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→‎गीत सिखाने का उदाहरण: लेख सम्पादित किया
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दूसरा उदाहरण देखें । संगीत की कक्षा में शिक्षक अपने छात्रों को एक गीत सिखा रहा है । वह गीत के शब्दों को सुनाता है । गीत गाकर सुनाता है । एक बार दो बार गाता है और छात्र सुनते हैं । उसके बाद छात्र भी सुना हुआ गाते हैं । यह क्रिया एक से अधिक बार होती है । इस समय शिक्षक छात्र के उच्चार सही है कि नहीं, स्वर ठीक है कि नहीं यह देखता है । यदि ठीक नहीं है तो उसमें सुधार करता है । छात्र को सही सही आने तक वह यह क्रिया बार बार करता है । शिक्षक के लिए यह प्रवचन है और छात्र के लिए अधीति । इसके बाद छात्र स्वयं गाता है, गाने का प्रयास करता है । आचार्य ने क्या सिखाया था इसका स्मरण करता है । गाते समय उसका स्वर ठीक नहीं होता तो उसे स्वयं को समझ में आता है । वह ठीक करने का प्रयास करता है । शिक्षक भी गाता है, परखता है । ऐसा करते करते कुछ समय के बाद छात्र का स्वर ठीक हो जाता है । उसे गीत आ गया ऐसा शिक्षक को भी लगता है और छात्र को भी प्रतीति होती है । यह उसका बोध का पद है । इसके बाद उसका अभ्यास शुरू होता है । वह उसी गीत को बार बार गाता है । गाते गाते वह गीत उसके गले में बैठता है । अब वह गलती नहीं करता, न उसे भूलता है ।
 
दूसरा उदाहरण देखें । संगीत की कक्षा में शिक्षक अपने छात्रों को एक गीत सिखा रहा है । वह गीत के शब्दों को सुनाता है । गीत गाकर सुनाता है । एक बार दो बार गाता है और छात्र सुनते हैं । उसके बाद छात्र भी सुना हुआ गाते हैं । यह क्रिया एक से अधिक बार होती है । इस समय शिक्षक छात्र के उच्चार सही है कि नहीं, स्वर ठीक है कि नहीं यह देखता है । यदि ठीक नहीं है तो उसमें सुधार करता है । छात्र को सही सही आने तक वह यह क्रिया बार बार करता है । शिक्षक के लिए यह प्रवचन है और छात्र के लिए अधीति । इसके बाद छात्र स्वयं गाता है, गाने का प्रयास करता है । आचार्य ने क्या सिखाया था इसका स्मरण करता है । गाते समय उसका स्वर ठीक नहीं होता तो उसे स्वयं को समझ में आता है । वह ठीक करने का प्रयास करता है । शिक्षक भी गाता है, परखता है । ऐसा करते करते कुछ समय के बाद छात्र का स्वर ठीक हो जाता है । उसे गीत आ गया ऐसा शिक्षक को भी लगता है और छात्र को भी प्रतीति होती है । यह उसका बोध का पद है । इसके बाद उसका अभ्यास शुरू होता है । वह उसी गीत को बार बार गाता है । गाते गाते वह गीत उसके गले में बैठता है । अब वह गलती नहीं करता, न उसे भूलता है ।
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अभ्यास के साथ साथ वह गीत उसके गले में और मस्तिष्क में भी बैठता है । अब वह उसका आनंद ले रहा है । उसकी खूबियां समझ रहा है । अब वह इस गीत के जैसे अन्य गीतों के साथ इसकी तुलना कर रहा है । अब वह उस के रहस्य को भी जानने लगा है, समझ रहा है । अभ्यास करते करते वह इस गीत को अपने अस्तित्व का अंग बना रहा है । वह गीत सुनता है तब के और गीत का अभ्यास होने के बाद में जो आनंद आता है उसमें बहुत अंतर है । अंतर उसे स्वयं समझ में आता है ।  
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अभ्यास के साथ साथ वह गीत उसके गले में और मस्तिष्क में भी बैठता है । अब वह उसका आनंद ले रहा है । उसकी खूबियां समझ रहा है । अब वह इस गीत के जैसे अन्य गीतों के साथ इसकी तुलना कर रहा है । अब वह उस के रहस्य को भी जानने लगा है, समझ रहा है। अभ्यास करते करते वह इस गीत को अपने अस्तित्व का अंग बना रहा है । वह गीत सुनता है तब के और गीत का अभ्यास होने के बाद में जो आनंद आता है उसमें बहुत अंतर है। अंतर उसे स्वयं समझ में आता है। यह अंतर उसके साथ रहने वालों के भी समझ में आता है । अभ्यास के बाद प्रयोग का पद है । उस गीत को वह अपने आनंद के लिए गाता है और दूसरों को आनंद देने के लिए भी गाता है। गीतका अभ्यास जैसे जैसे बढ़ता जाता है वैसे वैसे उसके स्वर, ताल और लय परिपक्व होते जाते हैं । इस ज्ञान का उपयोग वह अन्य गीत सीखने में करता है। शास्त्रीय संगीत में वह प्रगति करता है। आगे के अभ्यास के लिए इस गीत का अभ्यास उसे उपयोगी होता है । यह उसके लिए प्रयोग का पद है । जब वह गाता है तब और लोग सुनते हैं । कोई एक व्यक्ति उससे यह गीत सीखना भी चाहता है । छात्र उसे सिखाता है । यह उसके लिए प्रवचन का पद है। सुनने वाले के और सीखने वाले के लिए यह अधीति का पद है। और किसीको न भी सिखाएं तब भी छात्र अपनी ही प्रस्तुति में विविधता लाता है, नवीनता लाता है । यह उसके लिए स्वाध्याय है। दूसरे किसी गीत की स्वर रचना बनाता है। यह भी उसके लिए स्वाध्याय का ही पद है। इस प्रकार उसका अध्ययन पाँच पदों में चलता है । ये पांच पद नहीं है तो उसका अध्ययन पूरा नहीं होता, परिपक्व नहीं होता, उसके व्यक्तित्व का वह अंग नहीं बनता।
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''यह अंतर... सिद्धांत किस प्रकार लागू होता है ? इन''
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== लेख का उदाहरण ==
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इस लेख का ही उदाहरण लें। जो भी पाठक इसे पढ़ते हैं उनके लिए यह अधीति है । पढ़ने के बाद पाठक जब उस पर मनन, चिंतन, चर्चा करेंगे तब वह बोध के पद से गुजर रहा है । ध्यान देने योग्य बात यह है कि कर्मेंद्रिय से होने वाली क्रियाओं के संबंध में पांच पद किस प्रकार व्यवहार में आते हैं यह सरलता से समझ में आता है परंतु अध्ययन केवल कर्मेन्द्रियों से ही नहीं होता है। वह हमेशा क्रिया ही नहीं होता है। उदाहरण के लिए इतिहास, मनोविज्ञान या तत्त्वज्ञान का अध्ययन कर्मेन्द्रियों का विषय नहीं है। विज्ञान और तंत्रज्ञान के सिद्धांत समझना केवल कर्मेन्द्रियों का विषय नहीं है। इनके बारे में पंचपदी का सिद्धांत किस प्रकार लागू होता है?  
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''उसके साथ रहने वालों के भी समझ में आता है अभ्यास... विषयों में अधीति और बोध तो समझ में आता है परंतु''
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इन विषयों में अधीति और बोध तो समझ में आता है परंतु अभ्यास और प्रयोग का पद कैसा होगा ? उत्तर यह है कि बुद्धि से और मन से ग्रहण किए जाने वाले विषयों में पंचपदी का सिद्धांत किस प्रकार काम करता है यह जानना भी महत्त्वपूर्ण है । अभी हमने देखा कि अधीति और बोध के पद को समझना कठिन नहीं है। अब हम देखें कि एक सिद्धांत हमारे सामने रखा जा रहा है। प्रथम तो हमने पूरा विवेचन आँखों से, मन से, बुद्धि से ग्रहण किया । हमारा ग्रहण करना निर्दोष है, प्रामाणिक है । हमें स्वयं को ही यह बात समझ में आती है। पढ़ लेने के बाद भी वह हमारे मन में रहता है और धीरे धीरे बोध परिपक्व होता है । हमने ठीक समझा कि नहीं उसे परखने के लिए हम अन्य किसीसे प्रश्न भी पूछेगे। हमारा विचार प्रस्तुत भी करेंगे। इस प्रकार अपने अंतःकरण की सहायता से और अन्य लोगों की सहायता से या अन्य ग्रंथों की सहायता से हम सुने हुए सिद्धांतों को ठीक से समझेंगे । इसके बाद अभ्यास का पद शुरू होगा। कर्मेन्द्रियों से होने वाली क्रिया का अभ्यास और अंतःकरण से होने वाले अभ्यास में अंतर है। कर्मेन्द्रियों की क्रियाएं देखी जाती हैं, उनका पुनरावर्तन प्रत्यक्ष होता है। अंतःकरण से होने वाला अभ्यास सूक्ष्म होता है। पंचपदी की प्रक्रिया को हम अनेक विषयों को लागू करने का अभ्यास करते हैं ।
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''के बाद प्रयोग का पद है । उस गीत को वह अपने आनंद. अभ्यास और प्रयोग का पद कैसा होगा ? उत्तर यह है कि''
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हम अनेक उदाहरण ढूंढते हैं । केवल सिद्धांत समझने का ही नहीं तो प्रक्रियाओं को समझने का कार्य भी हमारी बुद्धि कर रही है। इसके अभ्यास के द्वारा हमारा मन एकाग्र होता है और बुद्धि परिष्कृत होती रहती है। यह भी अभ्यास का ही परिणाम है। एक विषय को या मुद्दे को समझते समझते हमारी बुद्धि सक्षम, निर्दोष और परिपक्व बनती जाती है। यह हमारी उपलब्धि है। अन्यत्र कहीं हमने सुना है कि विषयों की जानकारी का उपयोग ज्ञानार्जन के करणों के विकास में होता है। इन सिद्धांतों को लागू करने का अभ्यास स्वयं इस सिद्धांत को ठीक से समझने में तो होता ही है परंतु अन्य सिद्धांत समझने के लिए भी उपयोगी होता है । विषय और करण दोनों एक दूसरे के लिए सहयोगी बनते हैं । यह भी ज्ञानार्जन की प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । अभ्यास से विषय तो पक्का होता ही है, साथ ही विवेक भी बढ़ता है और ज्ञान प्राप्त करने से जो प्रसन्नता होती है उसका भी अनुभव होता है। यह कदाचित अंतःकरण के स्तर पर होने वाली ज्ञानार्जन की प्रक्रिया है । यह हमारे लिए अभ्यास का पद है । इसके बाद हम प्रयोग के पद पर पहुंचते हैं । हमारे अध्यापन कार्य में पंचपदी के सिद्धांत का ज्ञान व्यक्त होता है । हमारा अध्यापन अध्ययन का कार्य अधिक समर्थ और अधिक प्रभावी बनता है । हम भी अध्यापन का कार्य इस सिद्धांत के प्रकाश में करते हैं । छात्र अध्ययन के किस पद से गुजर रहा है इसका भी पता हमें चलता है । छात्र का बोध का पद ठीक हुआ कि नहीं इसकी और हमारा विशेष ध्यान रहता है । हमारा अध्यापन छात्रों को भी ठीक लगता है । सामान्य भाषा में इसे ही अनुभवी अध्यापक कहते हैं । यह हमारे लिए प्रयोग का पद है । हम देख रहे हैं कि पंचपदी के सिद्धांत को लेकर लेखक के लिए प्रसार का पद है । लेखक प्रवचन कर रहा है। अर्थात उसने जो समझा है वह पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास वह कर रहा है । हम जब वैसा करेंगे तब वह हमारे लिए प्रसार का पद होगा । परंतु केवल पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना ही प्रसार नहीं है । वह उसका एक आयाम है । यह प्रवचन है । पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते समय लेखक स्वयं का परीक्षण करता है । वह देखता है कि उसे ठीक से प्रस्तुत करना आया कि नहीं । लेखक ज्ञानार्जन की प्रक्रिया के अन्य सिद्धांतों के साथ पंचपदी के सिद्धांत की तुलना करता है । वह यह प्रक्रिया किस प्रकार होती है इसका भी चिंतन करता है । पाठक भी यह करेंगे । तब लेखक और पाठक सबके लिए यह स्वाध्याय का पद होगा । इसी प्रकार से अन्य विषयों को भी समझा जाता है । दोनों पद्धतियों की तुलना शिक्षक प्रशिक्षण के कई पाठ्यक्रमों में हमने हर्बर्ट की पंचपदी के विषय में सुना है और पढ़ा भी है । यहाँ जो पंचपदी प्रस्तुत हुई है उसमें और हर्बर्ट की पंचपदी में क्या अंतर है ? क्या दोनों का समन्वय किया जा सकता है ?
 
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''के लिए गाता है और दूसरों को आनंद देने के लिए भी... बुद्धि से और मन से ग्रहण किए जाने वाले विषयों में''
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''गाता है । गीतका अभ्यास जैसे जैसे बढ़ता जाता है वैसे. पंचपदी का सिद्धांत किस प्रकार काम करता है यह जानना''
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''वैसे उसके स्वर, ताल और लय परिपक्क होते जाते हैं । इस... भी महत्त्वपूर्ण है । अभी हमने देखा कि अधीति और बोध''
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''ज्ञान का उपयोग वह अन्य गीत सीखने में करता है ।.. के पद को समझना कठिन नहीं है । अब हम देखें कि एक''
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''शास्त्रीय संगीत में वह प्रगति करता है । आगे के अभ्यास. सिद्धांत हमारे सामने रखा जा रहा है । प्रथम तो हमने पूरा''
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''के लिए इस गीत का अभ्यास उसे उपयोगी होता है । यह... विवेचन आँखों से, मन से, बुद्धि से ग्रहण किया । हमारा''
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''लोग सुनते हैं । कोई एक व्यक्ति उससे यह गीत सीखना भी... बात समझ में आती है । पढ़ लेने के बाद भी वह हमारे मन''
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''चाहता है । छात्र उसे सिखाता है । यह उसके लिए प्रवचन. में रहता है और धीरे धीरे बोध परिपक्क होता है । हमने ठीक''
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''का पद है । सुनने वाले के और सीखने वाले के लिए यह... समझा कि नहीं उसे परखने के लिए हम अन्य feel''
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''छात्र अपनी ही प्रस्तुति में विविधता लाता है, नवीनता.. अपने अंतःकरण की सहायता से और अन्य लोगों की''
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''लाता है । यह उसके लिए स्वाध्याय है । दूसरे किसी गीत. सहायता से या अन्य ग्रंथों की सहायता से हम सुने हुए''
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''की स्वर रचना बनाता है । यह भी उसके लिए स्वाध्याय.... सिद्धांतों को ठीक से समझेंगे । इसके बाद अभ्यास का पद''
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''का ही पद है । इस प्रकार उसका अध्ययन पाँच पदों में. शुरू होगा । कर्मेन्ट्रियों से होने वाली क्रिया का अभ्यास''
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''चलता है । ये पांच पद नहीं है तो उसका अध्ययन पूरा नहीं... और अंतःकरण से होने वाले अभ्यास में अंतर है।''
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''होता, परिपक्क नहीं होता, उसके व्यक्तित्व का वह अंग नहीं... कर्मेन्ट्रियों की क्रियाएं देखी जाती हैं, उनका पुनरावर्तन''
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''बनता । प्रत्यक्ष होता है । अंतःकरण से होने वाला अभ्यास सूक्ष्म''
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''होता है । पंचपदी की प्रक्रिया को हम अनेक विषयों को''
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''लागू करने का अभ्यास करते हैं । हम अनेक उदाहरण Gad''
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''इस लेख का ही उदाहरण लें । जो भी पाठक इसे. हैं । केवल सिद्धांत समझने का ही नहीं तो प्रक्रियाओं को''
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''पढ़ते हैं उनके लिए यह अधीति है । पढ़ने के बाद पाठक. समझने का कार्य भी हमारी बुद्धि कर रही है। इसके''
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''जब उस पर मनन, चिंतन, चर्चा करेंगे तब वह बोध के पद अभ्यास के द्वारा हमारा मन एकाग्र होता है और बुद्धि''
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''से गुजर रहा है । ध्यान देने योग्य बात यह है कि aia a परिष्कृत होती रहती है । यह भी अभ्यास का ही परिणाम''
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''होने वाली क्रियाओं के संबंध में पांच पद किस प्रकार. है । एक विषय को या मुद्दे को समझते समझते हमारी बुद्धि''
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''अध्ययन केवल कर्मेन्ट्रियों से ही नहीं होता है । वह हमेशा. उपलब्धि है । अन्यत्र कहीं हमने सुना है कि विषयों की''
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''मनोविज्ञान या तत्त्वज्ञान का अध्ययन कर्मेन्ट्रि यों का विषय है। इन सिद्धांतों को लागू करने का अभ्यास स्वयं इस''
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''कर्मेन्ट्रियों का विषय नहीं है । इनके बारे में पंचपदी का... सिद्धांत समझने के लिए भी उपयोगी होता है । विषय और''
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== ''लेख का उदाहरण'' ==
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''Bua''
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करण दोनों एक दूसरे के लिए सहयोगी बनते हैं । यह भी ज्ञानार्जन की प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । अभ्यास से विषय तो पक्का होता ही है, साथ ही विवेक भी बढ़ता है और ज्ञान प्राप्त करने से जो प्रसन्नता होती है उसका भी अनुभव होता है। यह कदाचित अंतःकरण के स्तर पर होने वाली ज्ञानार्जन की प्रक्रिया है । यह हमारे लिए अभ्यास का पद है । इसके बाद हम प्रयोग के पद पर पहुंचते हैं । हमारे अध्यापन कार्य में पंचपदी के सिद्धांत का ज्ञान व्यक्त होता है । हमारा अध्यापन अध्ययन का कार्य अधिक समर्थ और अधिक प्रभावी बनता है । हम भी अध्यापन का कार्य इस सिद्धांत के प्रकाश में करते हैं । छात्र अध्ययन के किस पद से गुजर रहा है इसका भी पता हमें चलता है । छात्र का बोध का पद ठीक हुआ कि नहीं इसकी और हमारा विशेष ध्यान रहता है । हमारा अध्यापन छात्रों को भी ठीक लगता है । सामान्य भाषा में इसे ही अनुभवी अध्यापक कहते हैं । यह हमारे लिए प्रयोग का पद है । हम देख रहे हैं कि पंचपदी के सिद्धांत को लेकर लेखक के लिए प्रसार का पद है । लेखक प्रवचन कर रहा है। अर्थात उसने जो समझा है वह पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास वह कर रहा है । हम जब वैसा करेंगे तब वह हमारे लिए प्रसार का पद होगा । परंतु केवल पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना ही प्रसार नहीं है । वह उसका एक आयाम है । यह प्रवचन है । पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते समय लेखक स्वयं का परीक्षण करता है । वह देखता है कि उसे ठीक से प्रस्तुत करना आया कि नहीं । लेखक ज्ञानार्जन की प्रक्रिया के अन्य सिद्धांतों के साथ पंचपदी के सिद्धांत की तुलना करता है । वह यह प्रक्रिया किस प्रकार होती है इसका भी चिंतन करता है । पाठक भी यह करेंगे । तब लेखक और पाठक सबके लिए यह स्वाध्याय का पद होगा । इसी प्रकार से अन्य विषयों को भी समझा जाता है । दोनों पद्धतियों की तुलना शिक्षक प्रशिक्षण के कई पाठ्यक्रमों में हमने हर्बर्ट की पंचपदी के विषय में सुना है और पढ़ा भी है । यहाँ जो पंचपदी प्रस्तुत हुई है उसमें और हर्बर्ट की पंचपदी में क्या अंतर है ? क्या दोनों का समन्वय किया जा सकता है ?
      
हर्बर्ट की पंचपदी मूल रूप से अध्यापन की पंचपदी है । अध्यापक को कक्षाकक्ष में विषय किस प्रकार प्रस्तुत करना है उसका मार्गदर्शन यह पंचपदी करती है । व्यापक संदर्भ में कहे तो पाश्चात्य जगत की सारी अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया यांत्रिकता से ग्रस्त हो गई है। अध्यापन को कालांश नामक समयसीमा में बद्ध करती है । अध्यापन कौशल को छोटे छोटे हिस्सों में बांटती है । जिस प्रकार एक यंत्र के छोटो छोटे हिस्से बनते हैं उसी प्रकार एक विषय को उपपविषयों में विभाजित किया जाता है उस के मुद्दे बनाए जाते हैं और एक ३५ या ४५ मिनट की समय सीमा में कया पढ़ाना है यह तय किया जाता है । उस समय सीमा के भी हिस्से किए जाते हैं और उन हिस्सों में क्या क्या करना है किस प्रकार करना है यह निश्चित किया जाता है । मोटे मोटे यह पांचपद से होते हैं और वे क्रमशः भी होते हैं इसलिए उसे पंचपदी कहा जाता है । हर्बर्ट नामक शिक्षाशास्त्री उस का आविष्कार किया था इसलिए उसे हर्बर्ट की पंचपदी कहते हैं । हमारे पंचपदी के सिद्धांत और हर्बर्ट की पंचपदी में जो मौलिक अंतर है वह है हर्बर्ट की पंचपदी, अध्यापक की पंचपदी है जबकि हमारी पंचपदी अध्ययन की पंचपदी है । हर्बर्ट की पंचपदी क्रिया है और हमारी पंचपदी प्रक्रिया है । क्रिया कौशल के साथ जुड़ी हुई है और प्रक्रिया अर्जन के साथ । हर्बर्ट की पंचपदी अध्यापन कौशल को विकसित करती है जबकि हमारी पंचपदी अध्ययन के मनोविज्ञान को दर्शाती है । मुझे लगता है कि इस मूल अंतर को समझने से सारी बातें स्पष्ट हो जाती हैं ।
 
हर्बर्ट की पंचपदी मूल रूप से अध्यापन की पंचपदी है । अध्यापक को कक्षाकक्ष में विषय किस प्रकार प्रस्तुत करना है उसका मार्गदर्शन यह पंचपदी करती है । व्यापक संदर्भ में कहे तो पाश्चात्य जगत की सारी अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया यांत्रिकता से ग्रस्त हो गई है। अध्यापन को कालांश नामक समयसीमा में बद्ध करती है । अध्यापन कौशल को छोटे छोटे हिस्सों में बांटती है । जिस प्रकार एक यंत्र के छोटो छोटे हिस्से बनते हैं उसी प्रकार एक विषय को उपपविषयों में विभाजित किया जाता है उस के मुद्दे बनाए जाते हैं और एक ३५ या ४५ मिनट की समय सीमा में कया पढ़ाना है यह तय किया जाता है । उस समय सीमा के भी हिस्से किए जाते हैं और उन हिस्सों में क्या क्या करना है किस प्रकार करना है यह निश्चित किया जाता है । मोटे मोटे यह पांचपद से होते हैं और वे क्रमशः भी होते हैं इसलिए उसे पंचपदी कहा जाता है । हर्बर्ट नामक शिक्षाशास्त्री उस का आविष्कार किया था इसलिए उसे हर्बर्ट की पंचपदी कहते हैं । हमारे पंचपदी के सिद्धांत और हर्बर्ट की पंचपदी में जो मौलिक अंतर है वह है हर्बर्ट की पंचपदी, अध्यापक की पंचपदी है जबकि हमारी पंचपदी अध्ययन की पंचपदी है । हर्बर्ट की पंचपदी क्रिया है और हमारी पंचपदी प्रक्रिया है । क्रिया कौशल के साथ जुड़ी हुई है और प्रक्रिया अर्जन के साथ । हर्बर्ट की पंचपदी अध्यापन कौशल को विकसित करती है जबकि हमारी पंचपदी अध्ययन के मनोविज्ञान को दर्शाती है । मुझे लगता है कि इस मूल अंतर को समझने से सारी बातें स्पष्ट हो जाती हैं ।

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