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| == संहिता स्कन्ध का मूलाधार == | | == संहिता स्कन्ध का मूलाधार == |
− | गणित, गोल-गोलीय, यन्त्र तथा मानवीय बुद्धि का समवेत रूप है। मानवीय पिण्ड से गोलीय पिण्ड तक तथा गोलीय पिण्ड से ब्रह्माण्ड तक का पञ्चमहाभूतात्मक त्रिगुणात्मक विस्तार न्यूनाधिक रूप भूत निष्पत्ति, प्राणांश, क्षेत्रांश तथा कालांश का योगज एवं वियोगज चमत्कार मात्र है। तदवदानुकरण से आविष्कारों का प्रादुर्भाव विश्वव्यापी दृष्टान्त से प्रत्यक्ष है। सजीव क्रम में पञ्चमहाभूत, त्रिगुण, मन, बुद्धि, अहंकार, आत्मा तथा काल प्रभृति अवयव आत्मकेन्द्रिक हैं। | + | गणित, गोल-गोलीय, यन्त्र तथा मानवीय बुद्धि का समवेत रूप है। मानवीय पिण्ड से गोलीय पिण्ड तक तथा गोलीय पिण्ड से ब्रह्माण्ड तक का पञ्चमहाभूतात्मक त्रिगुणात्मक विस्तार न्यूनाधिक रूप भूत निष्पत्ति, प्राणांश, क्षेत्रांश तथा कालांश का योगज एवं वियोगज चमत्कार मात्र है। तदवदानुकरण से आविष्कारों का प्रादुर्भाव विश्वव्यापी दृष्टान्त से प्रत्यक्ष है। सजीव क्रम में पञ्चमहाभूत, त्रिगुण, मन, बुद्धि, अहंकार, आत्मा तथा काल प्रभृति अवयव आत्मकेन्द्रिक हैं।<ref>प्रो० सच्चिदानन्दमिश्र, [https://www.exoticindiaart.com/book/details/history-of-skandha-samhita-nzm870/ संहिता स्कन्ध का इतिहास], भारतीय विद्या संस्थान वाराणसी(पृ० २)।</ref> |
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| नीति शास्त्रगत मानवीय तथा सामाजिक सौहार्द्र को स्थापित करना सुख-शान्ति, आरोग्य, निर्भयत्व, कल्याण तथा दुःखहीन जीवन भारतीय संस्कृति तथा संहिता स्कन्ध का मूल लक्ष्य है। | | नीति शास्त्रगत मानवीय तथा सामाजिक सौहार्द्र को स्थापित करना सुख-शान्ति, आरोग्य, निर्भयत्व, कल्याण तथा दुःखहीन जीवन भारतीय संस्कृति तथा संहिता स्कन्ध का मूल लक्ष्य है। |
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| इसके अतिरिक्त इन उपस्कन्धों के भी अनेकों भेद हो सकते हैं, जिनका विस्तार-भय से यहाँ उल्लेख करना संभव नहीं है किन्तु यह तय है कि संहिता-स्कन्ध की परिकल्पना प्राचीन ऋषियों द्वारा जिस उद्देश्य से की गयी थी वह साकार व सफल तभी हो सकती है जब इसके प्रत्येक उपस्कंध पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिणाम-प्रद शोध किए जाएं।<ref name=":0" /> | | इसके अतिरिक्त इन उपस्कन्धों के भी अनेकों भेद हो सकते हैं, जिनका विस्तार-भय से यहाँ उल्लेख करना संभव नहीं है किन्तु यह तय है कि संहिता-स्कन्ध की परिकल्पना प्राचीन ऋषियों द्वारा जिस उद्देश्य से की गयी थी वह साकार व सफल तभी हो सकती है जब इसके प्रत्येक उपस्कंध पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में परिणाम-प्रद शोध किए जाएं।<ref name=":0" /> |
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− | === संहिता स्कन्ध के मुख्य विषय विभाग ===
| + | == संहिता स्कन्ध के मुख्य विषय विभाग == |
| प्रभाव की दृष्टि से संहिता के मुख्य तीन भाग हैं- | | प्रभाव की दृष्टि से संहिता के मुख्य तीन भाग हैं- |
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| ये तीन मुख्य प्रभेद हैं। पञ्चमहाभूत, ग्रहर्क्षसंरचना संचरण, उदयास्त, युति, भेद, लोप, ग्रहण आदि प्रभावोत्पादक हैं। पञ्चमहाभूत समस्त प्रभावों का आश्रय भूत है। भूतत्व के आश्रय से भौमप्रभाव व्यक्त होते हैं।<ref>प्रो० सच्चिदानन्द मिश्र, संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास, ज्योतिष खण्ड, संहिता स्कन्ध, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ,(पृ०२७४)। </ref> | | ये तीन मुख्य प्रभेद हैं। पञ्चमहाभूत, ग्रहर्क्षसंरचना संचरण, उदयास्त, युति, भेद, लोप, ग्रहण आदि प्रभावोत्पादक हैं। पञ्चमहाभूत समस्त प्रभावों का आश्रय भूत है। भूतत्व के आश्रय से भौमप्रभाव व्यक्त होते हैं।<ref>प्रो० सच्चिदानन्द मिश्र, संस्कृत वांग्मय का बृहद् इतिहास, ज्योतिष खण्ड, संहिता स्कन्ध, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान लखनऊ,(पृ०२७४)। </ref> |
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| + | == ज्योतिष की प्रमुख संहिताऐं == |
| + | वैदिक काल से हि ज्योतिषशास्त्र के संहिता संबंधित विभिन्न विषयों का लेखन प्रारंख हो चुका था, विशेष रूप से अथर्ववेद में संहिता संबंधित विभिन्न विषयों का वर्णन प्राप्त होता है। कालान्तर में अनेक आचार्यों ने संहिता संबंधित स्वतंत्र ग्रन्थों की रचना की। जैसे- |
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| + | * वृद्धगर्गीय संहिता |
| + | * बार्हस्पत्यसंहिता |
| + | * काश्यप संहिता |
| + | * भृगु संहिता |
| + | * गर्ग संहिता |
| + | * वशिष्ठ संहिता |
| + | * नारद संहिता |
| + | * पाराशर संहिता आदि |
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| + | छ्ठी शताब्दी में आचार्य वराहमिहिर ने उस समय में उपलब्ध सभी संहिता ग्रन्थों का अध्ययन कर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ बृहत्संहिता की रचना की। इस ग्रन्थ में पूर्ववर्ती अनेक आचार्यों का नामोल्लेख किया गया है। जिससे संहिता ग्रन्थों के निर्माण की सुदीर्घ परम्परा का ज्ञान होता है। यह उपलब्ध संहिता ग्रन्थों में सबसे प्राचीन एवं सम्पूर्ण विषयों का समावेश किया हुआ ग्रन्थ है। |
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| == रामायण में संहिता स्कन्ध के अंश == | | == रामायण में संहिता स्कन्ध के अंश == |
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| वास्तु विचार | | वास्तु विचार |
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| + | == सारांश == |
| + | प्रारंभ में ज्योतिषशास्त्र में अनेकों विषयों का समावेश था। परन्तु कालान्तर में इसके तीन प्रमुख विभाग माने गये - सिद्धान्त, संहिता और होरा। जो सम्यक् रूप से मनुष्य के हितों का प्रतिपादन करे वही संहिता है। ज्योतिष शास्त्र के तीन प्रमुख स्कन्धों में संहिता-स्कन्ध सबसे विशाल है, इसी कारण आचार्य वराहमिहिर जी ने कहा - <blockquote>तत् कार्त्स्न्योपनयस्य नाम मुनिभिः संकीर्त्यते संहिता।</blockquote>वैदिक संहिताओं से प्रारंभ करते हुए, संहिता ज्योतिष के विकास की एक सुदीर्घ परम्परा रही है। |
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| == उद्धरण == | | == उद्धरण == |
| + | <references /> |
| + | [[Category:Jyotisha]] |