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=== गणना करना (गिनती करना) ===
 
=== गणना करना (गिनती करना) ===
 
गिनती करना एक स्वतंत्र क्रिया है। वह स्लेट, पेन, या पुस्तक से नहीं हो सकती। मात्र बोलने से भी नहीं हो सकती। इसलिए गिनती करने में इन सबका उपयोग नहीं करना चाहिए। गिनती करने के लिए गणना के लिए बहुत सारी वस्तुएँ होती हैं। उदाहरण के तौर पर कक्ष की खिड़कियाँ, दरवाजे, चौकियां, आसन, चित्र, पंखे इत्यादि। छात्र भी गिनती की वस्तु बन सकते हैं। इस प्रकार गणना हमेशा मूर्त वस्तुओं से ही हो सकती है।
 
गिनती करना एक स्वतंत्र क्रिया है। वह स्लेट, पेन, या पुस्तक से नहीं हो सकती। मात्र बोलने से भी नहीं हो सकती। इसलिए गिनती करने में इन सबका उपयोग नहीं करना चाहिए। गिनती करने के लिए गणना के लिए बहुत सारी वस्तुएँ होती हैं। उदाहरण के तौर पर कक्ष की खिड़कियाँ, दरवाजे, चौकियां, आसन, चित्र, पंखे इत्यादि। छात्र भी गिनती की वस्तु बन सकते हैं। इस प्रकार गणना हमेशा मूर्त वस्तुओं से ही हो सकती है।
* १ से १०० तक गिनती कंठस्थ करने के बाद ही गिनती करने की शुरूआत करना चाहिए। प्रारंभ में १ से १० तक की संख्या गिनना चाहिए। इस गिनती का खूब अभ्यास करना चाहिए। १ से १० तक की गिनती करने के बाद क्रमशः १५, २०, २५... ऐसे ५० तक ले सकते हैं।  
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* १ से १०० तक गिनती कंठस्थ करने के बाद ही गिनती करने की आरम्भआत करना चाहिए। प्रारंभ में १ से १० तक की संख्या गिनना चाहिए। इस गिनती का खूब अभ्यास करना चाहिए। १ से १० तक की गिनती करने के बाद क्रमशः १५, २०, २५... ऐसे ५० तक ले सकते हैं।  
 
* ४० तक की गिनती के बाद १०-१० वस्तुओं का समूह बनाना चाहिए एवं प्रत्येक समूह को गिनवाना चाहिए। समूह की गिनती करवाते समय १०-१० का ही समूह बने इस तरह वस्तुएँ पसंद करना चाहिए। इस तरह समूह बनाते बनाते एवं गिनवाते गिनवाते ही गुणा, भाग, आदि की संकल्पना परोक्ष रूप से मस्तिष्क में बैठती जाए इस प्रकार छात्रों को गिनती करवाना चाहिए। (यहाँ गिनती करने एवं समूह बनाने का अभ्यास खूब करवाना चाहिए)
 
* ४० तक की गिनती के बाद १०-१० वस्तुओं का समूह बनाना चाहिए एवं प्रत्येक समूह को गिनवाना चाहिए। समूह की गिनती करवाते समय १०-१० का ही समूह बने इस तरह वस्तुएँ पसंद करना चाहिए। इस तरह समूह बनाते बनाते एवं गिनवाते गिनवाते ही गुणा, भाग, आदि की संकल्पना परोक्ष रूप से मस्तिष्क में बैठती जाए इस प्रकार छात्रों को गिनती करवाना चाहिए। (यहाँ गिनती करने एवं समूह बनाने का अभ्यास खूब करवाना चाहिए)
 
* इसके बाद समूह बनाते बनाते वस्तुओं की संख्या बढ़ती जाए एवं उनकी गिनती भी होती रहे, इस तरह वस्तुएँ लेना चाहिए। ऐसा करते-करते ही इकाई, दहाई की संकल्पना १०, २०, ३०... ५० के साथ ही साथ ११, ३५, ४७... जैसी संख्याएँ भी समझ में आती जाएँगी।
 
* इसके बाद समूह बनाते बनाते वस्तुओं की संख्या बढ़ती जाए एवं उनकी गिनती भी होती रहे, इस तरह वस्तुएँ लेना चाहिए। ऐसा करते-करते ही इकाई, दहाई की संकल्पना १०, २०, ३०... ५० के साथ ही साथ ११, ३५, ४७... जैसी संख्याएँ भी समझ में आती जाएँगी।
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भाषा के समान गणित में भी जैसा पढ़ते हैं वैसा ही लिखते हैं। यदि वाचन अच्छी तरह आता हो तो लिखना जल्दी आ जाता है।
 
भाषा के समान गणित में भी जैसा पढ़ते हैं वैसा ही लिखते हैं। यदि वाचन अच्छी तरह आता हो तो लिखना जल्दी आ जाता है।
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लेखन के क्रम में प्रथम खड़ी, तिरछी रेखा, अर्धवृत्त, संपूर्ण वृत इत्यादि जो हम उद्योग में सीखे थे, वह बहुत ही उपयोगी बनता है। इसलिए उद्योग में जब तक रेखा एवं वृत्त बनाना पूरा न हो जाए तब तक भाषा एवं गणित में स्वाभाविक रूप से ही लेखन शुरू नहीं हो पाएगा।  
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लेखन के क्रम में प्रथम खड़ी, तिरछी रेखा, अर्धवृत्त, संपूर्ण वृत इत्यादि जो हम उद्योग में सीखे थे, वह बहुत ही उपयोगी बनता है। इसलिए उद्योग में जब तक रेखा एवं वृत्त बनाना पूरा न हो जाए तब तक भाषा एवं गणित में स्वाभाविक रूप से ही लेखन आरम्भ नहीं हो पाएगा।  
 
* लिखने के क्रम में प्रथम १ से ९ एवं ०, बस इतना ही मौलिक लेखन है। शेष सब कुछ इन दस अंकों की विविध प्रकार की व्यवस्था ही है। इसलिए गणित का लेखन बहुत कठिन नहीं है।  
 
* लिखने के क्रम में प्रथम १ से ९ एवं ०, बस इतना ही मौलिक लेखन है। शेष सब कुछ इन दस अंकों की विविध प्रकार की व्यवस्था ही है। इसलिए गणित का लेखन बहुत कठिन नहीं है।  
 
* परंतु आड़ा एवं खड़ा, सीधी रेखा में लिखना आवश्यकता है। दो अंकों की संख्या लिखी हो तो उसमें इकाई के स्थान पर इकाई एवं दहाई के स्थान पर दहाई ही आए यह आवश्यक है। जोड़घटाव के चिहन भी सवाल की सीध में ही आने चाहिए। इसके अतिरिक्त वाचन के समान ही लेखन भी दो प्रकार का होता है - अंकों में एवं शब्दों में।  
 
* परंतु आड़ा एवं खड़ा, सीधी रेखा में लिखना आवश्यकता है। दो अंकों की संख्या लिखी हो तो उसमें इकाई के स्थान पर इकाई एवं दहाई के स्थान पर दहाई ही आए यह आवश्यक है। जोड़घटाव के चिहन भी सवाल की सीध में ही आने चाहिए। इसके अतिरिक्त वाचन के समान ही लेखन भी दो प्रकार का होता है - अंकों में एवं शब्दों में।  

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