Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "पडे" to "पड़े"
Line 37: Line 37:  
इसके साथ ही भारत भी जिम्मेदार है । भारत के लिये ये सारी बातें दर्लभ नहीं थीं, नहीं हैं। भारत के पास ज्ञान है, कौशल है और अनुभव है। हजारों वर्षों की भारत की परम्परा है।
 
इसके साथ ही भारत भी जिम्मेदार है । भारत के लिये ये सारी बातें दर्लभ नहीं थीं, नहीं हैं। भारत के पास ज्ञान है, कौशल है और अनुभव है। हजारों वर्षों की भारत की परम्परा है।
   −
अपने इस अनुभव के आधार पर पश्चिम की अपरिपक्व अधूरी और उसके स्वयं के लिये तथा शेष विश्व के लिये संकट निर्माण करनेवाली बातों को हमें नकारना पडेगा। उनका स्वीकार क्यों नहीं हो सकता यह समझना पडेगा और समझाना पड़ेगा।
+
अपने इस अनुभव के आधार पर पश्चिम की अपरिपक्व अधूरी और उसके स्वयं के लिये तथा शेष विश्व के लिये संकट निर्माण करनेवाली बातों को हमें नकारना पड़ेगा। उनका स्वीकार क्यों नहीं हो सकता यह समझना पड़ेगा और समझाना पड़ेगा।
    
जैसा कि पूर्व में कहा है भारत ने इस स्थिति का सामना पूर्व इतिहास में अनेक बार किया है । भूभाग के साथ साथ संस्कृति पर होने वाले आक्रमणों को अनेक बार परास्त किया है । धर्म और अधर्म, दैवी और आसुरी सम्पद् के मध्य अनेक बार संघर्ष हुए हैं, और भारत ने सिद्ध किया है कि विजय तो धर्म की और सत्य की ही होती है।
 
जैसा कि पूर्व में कहा है भारत ने इस स्थिति का सामना पूर्व इतिहास में अनेक बार किया है । भूभाग के साथ साथ संस्कृति पर होने वाले आक्रमणों को अनेक बार परास्त किया है । धर्म और अधर्म, दैवी और आसुरी सम्पद् के मध्य अनेक बार संघर्ष हुए हैं, और भारत ने सिद्ध किया है कि विजय तो धर्म की और सत्य की ही होती है।
Line 47: Line 47:  
पश्चिम आज विनाश के कगार पर खड़ा है । उसने विश्व के लिये संकट खडे किये उन संकटों का दुष्प्रभाव वह स्वयं झेल रहा है। परिस्थिति उसके नियन्त्रण में नहीं रही है।
 
पश्चिम आज विनाश के कगार पर खड़ा है । उसने विश्व के लिये संकट खडे किये उन संकटों का दुष्प्रभाव वह स्वयं झेल रहा है। परिस्थिति उसके नियन्त्रण में नहीं रही है।
   −
पश्चिम को इस विनाश से बचाने के लिये भी भारत को ही सिद्ध होना पडेगा । भारत स्वयं भी पश्चिम से त्रस्त और ग्रस्त है परन्तु अपनी और पश्चिम की मुक्ति के लिये भारत को ही प्रयास करने होंगे।
+
पश्चिम को इस विनाश से बचाने के लिये भी भारत को ही सिद्ध होना पड़ेगा । भारत स्वयं भी पश्चिम से त्रस्त और ग्रस्त है परन्तु अपनी और पश्चिम की मुक्ति के लिये भारत को ही प्रयास करने होंगे।
    
भारत के लिये ये प्रयास सरल तो नहीं हैं। परन्तु विश्व में यदि कोई कर सकता है तो भारत ही है।
 
भारत के लिये ये प्रयास सरल तो नहीं हैं। परन्तु विश्व में यदि कोई कर सकता है तो भारत ही है।
Line 53: Line 53:  
इस कार्य में यशस्वी होने के लिये
 
इस कार्य में यशस्वी होने के लिये
   −
१. भारत को अपने में स्थित होना पडेगा अर्थात् भारत को भारत बनना पड़ेगा।
+
१. भारत को अपने में स्थित होना पड़ेगा अर्थात् भारत को भारत बनना पड़ेगा।
    
२. भारत को समर्थ बनना होगा।  
 
२. भारत को समर्थ बनना होगा।  
Line 88: Line 88:  
स्वायत्त का अर्थ है स्वाधीन । स्वाधीन होने का अर्थ है अपने स्वयं के ही अनुसार जीना, अपनी इच्छा सर्वोपरि होना । समर्थ समाज ही स्वायत्त और स्वतन्त्र होता है।
 
स्वायत्त का अर्थ है स्वाधीन । स्वाधीन होने का अर्थ है अपने स्वयं के ही अनुसार जीना, अपनी इच्छा सर्वोपरि होना । समर्थ समाज ही स्वायत्त और स्वतन्त्र होता है।
   −
स्वावलम्बी समाजरचना का प्रारम्भ व्यक्ति के स्वावलम्बी होने के साथ होता है । व्यक्ति के स्वावलम्बी होने का सीधा सादा सूत्र है अपना काम खुद करों' । अतः व्यक्ति को स्वयं के लिये आवश्यक सारे काम छोटी आयु से ही सिखाये जाते है। व्यक्ति खानापीना, चलनादौडना, नहानाधोना तो स्वयं करता ही है परन्तु कपडे धोना, बर्तन साफ करना, अपनी वस्तुओं को व्यवस्थित रखना, अपना वाहन तथा अन्य सामान व्यवस्थित रखना आदि भी स्वयं करता है। अपना जीवननिर्वाह भी स्वयं कर सके इतना कुशल बनना भी सिखाया जाता है। अपने सुखदुःख, आनन्दप्रमोद, चित्तवृत्तियाँ भी स्वंय के अधीन हो यह सिखाया जाता है।
+
स्वावलम्बी समाजरचना का प्रारम्भ व्यक्ति के स्वावलम्बी होने के साथ होता है । व्यक्ति के स्वावलम्बी होने का सीधा सादा सूत्र है अपना काम खुद करों' । अतः व्यक्ति को स्वयं के लिये आवश्यक सारे काम छोटी आयु से ही सिखाये जाते है। व्यक्ति खानापीना, चलनादौडना, नहानाधोना तो स्वयं करता ही है परन्तु कपड़े धोना, बर्तन साफ करना, अपनी वस्तुओं को व्यवस्थित रखना, अपना वाहन तथा अन्य सामान व्यवस्थित रखना आदि भी स्वयं करता है। अपना जीवननिर्वाह भी स्वयं कर सके इतना कुशल बनना भी सिखाया जाता है। अपने सुखदुःख, आनन्दप्रमोद, चित्तवृत्तियाँ भी स्वंय के अधीन हो यह सिखाया जाता है।
    
परन्तु व्यवहार जगत में व्यक्ति अकेला नहीं होता, अकेला रह भी नहीं सकता । उसे दूसरों के साथ रहना है । साथ रहने के लिये लेनदेन का व्यवहार करना ही होता है, दूसरों का काम करना होता है, दूसरों से काम लेना भी होता _है। तब स्वायत्तता और स्वतन्त्रता का क्या होगा ?
 
परन्तु व्यवहार जगत में व्यक्ति अकेला नहीं होता, अकेला रह भी नहीं सकता । उसे दूसरों के साथ रहना है । साथ रहने के लिये लेनदेन का व्यवहार करना ही होता है, दूसरों का काम करना होता है, दूसरों से काम लेना भी होता _है। तब स्वायत्तता और स्वतन्त्रता का क्या होगा ?

Navigation menu