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आदि वस्त्रों की लम्बाई नापना । इसी प्रकार घर में उपलब्ध भौमितिक आकृतियों वाली वस्तुओं के नाम लिखना । बाजार से खरीदी हुई सामग्री पर छपी हुई कीमत व वजन की सूची बनाना और इस सूची के आधार पर गणित के सवाल बनाना । घर में किराणा के समान की सूची वजन सहित लिखना । दवाइयों की कीमत एवं एक्सपायरी डेट की जाँच करना । घर में आने वाले समाचार पत्र एवं दूध का हिसाब रखना और मासिक बिल बनाना । अपने घर का मानचित्र बनाना, घर से विद्यालय जाने का मार्ग दिग्दर्शित करना । अपने गाँव के नक्शे में महत्त्वपूर्ण स्थान यथा - मंदिर, विद्यालय, चिकित्सालय, तालाब आदि भरना । गाँव में स्थित मंदिरों का इतिहास जानना जैसे अनेक प्रकार के गृहकार्य दिये जा सकते हैं । ऐसे वैविध्यपूर्ण गृहकार्य छात्र उत्साह से करेंगे और सीखेंगे । घर एवं शाला दोनों शिक्षा के केन्द्र हैं । 'विद्यालय शास्त्रों के अध्ययन का केन्द्र है तो घर उस अध्ययन की प्रयोगशाला है ।' विधिवत सही पद्धति से सूर्यनमस्कार करना सिखाना विद्यालय का काम है, और सीखे हुए सूर्यनमस्कार को घर में प्रतिदिन करना, यह घर का काम है । स्वच्छता, पर्यावरण रक्षा, जल संरक्षण के नियम व सिद्धान्त विद्यालय में सिखाना और घर में उन्हें लागू करना ।
 
आदि वस्त्रों की लम्बाई नापना । इसी प्रकार घर में उपलब्ध भौमितिक आकृतियों वाली वस्तुओं के नाम लिखना । बाजार से खरीदी हुई सामग्री पर छपी हुई कीमत व वजन की सूची बनाना और इस सूची के आधार पर गणित के सवाल बनाना । घर में किराणा के समान की सूची वजन सहित लिखना । दवाइयों की कीमत एवं एक्सपायरी डेट की जाँच करना । घर में आने वाले समाचार पत्र एवं दूध का हिसाब रखना और मासिक बिल बनाना । अपने घर का मानचित्र बनाना, घर से विद्यालय जाने का मार्ग दिग्दर्शित करना । अपने गाँव के नक्शे में महत्त्वपूर्ण स्थान यथा - मंदिर, विद्यालय, चिकित्सालय, तालाब आदि भरना । गाँव में स्थित मंदिरों का इतिहास जानना जैसे अनेक प्रकार के गृहकार्य दिये जा सकते हैं । ऐसे वैविध्यपूर्ण गृहकार्य छात्र उत्साह से करेंगे और सीखेंगे । घर एवं शाला दोनों शिक्षा के केन्द्र हैं । 'विद्यालय शास्त्रों के अध्ययन का केन्द्र है तो घर उस अध्ययन की प्रयोगशाला है ।' विधिवत सही पद्धति से सूर्यनमस्कार करना सिखाना विद्यालय का काम है, और सीखे हुए सूर्यनमस्कार को घर में प्रतिदिन करना, यह घर का काम है । स्वच्छता, पर्यावरण रक्षा, जल संरक्षण के नियम व सिद्धान्त विद्यालय में सिखाना और घर में उन्हें लागू करना ।
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इस प्रकार का रुचिपूर्ण गृहकार्य देना शिक्षक की
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इस प्रकार का रुचिपूर्ण गृहकार्य देना शिक्षक की कल्पनाशीलता और हेतुपूर्णता पर निर्भर करता है । आज ऐसे कुशल आचार्यों का अभाव दिखाई देता है । आजकल अलग-अलग प्रोजेक्ट (उपक्रम) देने की पद्धति चल पड़ी है। परन्तु प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए नेट से सम्पूर्ण जानकारी लेना, झेरोक्स करवाना, साज सज्ञा करके फाइल बनाना और उसमें माता-पिता का पूर्ण सहयोग लेना आदि बातों का समावेश होता है । यांत्रिक एवं तांत्रिक कार्यों की यह दशा है । ज्ञानार्जन के लिए नहीं अपितु अंकार्जन के लिए यह सब किया जाता है । अतः हेतुपूर्वक सार्थक गृहकार्य देने पर और अधिक चिन्तन-मनन की आवश्यकता है । अध्ययन अध्यापन से ज्ञानार्जन हो और गृहकार्य उसमें सहयोगी बने, ऐसी योजना एवं रचना करनी चाहिए ।
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कल्पनाशीलता और हेतुपूर्णता पर निर्भर करता है । आज
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==== कुछ विचारणीय बातें ====
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गृहकार्य शालेय जीवन का अनिवार्य अंग बन गया है । परन्तु इसके सम्बन्ध में विचारणीय बातें बहुत हैं । हम एक के बाद एक इनका विचार करेंगे ।
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ऐसे कुशल आचार्यों का अभाव दिखाई देता है । आजकल
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गृहकार्य का अर्थ है, घर का काम । घर में तो अनेक काम होते हैं। खाना, सोना, स्वच्छता करना, अतिथिसत्कार करना, अखबार पढ़ना, टीवी देखना आदि काम घर में ही होते हैं । हम जिसकी बात करते हैं अथवा गृहकार्य कहकर जो बात समझ में आती है वह ये सब काम नहीं हैं । विद्यालय में जो पढ़ाया जाता है उससे संबन्धित जो कार्य घर में किया जाना है, वह गृहकार्य है । गृहकार्य का अर्थ है घर में पढ़ाई ।  
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अलग-अलग प्रोजेक्ट (उपक्रम) देने की पद्धति चल पड़ी
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सामान्य रूप से गृहकार्य ऊपर कहा वैसे प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में होता है, उच्चशिक्षा में नहीं । उन्चशिक्षा में सर्वथा नहीं होता है ऐसा तो नहीं है परन्तु बहुत कम मात्रा में होता है ।
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है। परन्तु प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए नेट से सम्पूर्ण
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सामान्य रूप से विद्यालयों में जो गृहकार्य दिया जाता है वह लिखित रूप में होता है। कोई भी विषय हो लिखना ही मुख्य काम है । भाषा, गणित, विज्ञान, इतिहास, भूगोल आदि सभी विषयों में लिखित कार्य ही करवाया जाता है । भाषा में वर्तनी, व्याकरण, वाक्य, प्रश्नों के उत्तर, निबन्ध आदि, गणित में सवाल, सूत्र, प्रमेय आदि, विज्ञान में प्रयोग, प्रश्नों के उत्तर, कुछ विषयों में कंठस्थीकरण आदि के रूप में गृहकार्य होता है ।
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जानकारी लेना, झेरोक्स करवाना, साज सज्ञा करके फाइल
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सामान्य रूप में छोटी कक्षाओं में एक घण्टा और बड़ी में दो घण्टे का गृहकार्य होता है। भिन्न-भिन्न विद्यालयों में उसका समय भिन्न-भिन्न हो सकता है परन्तु औसत लगभग यही होता है ।
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बनाना और उसमें माता-पिता का पूर्ण सहयोग लेना आदि
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गृहकार्य जाँचे जाने के सम्बन्ध में दो प्रकार होते हैं । वह या तो जाँचा जाता है अथवा नहीं जांचा जाता । जाँचा जाता है वहाँ भी सुधार होता है कि नहीं, यह निश्चित नहीं है । सुधार के लिए उसे पुन: पुन: लिखने को कहा जाता है । गृहकार्य जाँचना शिक्षकों के लिए बहुत झंझट वाला काम होता है। इस विषय में अभिभावक और शिक्षक दोनों में वाद-विवाद होता ही रहता है । सामान्य विद्यालयों में अभिभावकों की बात सुनी-अनसुनी कर भी दी जाती है परन्तु ऊँचे शुल्क वाले विद्यालयों में अभिभावकों की बात सुननी ही पड़ती है ।
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बातों का समावेश होता है । यांत्रिक एवं तांत्रिक कार्यों की
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गृहकार्य कापी में किया जाता है । कभी पेंसिल से और कभी पेन से लिखा जाता है । प्रत्येक विषय की गृहकार्य की कापी अलग होती है । इन कापियों के कारण से ही बस्ते का बोझ कुछ मात्रा में बढ़ जाता है ।
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यह दशा है । ज्ञानार्जन के लिए नहीं अपितु अंकार्जन के
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गृहकार्य के सम्बन्ध में जो पुनर्विचार किया जाना चाहिए, उसका पहला बिंदु यह है कि शिक्षा की अन्य अनेक बातों की तरह गृहकार्य भी यांत्रिक हो गया है । शिक्षा के उद्देश्यों के साथ इसका सम्बन्ध है कि नहीं, इसका प्रायः विचार किए बिना ही एक कर्मकाण्ड की भाँति यह चलता है । कभी-कभी तो गृहकार्य देने से बच्चे घर में उधम नहीं मचाएँगे ऐसा भी माताओं को लगता है । वे गृहकार्य देने का आग्रह करती हैं ।
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लिए यह सब किया जाता है । अतः हेतुपूर्वक सार्थक
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अधिक पढ़ने से अधिक अच्छा पढ़ा जाता है, ऐसी एक भ्रांत धारणा बन गई है । ऐसा नहीं है कि यह केवल अभिभावकों की ही धारणा है । जिन्हें शिक्षा के विषय में सही धारणा होनी चाहिए उन शिक्षकों की भी ऐसी धारणा बनती है । यह धारणा सर्वथा अनुचित है । अधिक समय पढ़ने से अधिक अच्छा पढ़ा जाता है ऐसा नियम नहीं है । जो पढ़ना चाहिए वह पढ़ने से और जिस पद्धति से पढ़ना चाहिए उस पद्धति से पढ़ने से अच्छा पढ़ा जाता है । यांत्रिक पद्धति से गृहकार्य देने से या करने से समय, शक्ति और धन का व्यर्थ व्यय ही होता है । इसलिए यांत्रिक रूप से किया जाय ऐसा गृहकार्य नहीं देना चाहिए |
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गृहकार्य देने पर और अधिक चिन्तन-मनन की आवश्यकता
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दूसरा बिंदु यह है कि इस बात पर विचार किया जाय कि गृहकार्य हमेशा लिखित ही क्यों होना चाहिए । पढ़ाई केवल लिखकर नहीं होती है । पढ़ाई अनेक प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से होती है। अभिभावकों और शिक्षकों की यह भी पक्की धारणा बन गई है कि लिखना ही मुख्य कार्य है । ज्ञान कितना भी
 
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है । अध्ययन अध्यापन से ज्ञानार्जन हो और गृहकार्य उसमें
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सहयोगी बने, ऐसी योजना एवं रचना करनी चाहिए ।
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कुछ विचारणीय बातें
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गृहकार्य शालेय जीवन का अनिवार्य अंग बन गया है ।
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परन्तु इसके सम्बन्ध में विचारणीय बातें बहुत हैं । हम एक
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के बाद एक इनका विचार करेंगे ।
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श्,
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गृहकार्य का अर्थ है, घर का काम । घर में तो अनेक
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काम होते हैं। खाना, सोना, स्वच्छता करना,
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अतिथिसत्कार करना, अखबार पढ़ना, टीवी देखना
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आदि काम घर में ही होते हैं । हम जिसकी बात करते
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हैं अथवा गृहकार्य कहकर जो बात समझ में आती है
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वह ये सब काम नहीं हैं । विद्यालय में जो पढ़ाया
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जाता है उससे संबन्धित जो कार्य घर में किया जाना है,
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वह गृहकार्य है । गृहकार्य का अर्थ है घर में पढ़ाई ।
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सामान्य रूप से गृहकार्य ऊपर कहा वैसे प्राथमिक और
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माध्यमिक विद्यालयों में होता है, उच्चशिक्षा में नहीं ।
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उन्चशिक्षा में सर्वथा नहीं होता है ऐसा तो नहीं है परन्तु
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बहुत कम मात्रा में होता है ।
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सामान्य रूप से विद्यालयों में जो गृहकार्य दिया जाता है
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वह लिखित रूप में होता है। कोई भी विषय हो
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लिखना ही मुख्य काम है । भाषा, गणित, विज्ञान,
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ही करवाया जाता है । भाषा में वर्तनी, व्याकरण,
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वाक्य, प्रश्नों के उत्तर, निबन्ध आदि, गणित में सवाल,
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सूत्र, प्रमेय आदि, विज्ञान में प्रयोग, प्रश्नों के उत्तर,
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कुछ विषयों में कंठस्थीकरण आदि के रूप में गृहकार्य
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होता है ।
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सामान्य रूप में छोटी कक्षाओं में एक घण्टा और बड़ी
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में दो घण्टे का गृहकार्य होता है। भिन्न-भिन्न
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विद्यालयों में उसका समय भिन्न-भिन्न हो सकता है
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परन्तु औसत लगभग यही होता है ।
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गृहकार्य जाँचे जाने के सम्बन्ध में दो प्रकार होते हैं ।
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वह या तो जाँचा जाता है अथवा नहीं जांचा जाता ।
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जाँचा जाता है वहाँ भी सुधार होता है कि नहीं, यह
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निश्चित नहीं है । सुधार के लिए उसे पुन: पुन: लिखने
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को कहा जाता है । गृहकार्य जाँचना शिक्षकों के लिए
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बहुत झंझट वाला काम होता है। इस विषय में
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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अभिभावक और शिक्षक दोनों में वाद-विवाद होता ही
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रहता है । सामान्य विद्यालयों में अभिभावकों की बात
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सुनी-अनसुनी कर भी दी जाती है परन्तु ऊँचे शुल्क
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वाले विद्यालयों में अभिभावकों की बात सुननी ही
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पड़ती है ।
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गृहकार्य कापी में किया जाता है । कभी पेंसिल से और
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कभी पेन से लिखा जाता है । प्रत्येक विषय की गृहकार्य
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की कापी अलग होती है । इन कापियों के कारण से
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ही बस्ते का बोझ कुछ मात्रा में बढ़ जाता है ।
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गृहकार्य के सम्बन्ध में जो पुनर्विचार किया जाना
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चाहिए, उसका पहला बिंदु यह है कि शिक्षा की अन्य
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अनेक बातों की तरह गृहकार्य भी यांत्रिक हो गया है ।
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शिक्षा के उद्देश्यों के साथ इसका सम्बन्ध है कि नहीं,
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इसका प्रायः विचार किए बिना ही एक कर्मकाण्ड की
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लगता है । वे गृहकार्य देने का आग्रह करती हैं ।
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अधिक पढ़ने से अधिक अच्छा पढ़ा जाता है, ऐसी
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केवल अभिभावकों की ही धारणा है । जिन्हें शिक्षा के
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विषय में सही धारणा होनी चाहिए उन शिक्षकों की भी
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ऐसी धारणा बनती है । यह धारणा सर्वथा अनुचित
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है ऐसा नियम नहीं है । जो पढ़ना चाहिए वह पढ़ने से
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और जिस पद्धति से पढ़ना चाहिए उस पद्धति से पढ़ने
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से अच्छा पढ़ा जाता है । यांत्रिक पद्धति से गृहकार्य
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देने से या करने से समय, शक्ति और धन का व्यर्थ व्यय
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अभिभावकों और शिक्षकों की यह भी पक्की धारणा बन
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