोल की पुरातत्त्वशाला आदि की रचना की जा सकती है।
''पर उपलब्ध हो जाती है। विषय का आकलन आवश्यक और सहज गति से हो सकता है, पर्याप्त''
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# ऐसा करने से विषयों की साधनसामग्री एक ही स्थान पर उपलब्ध हो जाती है। विषय का आकलन सरलता से होता है।
 
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# विषय के अनुसार कक्षरचना करने के लिए कालांश पद्धति बदलनी होती है। समयसारिणी में परिवर्तन करना होता है । अब सारे विषय एक ही अवधि के नहीं रखे जा सकते । विषय की प्रकृति के अनुरूप समय का विभाजन करना होता है।
''सरलता से होता है । समय देकर हो सकता है । छोटे और बड़े छात्र एक''
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# साथ ही एक ही कक्षा के छात्र एक साथ बैठेंगे ऐसा भी आवश्यक नहीं है । एक कक्ष में बैठ सकें उतनी संख्या में दो तीन कक्षाओं के छात्र एकसाथ बैठेंगे । अर्थात कोई छात्र चौदह वर्ष आयु के हैं तो कोई बारह और कोई ग्यारह वर्ष आयु के भी हो सकते हैं ।
 
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# किंबहुना अब कक्षाओं के अनुसार छात्रों का विभाजन नहीं हो सकता, विषयों के अनुसार छात्रों का विभाजन होगा । यह नौवीं का, यह सातवीं का, यह पाँचवीं का इस प्रकार कक्षों का विभाजन करने के स्थान पर विज्ञान, भाषा, इतिहास आदि के अनुसार कक्षों का विभाजन होगा।
''७. विषय के अनुसार कक्षस्वना करने के लिए कालांश साथ अध्ययन करते हैं इसलिए बड़े छात्र छोटे छात्रों''
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# विषय के अनुसार कक्ष रचना करने के लिए एक एक वर्ष की एक एक कक्षा की अवधि भी नहीं रहेगी। कुल बारह वर्ष पढ़ना है तो छात्र अपनी अपनी क्षमता के अनुसार विभिन्न विषयों के कक्षों में बैठकर अध्ययन करेंगे। विषयों का पाठ्यक्रम एक एक वर्ष में विभाजित होने के स्थान पर निरन्तर बारह वर्षों का होगा और छात्र अपनी अपनी क्षमता के अनुसार किसी विषय का पाठ्यक्रम बारह, ग्यारह या हो सकता है कि पंद्रह वर्षों में पूर्ण करेंगे । अर्थात बारह वर्षों कि अवधि में कोई छात्र बारह वर्ष सामाजिक शास्त्रों का अध्ययन पूर्ण करता है तो उसके तीन बचे हुए वर्ष कठिन लगने वाले विषय का अधिक अध्ययन करने के लिए दे सकता है।
 
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# इस व्यवस्था में अध्ययन स्वाभाविक हो सकता है, आवश्यक और सहज गति से हो सकता है, पर्याप्त समय देकर हो सकता है । छोटे और बड़े छात्र एक साथ अध्ययन करते हैं इसलिए बड़े छात्र छोटे छात्रों को सहायता कर सकते हैं । एक ही कक्षा में किसी छात्र का अधिति का, किसीका बोध का । किसीका अभ्यास का, किसीका प्रसार का पद सम्भव होता है। पंचपदी अध्ययन पद्धति के लिए इस प्रकार की रचना अनिवार्य है।
''पद्धति बदलनी होती है । समयसारिणी में परिवर्तन को सहायता कर सकते हैं । एक ही कक्षा में किसी''
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# आचार्य और छात्रों का समरस सम्बन्ध बनने में यह रचना बहुत सहायक होती है। यह एक एक विषय का छोटा गुरुकुल अथवा छोटा विद्यालय बन जाता  
 
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# सभी कक्षाओं का नियोजन भी विषयों के अनुसार ही होता है, न कि कक्षाओं के अनुसार ।
''करना होता है । अब सारे विषय एक ही अवधि के छात्र का अधिति का, किसीका बोध का । किसीका''
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# आज की व्यवस्था के हम इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि इस प्रकार की रचना हमें जल्दी समझ में नहीं आती। परन्तु ठीक से विचार करने पर इसकी उपयोगिता ध्यान में आती है। इस प्रकार की रचना करने के लिए विद्यालय के भवन की रचना का भी विशेष विचार करना होगा। सभी कक्ष एक ही नाप के, एक ही आकारप्रकार के नहीं हो सकते । विषय के स्वरूप के अनुसार ही कक्षों का निर्माण भी करना होगा ।
 
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# संक्षेप में पंचपदी अध्ययन पद्धति के लिए विषयानुसार कक्षरचना अनिवार्य है ।
''नहीं रखे जा सकते । विषय की प्रकृति के अनुरूप अभ्यास का, किसीका प्रसार का पद सम्भव होता''
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''समय का विभाजन करना होता है । है । पंचपदी अध्ययन पद्धति के लिए इस प्रकार की''
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''८... साथ ही एक ही कक्षा के छात्र एक साथ बैठेंगे ऐसा रचना अनिवार्य है ।''
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''भी आवश्यक नहीं है । एक कक्ष में बैठ सकें उतनी... १२. आचार्य और छात्रों का समरस सम्बन्ध बनने में यह''
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''संख्या में दो तीन कक्षाओं के छात्र एकसाथ बैठेंगे । रचना बहुत सहायक होती है । यह एक एक विषय''
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''अर्थात कोई छात्र चौद्ह वर्ष आयु के हैं तो कोई का छोटा गुरुकुल अथवा छोटा विद्यालय बन जाता''
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''बारह और कोई ग्यारह वर्ष आयु के भी हो सकते है।''
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''हैं। १३, सभी कक्षाओं का नियोजन भी विषयों के अनुसार ही''
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''8. किंबहुना अब कक्षाओं के अनुसार छात्रों का होता है, न कि कक्षाओं के अनुसार ।''
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''विभाजन नहीं हो सकता, विषयों के अनुसार छात्रों. १४. आज की व्यवस्था के हम इतने अभ्यस्त हो गए हैं''
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''का विभाजन होगा । यह नौवीं का, यह सातवीं का, कि इस प्रकार की रचना हमें जल्दी समझ में नहीं''
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''यह पाँचवीं का इस प्रकार कक्षों का विभाजन करने आती । परन्तु ठीक से विचार करने पर इसकी''
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''के स्थान पर विज्ञान, भाषा, इतिहास आदि के उपयोगिता ध्यान में आती है ।''
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''अनुसार कक्षों का विभाजन होगा । १५, इस प्रकार की स्वना करने के लिए विद्यालय के''
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''Qo, विषय के अनुसार कक्ष रचना करने के लिए एक एक भवन की स्चना का भी विशेष विचार करना होगा ।''
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''वर्ष की एक एक कक्षा की अवधि भी नहीं रहेगी । सभी कक्ष एक ही नाप के, एक ही आकारप्रकार के''
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''कुल बारह वर्ष पढ़ना है तो छात्र अपनी अपनी नहीं हो सकते । विषय के स्वरूप के अनुसार ही''
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''क्षमता के अनुसार विभिन्न विषयों के कक्षों में बैठकर कक्षों का निर्माण भी करना होगा ।''
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''अध्ययन करेंगे । विषयों का पाठ्यक्रम एक एक वर्ष. १६. संक्षेप में पंचपदी अध्ययन पद्धति के लिए''
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''में विभाजित होने के स्थान पर निरन्तर बारह वर्षों का विषयानुसार कक्षस्वना अनिवार्य है ।''
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''श्ंट''
   
==References==
 
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<references />
 
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