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हिन्दू यह नाम "भारत" की तुलना में नया है । तथापि यह शब्द कम से कम २५०० वर्ष पुराना हो सकता है, ऐसा इतिहासकारों का कहना है ।
 
हिन्दू यह नाम "भारत" की तुलना में नया है । तथापि यह शब्द कम से कम २५०० वर्ष पुराना हो सकता है, ऐसा इतिहासकारों का कहना है ।
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१. '''बुद्धस्मृति में कहा है:'''<blockquote>हिंसया दूयत् यश्च सदाचरण तत्पर: ।</blockquote><blockquote>वेद गो प्रतिमा सेवी स हिन्दू मुखवर्णभाक ।।<ref>बुद्धस्मृति </ref></blockquote><blockquote>अर्थ : जो सदाचारी वैदिक मार्गपर चल;आनेवाला, गोभक्त, मूर्तिपूजक और हिंसा से दु:खी होनेवाला है, वह हिन्दू है।</blockquote>२. '''बृहस्पति आगम:'''<blockquote>हिमालयम् समारभ्य यावदिंदु सरोवरम् । तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानम् प्रचक्ष्यते ।।<ref>'''बृहस्पति आगम:'''</ref></blockquote>३. "द ओरीजीन ऑफ द वर्ड हिन्दू"<ref>सिस्टर निवेदिता अकादमी पब्लिकेशन, द ओरीजीन ऑफ द वर्ड हिन्दू ,१९९३</ref> में बताया गया है कि, मूल ईरान (पारसी) समाज की पवित्र पुस्तक ‘झेंद अवेस्ता’ में ‘हिन्दू’ शब्द का कई बार प्रयोग हुआ है । झेंद अवेस्ता के ६० % शब्द शुद्ध संस्कृत मूल के हैं । इस समाज का काल ईसाईयों या मुसलमानों से बहुत पुराना है । झेंद अवेस्ता का काल ईसा से कम से कम १ हजार वर्ष पुराना माना जाता है ।
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१. '''बुद्धस्मृति में कहा है:'''<blockquote>हिंसया दूयत् यश्च सदाचरण तत्पर: ।
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वेद गो प्रतिमा सेवी स हिन्दू मुखवर्णभाक ।।<ref>बुद्धस्मृति </ref>
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अर्थ : जो सदाचारी वैदिक मार्गपर चलनेवाला, गोभक्त, मूर्तिपूजक और हिंसा से दु:खी होनेवाला है, वह हिन्दू है।</blockquote>२. '''बृहस्पति आगम:'''<blockquote>हिमालयम् समारभ्य यावदिंदु सरोवरम् । तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानम् प्रचक्ष्यते ।।<ref>'''बृहस्पति आगम:'''</ref></blockquote>३. "द ओरीजीन ऑफ द वर्ड हिन्दू"<ref>सिस्टर निवेदिता अकादमी पब्लिकेशन, द ओरीजीन ऑफ द वर्ड हिन्दू ,१९९३</ref> में बताया गया है कि, मूल ईरान (पारसी) समाज की पवित्र पुस्तक ‘झेंद अवेस्ता’ में ‘हिन्दू’ शब्द का कई बार प्रयोग हुआ है । झेंद अवेस्ता के ६० % शब्द शुद्ध संस्कृत मूल के हैं । इस समाज का काल ईसाईयों या मुसलमानों से बहुत पुराना है । झेंद अवेस्ता का काल ईसा से कम से कम १ हजार वर्ष पुराना माना जाता है ।
    
४. '''पारसियों की पवित्र पुस्तक ‘शोतीर’ में फारसी लिपि में लिखा है: (भावार्थ)'''  
 
४. '''पारसियों की पवित्र पुस्तक ‘शोतीर’ में फारसी लिपि में लिखा है: (भावार्थ)'''  

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